पाकिस्तान की 'नरमी' भारत के खिलाफ एक नई चाल !
भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित की तरफ से बातचीत की ये पहल दूसरी बार की गई है. लेकिन ये उदारता और नरमी भरी पहल महज एक चाल प्रतीत होती है.
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बंदूक और गोलियों की भाषा बोलने-समझने वाले बातचीत की पहल करने लगे हैं. आखिर पाकिस्तान के रवैये में अचानक ये तब्दीली क्यों? जवाब बिल्कुल स्पष्ट है. या तो पाकिस्तान ने भारत के जरिए उसके प्रति अपनाई जाने वाली नई दबंग नीति के आगे घुटने टेक दिए हैं या फिर दगाबाजी का उसका ये कोई नया पैंतरा है.
इससे पहले दोनों देशों के दरम्यान अब तक जितनी भी वार्ताएं हुई हैं, उसकी पहल भारत की जानिब से की जाती रही है. इसके बरक्स इस बार ये पेशकश भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित की तरफ से की गई है. इसमें चौंकाने वाली बात ये भी है कि उन्होंने भारत के साथ सभी मुद्दों पर बिना शर्त चर्चा करने की बात कही है. यानी हर बार की तरह उसने न तो कश्मीर का राग अलापा है और न ही इसको वार्ता का अहम हिस्सा बनाने की रट लगाई है. इस मुद्दे पर बातचीत के लिए कहते हुए हुर्रियत की तीसरा पक्ष मानने की पाबंदी भी नहीं जोड़ी है. पाकिस्तान के रुख में अचानक आई इस उदारता और नर्मी की आखिर वजह क्या है?
कहीं ऐसा तो नहीं कि सीमा पर पाकिस्तान के द्वारा बार-बार किए जाने वाले संघर्ष-विराम के उल्लंघन और भारी गोलीबारी का सख्ती से जवाब दिए जाने के कारण पाकिस्तान की कमर टूटने लगी है. ये तो साफ है कि जिस तरीके से 18 सितंबर को उरी में हुए सैन्य ठिकाने पर दहशतगर्दाना हमले का भारतीय सेना ने महज दस दिन में ही सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए करारा जवाब दिया और पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद किया, उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा केंद्र सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति का उसे आभास हो गया है. इससे पाकिस्तान की अकड़ बहुत हद तक ढीली पड़ गई है.
यही नहीं जिस तरह से हमसाया मुल्क को अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी से अलग-थलग करने के भारत के कूटनीतिक प्रयासों को सफलता मिली, उससे पाकिस्तान बौखला गया है. पहले दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग के लिए बने संगठन सार्क और फिर गुट निरपेक्ष आंदोलन यानी नाम जैसे मंचों पर उसे एक तरह से दुनिया के बॉयकाट का सामना करना पड़ा. दक्षेस सम्मेलन में तो भारत के न शामिल होने के फैसले के बाद अफगानिस्तान, बंग्लादेश और भूटान जैसे देशों ने इसका बहिष्कार कर दिया और इसका मेजबान होने के बावजूद पाकिस्तान को आखिर सार्क सम्मेलन को रद्द करना पड़ा.
गौरतलब है कि भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित की तरफ से बातचीत की ये पहल दूसरी बार की गई है. इससे पहले अफगानिस्तान को लेकर गत वर्ष दिसंबर में आयोजित 'हॉर्ट ऑफ एशिया सम्मेलन' के दौरान भी उनकी तरफ से इस तरह का प्रस्ताव रखा गया था. उस सम्मेलन में शिरकत के लिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विदेशी मामलों के सलाहाकार सरताज अजीज भारत की एकदिवसीय यात्रा पर आए थे. उस समय भी भारत ने पाकिस्तान की पेशकश को कोई भाव नहीं दिया था.
अब पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने एक टीवी इंटरव्यू में सभी मुद्दों पर एक तरह से बिना शर्त बातचीत की पहल की है. हालांकि इस कथित बिना शर्त वाली पहल पर भी उन्होंने एक शर्त जोड़ दी है. वो शर्त ये है कि अगर भारत कश्मीर को विवादास्पद क्षेत्र मान ले तो पाकिस्तान 1947 से पूर्व स्थिति के लिए तैयार हो जाएगा. इस तरह देखा जाए तो पाकिस्तान की ये उदारता और नरमी भरी पहल महज एक चाल प्रतीत होती है. इसके जरिए पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ये दिखाना चाहता है कि वो बातचीत के लिए तैयार था लेकिन भारत ही पीछे हट गया. दूसरे अपनी इस बिना शर्त बातचीत की पहल के जरिए ये संदेश भी देना चाहता है कि वो भारत के साथ तमाम समस्यओं को हल करने का इच्छुक है.
हालांकि पाकिस्तान के पूर्व रिकॉर्ड को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय उसकी इस पहल में शायद ही यकीन करे. उन्हें अच्छी तरह ज्ञात है कि इससे पहले किस तरह पाकिस्तान भारत के साथ होने वाली तमाम शांति प्रक्रियाओं में कभी वार्ता से पहले तो कभी वार्ता के दौरान ही छल-कपट करके उसे सही दिशा में जाने से रोकता रहा है.
दिलचस्प बात ये है कि पाकिस्तान ने अपनी ताजा पहल में ये माना है कि पाकिस्तान में मौजूद बहुत से ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ भारत-पाक के मध्य दोस्ती नहीं चाहते हैं. इके साथ ही ये भी कहा कि भारत अगर बातचीत के लिए तैयार नहीं होता है तो इसका लाभ नकारात्मक तत्वों को होगा. अजीब बात है कि जब उनसे इन्हीं नकारात्मक तत्वों और नॉन स्टेट एक्टर्स में शामिल हाफिज सईद के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि भारत उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मुहैया करा पा रहा है. जब्कि 26/11 मुंबई हमलों के सम्बंध में भारत की तरफ से सौंपे गए डोजियर, जिंदा पकड़े गए आतंकी अजमल आमिर कसाब की फोन पर बातचीत की आवाज के सैंपल और डेविड कोलमैन हेडली के बयान, हाफिज सईद की ओर इशारा करते हैं.
बातचीत में उन्होंने ये भी कहा है कि पाकिस्तान स्वयं आतंकवाद का शिकार है, ऐसे में भला वो आतंकवाद का समर्थन कैसे कर सकता है. पाकिस्तान ने आतंकवाद के लिए नेशनल एक्शन प्लान चलाया है और अगर कोई भी पाकिस्तानी आतंकी गतिविधियों में लिप्त पाया गया तो वो कानून का सामना करेगा. अब्दुल बासित का ये बयान आतंकवाद पर पाकिस्तान के दोहरे रवैये की अक्कासी करने के लिए काफी है. एक तरफ तो वो आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई को लेकर गंभीर होने की बात करता है, दूसरी तरफ कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए सीमापार से मदद करता है. हालिया बडगाम मुठभेड़ जैसे मामलों की छानबीन में ये बात सामने आई है कि किस तरह पाकिस्तानी एडमिन व्हाट्सएप ग्रुपों के जरिए पत्थरबाजी को हवा दे रहे हैं.
इन हालात में भारत के पास और कोई विकल्प नहीं है कि वो पाकिस्तान की तरफ से की गई इस तरह की किसी भी पहल पर ध्यान न दे, यही वजह है कि फिलहाल नई दिल्ली की तरफ से इसको लेकर कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है और वो आतंकवाद एवं बातचीत को एक साथ जारी नहीं रहने देने के अपने स्टैंड पर कायम है. विजयी होने के बावजूद हमेशा रक्षात्मक रुख अपनाने की हमारी आदत के चलते ही पाकिस्तान सिर चढ गया था. उसके प्रति हमारी नीति में आए स्पष्ट बदलाव के बाद अब वो बातचीत की भाषा समझने लगा है.
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