जाखड़-हार्दिक-सिद्धू से मिला कांग्रेस को झटका, लेकिन क्यों?
कांग्रेस (Congress) के तीन पूर्व नेता लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं. पंजाब के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ (Sunil Jakhar) भाजपा में शामिल हो गए हैं. हार्दिक पटेल (Hardik Patel) ने कांग्रेस चिंतन शिविर के बाद इस्तीफा दे दिया है. और, नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को सुप्रीम कोर्ट से रोडरेज के एक मामले में सजा हो गई है.
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बीते कुछ दिनों में कांग्रेस के तीन बड़े चेहरे अलग-अलग वजहों से चर्चा में हैं. दरअसल, जिस समय राजस्थान के उदयपुर में कांग्रेस का चिंतन शिविर चल रहा था. उसके दूसरे ही दिन पंजाब के पूर्व प्रधान सुनील जाखड़ ने पार्टी को 'गुड बाय' बोल दिया. कांग्रेस का चिंतन शिविर खत्म होने के बाद 18 मई को गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. और, 19 मई को पंजाब के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट से एक साल की सजा सुनी दी गई है. कांग्रेस के चिंतन शिविर के साथ ही शुरू हुई इस आफत ने पार्टी के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है. क्योंकि, सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव जैसे कई नेता पहले ही कांग्रेस को छोड़कर जा चुके हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सुनील जाखड़, हार्दिक पटेल और नवजोत सिंह सिद्धू से कांग्रेस को बड़ा झटका मिला है. आइए जानते हैं ऐसा क्यों हुआ...
सुनील जाखड़, हार्दिक पटेल और नवजोत सिंह सिद्धू से कांग्रेस को बड़ा झटका मिला है.
जाखड़ ने बात रखी, तो सुनी नहीं
पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने पार्टी से इस्तीफा देने के बाद भाजपा का दामन थाम लिया है. लेकिन, सुनील जाखड़ ने आखिर कांग्रेस के साथ अपना 50 सालों का रिश्ता तोड़ा ही क्यों? इसके जवाब में सामने आता है कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व यानी गांधी परिवार के आसपास मौजूद 'दरबारी' नेताओं की चापलूसी के तौर पर. दरअसल, 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुद को कांग्रेस का सीएम फेस घोषित करने के लिए शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उस दौरान सुनील जाखड़ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे. कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने सुनील जाखड़ को अगली बार सीएम चेहरा घोषित किए जाने के नाम पर मना लिया. लेकिन, हाल ही में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले जब कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीएम पद से हटाकर कांग्रेस से निकाल दिया गया. तो, सुनील जाखड़ की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को सूबे के पहले दलित सीएम के तौर पर पेश कर दिया गया.
हालांकि, सीएम चुने जाने के लिए हुई वोटिंग में सुनील जाखड़ के पक्ष में सबसे ज्यादा विधायक थे. लेकिन, सोनिया गांधी की करीबी अंबिका सोनी ने एक बयान दिया कि अगर किसी हिंदू को सीएम बनाया, तो पंजाब में आग लग जाएगी. सुनील जाखड़ ने इस बयान की पुरजोर निंदा की. लेकिन, सियासी गलियारों में चर्चा रही कि पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने गांधी परिवार के कान भरे कि सुनील जाखड़ 'कैप्टन' के करीबी हैं. एक ऐसा शख्स जिसके पक्ष में सबसे ज्यादा विधायक हों. उसको सीएम बनाने पर सूबे में आग लग जाने जैसी बातों को गांधी परिवार ने सच मान लिया. जबकि, पिछले विधानसभा चुनाव में इन्हीं सुनील जाखड़ को सीएम चेहरा घोषित करने की कोशिश कर रही थी. और, अगली बार सीएम बनाने का वादा भी कर दिया था.
सिद्धू को सब कुछ दिया, पर लगाम नहीं
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीएम पद से हटाने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने नवजोत सिंह सिद्धू को भरपूर बढ़ावा दिया. नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब में अपने ही सीएम के खिलाफ जमकर बयानबाजी करते रहे. इस दौरान अमरिंदर सिंह ने कई बार सोनिया गांधी से मुलाकात कर पंजाब के राजनीतिक हालातों की चर्चा की. लेकिन, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के करीबी नवजोत सिंह सिद्धू पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुप्पी साधे रखी. आखिरकार लंबी खींचतान के बाद नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस प्रधान घोषित कर दिया गया. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जैसे-तैसे इस बदलाव को स्वीकार कर लिया. लेकिन, कुछ ही समय बाद नवजोत सिंह सिद्धू फिर से अमरिंदर सिंह के खिलाफ मुखर होते नजर आने लगे.
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसकी शिकायत फिर से गांधी परिवार से की. लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं की गई. और, कुछ समय बाद ही अमरिंदर सिंह को इस्तीफा देने को बोल दिया गया. कैप्टन के इस्तीफा देने के बाद पंजाब में सीएम बनने के लिए कई गुटों में होड़ मच गई. नवजोत सिंह सिद्धू ने भी सीएम पद के लिए अपनी दावेदारी ठोंक दी. हालांकि, कांग्रेस आलाकमान ने चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बना दिया. इसके बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू शांत नहीं हुए. और, चरणजीत सिंह चन्नी के साथ ही शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ भी बयानबाजी करने लगे. इतना ही नहीं, सिद्धू ने खुद को विधानसभा चुनाव के लिए सीएम चेहरा घोषित करने की मांग भी कर दी. जिसे कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने नकार दिया. चुनाव में हार के बाद नवजोत सिंह सिद्धू को उनके प्रदेश अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया.
हार्दिक जब कुछ मांग रहा था, तो दिया नहीं
2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले सालों के मुकाबले काफी अच्छा रहा था. और, इसकी एक बड़ी वजह पाटीदार आंदोलन की वजह से चर्चा में आए हार्दिक पटेल थे. हार्दिक पटेल ने विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को अपना अघोषित समर्थन जारी कर दिया था. उस दौरान गुजरात में हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी की तिकड़ी ने भाजपा के पसीने छुड़वा दिए थे. हालांकि, कांग्रेस गुजरात में सत्ता नहीं पा सकी थी. लेकिन, हार्दिक पटेल के तौर पर उसके हाथ एक बड़ा नेता लगा था. जो पाटीदार समुदाय में अच्छी-खासी पकड़ रखता था. हार्दिक पटेल और राहुल गांधी की करीबी उस दौरान सियासी चर्चाओं में रही थी. माना जाता है कि इसी वजह से जल्द ही हार्दिक पटेल को गुजरात कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया.
लेकिन, हार्दिक पटेल के कार्यकारी अध्यक्ष बनने के साथ ही कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व ने उनके खिलाफ गांधी परिवार के कान भरने शुरू कर दिए. हार्दिक पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष होने के बावजूद कांग्रेस की बड़ी बैठकों में निमंत्रण ही नहीं दिया जाता था. गुजरात कांग्रेस की इस गुटबाजी पर हार्दिक पटेल ने कांग्रेस आलाकमान से लेकर राहुल गांधी तक को स्थिति से अवगत कराया. लेकिन, गांधी परिवार के कान पर जूं नहीं रेंगी. गुजरात में हार्दिक पटेल के लिए राजनीतिक हालात इस कदर बुरे हो गए कि उन्होंने बयान दिया कि ऐसा लग रहा है कि मेरी नसबंदी कर दी गई है. हालांकि, स्थानीय नेतृत्व के खिलाफ रोष जताने के बावजूद हार्दिक पटेल को उम्मीद थी कि उनकी हालत के बारे में गांधी परिवार सोचेगा. लेकिन, जैसा पहले कई नेता कर चुके हैं. आखिरकार हार्दिक को भी कांग्रेस से हाथ छुड़ाना पड़ा.
मेरी राय
देखा जाए, तो सुनील जाखड़, हार्दिक पटेल और नवजोत सिंह सिद्धू इन तीनों ही नेताओं के मामले पूरी तरह से अलग-अलग हैं. लेकिन, इन तीनों के ही बारे में एक बात कॉमन है. और, वो ये है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व हमेशा से ही राज्यों में गुटबाजी को बढ़ावा देता आया है. पंजाब से लेकर उत्तराखंड तक कांग्रेस की हार का कारण गुटबाजी ही रही है. पंजाब में एक ओर कैप्टन अमरिंदर सिंह को ठिकाने लगाने के लिए नवजोत सिंह सिद्धू को खुली छूट दे दी. वहीं, सुनील जाखड़ को किनारे लगाने के लिए अंबिका सोनी को बयानबाजी करने के लिए आगे कर दिया. गुजरात में भी कमोबेश यही हाल रहा. हार्दिक पटेल लंबे समय से मांग करते रहे कि गुजरात कांग्रेस में व्याप्त गुटबाजी को खत्म किया जाए. लेकिन, कांग्रेस आलाकमान इसे अपनी मौन सहमति देता रहा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो पंजाब जैसा अपना मजबूत राज्य हारने के बाद भी कांग्रेस आलाकमान की रणनीति क्या है, इसे समझा नहीं जा सकता है. खैर, सवाल वाजिब है कि जब राहुल गांधी अपनी टीम को नहीं संभाल पा रहे हैं, तो पार्टी को क्या संभालेंगे?
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