शेहला रशीद तो कन्हैया कुमार के मुकाबले काफी कमजोर निकलीं!
शेहला रशीद ने कन्हैया कुमार के मुकाबले उनकी जंग कहीं ज्यादा लड़ी है. जेल में रहने से लेकर बेगूसराय के चुनावी मैदान तक शेहला हर मोर्चे पर लगातार डटी रहीं - अचानक मैदान छोड़ कर भाग जाना हैरान करने वाला है.
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जम्मू-कश्मीर में BDC यानी ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव होने जा रहे हैं. सूबे के 316 में से 310 ब्लॉकों के लिए वोटिंग भी 24 अक्टूबर ही होगी - और नतीजे भी उसी दिन आ जाएंगे. जम्मू-कश्मीर में होने वाले BDC चुनाव के नतीजे भी उसी दिन आएंगे जब महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनावों में वोटों की गिनती हो रही होगी. बीडीसी के लिए मतदान सुबह 9 से लेकर दोपहर 1 बजे तक चलेगा. फिर उसी दिन दोपहर 3 बजे वोटों की गिनती भी शुरू हो जाएगी. बीडीसी चुनाव का विरोध करने वाले नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के साथ अब कांग्रेस भी शामिल हो गयी है - लेकिन बीडीसी चुनावों के नाम पर शेहला रशीद शोरा ने प्रोटेस्ट का बिलकुल अलग तरीका अपनाया है.
शेहला रशीद ने राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया है - शेहला रशीद, नौकरशाही से राजनीति में आये शाह फैसल की पार्टी JKPM यानी जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट का प्रमुख चेहरा रही हैं - और कश्मीर में धारा 370 खत्म किये जाने के बाद विरोध की मुखर आवाज बनी हैं.
शेहला रशीद का चुनावी राजनीति से तौबा
जेकेपीएम की नेता शेहला रशीद ने चुनावी राजनीति छोड़ने का ऐलान कर दिया है. शेहला रशीद ने ये जानकारी फेसबुक और ट्विटर पर एक बयान जारी कर शेयर की है.
शेहला रशीद ने अपने सियासी संन्यास के ऐलान में भी उन्हीं बातों की ओर ध्यान दिलाया है जिनको लेकर उनके खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज हुआ है. शेहला रशीद का ये भी आरोप है कि केंद्र सरकार बीडीसी का चुनाव इसलिए कराने जा रही है ताकि बाहरी दुनिया को दिखा सके कि कश्मीर में सब कुछ सामान्य है.
शेहला रशीद ने अपने बयान में ये तो कहा है कि उनकी लड़ाई जारी रहेगी लेकिन ये नहीं बताया है कि किस रूप में. शेहला रशीद ने इंसाफ की इस लड़ाई में लोगों का समर्थन भी मांगा है. धारा 370 और उसके बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग किये जाने के साथ ही शेहला रशीद कश्मीरी पंडितों का भी जिक्र किया है - और लगे हाथ अपने खिलाफ दर्ज हुए देशद्रोह के मुकदमे का भी.
शेहला रशीद ने तो शाह फैसल को बीच रास्ते में छोड़ दिया है
शेहला रशीद ने कहा है कि सच को लेकर उनका संघर्ष जारी रहेगा और जहां कहीं भी उनकी आवाज की जरूरत महसूस होगी - वो हाजिर रहेंगी. अपने बयान के आखिर में शेहला रशीद अपना परिचय दिया है - एक्टिविस्ट.
I'd like to make clear my dissociation with the electoral mainstream in Kashmir. Participation in the electoral process in a situation where even the election rhetoric is to be dictated by the centre will only amount to legitimising the actions of the Indian govt in #Kashmir pic.twitter.com/7PMi2aIZdw
— Shehla Rashid شہلا رشید (@Shehla_Rashid) October 9, 2019
ये तो मैदान से भाग खड़ा होना ही हुआ
पहली नजर में तो शेहला रशीद का राजनीति छोड़ने का ऐलान हैरान करने वाला है. शेहला रशीद का इल्जाम है कि वो कश्मीरियों के साथ हो रहे बर्ताव को बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं.
ये क्या बात हुई. अगर बर्दाश्त नहीं कर सकतीं तो उनकी लड़ाई लड़िये. अगर आपको लगता है कि कुछ ठीक नहीं हो रहा है तो लड़ना चाहिये. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा - कश्मीर के बाकी नेताओं की तरह नजरबंद कर दिया जाएगा. आखिर शाह फैसल को भी तो नजरबंद रखा ही गया है, जब से वो विदेश यात्रा पर निकले थे.
जब कन्हैया कुमार को देशद्रोह के आरोप में दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था तब तो शेहला रशीद ने ऐसा नहीं किया. फिर शाह फैसल को क्यों बीच रास्ते में छोड़ कर भाग खड़ी हो रही हैं.
जब कन्हैया कुमार को दिल्ली पुलिस ने देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था - बाहर की लड़ाई की सारी जिम्मेदारी शेहला रशीद पर ही आ गयी थी. 2015-16 में शेहला रशीद JNU छात्र संघ की उपाध्यक्ष हुआ करती रहीं. एकबारगी तो लगता है जैसे कन्हैया कुमार से भी ज्यादा उनकी जंग शेहला रशीद ने लड़ी है. जब कन्हैया कुमार तिहाड़ जेल में थे तब से लेकर बेगूसराय संसदीय सीट के चुनावी मैदान तक शेहला हर मोर्चे पर लगातार डटी रहीं - घर घर जाकर चुनाव प्रचार किया.
शेहला रशीद पर भी सेना को लेकर भ्रम फैलाने के इल्जाम में देशद्रोह का केस दर्ज हो रखा है. सुप्रीम कोर्ट के वकील आलोक श्रीवास्तव की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने 3 सितंबर, 2019 को इस सिलसिले में FIR दर्ज किया था. शेहला ने 18 अगस्त को कई ट्वीट किये थे जिसमें सेना आरोप लगाया था कि वो कश्मीरियों पर जुल्म ढा रही है. शेहला रशीद का एक ट्वीट में दावा रहा कि सेना घाटी में जबरन लोगों के घरों में घुस रही है और बच्चों को उठा रही है. बाद में सेना की तरफ से इन आरोपों को झूठा बताया गया था. सेना की ओर से खंडन के बाद भी शेहला रशीद ने ट्विटर पर पोस्ट किया कि वो अपनी बात पर कायम हैं. शेहला ने कहा कि जितने भी ट्वीट वो कर रही हैं उसके पीछे तथ्य हैं जिन्हें लोगों से बात करके उन्होंने लिखे हैं.
हो सकता है शेहला रशीद ने दोस्तों से अपने फैसले को लेकर विचार विमर्श किया हो. कुछ दोस्त ऐसे भी रहे होंगे जो जल्दबाजी में ऐसा कदम उठाने से पहले सोच विचार करने की भी सलाह दिये होंगे, कुछ ऐसे भी रहे होंगे जो बिलकुल हां में हां मिला दिये होंगे. वैसे शेहला के फेसबुक पेज पर जहां ये घोषणा की गयी है, लोगों ने ज्यादातर उनके बेहतर भविष्य के लिए शुभकामनाएं ही दी हैं. कइयों ने हर कदम पर सपोर्ट की भी बात की है.
लेकिन क्या शेहला रशीद ने उन कश्मीरी नौजवानों को निराश नहीं किया है जिनके बीच काम करते हुए तमाम उम्मीदें जगायी होंगी?
देखा जाये तो JKPM में शाह फैसल से ज्यादा राजनीतिक अनुभव तो शेहला रशीद के पास ही रहा है. शाह फैसल अच्छे छात्र रहे हैं और देश की सबसे सम्मानित परीक्षा IAS के टॉपर रहे हैं. शाह फैसल का के पास दस साल का प्रशासनिक अनुभव भी है - लेकिन राजनीति का ककहरा ही सही शेहला रशीद ने तो उसकी बाकायद प्रैक्टिकल ट्रेनिंग ली है.
कन्हैया कुमार जेल से छूटने के बाद पूरे देश में दौरा करते रहे और सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ हमले करते रहे. लगे हाथ अपने को बेकसूर भी साबित करते रहे. आगे चल कर आम चुनाव में उनकी पार्टी CPI ने बेगूसराय सीट से बीजेपी के गिरिराज सिंह के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा. कन्हैया ने लोक सभा चुनाव में भी लड़ाई बड़ी शिद्दत से लड़ी - हार जीत तो खेल के मैदान में होना तयशुदा होता है. कन्हैया कुमार ने अपनी आत्मकथा भी लिखी है - बिहार से तिहाड़ तक.
कन्हैया कुमार तो जेल की सलाखों से लेकर चुनाव के मैदान तक जूझते देखे गये हैं - लेकिन ये क्या शेहला रशीद तो महज एफआईआर दर्ज होने पर ही भाग खड़ी हुई हैं.
जेएनयू की जंग और जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक लड़ाई वैसे भी बिलकुल अलग है. देखा जाये तो छात्र राजनीति भी शायद किताबी ज्ञान की तरह ही होती है - जो फील्ड में उतरने के बाद बेकार हो चुकी होती है. शेहला रशीद की छोटी सी सियासी उम्र से अभी तो यही साबित होता है.
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