शरद पवार महाराष्ट्र के बाद आने वाले कई विधानसभा चुनाव में काम आएंगे!
महाराष्ट्र (Maharashtra) में शरद पवार (Sharad Pawar) ने उन्हीं प्रयोगों को अंजाम तक पहुंचाया है जिन्हें वो आम चुनाव (Election) से पहले आजमा रहे थे - तब और अब के हालात में फर्क ये था कि शिवसेना (Shiv Sena) और बीजेपी (BJP) की कमजोर कड़ी एनसीपी (NCP) नेता के हाथ लग चुकी थी.
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महाराष्ट्र (Maharashtra Power Politics) के मामले में संजय राउत (Sanjay Raut) ने जो तुक्के उछाले थे, हालात ने उन्हें तीर में तब्दील कर दिया. अब वो ऐसे दावे करने लगे हैं जैसे एक तुक्का लग जाने पर ज्योतिषी हर बात की भविष्यवाणी करने लगता है - गोवा को लेकर भी शिवसेना (Shiv Sena) प्रवक्ता का दावा वैसा ही लगता है. वैसे कांग्रेस (Congress) ने शिवसेना सांसद की बातों से खुद को अलग कर लिया है.
संजय राउत और शरद पवार (Sharad Pawar) में बड़ा फर्क है. बिलकुल वैसे ही जैसे गरजने और बरसने वाले बादलों में होता है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) के नतीजे आने के बाद शरद पवार आखिर तक कहते रहे कि वो जनादेश के साथ जाएंगे - हो सकता है जनादेश को लेकर उनकी सोच शुरू से ही वही रही हो जिस पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने अपने मनमाफिक सरकार बनवा डाली है.
देखा जाये तो शरद पवार आम चुनाव से पहले भी बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता के लिए वैसे ही प्रयासरत थे - लेकिन कामयाब तब हो पाये जब मामला उनके अपने इलाके में पहुंचा. ED के FIR के बाद शरद पवार जिस तरह आक्रामक हुए हैं, कोई ताज्जुब नहीं महाराष्ट्र वाला नुस्खा वो दिल्ली और बिहार में भी आजमाने की तैयारी कर रहे हों - सवाल है कि महाराष्ट्र का विपक्षी एकता मॉडल दूसरे राज्यों में भी चल सकता है क्या?
वो दिल्ली तो अभी बहुत दूर है
शरद पवार के पास विपक्ष को एकजुट करने के लिए लंबा वक्त बचा है और वो दिल्ली भी अभी दूर है - 2024 के आम चुनाव वाली. ये ठीक है कि बीजेपी आकंड़ों में सिमटी हुई नजर आने लगी है, लेकिन उसकी विचारधारा का संपर्क इतना व्यापक है कि चौतरफा समर्थन कायम है.
हां, एक दिल्ली शरद पवार के लिए नया एक्सेपेरिमेंट ग्राउंड जरूर बन सकती है - दिल्ली विधानसभा चुनाव.
आम चुनाव के दौरान दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन की काफी आगे तक कोशिशें हुई थीं. गौर करने वाली बात ये रही कि गठबंधन की पहल भी दिल्ली में सरकार चला रहे आप नेता अरविंद केजरीवाल ने की थी. तब तो अरविंद केजरीवाल भी वैसे ही उत्साहित नजर आ रहे थे जैसे दो साल पहले यूपी में अखिलेश यादव कहा करते रहे कि साइकिल को हाथ का सपोर्ट मिल जाये तो स्पीड पकड़ ले - आखिरकार गठबंधन नहीं हो पाया क्योंकि तत्कालीन दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित की दलीलों को तवज्जो मिली और नतीजों ने भी उन्हें सही साबित किया.
नजर जरूर है, लेकिन दिल्ली अभी दूर है...
शरद पवार अगर मिशन शुरू करते हैं तो कांग्रेस और आप नेतृत्व दोनों को समझाना होगा. शरद पवार की बातें इस बार पहले के मुकाबले ज्यादा दमदार हो सकती हैं क्योंकि एक मिशन को वो सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचा चुके हैं. अगर महाराष्ट्र मॉडल पर कांग्रेस और आप दिल्ली के लिए राजी हो गये तो बीजेपी के लिए मुश्किल तो खड़ी हो ही सकती है.
दिल्ली के बाद बारी बिहार की है. महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के नतीजे आने के बाद से नीतीश कुमार और उनके जेडीयू के साथी भी तेजी अंगड़ाई लेने लगे हैं. जेडीयू नेताओं की हरकत देख आरजेडी की ओर से रघुवंश प्रसाद सिंह भी नींद से जग चुके हैं और परदे के पीछे चल रही बातों का हवाला दे रहे हैं.
आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह को लालू प्रसाद की ही जबान माना जाता रहा, लेकिन अपनी बढ़ती उम्र, तेजस्वी के बढ़ते प्रभाव और लालू प्रसाद के जेल चले जाने के कारण वो ज्यादातर चुप रहने लगे हैं. फिर भी बीजेपी को बिहार की सत्ता से बाहर करने को लेकर जो बात रघुवंश प्रसाद सिंह ने कही है वो हल्के में लेने वाली तो नहीं ही लगती. खासकर जब हालात बदले बदले हों.
हालांकि, दिल्ली और बिहार चुनाव की तैयारियों की दशा और दिशा दोनों ही झारखंड विधानसभा के नतीजे आने के बाद ही तय हो पाएंगी - झारखंड का चुनाव बीजेपी के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि वही रास्ता दिखाएगा कि बीजेपी के लिए आगे कि राह कितनी आसान या मुश्किल है.
बिहार के आगे बंगाल है और...
बिहार चुनाव के खत्म हो जाने के थोड़े से अंतराल के बाद पांच राज्यों में चुनाव की तारीखें आएंगी और उनमें प्रमुख हैं - पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु. बीजेपी का इन तीनों ही राज्यों पर सबसे ज्यादा जोर रहेगा. ममता बनर्जी तो टारगेट पर सबसे ऊपर हैं.
पश्चिम बंगाल में तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आम चुनाव के समय से ही सक्रिय हैं - राहुल गांधी के केरल पहुंच जाने के बाद से तो वो संघ और बीजेपी को और भी खटकने लगा है.
महाराष्ट्र में भी शरद पवार ने परदे के पीछे वही राजनीति की जो आम चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्तर पर कर रहे थे. फर्क सिर्फ ये था कि आम चुनाव से पहले की विपक्ष की कवायद हवा हवाई थी और महाराष्ट्र में सब कुछ नतीजे आने के बाद हो रहा था - लिहाजा जो भी समीकरण बन या बिगड़ते लग रहे थे वे आंकड़ों पर आधारित रहे.
अगर महाराष्ट्र में बीजेपी की सीटें कम नहीं आयी होतीं तो - वैकल्पिक समीकरणों की दूर दूर तक कोई संभावना ही नहीं थी. आखिर आम चुनाव के नतीजे आने से पहले बीजेपी को ही लेकर चर्चा तो इस बात पर भी चली कि NDA की कम सीटें आने पर नरेंद्र मोदी की जगह कौन कौन ले सकता है. एक नाम तो नितिन गडकरी का भी रहा जो सबसे ऊपर चल रहा था.
कुछ मीडिया रिपोर्ट से तो ये भी मालूम हुआ था कि प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात में शरद पवार ने महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार को सपोर्ट करने को लेकर जो शर्त रखी वो नामंजूर हो गयी. रिपोर्ट के मुताबिक शरद पवार की तरफ से सुप्रिया सुले को कृषि मंत्रालय देने और महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की जगह किसी और को बनाने की डिमांड की गयी थी. सुप्रिया सुले को कैबिनेट में लेना तो उतना मुश्किल नहीं था, लेकिन कृषि मंत्रालय देना बीजेपी को गंवारा नहीं था. फिर तो जेडीयू की तरफ से भी रेल मंत्रालय की मांग हो सकती थी. दरअसल, शरद पवार पहले कृषि मंत्री और नीतीश कुमार रेल मंत्री रह चुके हैं. ये भी हो सकता है शरद पवार ने जानबूझ कर ऐसी शर्तें रखी हों कि बीजेपी के लिए मानना मुमकिन न हो - अगर मान लिया फिर तो बल्ले बल्ले.
शरद पवार के नये सिरे से सक्रिय होने की संभावना इसलिए भी लगती है क्योंकि विपक्षी खेमा उनके अनुभव से प्रभावित रहा है और महाराष्ट्र में तो एनसीपी नेता ने खुद को नये सिरे से साबित कर दिया है - और कांग्रेस नेतृत्व ने उद्धव ठाकरे के शपथग्रहण से दूरी बनाकर ग्रीन कॉरिडोर ही खाली कर दिया है.
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