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Updated: 16 जुलाई, 2015 05:53 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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आदरणीय साहेब जी,

हर हर महादेव. यहां सब लोग इसी तरह दुआ-सलाम करते हैं. आप यहां के सांसद पहले हैं, प्रधानमंत्री तो बाद में बने होंगे.

कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं. शायद जीते जी पूरे होने लायक नहीं होते. या फिर इतनी देर से पूरे होते हैं कि पूरा जीवन भी छोटा पड़ जाता है. कई तो ऐसे भी होते हैं कि मरने के बाद भी पूरे नहीं होते.

मैं खुशनसीब हूं. मेरा सपना मरने के बाद पूरा हो रहा है, खुशी मुझे इसी बात की है. लेकिन दुख इस बात का है कि मेरी मौत के कारण आपने बनारस का कार्यक्रम रद्द कर दिया.

मैं बहुत दिनों से आपकी राह देख रहा था. जब दो बार आपका कार्यक्रम रद्द हुआ तो सोचा पत्र लिख कर ही आपसे अपने मन की बात कह दूं. काश, ऐसा नियति को भी मंजूर होता.

जब आप पहली बार आए तो बताए कि मां गंगा ने आपको बुलाया है. चुनाव लड़े, जीते भी. पीएम तो आपको बनना ही था.

आप बनारस आए. संकट मोचन गए. काशी विश्वनाथ का भी आपने दर्शन किया. ये सब तो ठीक है.

क्या आपने काल भैरव का दर्शन किया? नहीं किया. फिर आप कैसे उम्मीद करते हैं कि आप 'ट्रॉमा सेंटर' का उद्घाटन कर पाएंगे साहेब.

क्या अभी तक किसी ने आपको नहीं बताया! हमे तो बड़ा ताज्जुब हो रहा है. खैर, फिलहाल तो पूरे शहर में एक ही चर्चा है. शहर के कोतवाल आपसे नाराज हो गए हैं, साहेब.

शिव के इस शहर के असली कोतवाल भैरव बाबा ही हैं. शायद ये बात अब तक आपको नहीं मालूम. इस शहर का एक रिवाज है, साहेब. यहां जो भी अधिकारी आता है - चाहे वो आईजी हो, कमिश्नर हो, डीएम हो या एसएसपी... जब तक वो भैरव के दरबार में मत्था नहीं टेकता उसका यहां टिकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है.

आपको क्या समझाना, साहेब. आप तो खुद ही इतने समझदार हैं. लेकिन मेरी ये बात मान लीजिए, साहेब. एक बार ऐसे ही आ जाइए. बाबा की 'भभूति' माथे पे लगा लीजिए. मालूम नहीं व्यापम से भी व्यापक बातें सामने आने के लिए उफान मार रही हों.

मुझे मरने का कम और आपके कार्यक्रम रद्द होने का ज्यादा अफसोस है. मैं तो देश के प्रधानमंत्री के लिए फूल सजा रहा था. मेरे लिए इससे बड़ी देश सेवा क्या हो सकती थी, साहेब. देश सेवा करते हुए जान देकर मैं उस धरती पर शहीद हुआ जहां मर कर मोक्ष के लिए न जाने कहां कहां से लोग बनारस आते हैं. मुझे तो मरने का डबल बेनिफिट मिलने वाला है.

वैसे मुझे उम्मीद थी आप जरूर आएंगे. मैं अक्सर बड़े लोगों को फूलों के गुलदस्ते से श्रद्धांजलि देते हुए टीवी पर देखता रहा हूं. आपको भी देखा है. आप तेजी से चलते हैं और लोग दौड़े दौड़े बड़ा सा बुके लेकर आपको थमा देते हैं. आप उसे चढ़ाते हैं - और हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हैं.

जब यमराज सामने आए तो सोचा, मैं तो धन्य हो गया. अब प्रधानमंत्री जी आएंगे और मुझे भी फूल जरूर चढ़ाएंगे. आपका भाषण सुनता रहा हूं. जोर जोर से बोलते हैं कि आप चाय बेचते थे. लगता था मेरे जैसे लोगों का दर्द समझने वाला कोई है तो सिर्फ आप ही हैं. लेकिन आपने तो अपना प्रोग्राम ही कैंसल कर दिया.

अरे आपको कितना टाइम लगता. एक बार आते और मेरे शरीर पर वे ही फूल रख देते जो मैं आपके लिए सजा रहा था.

खैर कोई बात नहीं. मैं तो यूं ही भावनाओं में बह गया था. आपकी बातों में आकर आपको अपने जैसा समझने लगा था. अपना सा महसूस करने लगा था.

कोई बात नहीं. फिर कभी सही. मेरी तरह तो न जाने कितने लोग इस मुल्क में मरते रहते हैं. आप कहां कहां जाइएगा साहेब? बस एक बात मत भूलिएगा साहेब. अब अगली बार कभी किसी को फूल चढ़ाइएगा तो एक बार मुझे बस याद जरूर कर लीजिएगा साहेब. मेरी आत्मा को बड़ी शांति मिलेगी.

आपकी मन की बात हमेशा सुनता रहा हूं. अगर सुनाई पड़ा तो आगे भी ये सिलसिला जारी रहेगा. ये मेरी मन की आखिरी बातें थीं. सोचा, चलते चलते शेयर कर लूं. उचित लगे तो आप भी एक ट्वीट कर दीजिएगा.

अलविदा, साहेब

अपना ख्याल रखिएगा

आपका अपना

देव नाथ

[ ... ... ... - 16 जून 2015]

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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