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Updated: 28 जून, 2016 05:09 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक टीवी चैनल को दिए अपने इंटरव्यूा में बिना नाम लिए सुब्रमण्यन स्वामी को कड़े शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा कि वह सस्ती लोकप्रियता के लिए लोगों पर प्रहार करने से बाज आएं. मोदी की इस चेतावनी के बाद लगा कि अब बड़बोले बीजेपी सांसद के मुंह पर कुछ दिनों तक लगाम लग जाएगी. लेकिन स्वामी हैं कि मानते ही नहीं. चुप रहना उनकी फितरत नहीं. मोदी की हिदायत के 24 घंटे भी नहीं बीते की स्वामी ने एक बार फिर ट्वीट का सहारा लेते हुए मोदी समेत पूरी की पूरी भाजपा को गीता उपदेश सुना दिया.

मूल श्लोक

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।

ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।

हिंदी अनुवाद

जब आप सिर्फ लड़ने के लिए लड़ते हैं, खुशी और दुख की परवाह किए बिना, ये सोचे बिना कि इससे फायदा होगा या नुकसान, जीत होगी या हार- आप लड़कर कोई पाप नहीं करते.

बीजेपी से राज्यसभा सांसद बनने के बाद से ही सुब्रमण्यन स्वामी ने पहले विपक्ष पर तीखा हमला करना शुरू कर दिया. उनके निशाने पर सबसे पहले सोनिया गांधी और राहुल गांधी समेत पूरी की पूरी कांग्रेस आई और कुछ हद तक उनके हमले से राज्यसभा में कांग्रेस बैकफुट पर आ गई. इस वक्त तक सबकुछ बीजेपी, मोदी, अमित शाह और संघ की स्क्रिप्ट की तरह लग रहा था और इसे पार्टी की सबसे धारदार आवाज माना जा रहा था.

कांग्रेस पर हमले का यह दौर कुछ दिनों में रुका. स्वामी के निशाने पर रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन आ गए जिन्हें कुर्सी पर यूपीए सरकार ने आम चुनाव से एक साल पहले काबिज किया था. राजन पर हमले को भी बीजेपी ने पहले अपने हित में समझा क्योंकि बीते दो साल से सरकार ने तमाम कोशिशों के बावजूद रिजर्व बैंक से ब्याज दरों में बड़ी कटौती को अंजाम नहीं दिला सके. सत्तारूढ़ पार्टी में यह धारणा भी पनपने लगी कि रघुराम राजन जानबूझ कर मोदी सरकार को बड़ी उपलब्धियों की ओर बढ़ने से रोक रहे हैं.

रिजर्व बैंक के गवर्नर के गैरराजनीतिक पद पर हुई राजनीति के चलते रघुराम राजन ने भी ऐलान कर दिया कि सितंबर में कार्यकाल पूरा होने के बाद वह गवर्नर का दूसरा कार्यकाल नहीं करना चाहते. राजन के इस फैसले का श्रेय दबी जुबान में सभी ने स्वामी को ही दिया. वह भी कुछ इस तरह कि अब मोदी सरकार अपने मनमुताबिक गवर्नर बनाकर देश की अर्थव्यवस्था को उस बड़ी उपलब्धियों की ओर अग्रसर कर देगा जिसका वादा कर बीजेपी मजबूत बहुमत के साथ सत्ता में आई थी.

खैर, राजन के जाने के फैसले के तुरंत बाद स्वामी ने बड़ा हमला केन्द्र सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन पर किया. अब माना गया कि स्वामी के निशाने पर दरअसल राजन और अरविंद नहीं बल्कि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली हैं. जाहिर है दोनों के बीच कड़वाहट भी जगजाहिर है. इसके बाद भी स्वामी का जेटली पर माना जाने वाला प्रहार नहीं रुका. अगला हमला उन्होंने वित्त मंत्रालय के उस अधिकारी पर किया जिसे जेटली के सबसे निकट माना जाता है. और हद तो तब हो गई जब स्वामी ने एक ऐसा बयान उस दिन जारी किया जब जेटली पांच दिनों की यात्रा पर चीन गए. स्वामी ने कहा कि केन्द्रीय मंत्री जिस तरह सूट-बूट पहनकर विदेश जाते हैं वह किसी वेटर से कम नहीं लगते. अब इस बयान के वक्त महज जेटली ऐसे केन्द्रीय मंत्री थे जो विदेश यात्रा पर थे, हालांकि स्वामी ने इसे जेटली पर निशाना होने से इंकार करते हुए दुबारा कहा कि सूट-बूट में जेटली बहुत स्मार्ट दिखते हैं.

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सुब्रमण्यन स्वामी

अब इन बयानबाजी के बाद वित्त मंत्री सकते में आ गए. उन्होंने राजन को मिली इस छूट पर सवाल उठाना शुरू किया. इसके लिए चीन में रहते हुए ही उन्होंने प्रधानंत्री मोदी से संपर्क साधा और स्वामी के खिलाफ अपनी शिकायत दर्ज करा दी. प्रधानमंत्री ने उनकी यात्रा खत्म होने पर जेटली को मुलाकात का समय मंगलवार को नियुक्त कर दिया. लेकिन इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को एक अंग्रेजी टीवी चैनल के माध्यम से इन सभी मुद्दों पर अपनी बात कही. कहीं उन्होंने राजन और अरविंद की तारीफ की तो कहीं बिना नाम लिए उन्होंने स्वामी की बयानबाजी को सस्ती लोकप्रियता कमाने का तरीका कहा.

प्रधानमंत्री के इस इंटरव्यूब के बाद स्वामी को इसका काट निकालने के लिए 24 घंटे का समय बहुत था. इससे पहले कि मोदी और जेटली की मुलाकात हो, उन्होंने ट्वीट के रास्ते पूरी की पूरी बीजेपी को संदेश दे दिया और खासबात यह है कि यह संदेश उन्होंने बीजेपी की जुबान से ही दे दिया है. यानी श्रीमद भागवत गीता का एक श्लोक ट्वीट कर.

अब इस पूरे प्रकरण में एक बात बची है जिसपर गौर किया जाना है. स्वामी की इस महाभारत में उनकी भूमिका क्या है? क्या वह कृष्ण की भूमिका में हैं या फिर इस महाभारत में युद्ध का दारोमदार उन्हीं के कंधों पर है और वह अर्जुन बनकर राज्यसभा पहुंचे हैं? या फिर स्वामी के मुताबिक कृष्ण की भूमिका में प्रधानमंत्री मोदी हैं क्योंकि यहां मोदी ही ऐसे पात्र हैं जिन्हें सबकुछ पता रहता है. यदि ऐसा है तो क्या स्वामी अर्जुन की भूमिका में रहने को तैयार हैं? अब राज्यसभा पहुंचने की पटकथा और वहां उनका मंचन तो यही दिखाता है कि वह अर्जुन के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा चुके हैं. लेकिन जब इस धनुष के तीर अपनी ही कतार में लगे रथियों और महीरथियों को नुकसान पहुंचाने लगे तो सवाल उठता है कि क्या स्वामी इस युद्ध में भस्मासुर बनने पर अमादा हैं. ऐसा है तो क्या अब बीजेपी को स्वामी को राज्यसभा भेजने का दांव उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है. अब जब स्वामी को लेकर इतने कंफ्यूजन पैदा हो गए हैं तो क्या सुब्रमण्यन स्वामी एक ट्वीट के माध्यम से अपनी स्थिति और साफ कर सकते हैं जिससे बीजेपी में बैठे तमाम पितामह, आचार्य, गुरुओं और महारथियों को इस महाभारत का सार समझ आ जाए.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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