फ्रांस के राष्ट्रपति के बारे में जान ले ये बातें...
एक ने की है 24 साल बड़ी महिला से शादी तो दूसरी करती हैं मस्जिद पर बैन लगाने की बात... जानिए अगले फ्रेंच प्रेसिडेंट और उनके भारत पर असर के बारे में कुछ बातें...
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आज 7 मई को फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव के लिए दूसरे चरण का मतदान हो रहा है. फ्रांसीसी राष्ट्रपति चुनाव 2017 कई दृष्टियों से अभूतपूर्व है. यूरोपीय यूनियन का भविष्य हो या संरक्षणवाद की ट्रंपवादी अवधारणा, इन सभी का स्पष्ट स्वरूप आज के चुनाव से ही प्रतिबिंबित होगा. फ्रांसीसी राष्ट्रपति चुनाव पहले ही संविधान विशेषज्ञों के लिए कौतूहल का विषय रहा है. परंतु इस बार इसमें कई नई चीजों का समावेश हुआ है. इन चुनावों को फ्रांस के यूरोपीय यूनीयन के साथ संबंधों को लेकर जनमत सर्वे के रुप में देखा जा रहा है. इन चुनावों पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं.
फ्रांस में पहली बार एक घोर दक्षिणपंथी महिला के राष्ट्रपति बनने की उतनी ही संभावनाएँ हैं, जितनी उतने ही धुरंधर एक मध्यमार्गी पुरुष की. फ्रांस के राष्ट्रपति के लिए 23 अप्रैल को हुए चुनाव में मध्यमार्गी इमैनुअल मैक्रोन ने अपनी दावेदारी और मजबूत कर ली है. फ्रांस में अगर प्रथम चरण में ही किसी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से ज्यादा मत नहीं मिलता, तो फिर द्वितीय चरण का चुनाव होता है. द्वितीय चरण के चुनाव में प्रथम चरण के सर्वश्रेष्ठ मत प्राप्त दो प्रत्याशी भाग लेते हैं. 23 अप्रैल के प्रथम चरण के मतदान में 11 उम्मीदवार थे, जिसमें मैकरोन 24.9 प्रतिशत मतों के साथ सबसे आगे रहे. वह नेशनल फ्रंट की नेता ली पेनली पेन को मिले 21.4 प्रतिशत मतों से कुछ ही आगे रहे. इस तरह आज हो रहे चुनाव में यूरोप समर्थक एमैनुअल मैक्रोन धुर दक्षिणपंथी उम्मीदवार ली पेनली पेन से सामना कर रहे हैं. प्रथम चरण के नतीजों में मैक्रोन को देश के इतिहास में पसंदीदा युवा नेता के तौर पर उभरते हुए दिखाया गया है. आज के चुनाव के कुछ घंटे पूर्व मध्यमार्गी इमैनुअल मैक्रोन द्वारा हैकिंग के आरोपों से फ्रांस चुनाव और भी गर्म हो गया है.
फ्रांस का राष्ट्रपति कौन बनेगा इसके बारे में देर रात पता चलेगा.
आज के फ्रांसीसी राष्ट्रपति चुनाव में कई प्रश्नों के उत्तर के लिए विश्व व्याकुल है. क्या फ्रांस को मिलेगा अपना सबसे युवा राष्ट्रपति या प्रथम महिला राष्ट्रपति? ली पेन पर क्या सोच रही है जनता? क्या इमैनुअल इतिहास रचेंगे? या फिर राइज ऑफ द राइट की आँधी पर सवार होकर ली-पेन रचेंगी इतिहास?
पिछले दो वर्षों में, विशेषतः सीरिया में जारी युद्ध, आइसिस के उभार और यूरोप में बढ़े शरणार्थी संकट के बाद से परिस्थिति बहुत संवेदनशील हो गई है. अधिकांश देशों में शरणार्थियों के मामले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया और आपसी विरोध दिखाई पड़ रहा है. हर देश में कुछ गुट या पार्टियां इनके समर्थन में हैं और कुछ पूरी तरह विरोध में. इसके अलावा यूरोपीय देशों के लोग हाल ही में उभरी कुछ अन्य समस्याओं, जैसे बढ़ते अपराधों और आतंकी हमलों से भी चिंतित लग रहे हैं. कुछ ही महीनों पूर्व ब्रिटेन के लोगों ने यूरोपीय यूनियन से अलग होने के पक्ष में मतदान किया था और अब वह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. उस मुद्दे पर भी ब्रिटेन के लोगों में आपसी कटुता बहुत स्पष्ट रूप से दिखी थी. यहां तक कि ब्रिटेन के ही एक भाग ‘नॉर्दर्न आयरलैंड’ ने तो यह घोषणा भी कर दी कि वह ब्रिटेन से अलग होकर एक स्वतंत्र देश बनने के बारे में लोगों की राय लेगा.
क्यों अमेरिकी चुनाव की तरह लग रहा है फ्रांस का हाल.....
पिछले साल नवंबर में अमरीका में संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव के पूरे अभियान के दौरान भी अमरीका के लोग इस तरह बंटे हुए दिखे. आज भी वहां के लोग ट्रंप प्रशासन के समर्थन और विरोध में बहुत उग्र दिखाई पड़ रहे हैं. यही हाल फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव के मामले में भी दिख रहा है. आतंकवाद इस समय फ्रांस की एक बड़ी चुनौती है. जनवरी 2015 में चार्ली हेब्दो पत्रिका के कार्यालय पर हुए आतंकी हमले के बाद से प्रथम चरण के चुनाव के एक दिन पूर्व 21 अप्रैल की चाकूबाजी की घटना तक फ्रांस में पिछले 2 वर्षों में कम से कम 17 आतंकी वारदातें हो चुकी हैं, जिसमें 250 से ज्यादा लोग मारे गए हैं. स्वाभाविक रुप से लोग आतंकवाद के मामले में सरकार का कड़ा रुख देखना चाहते हैं. लेकिन जैसा अमरीका, जर्मनी या भारत में होता है, उसी तरह फ्रांस में भी कुछ राजनीतिक दल आतंकवाद के विरुद्ध कड़ी बातें कर रहे हैं जबकि कुछ किसी न किसी बहाने इसे समस्या मानने से बचने की कोशिश में दिख रहे हैं. इसी तरह मतदाता भी अनिश्चय की स्थिति में लग रहे हैं. तो आखिर चुनाव का परिणाम क्या होगा? फिलहाल तो इस बारे में हम केवल अनुमान ही लगा सकते हैं. देर रात चुनाव परिणाम स्पष्ट हो जाएगा.
फ्रांस की राजनैतिक प्रणाली.....
वर्तमान में फ्रांस में जनरल दि गॉल द्वारा निर्मित पंचम गणतंत्र का संविधान क्रियान्वित है. तृतीय और चतुर्थ गणतंत्र में संसदीय व्यवस्था अर्थात राष्ट्रपति केवल औपचारिक प्रधान थे, परंतु पंचम गणतंत्र में राष्ट्रपति वास्तविक कार्यपालिका प्रमुख बने. इस दृष्टि से भी आज के चुनाव के महत्व को समझा जा सकता है. फ्रांस में राष्ट्रपति प्रणाली है, जिसके अंतर्गत यहां के मतदाता प्रत्यक्ष मतदान के द्वारा 5वर्षों के लिए अपना राष्ट्रपति चुनते हैं. 2002 से पहले तक यह अवधि 7 वर्ष की होती थी. इसी तरह पहले इस बात की भी कोई सीमा नहीं थी कि कोई व्यक्ति कितनी बार राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित हो सकता है, लेकिन 2007 में यह नियम बदला गया और अब कोई भी व्यक्ति लगातार दो से ज्यादा बार राष्ट्रपति नहीं बन सकता. राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनने के लिए कम से कम 500 निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का समर्थन मिलना आवश्यक है, तभी कोई व्यक्ति यह चुनाव लड़ सकता है.
भारतीय चुनाव आयोग के समान ही फ्रांस में भी एक स्वतंत्र संस्था द्वारा चुनाव की निगरानी की जाती है. चुनाव प्रचार पर होने वाले खर्च के लिए अधिकतम 2 करोड़ यूरो की सीमा निर्धारित है. यदि कोई प्रत्याशी 5% से अधिक मत पा लेता है, तो इस खर्च सीमा की 50% राशि उसे सरकारी खजाने से लौटा दी जाती है, जबकि 5% से कम वोट पाने वाले प्रत्याशी को 80 लाख यूरो तक कि राशि लौटाई जाती है. टीवी पर प्रचार करना मना है, लेकिन सभी प्रत्याशियों को अपनी बात रखने के लिए टीवी पर समय दिया जाता है.
राष्ट्रपति की शक्तियां और अधिकार-
हालांकि फ्रांस में संसद और प्रधानमंत्री भी होते हैं, लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रपति का पद बहुत शक्तिशाली है और राष्ट्रपति के पास कई विशेष अधिकार होते हैं. फ्रांस का राष्ट्रपति कार्यपालिका (नौकरशाही) और विधायिका (संसद) दोनों का प्रमुख होता है. वह नौकरशाहों और न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकता है, संधियों व समझौतों को स्वीकृति देता है, वही सेना का सुप्रीम कमांडर और परमाणु हथियारों का नियंत्रक भी है. किसी कानून की संवैधानिकता का निर्णय करने वाली संविधान समिति के अध्यक्ष सहित इसके 9 में से 3 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा ही चुने जाते हैं.
प्रधानमंत्री की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा ही की जाती है. सामान्यतः राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों एक ही पार्टी के होते हैं, लेकिन अब तक 3 बार ऐसी स्थिति बनी है, जब संसद में बहुमत दूसरी पार्टी का था, इसलिए राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री दोनों अलग-अलग दलों के थे. स्वाभाविक रूप से ऐसी स्थिति में दोनों के बीच टकराव भी होता है, लेकिन अधिक शक्तिशाली राष्ट्रपति ही है. राष्ट्रपति संसद के पास नियंत्रण में नहीं होता, लेकिन यदि ऐसा लगे कि यह अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर पा रहा है, तो संसद उस पर महाभियोग चला सकती है. राष्ट्रपति जब तक अपने पद पर है, तब तक उस पर कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता और न किसी मुकदमे में उसे गवाह के तौर पर बुलाया जा सकता है. राष्ट्रपति के पास कैदियों की सज़ा माफ करने या कम करने का अधिकार भी होता है.
वास्तव में राष्ट्रपति केवल मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होता है और उसकी अगली परीक्षा केवल उसी समय होती है, जब वह दोबारा चुनाव के समय मतदाताओं से वोट मांगने जाता है. वर्तमान राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की लोकप्रियता इतनी गिर चुकी है कि उन्होंने दोबारा चुनाव लड़ने से ही इंकार कर दिया है.
संसद भारत के समान ही फ्रांस की संसद में भी दो सदन हैं: एक नैशनल असेंबली (लोकसभा), जिसके सभी 577 सदस्यों का चयन आम मतदाताओं के मतों से 5 वर्ष के लिए होता है, और एक सीनेट (राज्यसभा), जिसके कुल 348 सदस्यों में से 328 का चयन मेट्रोपोलिटन फ्रांस (मुख्यभूमि) के सभी 93 जिलों के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के मतदान द्वार) 6 वर्ष के लिए होता है. इसके अतिरिक्त 8 सदस्य फ्रांस के डिपेंडेंसी क्षेत्रों (अर्थात दक्षिण अमरीका, अफ्रीका आदि के फ्रांसीसी क्षेत्रों, प्रशांत महासागर में फ्रांस के द्वीपों) से चुने जाते हैं और 12 सदस्य विदेशों में रहने वाले फ्रांसीसी नागरिकों के राजनैतिक संगठन ‘असेंबली ऑफ फ्रेंच सिटीजन्स लिविंग अब्रॉड’द्वारा चुने जाते हैं.
वर्तमान चुनाव
इस चुनाव में कुल 4.7 करोड़ स्थानीय मतदाता हैं, जबकि 13 लाख मतदाता विदेशों में रह रहे हैं. अभी तक हुए सर्वेक्षणों के आधार पर किसी भी उम्मीदवार को स्पष्ट समर्थन मिलता नहीं दिख रहा है और लोगों की राय बंटी हुई लग रही है. लेकिन बुधवार के टीवी बहस के बाद इमैनुअल मैक्रोन आगे लग रहे हैं. चुनावी सर्वेक्षण में 63 प्रतिशत लोग मैक्रोन के साथ दिख रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि लगभग एक तिहाई लोग अभी तक अनिश्चय की स्थिति में हैं और संभावना है कि लगभग 25% लोग मतदान में भाग ही नहीं लेंगे. पिछले चुनाव में 20% और उससे पहले वाले चुनाव में 16% लोगों ने मतदान नहीं किया था.
प्रथम चरण में सबसे आगे रहने वाले इमैनुअल मैक्रोन ने जीतने पर आर्थिक सुधार लागू करने, अमीरों पर लगने वाला वेल्थ टैक्स खत्म करने और स्वास्थ्य बीमा प्रणाली में परिवर्तन करने के वादे किए हैं.
24 साल बड़ी महिला से किया प्रेम विवाह..
39 वर्षीय इमैनुअल मैक्रोन फ्रांस में अब तक के सबसे युवा प्रत्याशी हैं. कुछ समय तक उन्होंने इन्वेस्टमेंट बैंकर के रूप में काम किया, फिर वे वित्त और उद्योग मंत्री भी रहे हैं और कुछ वर्षों तक सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य और उसके बाद निर्दलीय के रूप में काम करने के बाद अब उन्होंने 2016 में अपनी नई पार्टी बनाई है. मैक्रोन यूरोपियन यूनियन के समर्थक हैं और राष्ट्रपति बनने पर फ्रांस में आर्थिक सुधार लागू करना चाहते हैं. मैक्रोन इतने उदारवादी विचारों के हैं, उन्होंने अपने से 24 वर्ष बड़ी ब्रिगिट ट्रोगनेक्स से प्रेम विवाह किया. यह प्रेम 16 वर्षीय इमैनुअल मैक्रोन को अपने स्कूल टीचर से हुआ था. लंबे प्रेम संबंध के बाद 2007 में उनकी शादी हुई. एक किताब "इमैनुअल मैक्रोन:ए फरफैक्ट यंग मैन" में इस प्रेम कहानी को बखूबी पेश किया गया है.
खुली आर्थिक नीतियों, उदारवादी सोच तथा यूरोपीय संघ को मजबूत करने के नीति के कारण उदारवादी जनता इनके साथ जुड़ती चली गई.
मस्जिद में बैन लगाने की बात...
वहीं प्रथम चरण में दूसरे स्थान पर रहीं, नेशनल फ्रंट की प्रत्याशी व घोर दक्षिणपंथी मरीन ली पेन पेशे से वकील हैं और इससे पहले 2012 का राष्ट्रपति चुनाव भी लड़ चुकी हैं. उस समय पहले राउंड में वह लगभग 18% वोट पाकर तीसरे स्थान पर रही थीं, जबकि इस बार 21.4 प्रतिशत वोट पाकर वे अब तक दौड़ में बनी हुई हैं. नेशनल फ्रंट की स्थापना उनके पिता ने की थी और 2011 में उन्हीं से संघर्ष करके ली पेन ने पार्टी का अध्यक्ष पद पाया. अपने घोषणापत्र में उन्होंने फ्रांस की मुद्रा के रूप में यूरो का उपयोग बंद करने, शरणार्थियों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने, सीमाओं को सुरक्षित बनाने और आर्थिक सुधार लागू करने की बात कही है. कुछ समाचारों के अनुसार उन्होंने फ्रांस में सभी मस्जिदों पर प्रतिबंध लगाने की बात भी की है. उन्होंने यूरोपियन यूनियन को छोड़ने के मुद्दे पर ब्रिटेन में हुए जनमत संग्रह ब्रेक्जिट के समान ही फ्रांस में भी जनमत संग्रह फ्रेक्जिट करवाने की भी घोषणा की है.
फ्रांस के इस चुनाव में बेरोजगारी और आतंकवाद मुख्य मुद्दें हैं. यूरोप 2008 के आर्थिक मंदी से उबर नहीं पाया है, यही कारण है कि वहाँ रोजगार का सृजन नहीं हो पाया है. ऐसे में राष्ट्रवाद, आतंकवाद और पुराने गौरवशाली फ्रांस की वापसी को मरीन ली पेनली पेन मुख्य मुद्दा बना रही हैं. बुधवार के टीवी बहस में मरीन ली पेनली पेन ने जिस प्रकार से तीखे निजी हमले किए, उससे हर कोई हैरान है और वह फ्रांस के लिए काफी असामान्य है, यह फ्रांस में दक्षिणपंथ के नवीन उभार को दिखा रहा है. 1950 के बाद कोई समाजवादी राष्ट्रपति पद के दौड़ में नहीं है. अंतिम मुकाबले में इमैनुअल मैक्रोन की जीत की संभावनाएँ बढ़ी हुई है. बुधवार के टीवी बहस के बाद मैक्रोन को सर्वे के अनुसार 63 प्रतिशत लोगों ने आगे बताया. इसके अतिरिक्त वर्तमान राष्ट्रपति ओलांद समेत कई प्रभावशाली नेताओं और प्रथम चरण में हारे हुए अधिकांश उम्मीदवारों ने दूसरे चरण के लिए इमैनुअल मैक्रोन का समर्थन किया है. मैक्रोन प्रथम चरण में भी आगे थे. लेकिन फ्रांसीसी राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में ऐसा कई बार हुआ है कि प्रथम चरण में द्वितीय स्थान पाने वाले ने द्वितीय चरण में बाजी मार ली. इस तरह मरीन ली पेनली पेन की भी जीतने की संभावनाएँ खुली हुई हैं.
फ्रांस के आज के इस चुनाव परिणाम से जहाँ फ्रांस में ही कई इतिहास रचेंगे, वहीं यूरोपीय यूनीयन भविष्य, संरक्षणवाद, राईज ऑफ द राइट की मजबूती जैसे कई प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे. फ्रांस और जर्मनी दशकों से ईयू के इंजन रहे हैं. यदि मरीन ली पेनली पेन जीतती हैं तो जर्मनी के लिए अत्यंत कठिन परिस्थिति होगी, क्योंकि जर्मनी एकीकृत यूरोपीय यूनीयन के लिए कटिबद्ध रहा है. साथ ही, यूरोप में इस वर्ष जर्मनी में होने वाले चुनावों को भी प्रभावित करेगा. इस तरह बदलाव के मुहाने पर खड़े फ्रांस के आज के चुनाव न केवल कठोर राजनीतिक विचार के लिए संघर्ष है, अपितु संपूर्ण विश्व को फ्रांसीसी क्रांति द्वारा दिए जाने वाले मूल्य "स्वतंत्रता, समानता और भातृत्व" के मूल्यों के भविष्य को भी तय करने वाले चुनाव हैं.
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