पासवान का नाम उछालने के पीछे क्या है शत्रुघ्न की सियासत?
एनडीए में राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा दोनों खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानते रहे हैं, खासकर जीतन राम मांझी के हाथ मिला लेने के बाद.
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एनडीए में राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा दोनों खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानते रहे हैं, खासकर जीतन राम मांझी के हाथ मिला लेने के बाद. विधान परिषद चुनाव में पासवान की पार्टी को तो एक सीट मिली भी लेकिन कुशवाहा को एक भी नहीं मिली. इस कारण कुशवाहा के तेवर थोड़े कम हो गए.
मंत्री न बन पाने का मलाल
2003 से 2004 तक केंद्र में मंत्री रहे सिन्हा को इस बार भी मंत्रिमंडल में लिए जाने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. खुद को मंत्री पद न दिए जाने पर उन्होंने कहा था, "मुझे मंत्रालय नहीं दिया गया है. मैं उम्मीद करता हूं कि ऐसा किसी सजा के तहत न किया गया हो."
जब ये सवाल बीजेपी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन के सामने आया तो उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, "कौन कहता है उनके पास मंत्रालय नहीं है. उनके पास 'लालू-नीतीश हटाओ मंत्रालय' है."
जब बिहार विधान सभा चुनाव की बात हुई तब भी उन्हें तवज्जो नहीं दिया गया. इस पर सिन्हा खुलेआम नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं. शत्रुघ्न सिन्हा लालकृष्ण आडवाणी को अपना फ्रेंड, फिलॉसफर और गाइड बताते हैं. और एक भारी भरकम डायलॉग भी जड़ देते हैं, "आडवाणी शायद आखिरी मुगल, आज के भारत के रियल स्टेट्समैन हैं."
फायदा किसका?
बिहारी बाबू के नाम से मशहूर शत्रुघ्न सिन्हा ने अभी मुख्यमंत्री पद के लिए पासवान का नाम उछाल दिया. बीजेपी नेता सिन्हा ने पार्टी की राय से अलग स्टैंड लेते हुए यहां तक कहा कि अगर मेरी चलती, तो मैं गठबंधन से भी मुख्यमंत्री के चेहरे को आगे कर सकता था. वैसे तो उन्होंने नंद किशोर यादव और उपेंद्र कुशवाहा का भी नाम लिया लेकिन उनका जोर पासवान पर ही रहा.
जैसे ही सिन्हा ने पासवान का नाम उछाला, लालू ने पासवान के साथ साथ कुशवाहा के नाम पर भी विचार करने की सलाह दे डाली. लालू और सिन्हा की दोस्ती जगजाहिर है. 11 जून को लालू प्रसाद के घर जाकर बर्थडे विश करने वालों में सिन्हा अकेले बीजेपी नेता थे. इसके साथ ही सिन्हा ने लालू-नीतीश के गठबंधन को भी दमदार बताया था. इससे पहले लालू प्रसाद ने भी सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाए जाने की सलाह दे डाली थी.
जब मुंबई में पत्रकारों ने सिन्हा से इस बाबत पूछा तो उनका जवाब था, "मेरे पास न शक्ल है, न अक्ल है. मुझे कौन बनाएगा मुख्यमंत्री."
सवाल ये उठता है कि बीजेपी में हाशिये पर जा चुके सिन्हा ने पासवान का नाम क्यों लिया? पासवान का इस तरह नाम लेना बीजेपी के पक्ष में तो है नहीं. फिर इससे किसे फायदा होगा? निश्चित रूप से ये बाद बीजेपी के विरोधियों के पक्ष में जाएगी - और बिहार में तो बीजेपी के विरोधी लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ही हैं. तो क्या पासवान का इस तरह नाम लेकर शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी नेतृत्व को अपने तरीके से चुनौती दे रहे हैं?
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