हमारे 9 शहीद सैनिकों पर पाक का दिल पसीजा, लेकिन स्वार्थवश
सीमा पार से आतंकवाद, घुसपैठ, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, इस्लामिक जेहाद जैसी खूबियों से भरपूर पाकिस्तान आखिर सियाचिन के नाम पर क्यों शांति का दूत बनने लगता है? कहीं पाकिस्तान सियाचिन में भी कारगिल जैसी चाल चलने की फिराक में तो नहीं?
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दुनिया की सबसे ऊंची रणभूमि सियाचिन पर बीते हफ्ते हुए हिमस्खलन में सेना के 9 जवान शहीद हो गए. यह इस रणभूमि का कड़वा सच है कि यहां दुश्मन की गोली से कम और बर्फीले तूफान से ज्यादा सैनिकों की शहादत हुई है. इससे पहले अप्रैल 2012 में सियाचिन के नजदीक पाकिस्तान का आर्मी पोस्ट एक ऐसे ही हिमस्खलन की चपेट में आ गया था और उसके 129 सैनिक मारे गए थे. सियाचिन की एक यह भी हकीकत है कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सियाचिन की खास अहमियत है क्योंकि 1984 में जबसे इस बर्फीली चोटी पर भारत का कब्जा हुआ है, पाकिस्तान इसी फिराक में रहा है कि वह किसी तरह इस चोटी को भारत से आजाद करा सके.
पाकिस्तान पर सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि भारत में जब शहीदों को श्रद्धांजली दी जा रही थी तो वहां से सोशल मीडिया पर #SaveSiachenSaveSoldiers नाम से हैशटैग बनाकर यह मुद्दा उठाया जा रहा था कि सियाचिन को सैनिक मुक्त क्षेत्र घोषित करने की पहल भारत को करनी चाहिए. आखिर पाकिस्तान भारतीय सैनिकों की मौत पर इतना दुखी क्यों हो रहा है? ऐसा उस वक्त देखने को तो नहीं मिला था जब इसी सरहद पर भारतीय सैनिकों का शव बिना सिर के फेंका जा रहा था.
Faith restored #humanity #SaveSiachenSaveSoldiers pic.twitter.com/bo83KCcQJe
— Imtiaz bahar (@Imtiazbahar) February 8, 2016
#SaveSiachenSaveSoldiers Siachen should be demilitarized, war and crisis does not ensure peace
— Haya Khan (@peaceful_h) February 8, 2016
बीते हफ्ते भारत के 9 सैनिकों की शहादत के बाद एक बार फिर पाकिस्तान से आवाज उठना शुरू हो गई है कि दोनों देशों को सियाचिन से अपनी-अपनी सेना हटा लेनी चाहिए और इस हिमशिखर को शांति का प्रतीक घोषित कर देना चाहिए. हालांकि इस मुद्दे पर देश के रक्षा मंत्रालय का रुख एकदम साफ है. सियाचिन से सेना हटाने की मांग को रक्षा मंत्री मनोहर पारिकर ने सिरे से खारिज करते हुए साफ कर दिया है कि सेना हटाना इस समस्या का कोई हल नहीं है. अब सवाल यह है कि आखिर सीमा पार से आतंकवाद, घुसपैठ, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, इस्लामिक जेहाद जैसी खूबियों से भरपूर पाकिस्तान आखिर सियाचिन के नाम पर क्यों शांति का दूत बनने लगता है? कहीं पाकिस्तान सियाचिन में भी कारगिल जैसी चाल चलने की फिराक में तो नहीं या फिर वो सियाचिन को भी शक्सगाम वैली की तरह बतौर गिफ्ट किसी तीसरे देश को देने का मंसूबा रखता है?
#SaveSiachenSaveSoldiersFor the sake of our soldiers lives we need to resolve this issue. pic.twitter.com/S3V3ziVnWo
— Fizzah Khan Ghouri (@imfizzahkhan) February 8, 2016
गौरतलब है कि 1989-92 के दौरान भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय वार्ता में सियाचिन से सेना हटाने का समझौता लगभग किया जा चुका था. नवंबर 2012 में हुई अंतिम दौर की वार्ता में भारत के प्रस्ताव पर पाकिस्तान राजी हो गया था. इस समझौते के लिए भारत ने शर्त रखी थी कि दोनों देश पहले प्रभुत्व के मौजूदा क्षेत्रों के नक्शे पर सहमति कर लें जिसके बाद सेना हटाने की कार्वाई की जाए. वहीं पाकिस्तान ने शर्त रखी थी कि भारत को सियाचिन के साथ-साथ काराकोरम पास को भी इस शांति क्षेत्र में रखना होगा. काराकोरम पास को छोड़ना भारत को मंजूर नहीं था क्योंकि काराकोरम तक भारत की सीमा को चीन पहले ही मंजूरी दे चुका था. लिहाजा इसे खाली करना भारत के लिए कूटनीतिक गलती मानी जाती. लेकिन इससे पहले कि दोनों देश इस समझौते के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करते कुछ अनजान कारणों के चलते भारत ने इसे नकार दिया और सियाचिन को सेना मुक्त क्षेत्र बनाने की कोशिश यहीं खत्म हो गई.
You can't have peace until the soldiers (irrespective of sides) at the highest battleground in the world are safe #SaveSiachenSaveSoldiers
— Omair Alavi (@omair78) February 8, 2016
इसके बाद से जब-जब सियाचिन को सेना मुक्त क्षेत्र बनाने की बात उठी है, भारत का एक ही डर हावी रहा है. पाकिस्तान को किस तरह से ऐसे किसी समझौते में धोखा देने से रोका जा सकता है. गौरतलब है कि 1947 से 1971 और फिर 1999 तक के इतिहास में ऐसा कई बार हो चुका है कि पाकिस्तान को जब भी मौका मिला है उसने कारगिल और तंगधार जैसे भारतीय इलाकों में अपनी सेना को ऊपर चढ़ाकर कब्जा करने की कोशिश की है. एक इसी कोशिश के चलते 1971 में युद्ध विराम की घोषणा होने के बाद भी पाकिस्तान ने शक्सगम घाटी पर कब्जा कर लिया और फिर चीन से दोस्ती गांठने के लिए उसे भेट कर दिया.
वहीं 1999 में कारगिल का युद्ध पाकिस्तान की बदनीयती का सीधा उदाहरण है. भारत के पास इस बात के पुख्ता सुबूत हैं कि पाकिस्तान की धोखाधड़ी किसी भी हद तक जा सकती है. कारगिल की घटना को अंजाम देते वक्त पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ चीन के दौरे पर थे. हमले के बाद बीजिंग से फोन पर मुशर्रफ ने अपने चीफ ऑफ स्टाफ अजीज खान को निर्देश दिया था कि पाकिस्तान दुनिया के सामने यह पक्ष रखेगा कि कारगिल क्षेत्र की स्थिति दोनों देशों के नक्शे में साफ नहीं है. जबकि सच्चाई यह है कि इस क्षेत्र में लाइन ऑफ कंट्रोल दोनों देशों की सेना ने संयुक्त रूप से करते हुए नक्शे पर उतारा है और दोनों देशों की इसपर मुहर लगी है.
#SaveSiachenSaveSoldiersWe need to evacuate #Siachen as soon as possible to save lives. pic.twitter.com/y4h8dIjNYs
— Fizzah Khan Ghouri (@imfizzahkhan) February 8, 2016
लिहाजा, कारगिल के मुद्दे पर अगर पाकिस्तान इस तरह के झूठ और फरेब का सहारा ले सकता है तो सियाचिन जैसे महत्वपूर्ण पोस्ट के किसी समझौते पर पाकिस्तान का भरोसा करने के लिए की आधार नहीं है. इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि भविष्य में पाकिस्तान कारगिल अथवा शक्सगम घाटी जैसा साहस सियाचिन में भी करने के लिए तत्पर बैठा है. इसके साथ ही पाकिस्तान को एक बात और साफ रहनी चाहिए सियाचिन न सिर्फ पूरी तरह भारत के कब्जे में बल्कि साफ-साफ उसके नक्शे पर भी इंगित है, लिहाजा यह उसे भारत के लिए छोड़ देना चाहिए कि वह अपने किस सीमा पर सेना लगाए और किसपर न लगाए.
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