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Updated: 11 अप्रिल, 2023 05:49 PM
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हिंडनबर्ग रिपोर्ट और अडानी पर शरद पवार के बयान से राहुल गांधी समेत पूरी कांग्रेस पार्टी सकते में हैं. चूंकि कुछ तो कहना था, सो कांग्रेस ने एक बार फिर बाउ डाउन ही किया जब कह दिया कि अडानी पर एनसीपी का अपना स्टैंड हो सकता है फिर भी मुद्दा गंभीर है. दरअसल ग्रैंड ओल्ड पार्टी के लिए अडानी का मुद्दा सिर्फ इसलिए मायने रखता है, चूंकि मुद्दा राहुल गांधी ने उठाया है. वरना तो पार्टी भलिभांति समझती है मुद्दा टांय टांय फिस्स है. दरअसल कांग्रेस को अंबानी और अडानी की मोदी से नजदीकियां फूटी आंखों नहीं सुहा रही और एक बार फिर राहुल गांधी ने मोदी + अडानी = मोडानी का कुत्सित विमर्श खड़ा कर दिया और दुष्परिणाम देश के निवेशकों को भुगतवा दिया.

एनसीपी प्रमुख का अचानक यूं मुखर होना बेवजह नहीं है और उनके बयान को सिरे से खारिज करने की जुर्रत कांग्रेस की भी नहीं है, अन्य विपक्षी पार्टियों की तो बिसात ही क्या है. पवार के बदले मन की बात को खंगालने के पहले देखें कि उन्होंने क्या क्या कहा?

भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा निजी क्षेत्र को लक्षित करने की परंपरा को याद करते हुए उन्होंने कहा कि 'कई साल पहले जब हम राजनीति में आए थे, तो अगर हमें सरकार के खिलाफ बोलना होता था, तो हम टाटा-बिड़ला के खिलाफ बोलते थे जबकि हम टाटा के योगदान को समझते थे और हमें आश्चर्य होता था कि हम टाटा-बिड़ला क्यों कहते रहे.'

Sharad Pawar, NCP, Maharashtra, Gautam Adani, Congress, Rahul Gandhi, Gulam Nabi Azad, Prime Minister, Narendra Modiअदानी मामले पर जो बातें शरद पवार ने कही हैं वो कांग्रेस और राहुल गांधी को परेशान करने के लिए काफी हैं

 

शरद पवार के मुताबिक़ आज अंबानी अडानी को निशाना बनाने की कवायद ठीक वैसी ही है और अब इस परंपरा को तजने की जरूरत है क्योंकि आज जनमानस कहीं ज्यादा परिपक्व है जिस वजह से किसी को भी निशाना बनाने के लिए 'थोथे कहे' बेअसर हो रहे हैं, उल्टे पड़ रहे हैं.

एनसीपी प्रमुख ने आगे कहा, 'आज अंबानी ने पेट्रोकेमिकल क्षेत्र में योगदान दिया है, क्या देश को इसकी आवश्यकता नहीं है?बिजली के क्षेत्र में, अदानी ने योगदान दिया है, क्या देश को बिजली की आवश्यकता नहीं है? ये ऐसे लोग हैं जो इस तरह की जिम्मेदारी लेते हैं और देश के नाम के लिए काम करते हैं. अगर उन्होंने गलत किया है, तो आप बेशक हमला करें, लेकिन उन्होंने यह बुनियादी ढांचा बनाया है, उनकी आलोचना करना मुझे सही नहीं लगता।'

अडानी मुद्दे की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति की मांग को भी गलत बताते हुए एनसीपी प्रमुख ने कहा, 'इस तरह के बयान पहले भी कुछ लोगों ने दिए थे. कुछ दिन संसद में हंगामा भी हुआ. इस बार इसे जरूरत से ज्यादा महत्व दे दिया गया. इस हंगामे की कीमत देश की अर्थव्यवस्था को चुकानी पड़ती है. इसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. ऐसा लगता है कि यहां टारगेट किया गया है.

दूसरी तरफ, विपक्ष ने JPC बनाने की मांग की. संसद में बहुमत किसका है, सत्ताधारी पार्टी की. मांग किसके खिलाफ की जा रही है, सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ. जांच के लिए अगर कमेटी बनेगी तो उसमें सत्ताधारी पार्टी का बहुमत रहेगा. तो सच्चाई कहां तक और कैसे सामने आएगी? इससे आशंका पैदा हो सकती है. अगर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी जांच करेगी तो सच बाहर आने की संभावना ज्यादा है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट की घोषणा के बाद जेपीसी जांच की कोई अहमियत नहीं है.'

दरअसल पवार ने जनता की नब्ज ठीक वैसे ही भांप ली है, जैसे एक के बाद एक कांग्रेस के नेतागण भांप कर पार्टी छोड़ छोड़ कर जा रहे हैं और जो नहीं छोड़ रहे हैं वे छोड़ने वालों की चुटकियां भर ही ले पा रहे हैं. और निःसंदेह कल और भी छोड़ने वालों में आज के कुछ चुटकीबाज भी होंगे.

राजनीति में टाइमिंग की खूब चर्चा होती है, लेकिन ऑटो मोड में टाइमिंग के सेट होने का दृष्टांत शायद ही दूजा है जिसमें कांग्रेस की किरकिरी बन चुके गुलाम नबी आजाद की राहुल गांधी और उनके सिपहसलारों को निशाना बनाती किताब का तमाम विपक्षी नेताओं की मौजूदगी में लांच होना, पद्म अवार्ड प्राप्त कर्नाटक के मुस्लिम शिल्पकार कादरी द्वारा मोदी की प्रशंसा करना, कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टार सुदीप किच्चा का बीजेपी को समर्थन करना, अनिल अंटोनी का बीजेपी ज्वाइन करना और शरद पवार का अडानी पर अपनाई कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी पार्टियों की रणनीति को नकारना. सारे इवेंट्स एक साथ हो रहे हैं.

अब शनैः शनैः एक के बाद एक विपक्ष की पार्टियों को एहसास हो चला है कि डेमोक्रेसी में मजबूत विपक्ष के होने की आवश्यकता पूरी करने के लिए 'राहुल कांग्रेस' को दरकिनार करना जरूरी है. फिर राहुल अपनी कुंठा भी जब्त नहीं कर पा रहे हैं और उनका आचरण, आचार-विचार किंचित भी राष्ट्रीय नेता सरीखा नहीं है. उनमें और एक सोशल मीडिया ट्रोलर में क्या फर्क रह गया है?

अडानी पर सवाल करते हुए बीस हजार करोड़ रुपयों को उन एक्स कांग्रेसियों मसलन गुलाम सिंधिया, किरण, हिमंता और अनिल से लिंक कर देते हैं जो कभी उनके ख़ास हुआ करते थे. कहने का मतलब कार्टूनिस्टों की भी क्या जरुरत है 'राहुल' है ना! पिछले दिनों ममता दीदी ने शुरुआत कर दी थी और अब एनसीपी सुप्रीमो पवार ने मोहर लगा दी है. कुल मिलाकर कांग्रेस विहीन विपक्ष के थर्ड फ्रंट की संभावना बहुत अधिक हो चली है.

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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