हिंदू ही क्यों पाकिस्तान में परेशान मुसलमानों के लिए भी दरवाजे खोले सरकार
अब भारत सरकार कानून में बदलाव करने जा रही है ताकि धार्मिक आधार पर उत्पीड़न के शिकार हिंदू अगर चाहें तो यहां की नागरिकता हासिल कर सकेंगे. लेकिन परेशान तो बंटवारे के समय पाकिस्तान गए मुसलमान भी हैं.
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पाकिस्तान से आई एक हिंदू लड़की मशल माहेश्वरी पिछले दिनों सुर्खियों में थीं. अपने परिवार के साथ पाकिस्तान से भाग कर जयपुर आई इस लड़की ने इस साल 12वीं की परिक्षा में 91 फीसदी अंक हासिल किए. लेकिन जब उसने यहां मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए फॉर्म भरना चाहा तो नागरिकता आड़े आ गई. खैर, सुषमा स्वराज की पहल के बाद अब संभव है कि मशल अपने सपनों की मशाल प्रज्वल्लित कर सकेंगी. लेकिन ये तो बस एक कहानी थी. सबने मशल का समर्थन किया. लेकिन उन कहानियों का क्या जो सामने आती ही नहीं.
पाकिस्तान या बांग्लादेश में लाखों ऐसे हिंदू परिवार हैं जो ये आरोप लगाते रहे हैं कि वहां उनके साथ दूसरे श्रेणी के नागरिकों जैसा व्यवहार किया जाता है. कई बार उनके साथ हिंसा और मारपीट की घटनाएं होती हैं. यहां तक कि पाकिस्तान में कई बार इन्हें इशनिंदा जैसे कानून के सहारे बेवजह परेशान भी किया जाता है. हिंदू महिलाओं के साथ रेप और जबरन धर्म-परिवर्तन जैसी बातें भी आती रही हैं.
मोदी सरकार खोलेगी 'विदेशी' हिंदूओं के लिए दरवाजे!
मीडिया में आ रही खबरों की मानें तो भारत सरकार सिटीजनशिप एक्ट-1955 में बदलाव करने पर गंभीरता से विचार कर रही है ताकि पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार हिंदू अगर चाहें तो भारत की नागरिकता हासिल कर सकें. बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी कानून बदलने की जरूरत का जिक्र किया था. कहा जा रहा है कि संसद के मानसून सत्र में सरकार नागरिकता कानून में संशोधन के लिए बिल ला सकती है. इस प्रस्ताव को फिलहाल अंतिम रूप दिया जा रहा है.
पाक हिंदुओं के लिए होगा कानून में बदलाव! |
सरकार बीजेपी की है तो जाहिर है ये आरोप भी लगेंगे कि वो अपने हिंदुत्ववादी एजेंडे और संघ परिवार की विचारधारा के तहत काम कर रही है. संघ परिवार मानती रही है कि दुनिया भर के हिंदुओं का असल घर भारत ही है.
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आरोप तो अपनी जगह ठीक है, लेकिन क्या ये सच नहीं है पाकिस्तान, बांग्लादेश से अक्सर हिंदुओं के साथ होने वाले अत्यचार की खबरें आती रहती हैं. अक्सर ऐसी घटनाओं के बाद उन देशों में रह रहे हिंदू परिवार भारत की ओर ही देखते हैं. इस समस्या को किसी देश की अंदरुनी समस्या समझ कर नजरअंदाज कर भी लीजिए लेकिन सच्चाई यही है कि हर साल कई परिवार वहां अपना सबकुछ छोड़ भारत का रूख करते हैं. रिफ्यूजी की तरह ही सही लेकिन भारत की सड़कों की खाक छानना उन्हें पाकिस्तान में रहने से ज्यादा बेहतर लगता है.
मुसलमानों के लिए भी दरवाजे खोले सरकार..
1947 में जब देश बंटवारे के दर्द का शिकार हुआ तो वो कोई सामान्य बात नहीं थी. कई चीजें एक साथ हुईं. एक नया देश मानचित्र पर उभरा. दुनिया ने सबसे बड़े पलायन को देखा. कई मुसलमान इधर से उस पार गए तो कई हिंदू उस ओर से इधर आए. और इन सबके बीच दंगा और कत्लेआम का मंजर. भारत के लिए अच्छी बात ये रही कि वो उस दौर से अब काफी आगे निकल आया है. लेकिन पाकिस्तान वहीं अटका हुआ है. वहां के हिंदुओं की बात छोड़िए इस ओर से पाकिस्तान जाकर बसने वाले मुसलमान भी अब तक भेदभाव का शिकार होते रहे हैं. क्या बेहतर नहीं होगा कि उन मुस्लिमों के लिए भी दरवाजे खोले जाएं, जो वापस लौटना चाहते हैं.
मुश्किल समीकरण!
वैसे ये अपने आप में बहुत मुश्किल है. इसका राजनीतिक कारण भी है और आर्थिक भी. असम चुनाव में बीजेपी ने बांग्लादेश से भारतीय सीमा में घुसपैठ कर रहे मुस्लिमों को बड़ा मुद्दा बनाया था. चुनाव में पार्टी को इसका बड़ा फायदा भी मिला. इस लिहाज से बीजेपी के लिए मुसलमानों पर स्टैंड बदलना उसे ही सवालों में घेर देगा. क्योंकि बांग्लादेश से मुसलमान अगर भारत में घुसपैठ कर रहे हैं तो उसका कारण बेहतर जिंदगी और रोजगार की तलाश है. फिर भारत के लिए सिमित संसाधन और आर्थिक मजबूरियां तो अपनी जगह हैं ही.
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बहरहाल, वापस आने की बाट जोह रहे मुसलमानों के लिए दरवाजे खुले या नहीं लेकिन सिटीजनशिप एक्ट में अगर बदलाव होता है तो इतना तय है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू बड़ी संख्या में भारत आने के लिए प्रेरित होंगे. यहां आने वालों की संख्या बढ़ेगी. लेकिन फिर एक बड़ी चुनौती का सामना पाकिस्तान और बांग्लादेश की राजनीति को भी करना होगा. खासकर, वैसी पार्टियों और लोगों को जो उन देशों सेकुलर सोच और मुक्त समाज की पैरवी करते आए हैं.
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