चुनाव से पहले खतरे में आने वाला लोकतंत्र, उसके खत्म होते ही मजबूत कैसे हो जाता है?
रावण को हजारों साल से जला रहे हो. आखिर किसके कहने पर जला रहे हो. उन्हीं के छोटे भाई को उन्हीं के कहने पर रावण ने जो धर्म की परिभाषा का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि शुभम अति शीघ्रम को भी पढ़ो.
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हर चुनाव के पहले लोकतंत्र खतरे में आ जाता है. चुनाव खत्म होते ही वही लोकतंत्र मजबूत हो जाता है. वो भी इतना मजबूत कि लोग स्वयं के द्वारा निर्मित जातियों को खूब गालियां देने लगते हैं. जैसे भारतीय राजनैतिक दल कब इकठ्ठा हो जाएं और कब एक दूसरे के विरोधी, यह तो हमारा संविधान भी नहीं जानता होगा. बीते दौर में लोग दलितों को गाली देते थे. समय के साथ ऐसे सिनेमा का दौर आया, जहां राजपूतों को डाकू और बलात्कारी बनाया गया. बनने और बनाने की परम्परा प्रारम्भ हुई तो लोग ब्राह्मणों को गाली देने लगे. गाली-गलौज के माहौल में राजनैतिक चेतना जागृत हुई तो इस जागरण में गठबंधन की अवधारणा आ गई.
विचार तो गांधी का है. इसके इर्द-गिर्द ही भारतीय राजनीति घूम रही है. मेरे युवा दोस्तों, राजनीति को शुद्ध करो, पूंजी के प्रवाह को रोको, अन्यथा आने वाली पीढियां हम सभी को माफ नहीं करेंगी. गाली देंगी. आरक्षण पर मत उलझो. यह एक झुनझुना मात्र है. इसके लिए लड़ाई करो कि कैसे नौकरियां बहाल हो? सरकारी उपक्रम कैसे बचें? बहस करो कि कैसे सांसद निधि और विधायक निधि बंद हो? बंदर बांट कैसे रुके? दो बार जीत गए तो जाओ समाज की सेवा करो. आने वाली पीढ़ियों को मौका दो. दलों के टिकट बंटवारे में आरक्षण कैसे लागू हो? अनर्गल प्रलाप को छोड़कर इन अहम मुद्दों पर बातचीत और चर्चा करने की कोशिश करो.
रावण को हजारों साल से जला रहे हो. आखिर किसके कहने पर जला रहे हो. उन्हीं के छोटे भाई को उन्हीं के कहने पर रावण ने जो धर्म की परिभाषा का पाठ पढ़ाते हुए कहा कि शुभम अति शीघ्रम को भी पढ़ो. पानी महंगा-गेहूं सस्ता पर गठबंधन नही बोलता. गठबंधन समग्र हिंदुत्व की बात करेगा पर रोटी के रिश्ते से कतराएगा. धर्म को नीचे आने नहीं देगा और जाति को ऊपर जाने नहीं देगा. इस खेल में जाने-अनजाने हम सब साथ दे देते हैं. साथियों भारत बन नहीं रहा है, भारत बिगड़ रहा है. भारत को बनना है तो गांधी के रास्ते चलना पड़ेगा. यह दौर सामूहिक नेतृत्व का है. सामूहिक विकास का है. सामूहिक लड़ने का है. एक-दूसरे के साथ खड़े होने का है.
सोच संचय की है और यात्रा गांधी के नाम पर, पिछलग्गू बनते जा रहे हो. हमसे विरोध के लिए कहते हो. अपने बेटे को विधानसभा भेजते हो. दूसरे के बेटे से प्रचार करवाते हो. इससे बड़ा ढोंग क्या हो सकता है? तुम्हें सत्ता चाहिए हमे भारत चाहिए. तुम नौकरी की बात करते हो, हम अवसर की बात करते हैं. तुम्हें धर्म चाहिए. हमें सौहार्द चाहिए. तुम जन्म से परिभाषित करना चाहते हो, हम कर्म से परिभाषित चाहते हैं. तुम्हें पूंजी चाहिए और हमें तुम्हारा प्रयास चाहिए. तुम सत्ता से परिवर्तन करना चाहते हो और हम समाज से सत्ता का परिवर्तन चाहते हैं. तुम्हारी काबिलियत मिलावट में है और हम शुद्धता के पक्षधर हैं. आइए मिलकर तय करें कि तुम जो मेनिफेस्टो में लिखते हो और उसे लागू न करने की स्थिति में तुम्हारे ऊपर भी मुकदमा दर्ज हो. तुम्हे भी चुनाव लड़ने से वंचित किया जाए.
यह तभी संभव है जब हम सब जातिवाद छोड़ दें. सबकुछ स्वच्छ हो जाएगा. सबकुछ बदल जाएगा. जय हिंद, जय भारत!!!
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