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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 08 फरवरी, 2017 03:41 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में चाहे जितनी भी दूरी हो, सियासत की तासीर एक ही लगती है. फर्क बस इतना है कि जो राजनीतिक घटनाक्रम यूपी में चुनाव से पहले ही घट गये, वे तमिलनाडु में महीनों बाद हो रहे हैं.

थोड़ा करीब से देखें तो जो परिवार और सरकार का संघर्ष यूपी में नजर आया, तमिलनाडु में भी घटनाक्रम करीब करीब वैसे ही दिखते हैं. सबसे दिलचस्प तो ये है कि बाहरी और भीतरी की जो अमर कहानी यूपी में सुनी गई बिलकुल वही तमिलनाडु में भी सुनी जा सकती है.

अमर बेल का जाल

तमिलनाडु में यूपी के अमर सिंह जैसा जो किरदार नजर आता है उसका नाम है - एम नटराजन. ये शशिकला के पति हैं. घोषित तौर पर नटराजन को शशिकला ने बरसों पहले छोड़ दिया था जब जयललिता ने पार्टी और पति दोनों में से किसी एक को चुनने की शर्त रख दी.

अमर सिंह तो तमाम विरोधों को दबाते हुए समाजवादी पार्टी में बाहरी से भीतरी बन गये, लेकिन नटराजन के लिए अब भी वहां नो एंट्री का बोर्ड लगा हुआ है.

m-natrajan_650_020817032657.jpgकानूनी उपायों की तलाश...

मुलायम सिंह के रहस्योद्घाटन के बाद लोगों ने जाना कि किस तरह अमर सिंह ने उन्हें एक मामले में सात साल की सजा होने से बचाया. ठीक उसी तरह नटराजन शशिकला को उस मामले में बचाने की कोशिश में हैं जिसमें वो सह-आरोपी हैं. खबरों के मुताबिक जयललिता के निधन के कुछ दिन बाद ही नटराजन दिल्ली में कई दिन तक डेरा डाले रहे - और कई नामी गिरामी वकीलों से संपर्क किया. खास बात ये रही कि नटराजन ने ज्यादातर ऐसे वकीलों से संपर्क किया जो राजनीतिक तौर पर भी ताकतवर हैं.

amar-singh_650_020817032741.jpgस्वघोषित झंडूबाम!

दोनों में अभी एक बड़ा फर्क यही है कि अमर सिंह अब एक बड़े लाव लश्कर के साथ चलने लगे हैं - और नटराजन अभी अकेला चना बन कर भाड़ फोड़ने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

परिवार और सरकार

यूपी के महाभारत में एक पक्ष परिवार को रहा जो पार्टी चला रहा था और दूसरा जिस पर सरकार चलाने की जिम्मेदारी रही. यूपी में परिवार का मतलब मुलायम और उनके भाई शिवपाल रहे तो तमिलनाडु में शशिकला और उनके भाई दिवाकरन हैं. यूपी में सरकार अखिलेश यादव की रही तो तमिलनाडु में ओ पनीरसेल्वम चला रहे हैं.

कहने को तो शशिकला महज दोस्त रहीं, लेकिन अम्मा यानी जयललिता के दौर में ही चिनम्मा का दर्जा हासिल हो गया. पहले उनका दखल सरकार के कामकाज में तो नहीं होता रहा, लेकिन पार्टी के मामलों को वो तकरीबन पूरा ही देखती रहीं. यहां तक कि पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट बांटे जाने में भी उनकी भूमिका मानी गयी. जयललिता के निधन के बाद से लेकर अब तक विधायकों के समर्पित सपोर्ट के पीछे ये भी बड़ी वजह हो सकती है.

akhilesh-msy-shivpal_020817032829.jpgअसली वारिस...

तब अखिलेश यादव के बगावत करने पर मुलायम ने उन्हें समाजवादी पार्टी के यूपी अध्यक्ष पद से हटा दिया था, अब पनीरसेल्वम के विद्रोह पर शशिकला ने उन्हें AIADMK के कोषाध्यक्ष पद से हटा दिया. मुलायम ने अखिलेश से अध्यक्ष पद लेकर शिवपाल को दे दिया था, लेकिन शशिकला ने पनीरसेल्वम की जगह डिंडिगल सी श्रीनिवासन को नया कोषाध्यक्ष बनाया.

यूपी के झगड़े में अखिलेश ने कई बार कहा कि अगर नेताजी चाहें तो वो मुख्यमंत्री का पद छोड़ने को तैयार हैं. तमिलनाडु में पनीरसेल्वम इस्तीफा दे चुके हैं. काफी देर बाद पनीरसेल्वम ने जयललिता की समाधि पर प्रार्थना के बाद आंख खोली तो बोले कि अम्मा की आत्मा से उनके साक्षात्कार के बाद उन्होंने फैसला किया है कि वो आखिरी सांस तक लड़ेंगे. पनीरसेल्वम ने बताया कि उन्होंने इस्तीफा अपने मन से नहीं दिया बल्कि जबरन ले लिया गया.

इस्तीफे में राजनीति

शशिकला ने पहले तो कहा था कि महामंत्री और मुख्यमंत्री पद उन्हें खुद पनीरसेल्वम ने ऑफर किया था. जहां कोषाध्यक्ष पद से हटाकर शशिकला ने लोगों को ये सोचने का मौका दे दिया कि उनके इरादे क्या हैं, वहीं पनीरसेल्वम ने अपने एक कदम से जता दिया कि वो राजनीति के कितने घुटे हुए खिलाड़ी बन चुके हैं. शशिकला को शायद पनीरसेल्वम की राजनीति की समझ का अंदाजा नहीं रहा होगा. शशिकला ने पनीरसेल्वम को तो पहले जैसा ही समझा लेकिन खुद को वो संभवत: जयललिता जैसा समझ बैठीं. पर पनीरसेल्वम ने भी जल्द ही साफ कर दिया कि जयललिता के प्रति जो उनकी निष्ठा थी वो तो जगजाहिर रही, लेकिन हर कोई उन्हें हल्के में न ले.

sasikala-supporters__020817031424.jpg"वो धोखेबाज है..."

जैसा कि पनीरसेल्वम ने बताया जब दोपहर में वो पोएस गार्डन पहुंचे तो कुछ ही देर पहले उन्हें विधायकों की मीटिंग के बारे में बताया गया था. बहरहाल, पनीरसेल्वम विधायकों की बैठक में शामिल हुए, बल्कि नये नेता के रूप में शशिकला के नाम का प्रस्ताव भी किया. बाद में उनका इस्तीफा गवर्नर ने मंजूर भी कर लिया और अगली व्यवस्था होने तक उन्हें बतौर कार्यवाहक सीएम काम करते रहने को कहा.

पनीरसेल्वम ने इस्तीफे पर दस्तखत के नीचे टाइम भी लिख दिया था - 1.41 pm. इससे ऐसा लगता है कि विधायकों की बैठक से पहले वो इस्तीफा दे चुके थे. इससे पनीरसेल्वम के दावों को बल मिलता है कि उनसे जबरन इस्तीफा लिया गया. अब पनीरसेल्वम को लेकर फैसला लेते वक्त गवर्नर सी विद्यासागर राव के सामने टाइमिंग फैक्टर भी विचार करने के लिए होगा.

झगड़े के पीछे कौन?

क्या समाजवादी पार्टी के पीछे जिन ताकतों के होने का शक जताया जा रहा था वही AIADMK के झगड़े में भी शामिल है? शिवपाल यादव ने कई बार राम गोपाल यादव का नाम लेकर कहा था कि वो बीजेपी के इशारे पर नाच रहे हैं. लेकिन शशिकला का कहना है कि पनीरसेल्वम तमिलनाडु की विपक्षी पार्टी डीएमके के भड़कावे पर ये सब कर रहे हैं.

शशिकला ने पनीरसेल्वम को धोखेबाज तक कह डाला है. शशिकला का ये बयान उस पनीरसेल्वम के लिए है जो हमेशा शास्त्रों में कहे गये भरत की तरह राम के नाम पर शासन चलाते रहे और अभी तक तुलना करते वक्त उन्हें उत्तर भारत के जीतन राम मांझी से अलग रखा जाता रहा.

ताकतवर कौन?

सवाल ये है कि बदलते वक्त के साथ तमिलनाडु की सियासत और सत्ता में सबसे ताकतवर कौन है - शशिकला या पनीरसेल्वम?

जिस तरह यूपी में मुलायम सिंह पर आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा चल चुका है, उसी तरह शशिकला के खिलाफ मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में है. कोर्ट के फैसले के पक्ष या खिलाफ आने की सूरत में शशिकला के लिए अर्श से फर्श पर पहुंचने की स्थिति हो सकती है. जाहिर है पनीरसेल्वम को भी फैसले का इंतजार होगा और शशिकला को भी तलवार लटकने जैसा महसूस हो रहा होगा.

एक तरह से देखें तो पनीरसेल्वम ने विरोध करके खुद को सियासत की सूली के आगे कर दिया है. पनीरसेल्वम अब तक के अपने कामों को लेकर जनता की अदालत में खड़े हैं - जिस तरह से उन्होंने जल्लीकट्टू की लड़ाई लड़ी, जिस तरीके से वो वरदा तूफान के वक्त लोगों के लिए एक पैर पर खड़े रहे. वैसे चेन्नई में आई बाढ़ के वक्त भी पनीरसेल्वम खासे एक्टिव रहे जबकि सीएम जयललिता थीं. अफसरशाही में भी पनीरसेल्वम ने अपनी अच्छी छवि पेश की है जिसे ब्यूरोक्रेसी पसंद करने लगी थी, शशिकला समर्थकों के डर की एक वजह ये भी रही. आम लोगों के बीच भी अभी तक पनीरसेल्वम की छवि अम्मा की नीतियों पर इमानदारी से अमल करने वाले मुख्यमंत्री की रही है.

panneerselval-prayer_020817031519.jpgआत्मा-साक्षात्कार की ताकत!

शशिकला का दावा इसलिए मजबूत है क्योंकि वो पार्टी की महासचिव हैं और विधायकों ने उन्हें अपना नेता चुन लिया है. संवैधानिक तौर पर मुख्यमंत्री पद के लिए वो हर तरीके से योग्य हैं. जल्लीकट्टू पर शशिकला ने भी खुद क्रेडिट ली थी और अब विधायकों को एकजुट रहने को कह रही हैं. शशिकला के पास अपनी बात के पीछे सिर्फ एक वजह है कि पनीरसेल्वम डीएमके की शह पर पार्टी को तबाह करना चाहते हैं.

इस्तीफे पर दस्तखत के नीचे वक्त लिखने के साथ साथ पनीरसेल्वम ने ब्रह्मास्त्र भी छोड़ दिया है - जयललिता की रहस्यमय मौत का मामला. जिन परिस्थितियों में आखिरी वक्त में जयललिता को हर किसी से अलग रखा गया उस पर सवालिया निशान मिटे नहीं हैं. अब तक माना जाता रहा कि जयललिता से इलाज के दौरान मिलने वालों में पनीरसेल्वम भी जरूर रहे होंगे, लेकिन अब तो उन्होंने भी कह दिया है कि वो अस्पताल जाते तो रोज रहे लेकिन उन्हें भी मिलने नहीं दिया जाता रहा.

पनीरसेल्वम के इस बयान के बाद तो ये बड़ा सवाल है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि उन्हें भी दूर रखा गया. जयललिता की मौत के बाद कई लोग शशिकला की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं. अब पनीरसेल्वम उसकी उच्चस्तरीय जांच की बात कर रहे हैं. निश्चित रूप ये मामला अब काफी गंभीर लगने लगा है. जयललिता के जिंदा रहते कम से कम दो बार शशिकला की निष्ठा और राजनीतिक गतिविधियों में उनकी भूमिका पर संदेह जताया जा चुका है.

जिस चुनाव आयोग की मुहर पर अखिलेश यूपी में विजेता बन पाये, उसी के पास शशिकला के महासचिव बनने पर सवाल उठाते हुए पत्र लिखा गया है. शिकायत के बाद चुनाव आयोग शशिकला के केस को कितनी गंभीरता से लेता है, देखना होगा. वैसे ये सियासत की अपनी खास रवायत है - जगह चाहे यूपी हो या तमिलनाडु - किरदार बदल जाते हैं कहानी तो बस वही रहती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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