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Updated: 07 जुलाई, 2021 06:56 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मुलाकातें अगर मायने रखती हैं, तो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिंह सिद्धू को सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) का आखिरी फैसला आने से धीरे से ही सही एक झटका तो दिया ही है - और कैप्टन या सिद्धू की कौन कहे, आगे चल कर तो पंजाब में कांग्रेस का ही भविष्य तय होने वाला है.

कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) को भले ही एक बार दिल्ली से बैरंग लौट जाना पड़ा हो. नवजोत सिंह सिद्धू ने भले ही गांधी परिवार के दरबार में एंट्री के मामले में पहले बाजी मार ली हो - लेकिन सोनिया गांधी से इस बार सिद्धू को मुलाकात का मौका अब तक तो नहीं ही मिला है. फरवरी, 2021 में जरूर सिद्धू ने सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात की थी. मुलाकात के दौरान पंजाब को लेकर अपने विजन डॉक्युमेंट का प्रजेंटेशन भी दिया था.

हाल में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से हुई नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की मुलाकात से पहले ये बात भी समझ में आयी कि मुलाकात की पहल के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को भी 10, जनपथ जाकर पहले मंजूरी लेनी पड़ी थी. उसके बाद ही सिद्धू के लिए राहुल गांधी से भी मिलना मुमकिन हो पाया था, लेकिन उससे आगे के लिए हरी झंडी नहीं दिखायी गयी.

सिद्धू को राहुल गांधी से मुलाकात के लिए भी प्रियंका गांधी वाड्रा की मदद लेनी पड़ी - और उसके लिए वो दिल्ली में डेरा डाले रहे. सिद्धू की तरह डेरा तो पहले कैप्टन भी डाले रहे, लेकिन बाद में उनको विशेश रूप से चंडीगढ़ से दिल्ली बुलाया गया.

कैप्टन और सोनिया गांधी के बीच हुई करीब डेढ़ घंटे की मीटिंग से पहले प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने भी सोनिया गांधी से मिल कर अपनी बात कही. निश्चित तौर पर सिद्धू से किये गये वादों को लेकर ही ब्रीफ किया होगा - क्या राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को डर रहा होगा कि कैप्टन से बातचीत में सोनिया गांधी कहीं सिद्धू को नजरअंदाज न कर बैठें?

माना जा रहा है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ साथ सोनिया गांधी भी कोई ऐसा ही फैसला लेना चाहती हैं जो कैप्टन और सिद्धू दोनों ही के लिए सम्मानजनक पोजीशन प्रदान करते हों - और दोनों ही को कम से कम अपने साथ नाइंसाफी न होने के स्तर तक संतुष्टि हो, ताकि पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को एकजुट रखने की कोशिशें बेकार न जायें.

हाई प्रोफाइल मुलाकातों से पहले पंजाब संकट के समाधान के लिए कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में बनी तीन सदस्यों की समिति भी कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू से मुलाकात कर चुकी है - साथ ही, पंजाब कांग्रेस के 100 से अधिक विधायकों, सांसदों और नेताओं के साथ भी विस्तार से बातचीत कर समस्या की जड़ों तक पहुंचने की कोशिश की है.

पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत पहले ही बता चुके हैं कि सोनिया गांधी 10 जुलाई तक अपना फैसला सुना सकती हैं और अब कैप्टन सिद्धू का पक्ष पंजाब कमेटी के बाद गांधी परिवार भी सुन चुका है. अब सोनिया गांधी कांग्रेस के हितों को सर्वोपरि रखते हुए कोई फैसला लेती हैं तो कोई दिक्कत वाली बात ही नहीं है, लेकिन अगर कैप्टन और सिद्धू के सम्मान और खुशी के ख्याल से फैसला लिया जाता है तो कांग्रेस मुक्त पंजाब का खतरा मंडराता रहेगा - और 2019 में जो हाल हरियाणा में कांग्रेस का हुआ, पंजाब में भी हो सकता है.

कैसा होगा सोनिया गांधी का फैसला

राज्यों में कांग्रेस के भीतर पंजाब जैसे नेताओं के झगड़ों पर नजर डालें तो राजस्थान का मामला मिलता जुलता है, लेकिन ऐसे मामलों में सोनिया गांधी के लेटेस्ट फैसलों की बात करें तो 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले हरियाणा का उदाहरण नजर आता है.

हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आये तो सबको यही लगा कि कांग्रेस थोड़ा और जोर लगा दी होती तो बहुमत भी हासिल कर सकती थी - और ये भी समझ में आया कि सोनिया गांधी ने अशोक तंवर से छीन कर भूपिंदर सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा को जो कमान सौंपने का इरादा किया - वही फैसला अगर थोड़ा पहले ले लिया होता तो नतीजे और ही हो सकते थे.

capt amrinder singh, sonia gandhi, navjot singh sidhuअब सोनिया गांधी के फैसले पर निर्भर करता है कि सिद्धू 'कैप्टन' बनते हैं या अमरिंदर सिंह पर ही एक बार फिर भरोसा किया जाता है

तब अशोक तंवर की जो पोजीशन थी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाकात से पहले नवजोत सिंह सिद्धू की भी करीब करीब वैसी ही रही होगी. जैसे नवजोत सिद्धू को राहुल गांधी की पसंद माना जाता है, अशोक तंवर भी उसी कैटेगरी में आते थे. सिद्धू को तो इस बार सोनिया गांधी से मिलने का मौका तक नहीं मिला, लेकिन अशोक तंवर की तो शादी भी सोनिया गांधी के ही आशीर्वाद से हुई थी - और पति-पत्नी दोनों को बराबर स्नेह भी मिलता रहा.

जैसे पंजाब में 2017 में सरकार बनने के कुछ दिन बाद से ही कैप्टन और सिद्धू में टकराव का दौर शुरू हो गया, हरियाणा में भी 2014 में कांग्रेस के सत्ता से बेदखल होने के कुछ दिन बाद जब अशोक तंवर को प्रदेश कांग्रेस की कमान मिली, हुड्डा परिवार के साथ तकरार जल्दी ही जोर पकड़ने लगी थी. 2019 में भूपिंदर सिंह हुड्डा के दबाव में सोनिया गांधी ने जब अशोक तंवर को हटाने का फैसला किया, उनकी पैरवी करने वाल कोई नहीं था. राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी को बाय बोल चुके थे - और प्रियंका गांधी आम चुनाव में अमेठी की हार के बाद यूपी पर फोकस थीं. नतीजा ये हुआ कि अशोक तंवर ने खुलेआम बगावत कर डाली - और कांग्रेस आलाकमान ने बाहर का रास्ता दिखा दिया.

हरियाणा के केस से तुलना करें तो, मध्य प्रदेश और राजस्थान में यही देखने को मिला है कि कांग्रेस नेतृत्व पुराने दिग्गजों कमलनाथ और अशोक गहलोत के पक्ष में मजबूती से खड़ा रहा है - और नतीजा ये रहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी का दामन थाम लिया और सचिन पायलट मौके के इंतजार में बैठे हैं. लेकिन पंजाब के मामले में पुराने दिग्गज कैप्टन अमरिंदर सिंह को नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ सोनिया गांधी की तरफ से अब तक वैसा रुख देखने को नहीं मिल सका है जैसी सुविधा कमलनाथ और अशोक गहलोत भुनाते रहे हैं.

अब तक पंजाब के मामले में आ रही खबरों से कांग्रेस नेतृत्व का जो रुख समझ में आ रहा है, उसके मुताबिक - कैप्टन अमरिंदर सिंह अगले साल होने वाले चुनावों तक मुख्यमंत्री तो बने ही रहेंगे, चुनावों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी वही होंगे. ये भी बताया जा रहा है कि सिद्धू को अमरिंदर सिंह सरकार में एडजस्ट करने के प्रस्ताव को पीछे छोड़ा जा चुका है - और अब संगठन में सिद्धू को बड़ी जिम्मेदारी देने की बात चल रही है.

संगठन में बड़ी जिम्मेदारी तो प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया जाना ही लगता है. अगर यूपी बीजेपी के हिसाब से देखें तो जिन बीजेपी एमएलसी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी की बड़ी चर्चा रही, उनको यूपी बीजेपी में सिर्फ उपाध्यक्ष पद ही मिल सका - और वो भी तब जब पार्टी में पहले से ही एक दर्जन से ज्यादा उपाध्यक्ष भरे पड़े हों.

अब सिद्धू को पंजाब में सुनील जाखड़ को हटाकर कांग्रेस की कमान संभालने को मिलता है, या फिर कैप्टन की दलीलें भी यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जितनी ही दमदार साबित होते हैं कि सिद्धू के साथ भी आगे चलकर अरविंद शर्मा जैसा ही व्यवहार होता है, देखना होगा.

हरियाणा केस में सोनिया गांधी के फैसले को याद करें तो वो भूपिंदर सिंह हुड्डा को पीसीसी की कमान सौंपने को तैयार नहीं हुई थीं, बल्कि अपनी भरोसेमंद कुमार शैलजा को अशोक तंवर की जगह हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था.

हो सकता है राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की बात मानकर सोनिया गांधी पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू को सुनील जाखड़ की जगह दे दें - और कैप्टन अमरिंदर सिंह की हिंदू नेता को कमान सौंपे जाने की डिमांड खारिज कर दी जाये.

दैनिक जागरण ने अपने विश्वस्त सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह जब सोनिया गांधी से मुलाकात के लिए निकले तो आर पार के मूड में थे - और अपना इस्तीफा भी साथ लेते गये थे, लेकिन मुलाकात के बाद कैप्टन ने मीडिया में जो छोटा सा बयान दिया वो भी गौर करने वाला है.

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बस इतना ही कहा है कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी जो भी फैसला करेंगी, वो उनको मंजूर होगा. बताते हैं कि कैप्टन की सोनिया से कुछ देर की मीटिंग के बाद पंजाब कमेटी के प्रभारी मल्लिकार्जुन खड़गे भी बैठक में शामिल होने पहुंचे थे. सुना तो ये भी जा रहा है कि मीटिंग में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू को एडजस्ट करने के लिए हामी भी भर दी है, लेकिन पत्रकारों ने जब कैप्टन से सिद्धू के बारे में पूछा तो इतना ही बोले, 'सिद्धू साहब के बारे में मैं कुछ नहीं जानता.'

सोनिया के फैसले क्या असर हो सकता है

नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की तुलना भी हरियाणा की स्थिति से की जा सकती है - और महत्वपूर्ण ये होगा कि चुनाव अभियान समिति की कमान किसे सौंपी जाती है.

हरियाणा में कुमारी शैलजा को प्रदेश अध्यक्ष तो बना दिया गया था, लेकिन कैंपेन कमेटी के चेयरमैन भूपिंदर सिंह हुड्डा बने थे - ऐसी स्थिति में टकराव की स्थिति बनी रहती है और पंजाब में तो ये पहले से ही पीक पर है. हुड्डा और शैलजा के बीच टिकटों के बंटवारे में बार बार टकराव की स्थिति बनी, लेकिन हुड्डा भारी पड़ते थे और शैलजा मन मसोस कर रह जाती रहीं. पता चला हुड्डा ने शैलजा की बातों को सिर्फ इतनी ही तवज्जो दी जिन मामलों में वो खुद इत्तफाक रखते थे, वरना शैलजा तो सिर्फ शिकायतें ही करती रहीं कि उनके आदमियों के टिकट काट दिये गये.

फर्ज कीजिये पंजाब में टिकटों पर मिल जुल कर आम राय से फैसले लेने का फरमान सुनाया जाता है - क्या ये मुमकिन है कि कैप्टन और सिद्धू आम राय से कोई फैसला ले पाएंगे? सिद्धू के अपने उम्मीदवार होंगे और कैप्टन के अपने, फिर टिकटों पर आखिरी फैसला कैसे होगा?

क्या फिर से मामला 10, जनपथ ही पहुंचेगा - और किसे टिकट दिया जाये और किसे नहीं ये फैसला भी सोनिया गांधी ही करेंगी? अगर सोनिया गांधी फैसला करेंगी तो क्या टिकटों के मामले में भी फैसले का आधार राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की सिफारिशें आधार बनेंगी? राहुल सोनिया के अलावा सोनिया गांधी के फैसले लेने में मल्लिकार्जुन खड़गे और पंजाब प्रभारी हरीश रावत भी मददगार साबित हो सकते हैं, बशर्ते उनको उत्तराखंड में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के लिए अपने राज्य में न भेजने तय किया जाये.

अब अगर पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की सूची 10, जनपथ में तैयार की जाये तो क्या उम्मीद की जा सकती है?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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