'नाहिद की गायकी गुनाह और उसे वोट देना उससे भी बड़ा गुनाह' !
मस्जिद में ऐसा एलान करवाने वाले मौलवियों के खिलाफ कोई फतवा क्यों नहीं देता. असम की इंडियन आयडल सिंगर नाहिद अफरीन को लेकर कट्टरपंथियों के फैसले क्रूरता की हद है.
-
Total Shares
मस्जिद में ऐसा एलान करवाने वाले मौलवियों के खिलाफ कोई फतवा क्यों नहीं देता. असम की इंडियन आयडल सिंगर नाहिद अफरीन को लेकर कट्टरपंथियों के फैसले क्रूरता की हद है. मुझे शरीयत की बारीकियों के बारे में ज्यादा नहीं पता है. लेकिन यह खूब पता है कि शमशाद बेगम, मोहम्मद रफी, नुसरत फतेह अली खान, राहत फतेह अली खान जैसे गायकों ने कमाल का काम किया है. मुसलमान होने के नाते इनकी गायकी से इस्लाम को कितना नुकसान हुआ यह तो नहीं पता, लेकिन सुनने वालों को मस्ती में झूमते देखा है. सभी धर्मों के फैन.
फिर अचानक असम की इंडियन आयडल सिंगर नाहिद अफरीन के एक गाना गाने से ऐसा कौन सा पहाड़ टूट गया, जिससे मौलवी-उलेमाओं के 46 संगठनों ने असम में उसके खिलाफ पर्चे छपवा दिए. इस खबर के सुर्खी बनने से नाहिद के कोमल मन पर जो असर हुआ है, वह चौंकाने वाला है. सुनिए नाहिद की ही जुबानी, जिसने अपनी बात इंडिया टुडे चैनल से शेयर की-
'सबसे पहले आप सभी को गुड मार्निंग...
पहले तो मुझे भरोसा नहीं हुआ लेकिन बीती रात मेरे कुछ रिश्तेदारों ने फोन किया कि तुम्हारे खिलाफ फतवा जारी हुआ है. कुछ असमिया रिपोर्टरों ने भी यही बात कही. लेकिन मेरी जिंदगी बिलकुल सामान्य थी. लेकिन उसमें भूचाल तब आ गया, जब मेरे पिता ने टीवी ऑन किया और उस पर बड़े-बड़े शब्दों में यही ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी. 45 या 46 संगठनों ने मिलकर मेरे गाने को गैर-इस्लामी करार दिया है. वे नहीं चाहते कि मैं गाना गाऊं.
मैंने सोचा भी नहीं था कि जिंदगी में कभी ऐसा भी दौर आएगा. जब मेरे गाने पर पाबंदी लगाई जाएगी. मुझे लगता था कि मैं गाने के लिए ही पैदा हुई हूं. मुझे लगता था कि मैं हमेशा गाना गाऊंगी. लेकिन कल रात मुझे लगा कि मैं शायद अब कभी गाना नहीं गा पाऊंगी. फिर मुझे मशहूर गायिका अफरीन सुल्ताना, ए आर रहमान, जावेद अली, राहत फतेह अली का ख्याल आया. कई लोगों ने मुझे मैसेज भेजे. तो मुझे लगा कि यह मेरा पुनर्जन्म है.
कल रात में वाकई बहुत उदास हो गई थी. एक पल तो मुझे भी यह लगने लगा था कि मैं अपनी कम्युनिटी के खिलाफ चली गई हूं और सभी लोगों को नीचा दिखाया है. लेकिन, यह सब निगेटिव बातें मेरे मन से निकलने लगीं जब मुझे कई बड़े लोगों के फोन आए. राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा ने भी फोन किया. उन्होंने मुझे सुरक्षा का पूरा भरोसा दिलाया. असम के कई जाने-माने गायकों ने मुझे फोन किया. तो मुझे और ढांढस मिला.
मैं सिर्फ इसलिए नहीं उदास थी कि कुछ संस्थाओं ने मेरे खिलाफ फतवा जारी किया था, बल्कि मेरा मन इसलिए भी टूट गया था क्योंकि मेरे ही परिवार और मेरे आसपड़ोस में लोग मेरे गाने के खिलाफ थे. जब मैं इंडियन आयडल से लौटी थी, तभी मुझे पता चला था कि मस्जिद में कुछ मौलानाओं ने एलान करवाया था कि कोई मुझे वोट न दे. क्योंकि मैं गाना गाकर एक गुनाह कर रही हूं और मुझे वोट देने से और बड़ा गुनाह हो जाएगा. इसके बावजूद मुझे अपने दोस्तों और टीचर्स से हौंसला मिला. लेकिन इस कुछ मौलानाओं ने वाकई मुझे बहुत धक्का पहुंचाया है.'
उलेमा सही, लेकिन ज्यादा सख्त :'इस्लाम में गाने बजाने की मनाही है. शरियत इसकी इजाजत नहीं देती है. लेकिन उन उलेमाओं ने जिस तरह से नाहिद के बारे में फैसला लिया, शायद उसे और बेहतर ढंग से किया जा सकता था. बच्ची को बुलाकर उससे बात की जा सकती थी कि उसके लिए क्या गलत है और क्या सही. इस तरह से इकट्ठा होकर फतवे जारी करना गलत है.'
- इमाम उमर इलियासी, ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इमाम
इस फतवे का कोई तुक नहीं:
'मैं तो कम्युनिटी के बड़े लोगों और उलेमाओं से कहूंगा कि किसी बच्ची के गाना गाने पर फतवा देना आज समुदाय के लिए प्रसांगिक नहीं है. यह बिलकुल गलत है. मौलवी और उलेमाओं को ज्यादा समय कुरान के जरिए ऐसा मैसेज देने में होनी चाहिए जिससे मुसलमान समुदाय का नाम ऊंचा हो. ऐसे फतवा जारी करने से कौम की बदनामी ही होगी.'
- आबिद तासूल खान, माइनॉरिटी कमिशन
ये भी पढ़ें-
आपकी राय