हरिद्वार धर्म संसद और तौकीर रजा की नफरती बातों पर खतरनाक अनदेखी!
हरिद्वार धर्म संसद (Haridwar Dharm Sansad ) में मुस्लिमों (Muslim) के खिलाफ हेट स्पीच दी गई, तो बरेली में मौलाना तौकीर रजा (Tauqeer Raza Khan) ने हिंदुओं के लिए नफरती बातें कहीं. लेकिन, इन हेट स्पीच (Hate Speech) पर समाज के जिम्मेदार लोगों की खतरनाक अनदेखी इससे उपजने वाले गुस्से को और बढ़ा देती है.
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बीते महीने हरिद्वार धर्म संसद में साधु-संतों के भाषणों के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे. हरिद्वार धर्म संसद में मुस्लिमों के खिलाफ जमकर हेट स्पीच दी गई थी. हरिद्वार धर्म संसद के मंच से लोगों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठाने से लेकर म्यांमार जैसा नरसंहार करने तक का आह्वान किया गया था. अपने विवादित बयानों के लिए मशहूर यति नरसिंहानंद भी इस हरिद्वार धर्म संसद का हिस्सा थे. यति नरसिंघानंद ने भी मुस्लिमों के खिलाफ अनापशनाप बातें बोलने में कोई कमी नही की.
"Dharm Sansad" organised in Haridwar by Hindutva groups where explicit calls were given for Hindus to pick up arms against Muslims.Day 1, 17 Dec: Yati Narsinghanand said, "swords won't be enough to kill Muslims. We need beater weapons." pic.twitter.com/LwlDLkU1ar
— Aarif Shah (@aerifshaw) December 22, 2021
वहीं, इस मामले के करीब 20 दिन बाद बरेली की एक जनसभा में मौलाना तौकीर रजा ने कहा कि 'हमारी बहु बेटियों के लिए कहा जाता है कि इन्हें बर्गलाओ, इन्हें अपने जाल में फंसाओ, हमारी बहू बेटियों को बरगलाया जाता है. शर्म नहीं आती हम खून के आंसू रोते हैं. हम खून का घूंट पीकर रह जाते हैं, क्योंकि हम अपने मुल्क में अमन चाहते हैं, लेकिन अब हमारे सब्र का पैमाना टूट चुका है. मेरे नौजवानों के दिलों में कितना गुस्सा पनप रहा है. मैं डरता हूं, जिस दिन मेरा ही नौजवान कानून अपने हाथ में लेने को मजबूर होगा, तो तुम्हें हिंदुस्तान में कहीं पनाह नहीं मिलेगी. क्योंकि, हम पैदाइशी लड़ाके हैं.'
How dangerous is their thoughts?And we talk about secularism?UP’s Tauqeer Raza is spitting venom, listen ? pic.twitter.com/bm3E7zOIIB
— PoliticsSolitics (@IamPolSol) January 8, 2022
हरिद्वार धर्म संसद और मौलाना तौकीर रजा, दोनों ने ही अपने हिसाब से मुस्लिमों और हिंदुओं के बारे में बिना किसी रोक-टोक के नफरती बातें कीं. इन दोनों ही मामलों में जमकर विवाद हो रहा है. हरिद्वार धर्म संसद का मामला तो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. लेकिन, इन हेट स्पीच पर समाज के जिम्मेदार लोगों की खतरनाक अनदेखी इससे उपजने वाले गुस्से को और बढ़ा देती है. इन दोनों ही मामलों को लेकर एक बड़े वर्ग की सेलेक्टिव चुप्पी और सेलेक्टिव एप्रोच लोगों के बीच नफरत बढ़ावा दे रही है. जिन लोगों ने हरिद्वार धर्म संसद की बात उठाई, वो मौलाना तौकीर रजा के भड़काऊ बयानों पर शांत हैं. और, जिन्होंने तौकीर रजा के बयान पर आपत्ति जताई, वो हरिद्वार धर्म संसद पर चुप थे. हालांकि, इस मामले में भी अपवाद पाए जाते हैं. लेकिन, अपवादों को कभी भी गिना नहीं जाता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो हरिद्वार धर्म संसद और मौलाना तौकीर रजा की नफरती बातों पर तमाम जिम्मेदार लोगों की ये खतरनाक अनदेखी देश के लिए किसी भी हाल में अच्छी नहीं कही जा सकती है.
यहां दिलचस्प बात ये है कि नफरती बयान देने वालों की संख्या बहुत कम है. और, इस बात से ज्यादातर लोग सहमत भी हैं. लेकिन, सोशल मीडिया के इस दौर में ऐसी हेट स्पीच चुटकियों में वायरल होती हैं. जिसके चलते जितनी तालियां यति नरसिंघानंद के लिए बजती हैं, उतनी ही तालियां मौलाना तौकीर रजा जैसों के लिए भी बजती हैं. और, इन चंद लोगों की हेट स्पीच देश की बहुत बड़ी आबादी के दिमाग पर अपना असर छोड़ती है. क्योंकि, इन हेट स्पीच पर जिम्मेदारों की सेलेक्टिव चुप्पी केवल इन्हें बढ़ावा देती है. इन मामलों पर हिंदू धर्म के गुरुओं और मुस्लिम धर्म के आलिमों की जिम्मेदारी सबसे अहम है. लेकिन, इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि ऐसे तमाम मामलों पर वे इसकी निंदा करने की बजाय एकदूसरे पर आरोप लगाने लगते हैं. इतना ही नहीं, ये लोग भी हेट स्पीच पर सेलेक्टिव एप्रोच ही रखते हैं. ये धर्मगुरू और आलिम अपने-अपने समुदाय के खिलाफ दिए गए विवादित बयानों पर ही मुखर नजर आते हैं. लेकिन, दूसरे के खिलाफ कही गई बातों पर इनकी जबान नहीं खुलती है.
हेट स्पीच पर समाज के जिम्मेदार लोगों की खतरनाक अनदेखी इससे उपजने वाले गुस्से को और बढ़ा देती है.
वैसे, नफरती बयानों के इन मामलों पर कार्रवाई की जिम्मेदारी देश और राज्य सरकारों की भी बनती है. लेकिन, सरकारें अपने वोटबैंक को सहेजने के लिए ऐसे बयानों पर चुप्पी साधे रखती हैं. क्योंकि, सरकार चलाने वाले सियासी दलों के लिए ये वोटों के ध्रुवीकरण का एक आसान जरिया है. यही वजह है कि हरिद्वार धर्म संसद और मौलाना तौकीर रजा जैसे लोगों पर सरकारें कड़ी कार्रवाई करने से बचती हैं. और, इसमें उनकी मदद विपक्षी राजनीतिक दल करते हैं. क्योंकि, तमाम विपक्षी दल अपने सेलेक्टिव एजेंडा के तहत केवल हरिद्वार धर्म संसद में मुस्लिमों के खिलाफ दिए जा रहे बयानों जैसे मामलों को लेकर ही अपना विरोध दर्शाते रहे हैं. वहीं, मौलाना तौकीर रजा द्वारा हिंदुओं को लेकर दिए गए भड़काऊ बयानों पर गहरी चुप्पी साध जाते हैं. यहां तक कि ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की वकालत करने में भी सत्ताधारी दल और विपक्षी दल भी एक ही पक्ष की बात कहते हैं.
इतना ही नहीं, सोशल मीडिया पर खुद को कथित बुद्धिजीवी और लिबरल कहने वाले लोग भी इस सेलेक्टिव सोच से बचे नही हैं. मुस्लिम धर्म के खिलाफ कही गई बातों को ये हाथोंहाथ लेकर देश ही नहीं दुनियाभर में हिंदू धर्म को लानत-मलानत भेजने में जुट जाते हैं. लेकिन, हिंदुओं के खिलाफ कही गई बातों पर इन लोगों की उंगुलियां मोबाइल या कीबोर्ड पर चलने से पहले ही लकवाग्रस्त हो जाती हैं. क्योंकि, अगर ये हिंदुओं के खिलाफ की गई हेट स्पीच पर इनकी कोई प्रतिक्रिया आ जाएगी, तो देश का सामाजिक तानाबाना बिगड़ने के साथ ही इनका कथित बुद्धिजीवी और लिबरल वाला टैग भी खतरे में आ जाता है.
आसान शब्दों में कहा जाए, हरिद्वार धर्म संसद और तौकीर रजा की नफरती बातों की ये अनदेखी इन जिम्मेदार लोगों की वजह से ही खतरनाक मोड़ ले रही है. और, इनमें से शायद ही कोई खुद में सुधार लाने की गुंजाइश रखता है. क्योंकि, अगर इन हेट स्पीच पर इन सबकी ओर से निंदा करने की शुरुआत कर दी जाए, तो इन पर रोक लगाना बहुत हद तक संभव हो सकता है. लेकिन, अपने फायदों को देखते हुए इनके लिए ऐसा करना असंभव ही लगता है.
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