पार्टी के नेताओं का कोई सार्वजनिक बयान निजी कैसे हो सकता है?
दिग्विजय सिंह द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाना भर था. मामले ने तूल पकड़ लिया और दिलचस्प ये रहा कि राहुल गांधी समेत कांग्रेस पार्टी के तमाम नेताओं ने खुद को दिग्विजय सिंह के बयान से अलग कर लिया है. सवाल ये है कि पार्टी के नेताओं का सार्वजनिक दिया गया बयान निजी कैसे हो सकता है?
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गांधी परिवार के सबसे करीबी समझे जाने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह बेबाक हैं लेकिन उनकी यही बेबाकी अक्सर पार्टी को संकट में भी डाल देती है. जम्मू-कश्मीर में राहुल गांधी की यात्रा में शामिल हुए दिग्विजय सिंह ने सोमवार को भी ऐसा विवादास्पद बयान दे डाला, परन्तु राहुल गांधी ने मंगलवार को सर्जिकल स्ट्राइक पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के बयान से पल्ला झाड़ लिया. उन्होंने कहा- कांग्रेस ने सेना के शौर्य पर कभी सवाल नहीं उठाया है. अगर सेना कुछ करती है तो उस पर सबूत देने की जरूरत नहीं. ये दिग्विजय जी की निजी राय है. मैं इससे सहमत नहीं हूं. राहुल ने यह भी कहा कि कांग्रेस में किसी की बात को दबाया नहीं जाता, जहां चर्चा होगी वहां बेहूदा बात भी होगी. मुझे पार्टी के सीनियर लीडर के लिए ऐसा कहते हुए बुरा लग रहा है, लेकिन दिग्विजय जी ने बेहूदा बात ही कही है. जहां तक दिग्विजय जी के बयान की बात है. उन्होंने जो सर्जिकल स्ट्राइक पर कहा, उससे हम पूरी तरह डिसएग्री करते हैं. कांग्रेस पार्टी भी इससे सहमत नहीं है. हमारी आर्मी पर हमें पूरा भरोसा है.
सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर जो दिग्विजय ने कहा है वो किसी भी सूरत में उनकी निजी राय नहीं है
राहुल से पूछा गया कि दिग्विजय के बयान से पार्टी ने खुद को दूर कर दिया है, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती. इस पर राहुल ने कहा कि हमारी पार्टी डेमोक्रेटिक पार्टी है. यहां डिक्टेटरशिप नहीं है. हम दूसरे की आवाज दबाकर पार्टी चलाने में यकीन नहीं रखते हैं. यहां लोगों को अपनी बात रखने दी जाती है, चाहे वो पार्टी की सोच से कितनी भी अलग क्यों न हो. दिग्विजय जी ने जो भी कहा वे उनके निजी विचार हैं, लेकिन पार्टी के विचार उनके विचार से ऊपर हैं.
सवाल यह भी उठता है कि 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान दिग्विजय का दिया हुआ बयान निजी कैसे हो सकता है जबकि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मुख्य प्रभारी दिग्विजय सिंह ही हैं . उन्होंने घर बैठ कर तो ये बयान दिया नहीं था. इसलिये ये सवाल उठना लाजिमी है कि एक जमाने में मध्य प्रदेश में एकछत्र राज करने वाले दिग्विजय सिंह के इस तरह के विवादास्पद बयान देने के पीछे आखिर क्या सोच है और क्या वे इससे पार्टी का वोट बैंक मजबूत कर रहे हैं या फिर उसमें पलीता लगा रहे हैं?
हालांकि साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही दिग्विजय बीजेपी सरकार पर ऐसे हमलावर बयान देते आये हैं जिनकी खूब आलोचना भी हुई लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन्हें न कभी टोका और न ही कभी रोका. इसलिये दिग्विजय के इस ताजा बयान से पार्टी ने बेशक पल्ला झाड़ने की रस्म अदायगी कर दी लेकिन उसका सियासी मतलब तो यही निकाला जा रहा है कि कांग्रेस इस सरकार के खिलाफ जो आरोप अपने मंच से लगा पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है उसके लिए दिग्विजय सिंह को सब कुछ बोलने की खुली छूट मिली हुई है.
दरअसल, कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के जम्मू पहुंचते ही दिग्विजय सिंह ने गड़े मुर्दे उखाड़ते हुए मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर फिर से सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा था कि सर्जिकल स्ट्राइक की बात करते हैं कि हमने इतने लोगों को मार गिराया लेकिन इसका आज तक कोई प्रमाण नहीं है. आज तक घटना की जानकारी न संसद में पेश की गई और न ही जनता के सामने रखी गई. सर्जिकल स्ट्राइक की बात करके सिर्फ झूठ बोलने से ही राज कर रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर में राहुल गांधी की यात्रा को अगले छह दिनों में कैसा और कितना समर्थन मिलेगा, ये हम नहीं जानते. लेकिन दिग्विजय ने पाकिस्तान की सीमा से सटे इस राज्य में पुराने आरोपों को दोहराते हुए वहां के मुस्लिमों में मोदी सरकार के खिलाफ नफरत की गंध फैलाने की पुड़िया फिर से खोल दी है. वे नेता हैं और उन्हें अपनी बात कहने का पूरा हक भी है लेकिन सवाल उठता है कि जिस नाजुक मसले को लेकर न तो उनकी पार्टी ने, न सर्वोच्च न्यायालय ने और न ही मीडिया ने आज तक कोई सवाल उठाया, फिर वे इसे तूल देकर अब सियासत की कौन-सी नई बिसात बिछाना चाहते हैं?
यकीनन अगले दो-तीन महीने के भीतर जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन सोचने वाली बात ये है कि दिग्विजय के इस बयान से अगर वहां कांग्रेस को अपनी ताकत मजबूत होते हुए दिखती तो वो उनके बयान से पल्ला झाड़ने में इतनी जल्दबाजी नहीं दिखाती. कांग्रेस के कुछ नेता दलील देते हैं कि उनके बयान को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए क्योंकि वे सुर्खियों में बने रहने के लिए अक्सर विवादास्पद बातें कह जाते हैं. लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है.
वह इसलिये कि मनमोहन सिंह सरकार के दौरान उन्होंने ही सबसे पहले देश को 'भगवा आतंकवाद' का नाम दिया था और उसके पीछे भी उनकी एक सोच थी. लेकिन उन्होंने जिन लोगों के लिये ये नामकरण किया था, उन्हीं साध्वी प्रज्ञा भारती ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में दिग्विजय को भोपाल से हराकर ये साबित कर दिखाया कि उनका ये स्लोगन कितना बूमरैंग कर गया था.
दिग्विजय ने जम्मू के मंच से राहुल गांधी की मौजूदगी में पुलवामा हमले को लेकर मोदी सरकार पर कई सवाल उठाये हैं. उन्होंने कहा कि पुलवामा जो कि पूरे तरीके से आतंक का केंद्र बन चुका है बाहर गाड़ी की चेकिंग होती है वहां एक स्कॉर्पियो गाड़ी उल्टी दिशा से आती है उसकी जांच पड़ताल क्यों नहीं होती और और इसके बाद वो टकराती है और हमारे 40 सीआरपीएफ के जवान शहीद हो जाते हैं.
हालांकि उस घटना पर तमाम तरह के शक-शुभहे उठने के बाद मोदी सरकार को चौतरफा क्लीन चिट मिल चुकी है और उसके बाद ही बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया गया था. लेकिन दिग्विजय सिंह ने उन दोनों घटनाओं पर सवाल उठाकर अपनी ही पार्टी को शर्मिंदगी झेलने पर मजबूर कर दिया हैं.
शायद इसीलिए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश को ट्वीट करके ये सफाई देने पर मजबूर होना पड़ा कि ये पार्टी का स्टैंड नहीं है बल्कि उनके निजी विचार हैं. यहाँ तक कि उन्होंने दिग्विजय सिंह के सामने लगे हुए टी वी पत्रकार के माइक को हटा कर उन्हें बोलने से भी रोक दिया .बाद में उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि आज वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह द्वारा व्यक्त किए गए विचार कांग्रेस पार्टी के नहीं उनके व्यक्तिगत विचार हैं.
2014 से पहले यूपीए सरकार ने भी सर्जिकल स्ट्राइक की थी. राष्ट्रहित में सभी सैन्य कार्रवाइयों का कांग्रेस ने समर्थन किया है और आगे भी समर्थन करेगी. इसलिये सवाल उठता है कि पार्टी लाइन से अलग हटकर दिग्विजय सिंह अपनी अलग सियासी लाइन क्यों लेते हैं और अगर ऐसा करते हैं,तो क्या कांग्रेस नेतृत्व की उसमें मौन स्वीकृति होती है? समझना कठिन है कि कांग्रेस अपनी गलतियों से कोई सबक क्यों नहीं सीखती? जो अपनी गलतियों से सबक सीखने के बजाय उन्हें बार-बार दोहराए, उसे और कुछ जो भी कहा जाए,
बुद्धिमान तो बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता. यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि कांग्रेसी नेता पुरानी गलतियां दोहराने अथवा बेतुके बयान देने का काम इसीलिए करते हैं, क्योंकि स्वयं राहुल गांधी ऐसा करते रहते हैं. यह किसी से छिपा नहीं कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उन्होंने अपने वही पुराने बयान दोहराए हैं, जो वह पिछले चार-पांच वर्षों से उठाते आ रहे हैं. कठिनाई यह है कि इस क्रम में वह ऐसे बेतुके सवाल करने में भी संकोच नहीं करते, जिनसे उनकी और कांग्रेस की फजीहत ही होती है.
कोई नहीं जानता कि वह इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंच गए कि सैनिकों की भर्ती वाली अग्निवीर योजना सेना को कमजोर करने की साजिश है. आखिर वह ऐसा कैसे सोच लेते हैं? क्या कोई सरकार ऐसा कुछ कर सकती है? कांग्रेस पार्टी यह नहीं सोचती की उनकी गलत बयानबाजी भाजपा को उनपर प्रत्युत्तर देने व हमला करने का पूरा मौका देती हैं . अब भाजपा उन पर लगातार हमलावर है. मंगलवार को प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेने आये केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को राष्ट्र विरोधी यात्रा बताया.
उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति और संगठन भारत के वीर जवानों पर प्रश्नचिन्ह कर रहे हैं. जिन्होंने जीवन का बलिदान दिया हो. देश की एकता और अखंडता बनाई रखी हो. वहीं, ओसामा बिन लादेन को ओसामा जी कहते हैं. ऐसे लोगों को जितना हम कहें कम होगा. यही कांग्रेस पार्टी का असली चरित्र हैं. अख़बारों में छपे बयान के अनुसार विधायक रामेश्वर शर्मा ने कहा कि दिग्विजय सिंह पर निशाना साध सेना से मांग करते हुए कहा कि अब जब भी सर्जिकल स्ट्राइक हो.
पाकिस्तान के आतंकवादी कैंपो को उड़ाया जाए. बम फेंके जाए. तब दिग्विजय सिंह, राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल तीनों महापुरुषों को विमान के नीचे बांधकर ले जाएं. इनको भी बमों के साथ पटक दिया जाएं. जिससे यह भारत लौटकर आये तो गिनती अक्षरश: बता दें कि कितने आतंकवादी कैंप उड़े और कितने आतंकवादी मारे. साथ ही कौन कौन वहां आतंकवादियों की मौत के ऊपर आंसू बहाने वाला था. शर्मा ने कहा कि यह भारत की सेना का मनोबल गिराने का बयान देते है, लेकिन सेना का मनोबल गिरने वाला नहीं हैं.
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