समाजवादी कुनबे में फिर बगावत के आसार हैं!
नतीजों के बाद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने सपा विधायकों की बैठक बुलाई थी. लेकिन, इस बैठक में अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) को निमंत्रण नहीं दिया गया. जबकि, तकनीकी तौर पर शिवपाल समाजवादी पार्टी के ही विधायक हैं. बैठक में न बुलाए जाने से नाराज शिवपाल ने बगावती तेवर अपना लिए हैं.
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यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव बहुमत का आंकड़ा जुटाने में कामयाब नहीं हो सके. नतीजों के बाद अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के विधायकों की बैठक बुलाई थी. लेकिन, इस बैठक में अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव को निमंत्रण नहीं दिया गया था. जबकि, आधिकारिक तौर पर शिवपाल समाजवादी पार्टी के ही विधायक हैं. सपा विधायकों की बैठक में न बुलाए जाने से नाराज शिवपाल यादव ने बगावती तेवर अपनाते हुए अपने अगले कदम का जल्द ऐलान करने की बात कही. वहीं, समाजवादी पार्टी ने इस मामले में डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश करते हुए बयान जारी किया कि अखिलेश यादव की बैठक समाजवादी पार्टी के विधायकों के साथ थी. गठबंधन के सहयोगी दलों की बैठक 28 मार्च को होगी.
लेकिन, ऐसा लगता है कि शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के इस बयान से संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं. क्योंकि, गठबंधन सहयोगियों की बैठक में शामिल होने की जगह शिवपाल ने दिल्ली में समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि मुलायम सिंह यादव से मिलकर शिवपाल अपना 'दर्द' साझा करेंगे. वहीं, शिवपाल यादव ने दिल्ली जाने से पहले कहा था कि 'जब अपनों और परायों में भेद नहीं पता होता है, तब महाभारत होती है. दुर्योधन के बजाय युधिष्ठिर शकुनि से जुआ खेलने लगे, यहीं से उनकी हार तय हो गई. समाजवादी पार्टी विधायकों में उनकी सबसे बड़ी जीत हुई है, इससे उनकी लोकप्रियता पता चलती है.' शिवपाल के इस दावे के बाद सवाल उठना लाजिमी है कि क्या समाजवादी कुनबे में फिर से बगावत के आसार हैं?
गठबंधन सहयोगियों की बैठक में शामिल होने की जगह शिवपाल ने दिल्ली में समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की है.
अखिलेश का इस्तीफा ही मुलायम की विरासत पर 'कब्जा 2.0' की शुरुआत
यूपी चुनाव नतीजों के बाद अखिलेश यादव ने 'दिल्ली' छोड़कर 'लखनऊ' की राह पकड़ ली है. आजमगढ़ से सांसद रहे अखिलेश ने संसद सदस्यता छोड़कर करहल से विधायक बनना मंजूर किया. क्योंकि, शायद अखिलेश यादव को शिवपाल यादव के अगले कदम की पहले से ही जानकारी थी. इसी के चलते उन्होंने शिवपाल को समाजवादी पार्टी के टिकट पर यूपी चुनाव लड़ाया था. दरअसल, यूपी चुनाव 2022 से पहले तमाम गिले-शिकवे मिटाकर अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव के साथ 'गठबंधन' किया था. शिवपाल की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का सपा में विलय नहीं हुआ था. बल्कि, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी भी अन्य छोटे दलों की तरह ही गठबंधन सहयोगी थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो शिवपाल की एंट्री समाजवादी कुनबे में नहीं हुई थी. तकनीकी रूप से शिवपाल यादव भले ही समाजवादी पार्टी के विधायक हों. लेकिन, अखिलेश ने उन्हें 'यादव परिवार' में शामिल नहीं किया है. कहा जा सकता है कि अखिलेश यादव का इस्तीफा ही मुलायम की विरासत पर 'कब्जा 2.0' की शुरुआत है.
केवल 'वक्ती जरूरत' थे शिवपाल
समाजवादी पार्टी और शिवपाल सिंह यादव की पार्टी के बीच हुआ गठबंधन केवल वक्ती जरूरत ही कहा जा सकता है. अखिलेश यादव नहीं चाहते थे कि यादव वोट बैंक में किसी भी तरह की सेंध लगे. और, इसमें वह कामयाब भी हुए. इतना ही नहीं, शिवपाल यादव ने उन्हें समाजवादी पार्टी का नया 'नेताजी' तक मान लिया था. अगर यूपी चुनाव के नतीजे समाजवादी पार्टी की उम्मीदों के हिसाब से आते, तो शिवपाल सिंह यादव का कद बढ़ना तय था. लेकिन, नतीजे अखिलेश की उम्मीदों के मुताबिक नहीं आए. हालांकि, एक मजबूत विपक्ष के तौर पर उभरने के बाद शिवपाल यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की चर्चा थी. लेकिन, अखिलेश के इस्तीफे ने उनकी इस उम्मीद को तोड़ दिया. वहीं, शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा भी बेमानी ही नजर आता है. क्योंकि, अखिलेश किसी भी हाल में संगठन की कमान शिवपाल के हाथों में सौंपने का दुस्साहस नहीं करेंगे. वैसे, शिवपाल यादव भले ही मुलायम सिंह यादव से मुलाकात कर अपना दर्द साझा करें. लेकिन, वहां से भी शिवपाल के हाथ कुछ खास लगता नहीं दिख रहा है.
अखिलेश को भारी पड़ सकती है शिवपाल की बगावत
समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले भाजपा का दामन थाम लिया था. क्योंकि, अपर्णा यादव को समाजवादी पार्टी में अपने लिए भविष्य में बहुत ज्यादा उम्मीदें नजर नहीं आ रही थीं. दरअसल, अखिलेश पहले ही 'यादव परिवार' के लोगों को टिकट देने के पक्ष में नहीं थे. वहीं, अपर्णा यादव में 'राष्ट्रवाद' का असर समाजवादी पार्टी को पहले ही नुकसान पहुंचा रहा था. हालांकि, अपर्णा यादव के भाजपा में शामिल होने पर अखिलेश यादव ने डैमेज कंट्रोल करते हुए नेताजी (मुलायम सिंह यादव) द्वारा समझाने की कोशिश और पूरे टिकट नहीं बंटने की बात कही थी. लेकिन, इसका कोई खास फायदा समाजवादी पार्टी को यूपी चुनाव में नहीं मिला. नतीजों के बाद अब ऐसे ही हालात शिवपाल सिंह यादव के सामने भी खड़े हो गए हैं.
दरअसल, समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के समय शिवपाल यादव अपने कई समर्थकों को टिकट दिलाने में नाकामयाब रहे. यहां तक कि खुद शिवपाल यादव को भी एक ही सीट से संतोष करना पड़ा. और, शिवपाल अपने बेटे आदित्य यादव को भी यूपी चुनाव 2022 में टिकट नहीं दिलवा सके. लेकिन, इन तमाम समझौतों के बाद भी अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के रिश्तों की रेल बेपटरी होती नजर आ रही है. अब अगर शिवपाल यादव बगावत करते हैं, तो अखिलेश उन्हें अवसरवादी होने का टैग थमा कर यादव वोट बैंक को साथ बनाए रख सकते हैं. लेकिन, समाजवादी कुनबे में संभावित बगावत 2024 के आम चुनाव से पहले होने की आशंका है. क्योंकि, इस दौरान शिवपाल समाजवादी पार्टी में रहते हुए अपने लिए हरसंभव सहानुभूति बटोरने की कोशिश करेंगे. और, वक्त आने पर इसका इस्तेमाल अखिलेश के खिलाफ करने से नहीं चूकेंगे.
अखिलेश के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाने के बाद शिवपाल सिंह यादव के लिए मुलायम की विरासत पर कब्जा करना आसान नहीं है. इस स्थिति में शिवपाल अपने बेटे आदित्य यादव के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए जो भी फैसला लेंगे. उससे नुकसान समाजवादी पार्टी को ही होगा. क्योंकि, अगर अखिलेश यादव चाचा शिवपाल के इतना झुकने के बावजूद उन्हें 'उचित सम्मान' नहीं दे पाते हैं. तो, शिवपाल यादव 2024 से पहले अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र रहेंगे. वहीं, शिवपाल की इस बगावत से समाजवादी पार्टी के गठबंधन सहयोगियों के हौंसले भी बुलंद होंगे. जो 2024 के आम चुनाव में सीधे तौर पर समाजवादी पार्टी के लिए बुरे हालात बनाने वाले हो सकते हैं. क्योंकि, तब समाजवादी पार्टी के सहयोगी दल भी अपने लिए लोकसभा सीटों में अच्छी-खासी हिस्सेदारी मांगेंगे.
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