फिर तो शाह फैसल और 'शाह गिलानी' में फर्क ही खत्म हो गया!
किसी रोल मॉडल का मुख्यधारा से भटकाव उसे फॉलो करने वालों के लिए बेहद खतरनाक होता है - शाह फैसल का ताजा बयान कश्मीरी नौजवानों के लिए जहर की पुड़िया है - और ये बेहद खतरनाक है.
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शाह फैसल फैसल के एक बयान ने उन्हें उसी मोड़ पर खड़ा कर दिया है. जहां सैयद अली शाह गिलानी जैसे नेता अपनी राजनीतिक लंबे अरसे से अपनी राजनीतिक दुकानदारी चलाते चले आ रहे हैं. शाह फैसल कश्मीरी नौजवानों के रोल मॉडल रहे हैं - लेकिन उनकी पहले की बातों और ताजा सोच में जमीन आसमान का फर्क दिखायी पड़ रहा है.
जम्मू-कश्मीर को लेकर धारा 370 हटाये जाने के केंद्र सरकार के फैसले का विरोध तो सारे विपक्षी दल कर रहे हैं, शाह फैसल सूबे के क्षेत्रीय दलों से भी दो कदम आगे बढ़े हुए नजर आ रहे हैं. जिस तरह महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला जैसे नेता धारा 370 को लेकर लगातार धमकी दे रहे थे, शाह फैसल का बयान भी उसी दिशा में दो कदम आगे बढ़ा हुआ है.
शाह फैसल ने धारा 370 खत्म किये जाने के बाद कश्मीरी नौजवानों के अलगाववाद की राह अख्तियार करने की आशंका जतायी है - ये वही शाह फैसल हैं जो कुछ महीने पहले तक ऐसी बातों पर चिंतित दिखायी देते रहे.
सबसे खतरनाक होता है रोल मॉडल का रास्ते से भटक जाना
शाह फैसल को जम्मू-कश्मीर की राजनीति तो काफी पहले से ही लुभा रही होगी, लेकिन ये बात जनवरी, 2019 में ही सामने आयी. जनवरी में शाह फैसल ने भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और मार्च में अपने नये राजनीतिक दल की घोषणा कर दी - जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट (JKPM). माना जा रहा था कि शाह फैसल की पार्टी 2019 का आम चुनाव भी लड़ेगी, लेकिन वक्त कम होने के चलते विधानसभा ही लड़ने का फैसला हुआ. तभी से शाह फैसल और उनके सियासी साथी पूरे सूबे में घूम घूम कर चुनाव की तैयारी में जुटे हुए थे.
जब केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को लेकर धारा 370 ही हटा दिया तो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के लिए ये वज्रपात साबित हुआ. ऐसे दलों में सबसे बड़े नुकसान में शाह फैसल रहे. कहां शाह फैसल और उनके साथी चुनाव जीत कर एक पूर्ण राज्य में सरकार बनाने की सोच रहे थे, कहां एक झटके में वो केंद्र शासित क्षेत्र हो गया. बिलकुल दिल्ली जैसा, जहां मुख्यमंत्री बनाम लेफ्टिनेंट गवर्नर की जंग बरसों से चली आ रही है.
रास्ते से क्यों भटकने लगे शाह फैसल?
जम्मू-कश्मीर का हाल दिल्ली जैसा तो हुआ ही, शाह फैसल के सामने चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनने की स्थिति में भी अरविंद केजरीवाल की सरकार की ही तरह सीमित अधिकार मिल पाएंगे, ज्यादातर फैसलों में अप्रूवल के लिए केंद्र सरकार का मुंह देखना होगा. खास बात ये है कि शाह फैसल और अरविंद केजरीवाल दोनों ही नौकरशाही की पृष्ठभूमि से आते हैं.
हैरानी की बात ये है कि जो शाह फैसल पहले संजीदगी के साथ बातें करते रहे - उनकी जबान भी वही भाषा बोलने लगी है सैयद अली शाह गिलानी जैसे अलगाववादी नेताओं की होती है या चुनावी मौसम में फारूक अब्दुल्ला बोला करते हैं.
शाह फैसल ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाये जाने को लेकर ऐसा बयान दिया है कि अलगाववादियों और उनकी सोच में फर्क करना मुश्किल हो रहा है.
Kashmir will need a long, sustained, non-violent political mass movement for restoration of the political rights.
Abolition of Article 370 has finished the mainstream. Constitutionalists are gone.
So you can either be a stooge or a separatist now.
No shades of grey.
— Shah Faesal (@shahfaesal) August 13, 2019
अब तक शाह फैसल के कई सपने पूरे हो चुके हैं - कुछ बाकी भी रह गये हैं. बचपन से IAS बनने का ख्वाब रहा होगा. बने भी. सिर्फ बने ही नहीं बल्कि 2009 में IAS टॉप करने वाले पहले कश्मीरी भी बने. लगता है धारा 370 हटाये जाने के बाद शाह फैसल के ख्वाब धुंधले दिखायी देने लगे हैं.
शाह फैसल को नहीं भूलना चाहिये था कि जम्मू-कश्मीर के नौजवानों के लिए हाल फिलहाल दो ही रोल मॉडल रहे हैं - एक खुद शाह फैसल और दूसरा बुरहान वानी. हिजबुल कमांडर बुरहान वानी को जुलाई, 2016 में सुरक्षा बलों ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था और उसके बाद से लगातार घाटी की स्थिति अशांत बनी हुई है.
जिन नौजवानों का रोल मॉडल बुरहान वानी है उनकी तो शेल्फ लाइफ ही सुरक्षा बलों के अनुसार सिर्फ एक साल रह गयी है, लेकिन जो नौजवान पढ़ लिखकर कुछ बनना और करना चाहते हैं, उनके सामने तो रोल मॉडल शाह फैसल ही हैं. शाह फैसला का धारा 370 हटाये जाने की बौखलाहट में का इतना गैर जिम्मेदाराना बयान घाटी के नौजवानों के लिए बेहद खतरनाक है.
कौन बनेगा कठपुतली - और कौन अलगाववादी?
शाह फैसल के कई सपने पूरे हो चुके हैं - कुछ बाकी भी रह गये हैं. बचपन से IAS बनने का ख्वाब रहा होगा. बन भी गये. सिर्फ बने ही नहीं बल्कि 2009 में IAS टॉप करने वाले पहले कश्मीरी भी बने. जाहिर है, धारा 370 हटाये जाने के बाद शाह के आगे के ख्वाब धुंधले दिखायी दे रहे होंगे.
हो सकता है शाह फैसल ने जम्मू-कश्मीर के लिए कुछ कल्याणकारी ख्वाब भी देखे हों. संभव है शाह फैसल ने जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री बन कर कुछ ऐसा काम सोच रखा हो जो वो नौकरशाह रहते पूरे न कर पाये हों - लेकिन ऐसा भी तो नहीं की सारे रास्ते ही बंद हो गये हैं.
वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तो यही कहा है कि जम्मू-कश्मीर को मिला UT स्टेटस अस्थायी व्यवस्था है. बाद में फिर से संसद उसे पहले की तरह पूर्ण राज्य के रूप में बहाल कर देगी - लेकिन क्या इतने भर के लिए शाह फैसल कश्मीरी नौजवानों को आग में झोंक देंगे? भारत सरकार का अफसर रह चुके किसी शख्स का ऐसा कदम तो बड़ा ही अजीब लगता है.
शाह फैसल का कहना है - ये जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक मुख्यधारा का पतन है. ये जम्मू-कश्मीर के उन सभी लोगों के चेहरे पर एक तमाचा है जिन्होंने भारतीय संविधान के मापदंडों के भीतर कश्मीर संघर्ष का समाधान मांगा.
अगर शाह फैसल यहां तक भी कहते तो शायद ही किसी को ऐतराज होता - लेकिन नौजवानों को ये समझाना कि उनके पास दूसरा विकल्प अलगाववादी या सीधे सीधे कहा जाये आतंकवादी ही बनना है तो बेहद अफसोस की बात है. ये घाटी के नौजवानों के लिए भी अफसोसजनक है.
आखिर शाह फैसल क्यों केंद्र शासित क्षेत्र में सरकार बनाने को कठपुतली मानते हैं? क्या वो दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को भी ऐसा ही मानते हैं?
ताज्जुब होता है कि जो शख्स हाल तक आतंकवाद को सामाजिक सहयोग मिलने को लेकर चिंता जताया करता रहा है, वो अब इस तरह की बातें करने लगा है. मार्च, 2019 में ही शाह फैसल ने इंडिया टुडे कॉनक्लेव में कहा था कि घाटी में आतंकवाद को सामाजिक समर्थन मिलने लगा है - और इसे लेकर पूर्व नौकरशाह ने फिक्र का इजहार किया था.
शाह फैसल का गुस्सा अपनी जगह है. ऐसा भी नहीं कि वो अब तक उस छोर पर कभी खड़े रहे जहां अलगाववादी या उनकी पैरवी करते मुख्यधारा के राजनेता खड़े हैं. शाह फैसल भी अरविंद केजरीवाल की तरह नये तरीके की राजनीति की उम्मीद हैं - कहीं ऐसा न हो केजरीवाल को चाहने वालों के हाथ जो निराशा लगी है, शाह फैसल की वजह से घाटी के लोगों को ज्यादा गहरा धक्का लगे.
शाह फैसल की निराशाजनक बातों के बीच उम्मीद की एक ही किरण बची है, जब वो कहते हैं, 'राजनीतिक अधिकारों को दोबारा पाने के लिए कश्मीर को लंबे, निरंतर और अहिंसक राजनीतिक आंदोलन की जरूरत है.'
बेहतर होता शाह फैसल घाटी के नौजवानों को सही रास्ता दिखाते और मुख्यधारा में बने रहने के लिए प्रेरित करते - वरना, दूसरे रास्ते की उम्र तो महज एक ही साल है.
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