बिहार सरकार में शामिल हुए शाहनवाज हुसैन क्या असर डालेंगे नीतीश कुमार पर
एमएलसी के तौर पर शाहनवाज हुसैन के चयन और बाद में बिहार कैबिनेट में शामिल होने के साथ अटकलों का दौर शुरू हो गया है. माना जा रहा है कि एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान के बाद बिहार में नीतीश कुमार की राजनीतिक ढाल को तोड़ने के लिए शाहनवाज हुसैन भाजपा की अगली 'मिसाइल' हैं.
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सैयद शाहनवाज हुसैन 32 साल की उम्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के सबसे कम उम्र के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बने थे. 1999 में शाहनवाज हुसैन को केंद्रीय राज्य मंत्री (MoS) बनाया गया था. अगले दो साल में शाहनवाज़ हुसैन को नागरिक उड्डयन मंत्रालय देकर कैबिनेट मंत्री के बना दिया गया. उस समय जदयू (JDU) के मुखिया नीतीश कुमार रेल मंत्री थे. बीती आठ फरवरी को 52 साल की उम्र में शाहनवाज हुसैन ने बिहार में नीतीश कुमार सरकार के मंत्री के रूप में शपथ ली. 20 सालों के अंतराल के बाद शाहनवाज हुसैन और नीतीश कुमार केंद्रीय कैबिनेट सहयोगियों से राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों में बदल गए हैं. अब, नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शाहनवाज हुसैन के बॉस हैं. शाहनवाज हुसैन का दिल्ली से पटना तक का सफर काफी शानदार रहा है. कहा जाता है कि शाहनवाज हुसैन का बिहार की राजनीति में उतरने का मन नहीं था. लेकिन, ये भी जाहिर है कि इसके अलावा उनके पास और कोई विकल्प भी नहीं था.
राजनीतिक हाशिये पर पहुंचे शाहनवाज
शाहनवाज हुसैन की गिनती लालकृष्ण आडवाणी के खेमे में की जाती थी. 2012-14 के दौरान जब भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन का दौर आया, तो शाहनवाज हुसैन ने इसे स्वीकार नहीं कर सके. वहीं, पार्टी के कई वरिष्ठ सदस्यों ने नेतृत्व परिवर्तन के फैसले को मान लिया था. हुसैन 2014 के लोकसभा चुनाव में दो बार के सांसद और मोदी लहर होने के बावजूद भागलपुर लोकसभा सीट से हार गए. जबकि, उन्होंने 1999 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल किशनगंज सीट से भाजपा उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी.
शाहनवाज हुसैन ने भाजपा के दिग्गज नेताओं दिवंगत सुषमा स्वराज और दिवंगत अरुण जेटली के साथ अच्छे व्यक्तिगत तालमेल बनाए. उनके उमा भारती, जो अयोध्या आंदोलन और बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान भाजपा के 'नायकों' में से एक थीं, के साथ भी अच्छे व्यक्तिगत संबंध थे. कहा जाता है कि उमा भारती की वजह से ही शाहनवाज हुसैन को अपने विवाह में आसानी रही, उनकी पत्नी हिंदू धर्म से हैं.
2014 के चुनाव में एक छोटे अंतर से हुसैन को हार मिली, लेकिन इसने उन्हें भाजपा में हाशिये पर धकेल दिया. भाजपा में नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी के करीबी लोगों में जगह बनाने में शाहनवाज हुसैन नाकाम रहे. वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में हुसैन को पार्टी का टिकट नहीं मिल पाया. दरअसल, बिहार में सीट शेयरिंग के तहत भागलपुर लोकसभा सीट जेडीयू के खाते में चली गई थी. शाहनवाज हुसैन ने बाद में इसके लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दोषी ठहराया था.
भाजपा ने शाहनवाज हुसैन को बिहार में विधान परिषद (MLC) का प्रत्याशी घोषित कर दिया.
बिहार की राजनीति में एंट्री
इस दौरान शाहनवाज हुसैन पार्टी के कामों में व्यस्त रहे और खुद को साबित किया. हाल ही में उन्होंने जिला विकास परिषद (DDC) चुनाव के दौरान जम्मू और कश्मीर में भाजपा के चुनावी माहौल पर निगरानी रखी. वहीं, जनवरी में भाजपा ने शाहनवाज हुसैन को बिहार में विधान परिषद (MLC) का प्रत्याशी घोषित कर दिया. एमएलसी के तौर पर उनके चयन और बाद में बिहार कैबिनेट में शामिल होने के साथ अटकलों का दौर शुरू हो गया है. माना जा रहा है कि एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान के बाद बिहार में नीतीश कुमार की राजनीतिक ढाल को तोड़ने के लिए शाहनवाज हुसैन भाजपा की अगली 'मिसाइल' हैं.
भाजपा को होंगे ये फायदे
कहा जाता है कि शाहनवाज हुसैन ने 2015 और 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था. पार्टी नेतृत्व चाहता था कि हुसैन बिहार की राजनीति की ओर रुख करें, लेकिन वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हुसैन ने इसे सीधे तौर पर 'डिमोशन' माना. हालांकि, शाहनवाज बिहार में नीतीश कुमार के पर कतरने और भाजपा के लिए राज्य में पार्टी का मुख्यमंत्री बनाने का मार्ग प्रशस्त करने के लिए अंतत: तैयार हो गए.
शाहनवाज हुसैन के बिहार की राजनीति में आने के बाद भाजपा को अपने ऊपर लगने वाले समावेशी न होने के आरोप को खारिज करने का मौका भी मिल सकता है. शाहनवाज हुसैन, भाजपा के लिए एक राष्ट्रीय स्तर का जाना माना मुस्लिम चेहरा हैं. ऐसी संभावना है कि हुसैन पश्चिम बंगाल, असम और केरल में आगामी विधानसभा चुनावों के प्रचार में शामिल रहेंगे. इन सभी राज्यों में मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या है.
सुशील कुमार मोदी के बिहार से केंद्रीय राजनीति में आने के बाद भाजपा को प्रदेश में नीतीश कुमार के राजनीतिक कद के बराबर का नेता चाहिए था. साथ ही एक ऐसे नेता की जरूरत थी, जो गुटबाजी करने वाले बिहार भाजपा के किसी खेमे से न हो. शाहनवाज हुसैन इस जरूरत पर पूरी तरह से फिट बैठते हैं.
इसका एक पहलू ये भी है कि बिहार में हिंदुत्व की राजनीति का आकर्षण बहुत कम है. जबकि, भाजपा के पास बिहार में हिंदुत्ववादी छवि वाले कई मजबूत नेता हैं. लेकिन, विधानसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए हिंदुत्व के मुद्दे का अपना एक सीमित दायरा है. बिहार में यह घूम-फिरकर जाति की राजनीति पर ही आ जाता है, जो हिंदुत्व अभियान को छोटा साबित कर देता है.
शाहनवाज हुसैन के तौर पर भाजपा को बिहार में मुस्लिम मुख्यमंत्री होने की संभावना तलाशने का मौका मिल रहा है. इससे भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर बनी हुई अपनी मुस्लिम विरोधी छवि को तोड़ने में भी मदद मिलेगी. शाहनवाज हुसैन, नीतीश कुमार कैबिनेट में पहले मुस्लिम मंत्री बने हैं. जेडीयू के सभी मुस्लिम प्रत्याशी 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में हार गए थे. वहीं, भाजपा और अन्य एनडीए घटक दलों ने इस चुनाव में कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा था.
आखिरकार शाहनवाज हुसैन को बिहार की राजनीति में उतारने के साथ ही दिल्ली की राष्ट्रीय राजनीति से दूर खड़ा कर दिया गया है. पार्टी से टिकट न मिलने के बाद हुसैन को उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें राज्यसभा भेजेगी, जिससे दिल्ली में उनका एक 'घर' हो सकेगा. बता दें कि शाहनवाज साउथ दिल्ली में एक किराये के मकान में रहते हैं. हालांकि, ऐसा कुछ नहीं हुआ और इसके बावजूद शाहनवाज हुसैन ने भाजपा नेतृत्व से बगावत नहीं की.
अब, शाहनवाज हुसैन के पास बिहार में भाजपा नेतृत्व का एक जरूरी मिशन है. हुसैन को अगले विधानसभा चुनाव से पहले 'नीतीश कुमार के अलावा कोई विकल्प नहीं' की छवि को तोड़ना होगा. साथ ही प्रदेश में भाजपा के चेहरे के तौर पर जगह बनानी होगी.
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