अयोध्या विवाद के मध्यस्थ श्री श्री रविशंकर की 'अग्नि-परीक्षा'
अयोध्या मामले पर श्री श्री रवि शंकर का मध्यस्थता बोर्ड में होना लोगों को फूटी आंख नहीं सुहा रहा. उन पर आरोप लगाया जा रहा है कि अयोध्या मामले पर वे पक्षपातपूर्ण बयान दे चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें मध्यस्थ नियुक्त करके अच्छा नहीं किया है.
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राम मंदिर-बाबरी मस्ज़िद विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन मध्यस्थों के नाम का ऐलान किया है, जिन्हें अगले 8 हफ्ते में अपनी रिपोर्ट सौंपनी होंगी. मध्यस्थता बोर्ड के ये तीन सदस्य हैं- श्री श्री रविशंकर, श्रीराम पंचू और बोर्ड के अध्यक्ष होंगे जस्टिस इब्राहिम कलीफुल्ला.
शुक्रवार को जैसे ही इस पैनल के सदस्यों के नामों की घोषणा हुई, श्री श्री रविशंकर के नाम पर विवाद खड़ा हो गया. सोशल मीडिया में उनके पुराने बयान तैरने लगे. असदुद्दीन ओवैसी ने बाकायदा प्रेस कान्फ्रेंस करके श्री श्री रविशंकर के नाम पर अपना ऐतराज जताया.
श्री श्री रविशंकर आर्ट ऑफ लिविंग संस्था के संस्थापक हैं. इसके जरिए लोगों को खुशी से जीने की कला सिखाई जाती है. श्री श्री रविशंकर के देश विदेश में लाखों प्रशंसक हैं. भारत के अलावा 151 देशों में आर्ट ऑफ लिविंग की ब्रांच हैं. साथ ही श्री श्री की फार्मेसी और स्वास्थ्य केंद्र भी चलते हैं. श्री श्री ने पहले भी इस मामले में मध्यस्थता के लिए अपनी रुचि जाहिर की थी और कुछ बैठकों के जरिए इसका प्रयास भी किया था.
अब मध्यस्था मिलने के बाद श्री श्री रवि शंकर ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को देश और इस मामले से संबंधित सभी पक्षों के हित में बताया है. और कहा है कि 'हमें अपने अहंकार और मतभेदों को अलग रखकर इस विषय से संबंधित सभी दलों की भावनाओं का सम्मान करते हुए सबको साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए.
श्री श्री रवि शंकर ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सभी के हित में बताया है.
सोशल मीडिया के मताबिक सुप्रीम कोर्ट ने श्री श्री रवि शंकर को लेकर गलती की है. श्री श्री को लोग मध्यस्थता के लायक नहीं समझते. लोगों का कहना है कि अयोध्या मामले पर श्री श्री के विचार पक्षपाती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें मध्यस्थ नियुक्त करके अच्छा नहीं किया है. कहा जा रहा है कि श्री श्री को अयोध्या मामले की मध्यस्था देने के बाद उम्मीद है कि देश में सांप्रदायिक हिंसा जैसे मामलों को रोकने के लिए बाबू बजरंगी को नियुक्त किया जाएगा.
श्री श्री के उन विचारों का हवाला दिया जा रहा जब अयोध्या मामले पर उन्होंने कहा था कि 'मुस्लिमों को सद्भावना दिखाते हुए अयोध्या पर अपना दावा छोड़ देना चाहिए. अगर राम मंदिर का मुद्दा हल नहीं हुआ, तो भारत में भी एक सीरिया होगा.'
श्री श्री रविशंकर ने धमकी दी थी कि अगर अयोध्या विवाद में फैसला हिंदुओं के खिलाफ गया तो 'खून-खराबा' होगा. ऐसा व्यक्ति मध्यस्थ कैसे हो सकता है? उनका उद्देश्य क्या मुसलमानों को धमकाना है?
श्री श्री रवि शंकर के अलावा दूसरे सदस्य श्रीराम पंचू एक वरिष्ठ वकील हैं जो वकील के अलावा पहले भी कई मुद्दों में मीडिएटर की भूमिका निभाते आए हैं. और अध्यक्ष कलीफुल्ला जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस रह चुके हैं. 2012 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किया गया था. फिलहाल ये रिटायर हैं लेकिन अपने कई अहम फैसलों के लिए इन्हें जाना जाता है.
मध्यस्थता बोर्ड के 3 सदस्य - जस्टिस इब्राहिम कलीफुल्ला, श्री श्री रविशंकर और श्रीराम पंचू
श्रीराम पंचू और जस्टिस कलीफुल्ला दोनों कानून के जानकार है इसलिए उनपर लोगों को आपत्ति नहीं लगती, लेकिन सोशल मीडिया पर आ रही प्रतिक्रियाओं से साफ जाहिर है कि परेशानी सिर्फ श्री श्री रविशंकर से है. क्योंकि उनके विचारों से हर कोई वाकिफ है. और सिर्फ सोशल मीडिया ही क्यों अयोध्या में मौजूद साधुओं ने भी श्री श्री की मध्यस्थता पर आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कर मामले को एक बार फिर से लटकाने का काम किया गया है. उन्होंने धर्मगुरु श्रीश्री रविशंकर के नाम को खारिज करते हुए कहा कि क्या अयोध्या के संत इस मामले में मध्यस्थ की भूमिका निभाने के काबिल नहीं थे. उन्होंने कहा कि रविशंकर इस मामले में मध्यस्थता करने वाले होते कौन हैं. अयोध्या के संतों ने कहा कि समझौता पक्षकारों को करना है, लेकिन इस पैनल में पक्षकार हैं ही नहीं. संतों ने कहा कि उन्हें नहीं लगता है कि रविशंकर को यहां पर कोई सुनने वाला है.
जबकि मुस्लिम पक्षकार हाजी महबूब ने कोर्ट की मध्यस्थता की पहल को अच्छा कदम बताया है. उन्होंने कहा कि इस मामले में सभी पक्षों को कोर्ट का फैसला मानना होगा. वहीं अयोध्या मामले के मुद्दई इकबाल अंसारी भी मध्यस्थता पर सहयोग करने की बात कह रहे हैं. उनका कहना है कि इस पैनल के गठन होने के बाद उम्मीदें बढ़ गई है अगर इस पर बात बन जाती है तो बेहतर है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक हफ्ते में मध्यस्थता शुरू हो जानी चाहिए. और इसके लिए 8 हफ्ते का समय दिया गया है. यानी साफ है कि अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या मसले पर किसी तरह का फैसला आने की उम्मीद नहीं है. फैसला तो जब आएगा तब आएगा, लेकिन फिलहाल तो श्री श्री रवि शंकर पर फैसला होना चाहिए, जिनका इस मध्यस्थता बोर्ड में होना लोगों को फूटी आंख नहीं सुहा रहा.
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