महाराष्ट्र चुनाव में अलग दिखने की शिवसेना की कोशिश भ्रम पैदा कर रही है
शिवसेना कदम कदम पर खुद को अलग बीजेपी से अलग प्रोजेक्ट कर रही है, लेकिन कुछ ही देर बाद उद्धव ठाकरे किसी न किसी बीजेपी नेता के साथ लोगों के बीच प्रकट भी हो जाते हैं - ये ट्रिक शिवसेना के लिए कहीं चुनाव में भारी न पड़े.
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महाराष्ट्र के चुनावी मुकाबले में दो गठबंधन आमने सामने हैं. एक तरफ बीजेपी-शिवसेना गठबंधन है तो दूसरी तरफ उसके मुकाबले कांग्रेस-NCP गठबंधन.
बीजेपी ने तो अपनी अपेक्षा शिवसेना को काफी कम सीटें दी हैं, लेकिन कांग्रेस और NCP दोनों ही बराबर सीटों पर मिल कर लड़ रहे हैं. मिल कर चुनाव लड़ रहे कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन ने चुनावी घोषणा पत्र भी संयुक्त रूप से ही जारी किया है, लेकिन बीजेपी-शिवसेना के मामले में ऐसा बिलकुल नहीं है.
बीजेपी ने तो पिछले हफ्ते 2014 के चुनावी वादों को महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार की एक रिपोर्ट कार्ड पेश की थी, लेकिन अभी उसका मैनिफेस्टो नहीं आया है. रिपोर्ट कार्ड में बीजेपी ने दावा किया है कि लोगों से किये गये 100 वादों में से ज्यादातर फडणवीस सरकार ने पूरे कर दिये हैं. इस बीच शिवसेना ने अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी कर दिया है.
गठबंधन में रहते हुए शिवसेना ने अलग से चुनावी घोषणा पत्र लाकर क्या मैसेज देने की कोशिश कर रही है? ऐसा क्यों लग रहा है कि शिवसेना हर कदम पर खुद को बीजेपी से अलग पेश कर कहीं लोगों में भ्रम की स्थिति तो नहीं पैदा कर रही है?
गठबंधन में अलग अलग मैनिफेस्टो का मतलब
बदलते परिवेश में मैनिफेस्टो का नाम ही नहीं मतलब भी बदलने लगा है. बीजेपी अपने मैनिफेस्टो को 'संकल्प पत्र' नाम देने लगी है, जबकि शिवसेना इसे 'वचननामा' बता रही है तो कांग्रेस-एनसीपी ने 'शपथनामा' नाम रखा हुआ है.
कांग्रेस और एनसीपी की तरह कोई जरूरी नहीं है कि गठबंधन के सारे दल मिल कर एक ही घोषणा पत्र जारी करें. शिवसेना ने अपना अलग वचननामा जारी कर दिया है, जल्द ही बीजेपी भी अपना संकल्प पत्र ला ही देगी. साथ या अलग अलग मैनिफेस्टो लाने में कोई तकनीकी बाधा नहीं है.
अब आम चुनाव को ही याद कीजिये, सीटों के बंटवारे से लेकर उम्मीदवारों की घोषणा तक एनडीए की तरफ से संयुक्त कार्यक्रम ही बनाये जाते रहे, लेकिन चुनाव घोषणा पत्र का क्या हुआ? बीजेपी ने ढोल नगाड़े के साथ अपना संकल्प पत्र लाया और नीतीश कुमार की जेडीयू तो पूरा चुनाव बगैर मैनिफेस्टो के ही लड़ गयी - और नतीजे भी अच्छे रहे. बल्कि, अपेक्षा से भी कहीं बेहतर रहे.
अगर ऐसा तो शिवसेना के घोषणा पत्र से भला क्या दिक्कत हो सकती है?
दिक्कत तो न शिवसेना को है न बीजेपी को हो सकती है और न ही किसी और को. एक ही दिक्कत लगती है कहीं लोगों को कन्फ्यूजन न होने लगे. जिस तरह से शिवसेना लगातार खुद को अलग दिखाने की कोशिश कर रही है, उसी बात से ऐसी प्रबल आशंका लगती है.
दरअसल, एक वक्त शिवसेना खुद को अलग प्रोजेक्ट करती है और दूसरे ही पल उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ मीडिया के सामने आ जाते हैं या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हाथ उठाकर साथ होने का मैसेज देने की कोशिश करते हैं.
शिवसेना का हर कदम भ्रम फैलाने वाला है
आखिर शिवसेना लोगों को क्या बताना चाह रही है - वो बीजेपी के साथ मिल कर सरकार बनाएगी या फिर अकेले? अगर शिवसेना ने वक्त रहते इस बात को नहीं समझा और लोगों को समझाया तो लोग भी अपने तरीके से समझा देंगे.
उद्धव ठाकरे और संजय राउत घूम घूम कर कह रहे हैं कि बाल ठाकरे से आखिरी वक्त किया गया वादा पूरा होगा - बोले तो, महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कोई शिवसैनिक ही बनेगा. अभी तक तो ऐसा नाममुकिन ही लगता है क्योंकि जितनी सीटों पर शिवसेना चुनाव लड़ रही है वे सारी जीत भी गयी तो सरकार बनाने से रही. और अगर बीजेपी बुरी से बुरी स्थिति में भी कहीं चूक गयी तो ऐसा भी नहीं लगता कि कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन मिल कर भी ऐसी स्थिति में खड़ा होगा कि उसके सपोर्ट से शिवसैनिक को फिर से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाना मुमकिन हो पाये.
आरे इलाके के पेड़ों की कटाई को लेकर भी उद्धव ठाकरे ने बढ़ चढ़ के वादे किये हैं. उद्धव ठाकरे का दावा है कि शिवसेना के सत्ता में आने पर वो आरे के दोषियों को सजा दिलाएंगे. ये दावा भी बचकानी हरकत जैसा ही है. अगर शिवसेना की अकेले सरकार नहीं बनती तो क्या बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार में उद्धव ठाकरे आरे में पेड़ों को कटवाने वालों को सजा दिलवा पाएंगे? आखिर वे पेड़ तो महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की मर्जी से ही काटे जा रहे हैं. फिर सजा किसे मिलेगी और कौन दिलवाएगा भला?
शिवसेना ने जो चुनावी वादे किये हैं उनका क्या होगा - ₹1 क्लिनिक, ₹10 में भर पेट भोजन और सस्ती बिजली जैसे वादे सरकार में रह कर भी क्या बीजेपी के मुख्यमंत्री की सहमति के बगैर लागू करना मुमकिन हो पाएगा? ऐसा भी नहीं कि बगैर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की मर्जी के उद्धव ठाकरे अपनी मर्जी के मंत्रालय ही अपने विधायकों के लिए ले पायें.
मोदी कैबिनेट 2.0 में भी बीजेपी नेतृत्व ने शिवसेना को सिर्फ एक जगह दी है और विधानसभा चुनाव में अपने बराबर सीटें भी नहीं दी है - फिर किस बूते शिवसेना वचननामा जारी कर सपने दिखा रही है और ख्याली पुलाव पका रही है? ऐसा न हो थोड़ा ज्यादा पाने के चक्कर में शिवसेना पूरा ही गंवा दे?
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