शत्रुघ्न सिन्हा पहले सौ बार खुद की सोचें, फिर देश की खातिर मोदी को चैलेंज करें!
2014 में नरेंद्र मोदी को वाराणसी में 56.37 वोट मिले थे. यानी सारे विपक्षी उम्मीदवारों को मिले वोट से भी ज्यादा. फूलपुर और गोरखपुर जैसे प्रयोग तो दूर की बात है, 2019 में वाराणसी में 'कैराना मॉडल' भी फेल हो सकता है.
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मोदी को चैलेंज करने वालों की उस चर्चित सूची में एक और नाम जुड़ गया है - शत्रुघ्न सिन्हा. शत्रुघ्न सिन्हा फिलहाल बिहार की पटना साहिब लोक सभा सीट से बीजेपी के सांसद हैं. बीजेपी के मौजूदा नेतृत्व से खफा होने के कारण शत्रुघ्न सिन्हा हरदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोहा लेते नजर आते हैं.
11 अक्टूबर को लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्मतिथि के मौके पर शत्रुघ्न सिन्हा लखनऊ में थे. ये कार्यक्रम समाजवादी पार्टी के मुख्यालय में आयोजित हुआ था - और वहीं से शत्रुघ्न सिन्हा के वाराणसी से चुनाव लड़ने की चर्चा छिड़ गयी.
2014 में आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल ने वाराणसी में मोदी को चुनौती दी थी. तब से मोदी को चुनौती देने को लेकर कोई न कोई नाम अक्सर हवा में तैरता रहता है. शत्रुघ्न सिन्हा का नाम इस कड़ी में नया जुड़ा है.
बीजेपी के गढ़ में मोदी को चैलेंज!
8 सितंबर को नोएडा में आम आदमी पार्टी की जन अधिकार यात्रा के खत्म होने के मौके पर एक रैली आयोजित हुई थी. आप की इस रैली में भी शत्रुघ्न सिन्हा पहुंचे थे - और साथ में बीजेपी छोड़ चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा भी रहे. ये रैली आप के राज्य सभा सांसद संजय सिंह की पदयात्रा के समापन पर हुई थी.
मौके की नजाकत को समझ अरविंद केजरीवाल ने शत्रुघ्न और यशवंत सिन्हा दोनों को चुनाव लड़ने की सलाह दी.
कहीं वोटर खामोश हो गये तो?
अरविंद केजरीवाल ने कहा, "कुछ दिन पहले यशवंत जी ने कहा था कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे... सर, मैं कहना चाहता हूं कि आप जैसे अच्छे व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ेंगे तो फिर कौन लड़ेगा... जनता चाहती है कि आप चुनाव लड़ें..."
शत्रुघ्न सिन्हा के बारे में केजरीवाल का कहना रहा, "शत्रुघ्न जी चुनाव लड़ रहे हैं... उन्होंने इसे खारिज नहीं किया है..."
वैसे केजरीवाल ने ये नहीं जाहिर होने दिया कि आप उन्हें टिकट देने में कोई दिलचस्पी है भी या नहीं. ये भी साफ नहीं किया कि दोनों को चुनाव आप से ही लड़ना चाहिये या किसी और पार्टी के टिकट पर.
शत्रुघ्न सिन्हा हमेशा की तरह बीजेपी नेतृत्व पर हमलावर रहे और कहा, "भले ही आप कहते हो कि मैं बीजेपी का हूं लेकिन सबसे पहले मैं भारत का नागरिक हूं... पार्टी से पहले देश है..."
शत्रुघ्न सिन्हा और केजरीवाल में काफी फर्क है
तो क्या शत्रुघ्न सिन्हा ये समझाना चाह रहे हैं कि वो जो भी करने वाले हैं सब देश की खातिर है - और बीजेपी देश हित में कुछ भी नहीं कर रही है. महीने भर बाद समाजवादी पार्टी के कार्यक्रम में शत्रुघ्न सिन्हा के पहुंचते ही उनके वाराणसी से चुनाव लड़ने की चर्चा शुरू हो गयी है. मीडिया में राजनीति के जानकारों के जरिये रिपोर्ट भी आने लगी है कि शत्रुघ्न सिन्हा वाराणसी में काफी लोकप्रिय हैं. सूत्रों के हवाले से आई खबर में भी कहा गया है कि समाजवादी पार्टी शत्रुघ्न सिन्हा को 2019 में वाराणसी से टिकट ऑफर कर सकती है. शत्रुघ्न सिन्हा की चुनावी संभावनाओं के साथ वाराणसी को पटना के पास और शहर में कायस्थ वोटों की संख्या का भी हवाला दिया जा रहा है.
सवाल ये है कि आखिर समाजवादी पार्टी के टिकट पर वाराणसी से चुनाव लड़कर शत्रुघ्न सिन्हा को हासिल क्या होगा? पिछले तीन चुनावों में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को सिर्फ एक बार एक लाख से ऊपर वोट मिला है.
बनारस में 'कैराना मॉडल' भी नहीं चलेगा
नब्बे के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान बीजेपी को पहली बार वाराणसी सीट पर कामयाबी मिली. 1991 में श्रीश चंद्र दीक्षित को बाहर से भेजा गया था. श्रीश चंद्र दीक्षित पुलिस सेवा से रिटायर होने के बाद वीएचपी से जुड़ गये थे और रामजन्म भूमि आंदोल में गिरफ्तार भी हुए - रायबरेली से बनारस पहुंच कर श्रीश चंद्र दीक्षित ने लोक सभा सीट बीजेपी की झोली में डाल दी.
श्रीश चंद्र दीक्षित के बाद लगातार तीन बार शंकर प्रसाद जायसवाल जीते, लेकिन 2004 में कांग्रेस के राजेश मिश्रा ने बाजी मार ली. 2009 में बीजेपी ने इलाहाबाद से मुरली मनोहर जोशी को वाराणसी भेजा और सीट बीजेपी के पास ही रही. 2014 में गंगा के बुलाने पर नरेंद्र मोदी काशी पहुंचे और वाराणसी से मौजूदा सांसद हैं.
बनारस में कैराना मॉडल भी नहीं चलने वाला...
2014 में नरेंद्र मोदी को 5,81,002 वोट मिले थे, जबकि अरविंद केजरीवाल को 2,09,238 वोट. हार का अंतर साढ़े तीन लाख से ज्यादा का रहा. जहां तक समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार का सवाल है तो कैलाश चौरसिया को तब 45,291 वोट मिल पाये थे. समाजवादी पार्टी ने 2009 में जब अजय राय को मैदान में उतारा था तो उन्हें 1,23,874 वोट मिले थे. यही अजय राय जब कांग्रेस के टिकट पर मोदी के खिलाफ चुनाव लड़े तो उन्हें 75,614 ही मिल पाये थे. 2004 में अंजना प्रकाश को 59,518 वोट मिले थे.
आंकड़ों को देखकर लगता है कि समाजवादी पार्टी को 50,000 के आस पास वोट मिलते हैं. अगर उम्मीदवार मजबूत हुआ तो ये नंबर बढ़ जाता है. शत्रुघ्न सिन्हा के उम्मीदवार बनने के केस में भी ऐसा संभव है - क्योंकि 2009 में अजय राय को एक लाख से ज्यादा वोट मिले थे.
फर्ज कीजिए वाराणसी में गोरखपुर और फूलपुर मॉडल आजमाया जाता है तो 2014 के हिसाब से समाजवादी पार्टी और बीएसपी के कुल 1,05,870 वोट हो सकते हैं.
अगर मोदी के अच्छे दिन चले जाते हैं तो भी 2014 में कुल 10,30,685 वोट पड़े थे और आधे से ज्यादा वोट मोदी के खाते में आये - यानी बनारस में मोदी के खिलाफ 'कैराना मॉडल' भी फेल हो सकता है.
केजरीवाल और शत्रुघ्न सिन्हा में फर्क है
एक बार पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा का टिकट काट कर बिहार के मौजूदा डिप्टी सीएम सुशील मोदी को देने की चर्चा जोर पकड़ी थी. तब ट्विटर पर शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी बात रखी - और कहा कि वो कहीं नहीं जाने वाले.
In the era of fake news, planted news & paid news, latest rumours on Patna Lok Sabha BJP candidature - "Nothing official about it". But even if it's official, how does it matter? Anyway, my stand remains the same “Situation may be different, location will be same – Patna Sahib,
— Shatrughan Sinha (@ShatruganSinha) September 23, 2018
Patna Sahib & Patna Sahib...I welcome any aspirant in this democratic fight. Nothing wrong! Jai Bihar! Jai Hind!
— Shatrughan Sinha (@ShatruganSinha) September 23, 2018
शत्रुघ्न सिन्हा पटना साहिब से दूसरी बार सांसद बने हैं, लेकिन एक बार फिर ऐसा ही होगा, ऐसा बिलकुल नहीं लगता. लालू प्रसाद से नजदीकियों के चलते कयास ये भी लगाये जाते रहे हैं कि बीजेपी से टिकट कटने पर शत्रुघ्न सिन्हा आरजेडी के उम्मीदवार हो सकते हैं. वैसे फिलहाल तो उनके काशी कनेक्शन की ही चर्चा सबसे ऊपर है.
शत्रुघ्न सिन्हा के लिए ध्यान देने वाली बात ये है कि वो ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां फिर से संसद पहुंचना ही नहीं मुख्यधारा की राजनीति में बने रहना भी बड़ी चुनौती है. अगर केजरीवाल की तरह मोदी को चैलेंज करने के बारे में सोच भी रहे हैं तो पहले हकीकत को समझना होगा. शत्रुघ्न सिन्हा और केजरीवाल में बहुत फर्क है. 2014 केजरीवाल के पास गंवाने को बहुत कुछ नहीं था. बस खुद को आजमाना चाह रहे होंगे. वैसे भी 2014 और 2019 के मोदी में काफी फर्क होगा. पांच साल में क्या किया नहीं किया उसकी विवेचना और विश्लेषण होते रहेंगे. केजरीवाल के सामने तब हार जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण चुनौती देना था. हो सकता है एक बार लगा हो कि जब दिल्ली के चीफ मिनिस्टर को दिल्ली में धूल चटा दी तो गुजरात के सीएम को बनारस में भी हराया जा सकता है.
शिकस्त के बावजूद केजरीवाल का कुछ भी नहीं बिगड़ा, लेकिन चूक जाने पर शत्रुघ्न सिन्हा के कॅरियर को बहुत जोर का झटका लग सकता है. अरविंद केजरीवाल अभी 50 साल के हैं और जब 2014 में मोदी के खिलाफ चुनाव लड़े थे तो 46 साल के थे. फिलहाल शत्रुघ्न सिन्हा 72 साल के हैं, 2019 में एक साल और जुड़ जाने पर 73 के हो जाएंगे.
2019 में बीजेपी सत्ता में लौटे सकेगी या नहीं, किसे मालूम लेकिन उसके गढ़ बनारस में मोदी को हराना असंभव सा ही है. हां, अगर शत्रुघ्न सिन्हा सियासी मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं, फिर तो बनारस से बेहतर जगह कोई हो भी नहीं सकती.
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