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Updated: 23 फरवरी, 2022 05:13 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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यूपी चुनाव 2022 में यूं तो महंगाई से लेकर बेरोजगारी तक के तमाम मुद्दों पर विपक्षी दलों की ओर से भाजपा पर निशाना साधा जा रहा है. लेकिन, इस चुनाव में भाजपा को एक ऐसे मुद्दे की वजह से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जो केवल चुनावों के समय ही सामने आता है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से लेकर कांग्रेस ने आवारा पशुओं की समस्या को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया है. और, इस मुद्दे की तपिश का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीते दिनों एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आवारा पशुओं की समस्या का निदान करने का भरोसा दिलाना पड़ा. पीएम नरेंद्र मोदी ने इस चुनावी रैली में कहा कि 'छुट्टा जानवरों से होने वाली परेशानी को दूर करने के लिए 10 मार्च के बाद नई व्यवस्थाएं बनाई जाएंगी. दूध न देने वाले पशुओं के गोबर से भी आय हो, ऐसी व्यवस्था खड़ी की जाएगी. और, एक दिन ऐसा आएगा कि लोग कहेंगे कि छुट्टा पशुओं को भी घर में बांध लो, इससे भी कमाई होने वाली है.'

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब अवैध बूचड़खानों पर नकेल कसने और गौवंश के संरक्षण के लिए कड़े कानूनों का फरमान जारी किया था. तो, शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यूपी चुनाव 2022 में आवारा पशुओं का मुद्दा इस कदर उभर कर सामने आएगा. किसान आंदोलन के बाद पहले ही कथित रूप से किसानों की नाराजगी झेल रही भाजपा के लिए छुट्टा जानवरों की समस्या एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरती दिखाई दी है. वैसे तो छुट्टा जानवरों के मुद्दे पर यूपी चुनाव 2022 के पहले चरण से ही लामबंदी की कोशिशें शुरू हो गई थीं. लेकिन, यूपी चुनाव 2022 का चौथा चरण आते-आते ये मुद्दा गहरा गया है. पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में छुट्टा जानवरों की समस्या के समाधान की बात की. और, उन्होंने सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा गोवंश के लिए किए जा रहे कामों का भी जिक्र कर उनकी नीतियों का बचान भी किया. आसान शब्दों में कहा जाए, तो यूपी चुनाव 2022 के बाकी के चरणों में आवारा पशु एक बड़ा मुद्दा हैं, जो सीधे मतदान पर असर डालेगा.

Stray Animals UP Election उत्तर प्रदेश में छुट्टा जानवरों से फसलों का नुकसान होना हमेशा से ही एक बड़ा मुद्दा रहा है.

गौवंश पर नपी-तुली प्रतिक्रिया

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यूपी चुनाव 2022 की शुरुआत में वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में सत्ता में वापस आती है, तो सांडों के हमले में मौत होने पर 5 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा. यूपी चुनाव में विपक्षी दलों ने 'सरकारी सांड' के जरिये आवारा पशुओं की समस्या से भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है. लेकिन, अखिलेश यादव भी इस समस्या का कोई स्थायी समाधान बताने से अचकचाते रहे हैं. दरअसल, गौवंश और छुट्टा जानवर एक बड़ी समस्या हैं. लेकिन, उत्तर प्रदेश की बहुसंख्यक आबादी की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा मामला भी है. तो, अखिलेश यादव के लिए ये राह उतनी आसान नहीं है कि वह अवैध बूचड़खानों पर लगी रोक को हटाने की बात कह सकें. यही कारण है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया भी योगी सरकार की राह पर चलते हुए ही गौशालाओं के निर्माण और मुफ्त चारे की व्यवस्था की बात कहते नजर आए हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अखिलेश यादव की कोशिश 'सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे' वाली ही रही है.

देर आए, लेकिन दुरुस्त आए

उत्तर प्रदेश में छुट्टा जानवरों से फसलों का नुकसान होना हमेशा से ही एक बड़ा मुद्दा रहा है. लेकिन, ये मुद्दा केवल चुनाव के समय ही जोर पकड़ता है. यूपी चुनाव 2022 के बाकी के चरणों में किसानों की नाराजगी का सबसे बड़ा मुद्दा छुट्टा जानवर और फसलों की बर्बादी बन सकता है. दरअसल, सीएम योगी आदित्यनाथ ने गौशालाओं के निर्माण और संचालन के जो व्यवस्थाएं बनाई थीं, उनसे आवारा पशुओं की समस्या का पूरी तरह से समाधान नहीं निकला है. शहरों की सड़कों पर दिखने वाले और गांवों में फसलें बर्बाद करने वाले आवारा पशुओं से होने वाली परेशानी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 मार्च के बाद समस्या का हल खोजने के लिए व्यवस्था बनाने का भरोसा दे दिया है. जिसे काफी हद तक छोटे और मध्यम स्तर के किसानों व शहरी लोगों के लिए राहत देने वाला कहा जा सका है. लेकिन, पीएम मोदी के भरोसा दिलाने पर जनता कितना भरोसा करेगी, ये देखना दिलचस्प होगा. क्योंकि, आवारा पशुओं की समस्या को चुनावी मुद्दा बनाने में विपक्षी दल ने कोई कोताही नहीं बरती है.

आवारा पशुओं की समस्या का जिम्मेदार कौन?

गांव कनेक्शन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 19वीं पशुगणना के अनुसार, पूरे भारत में छुट्टा जानवरों की संख्या 52 लाख से भी ज्यादा है. और, उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक 31 जनवरी वर्ष 2019 तक पूरे प्रदेश में छुट्टा पशुओं की संख्या सात लाख 33 हजार 606 है. लेकिन, असली मुद्दा ये है कि आवारा पशुओं की समस्या के लिए जिम्मेदार कौन है? योगी सरकार ने गौवंश और आवारा पशुओं के संरक्षण के लिए गांवों में गोशालाओं का निर्माण कराया. लेकिन, स्थिति जस की तस बनी रही. जिसके बाद 2019 में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने छुट्टा जानवरों की समस्या से निपटने के लिए 'बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना' को मंजूरी दी थी. इस योजना के तहत छुट्टा पशुओं को आश्रय देने वाले किसानों को 30 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किए जाने की बात कही गई थी. ये योजना अभी भी जारी है. और, गौवंश के रखरखाव पर योगी सरकार बीते तीन सालों में करीब 350 करोड़ से ज्यादा खर्च कर चुकी है. इसके बावजूद भी छुट्टा पशुओं पर रोक लगाई नहीं जा सकी है.

दरअसल, जब तक गौवंश दूध देने लायक होता है, तब तक डेयरी संचालकों और किसानों द्वारा उसका इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन, उसके बाद गौवंश को छुट्टा छोड़ दिया जाता है. इसी तरह से कई गौवंश ऐसे भी होते हैं, जिनको पालने वाले दूध निकाल कर सड़कों पर खुला छोड़ देते हैं. इन पशुपालकों के पास पशुओं को बांधने के लिए जगह की कमी, चारा-भूसा रखने की जगह की कमी और आर्थिक स्थिति अच्छी न होना जैसी समस्याएं भी होती हैं. इसमें शहरी और ग्रामीण इलाके के लोगों की एक सी ही सोच हैं. गाय-बैल की उपयोगिता खत्म होने पर किसान भी अपने जानवरों को छुट्टा छोड़ने पर मजबूर हो जाता है. क्योंकि, उसके लिए एक ऐसे जानवर का खर्च उठाना मुश्किल हो जाता है, जो उसके किसी काम का नहीं रहा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो आवारा पशुओं की समस्या से निपटने के लिए पहले ऐसे लोगों की मॉनिटरिंग की एक व्यवस्था बनानी होगी, जो छुट्टा पशुओं को संख्या बढ़ा रहे हैं. तभी इस समस्या का समुचित समाधान निकाला जा सकता है. क्योंकि, नीतियां और कानून हैं. लेकिन, उन पर अमल करने में ही कोताही बरती जाती है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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