राज्य सभा को खत्म तो नहीं, पर समीक्षा में क्या बुराई है
जेटली को सबसे ज्यादा जो बात खटक रही है वो है जीएसटी को लेकर कांग्रेस का रुख, जबकि कांग्रेस को लग रहा है कि मोदी सरकार कहीं इसमें भी आधार बिल जैसा रास्ता न अख्तियार कर ले.
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मोदी सरकार, केजरीवाल सरकार और म्यांमार की सू की सरकार में अब तक एक बात कॉमन रही है - ये तीनों चुनावों में भारी बहुमत के बावजूद सरकारी कामकाज में मन की बात नहीं कर पाते. केजरीवाल जहां मोदी सरकार को कोस कर सियासी भड़ास निकाल लेते हैं, वहीं सू की नये हथियार (स्टेट काउंसलर) के साथ तेजी से कदम बढ़ाने लगीं हैं - शायद, इतनी तेजी से कि उन्हें 'डेमोक्रेटिक डिक्टेटर' तक कहा जाने लगा है.
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संवैधानिक मजबूरियों के आगे बेबस मोदी सरकार एक अरसे से इस बहस को आगे बढ़ाने में जुटी है कि क्यों न राज्य सभा की शक्तियों की समीक्षा की जाए. बीजेपी नेता विजेंदर गुप्ता ने तो राज्य सभा को खत्म ही कर देने की मांग कर डाली है.
बहस क्यों न हो...
राज्य सभा की शक्तियों को लेकर बहस अभी तक जोर नहीं पकड़ पाई है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक बार कहा था कि 'अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित' ऊपरी सदन 'प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित' लोकसभा के विवेक पर सवाल उठा रहा है. जेटली की नजर में भारतीय लोकतंत्र इस तरह गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है.
जेटली की ही बात को आगे बढ़ाते हुए बीजेडी सांसद बैजयंत 'जय' पांडा ने एक लेख लिखा - 'समय आ गया है राज्य सभा की शक्तियां कम करने का' अपने लेख में पांडा ने इटली की संसद का हवाला दिया जिसमें एक प्रस्ताव के जरिये सीनेट ने सदस्यों की संख्या में कमी करते हुए अपनी शक्तियों में कटौती कर दी ताकि संविधान संशोधन और अन्य अहम कानून बनाने में वह बाधक न बने.
पांडा ने लिखा, "वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अगस्त में राज्य सभा की शक्तियों पर पुनर्विचार करने की इच्छा जाहिर की तो हंगामा शुरू हो गया. विरोध होना स्वाभाविक है लेकिन इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि यह उचित समय है कि इस बात पर बिना भावुक हुए चर्चा की जानी चाहिए."
पांडा की ये जुर्रत राज्य सभा के कुछ सदस्यों को नागवार गुजरी और उन्होंने उनके लेख पर कड़ा एतराज जताया. विपक्ष के छह सांसदों मोहसिना किदवई (कांग्रेस), केसी त्यागी (जेडीयू), नरेश अग्रवाल (एसपी), टीके रंगराजन (सीपीएम), डी राजा (सीपीआई) और डेरेक ओ ब्रायन (टीएमसी) ने राज्य सभा के सभापति हामिद अंसारी के सामने मामला उठाते हुए इसे 'सदन की अवमानना' का मामला बताया और पांडा के खिलाफ 'विशेषाधिकार का हनन' का नोटिस दिया.
जेटली भले ही बहस को आगे बढ़ाएं और पांडा भले ही समीक्षा की मांग करें, बीजेपी नेता विजेंदर गुप्ता ऐसी बातों में यकीन नहीं रखते. दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता गुप्ता ने राज्य सभा को ही खत्म करने की मांग कर डाली. वैसे भी जो नेता सरेआम पटियाला हाउस कोर्ट परिसर में किसी नेता को पीटने में विश्वास रखता हो राज्य सभा के बारे में कोई और डिमांड तो बिलो स्टैंडर्ड ही होगी. इसको लेकर गुप्ता ने एक अखबार में लेख लिखा था - और लिंक ट्विटर पर शेयर किया था.
न रहेगा बांस न... |
जेडीयू सांसद केसी त्यागी ने इस बात की भी शिकायत सभापति हामिद अंसारी से की. फिर उप राष्ट्रपति अंसारी ने दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष रामनिवास गोयल को पत्र लिख कर गुप्ता के खिलाफ एक्शन लेने को कहा है.
मुश्किलें तो हैं ही
वित्त मंत्री जेटली ने एक सेमिनार में बहस को फिर से आगे बढ़ाते हुए कहा, "आर्थिक निर्णय करने की प्रक्रिया में बाधा डालने के लिए हमारे ऊपरी सदन को किस हद तक जरिया बनाया जाएगा. ऑस्ट्रेलिया में इस पर बहस हो रही है, ब्रिटेन में बहस हो चुकी है और इटली में भी ऐसी ही बहस हो रही है. आखिरकार प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदन की अहमियत तो हमेशा बनाए रखी जानी चाहिए."
जेटली को सबसे ज्यादा एक ही बात खटक रही है जीएसटी को लेकर कांग्रेस का रुख. जेटली बोले भी, "एक मुद्दे पर गहरा असर पड़ रहा है. जीएसटी का विरोध केवल कांग्रेस कर रही है."
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कांग्रेस को लगने लगा है कि मोदी सरकार कहीं जीएसटी के मामले में भी आधार बिल जैसा रास्ता न अख्तियार कर ले. कांग्रेस सांसद जयराम रमेश इस मुद्दे पर अंदेशा जाहिर कर चुके हैं कि सरकार जीएसटी बिल को भी मनी बिल की तरह पेश कर सकती है.
हालांकि, सरकार की ओर से ऐसा कोई संकेत अब तक नहीं हुआ है. जीएसटी के मुद्दे पर जेटली कह रहे हैं कि वो कांग्रेस इस पर बात करेंगे. इस बीच जयराम रमेश ने आधार बिल को मनी बिल के रूप में लाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट तो जा ही चुके हैं.
पांडा का तर्क
पांडा की नजर में न तो संसद का संयुक्त सत्र और न ही मनी बिल का रास्ता - दोनों में से कोई भी कारगर उपाय नहीं हैं. पांडा ने लिखा था, "इटली की तरह ही भारत में भी गवर्नेंस ऐसे पसोपेश में फंसा है जहां चेक तो बहुत हैं लेकिन पर्याप्त मात्रा में बैलेंस नहीं है. दुनिया के किसी अन्य लोकतंत्र में भारत की तरह लोकप्रिय मत पर इतना अंकुश देखने को नहीं मिलता. संसद का ज्वाइंट सेशन इस समस्या का कोई विकल्प नहीं है क्योंकि न तो हम इसे बार-बार बुला सकते हैं और न ही यह संविधान में संशोधन कर सकता है. वहीं महज राज्य सभा की अड़चनों से बचने के लिए हम प्रत्येक अहम कानूनी प्रस्ताव को मनी बिल भी नहीं घोषित कर सकते."
दो सदनों की व्यवस्था पर दुनिया भर में बहस जारी है - और इस मामले में भी देश, काल और परिस्थिति को ध्यान में रखे बगैर किसी नतीजे पर पहुंचने की अपेक्षा नहीं की जा सकती. संविधान में ये व्यवस्था इसीलिए की गई है ताकि हर छोटे-बड़े राज्य के लोगों की आवाज राष्ट्रीय स्तर पर उठने से मरहूम न रहे.
पांडा का कहना है, "भारत को भी अमेरिका के एक शताब्दी पहले के राष्ट्रपति थियोडोर रूसवेल्ट या फिर दो साल पहले इटली के प्रधानमंत्री माटियो रेंजी जैसा नेतृत्व मिले. ऐसा करने के लिए मौजूदा नेतृत्व को विपक्ष का विश्वास जीतना होगा. कम से कम उस विपक्ष का जो भविष्य में सत्ता में आने की सोच रहा है."
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