सोनिया गांधी का लालू यादव को फोन करना 'नई कांग्रेस' का इशारा है!
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने आरजेडी (RJD) के विरोध को दरकिनार करते हुए कन्हैया कुमार को पार्टी में शामिल किया. किसी जमाने में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के खास रहे पप्पू यादव के साथ भी कांग्रेस (Congress) की नजदीकियां बढ़ रही हैं. और, इन सबके बीच सोनिया गांधी (Sonia gandhi) का लालू यादव को फोन करना चौंकाने वाली बात है.
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बिहार विधानसभा उपचुनाव (Bihar Assembly By-election) की सियासी पिच पर उतरे आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) द्वारा फोन पर बात करने का दावा कर सूबे की राजनीति में हलचल मचा दी है. लालू प्रसाद यादव ने बिहार विधानसभा उपचुनाव के लिए प्रचार से निकलने से पहले दावा किया था कि सोनिया गांधी ने उनसे फोन पर बात की. दोनों नेताओं के बीच हुई बातचीत के बारे में लालू यादव ने बताया था कि सत्तारूढ़ दल भाजपा (BJP) के खिलाफ समान विचारधारा वाली पार्टियों के एक मजबूत गठबंधन बनाने के लिए बैठक बुलाने की जरूरत है. हालांकि, लालू यादव के इस दावे को बिहार कांग्रेस के प्रभारी भक्त चरण दास ने झूठ बताकर खारिज कर दिया. कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार की ओर से इस मामले पर किसी तरह की सफाई नहीं दी गई है. सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस-आरजेडी में छिड़े विवाद के बीच सोनिया गांधी के इस फोन के कई मायने हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सोनिया गांधी का लालू यादव को फोन करना 'नई कांग्रेस' का इशारा है.
सोनिया गांधी ने लालू प्रसाद यादव को भविष्य की कांग्रेस के लिए चेतावनी दे दी है.
नरम दल-गरम दल का सिद्धांत
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से मुलाकात कर वाम दल के कामरेड कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) ने पार्टी का 'हाथ' थाम लिया था. आरजेडी ने कन्हैया कुमार के कांग्रेस (Congress) में शामिल होने का भरपूर विरोध किया था. राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा आम रही थी कि कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने की वजह से ही आरजेडी ने बिहार उपचुनाव में दोनों विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. माना जा रहा था कि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने कन्हैया कुमार के बढ़ते कद को धरातल पर लाने के लिए ही ये कदम उठाया था. लेकिन, कांग्रेस इस मामले में आरजेडी से एक कदम और आगे चली गई. किसी जमाने में लालू प्रसाद यादव के खास रहे और आरजेडी के बड़े नेताओं में गिने जाने वाले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (Pappu Yadav) के साथ भी कांग्रेस ने गलबहियां करना शुरू कर दी हैं. जनअधिकार पार्टी यानी जाप सुप्रीमो पप्पू यादव कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार में भी जुट गए हैं. इतना ही नहीं, उन्होंने सोनिया गांधी को अपनी 'मां' जैसा बताते हुए कांग्रेस के अपने खून में होने की बात कही है. खैर, पप्पू यादव से बढ़ रही कांग्रेस की नजदीकियों में एक अहम बात ये भी है कि राजेश रंजन ने कांग्रेस में शामिल होने से पहले आरजेडी से अलग होने की शर्त रखी थी.
इस बात में कोई दो राय नही है कि कन्हैया कुमार के बाद अब पप्पू यादव को भी कांग्रेस में शामिल करने का फैसला राहुल गांधी ही करने वाले हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो जैसे अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई के दौरान नरम दल और गरम दल अलग-अलग विचारधाराओं के साथ भी एक लक्ष्य के लिए काम कर रहे थे. ठीक इसी तरह कांग्रेस में भी राहुल गांधी-प्रियंका गांधी इस समय गरम दल का नेतृत्व करते हुए आगे बढ़ रहे हैं. पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ 'फ्री हैंड' देने वाले राहुल गांधी ही थे. कन्हैया कुमार को कांग्रेस में शामिल करने का फैसला भी उनका ही था. उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी भी कांग्रेस को मजबूत करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही हैं. बड़े नेताओं के कांग्रेस छोड़ने, जनाधार खिसकने जैसी तमाम दुश्वारियों के बाद भी प्रियंका गांधी खुद को हरसंभव कोशिश कर लोगों की नजर में बनी हुई हैं. केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरने वाली उक्ति को प्रियंका गांधी ने आत्मसात कर लिया है. प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में तो राहुल गांधी बिहार में अपने लिए गरम दल की विचारधारा से रास्ता बनाने के प्रयास कर रहे हैं.
कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस अब धीरे-धीरे राज्यों में क्षेत्रीय दलों की 'बैसाखी' को खत्म करने की ओर आगे बढ़ रहा है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) की जोड़ी ने कहीं न कहीं ये तय कर लिया है कि 2024 से पहले जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उन सूबों की क्षेत्रीय पार्टियों को सीधा और स्पष्ट संदेश दे दिया जाए कि कांग्रेस अकेले चुनाव लड़कर उनको अच्छा-खासा नुकसान पहुंचा सकती है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगर ऐसा होता है, तो नुकसान क्षेत्रीय दलों को ही होगा. कांग्रेस इन राज्यों में सरकार बनाने की स्थिति में भले ही न आ सके, लेकिन मुख्य विपक्षी दल को सत्ता से दूर रखने में जरूर बड़ी भूमिका निभा सकती है. कमोबेश महाराष्ट्र, झारखंड और उन सभी राज्यों में जहां कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के भरोसे है, वहां पार्टी भविष्य में राहुल और प्रियंका की सोच पर ही आगे बढ़ेगी.
सोनिया गांधी की 'नई कांग्रेस'
केंद्रीय कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी ने दो टूक शब्दों में खुद को अध्यक्ष घोषित कर सभी असंतुष्ट नेताओं तक सीधा संदेश पहुंचा दिया था कि पार्टी पर उनके एकाधिकार को कोई भी चुनौती नहीं दे सकता है. खबर ये भी आई थी कि कांग्रेस में फुलटाइम राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के लिए चुनाव अगले साल सितंबर में होने वाले हैं. तय माना जा रहा है कि राहुल गांधी ही कांग्रेस अध्यक्ष पद पर फिर से काबिज होंगे. खैर, बात करते हैं, सोनिया गांधी के उस फोन की जो उन्होंने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को किया था. लालू यादव ने दावा किया था कि सोनिया गांधी ने समान विचारधाराओं वाले दलों के गठबंधन बनाने को लेकर बात की थी. लेकिन, लालू के इस दावे को भक्त चरण दास (Bhakta Charan Das) ने मतदाताओं के बीच भ्रम फैलाने वाला बताकर झूठ करार दे दिया. हालांकि, सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस-आरजेडी के बीच विवाद के बाद सोनिया का लालू को फोन करना दोनों दलों के लिए राहत की बात कही जा सकती है.
यहां सोनिया गांधी को नरम दल की नेता के तौर पर देखा जा सकता है. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हमेशा से ही पुराने संबंधों को सहेजते हुए आगे बढ़ने की पक्षधर रही हैं. वो अलग बात है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी इस मामले में नई सोच रखते हुए कांग्रेस में बदलाव ला रहे हैं. लेकिन, राजनीतिक लाभ के लिए ही सही, लेकिन सोनिया गांधी कई बार लालू प्रसाद यादव की मदद करती रही हैं. यहां सोनिया गांधी ने लालू यादव को फोन कर एक तरह से भविष्य की 'नई कांग्रेस' के लिए चेतावनी दे दी है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो उन्होंने आरजेडी सुप्रीमो को साफ कर दिया है कि आने वाले समय में कांग्रेस की बागडोर राहुल और प्रियंका के हाथ में जाने वाली है. और, समान विचारधारा वाले सभी दलों को समय रहते संबंध सुधारने होंगे. अन्यथा नतीजे कांग्रेस के पक्ष में भले ही ना आएं. लेकिन, इससे नुकसान क्षेत्रीय दलों को ही होगा. चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर पहले ही बता चुके हैं कि भाजपा को हटाना इतना आसान नहीं होगा. क्योंकि, भाजपा विरोधी वोटबैंक में इतना बंटवारा है कि वो एकजुट नहीं हो सकता है.
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