CJI को भेजी लेटर-पेटिशन, जस्टिस सूर्यकांत भी नूपुर शर्मा की तरह 'कठघरे' में!
नुपुर शर्मा (Nupur Sharma) के खिलाफ पैगंबर टिप्पणी विवाद (Prophet Remark Row) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने खुलकर अपना गुस्सा निकाला. लेकिन, इन तीखी टिप्पणियों पर सीजेआई (CJI) को एक लेटर पीटिशन (Letter Petition) भेजी गई है. जिसमें कहा गया है कि इन मौखिक टिप्पणियों (Oral Remarks) को वापस लिया जाए.
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सुप्रीम कोर्ट ने नुपुर शर्मा को पैगंबर टिप्पणी विवाद के मामले में मौखिक टिप्पणियों के जरिये अपना 'गुस्सा' निकाला. जबकि, इस मामले के ऑर्डर में ऐसी एक भी टिप्पणी का जिक्र नहीं है. और, ये आदेश केवल तीन लाइन का ही है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सुनवाई के दौरान लोगों की भावनाओं को आहत करने के साथ ही उदयपुर में दो मुस्लिम युवाओं द्वारा कन्हैया लाल की गला रेतकर की गई हत्या के लिए भी नुपुर शर्मा को जिम्मेदार घोषित कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए नुपुर शर्मा ही जिम्मेदार हैं. जब कोर्ट को बताया गया कि नुपुर शर्मा की जान को खतरा है. तो, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने नुपुर शर्मा को ही देश के लिए खतरा बता दिया. खैर, जस्टिस सूर्यकांत की इन टिप्पणियों पर एक पत्र चीफ जस्टिस को भेजा गया है.
दरअसल, नुपुर शर्मा के मामले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच की ओर से की गईं सख्त टिप्पणियों पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यानी सीजेआई को एक लेटर पीटिशन दी गई है. इस लेटर पीटिशन में सीजेआई से नुपुर शर्मा मामले में जस्टिस सूर्यकांत की ओर से की गई टिप्पणियों को वापस लेने का निर्देश देने की मांग की गई है. इस लेटर पीटिशन को गौ महासभा के नेता अजय गौतम ने भेजा है. लेटर पीटिशन दायर करने वाले अजय गौतम का तर्क है कि 'ऐसा किसी कोर्ट में साबित नहीं हुआ है कि नूपुर शर्मा द्वारा दिया गया बयान गलत है.' याचिकाकर्ता का तर्क है कि 'कही गई बातें दस्तावेजों में दर्ज हैं. इस्लाम धर्म के आलिमों और समाज द्वारा स्वीकृत हैं. तो, यह अपराध नहीं है.' आइए जानते हैं कि इस लेटर पीटिशन में क्या कहा गया है...
Letter petition moved by Gau Mahasabha leader Ajay Gautam seeking to declare that observations made by bench led by Justice Surya Kant against #NupurSharma are uncalled for. pic.twitter.com/1e7guo59x5
— Live Law (@LiveLawIndia) July 1, 2022
लेटर पीटिशन की मुख्य बातें
याचिकाकर्ता ने सीजेआई को लिखी इस लेटर पीटिशन को ही जनहित याचिका के तौर पर लिये जाने की अपील की है. इस लेटर पीटिशन में जस्टिस सूर्यकांत की बेंच को नुपुर शर्मा के मामले में की गई टिप्पणियों को वापस लेने के लिए निर्देश जारी करने या आदेश देने की मांग की गई है. याचिकाकर्ता का मानना है कि ऐसा करने से नुपुर शर्मा को अपने खिलाफ दर्ज मामलों में सुनवाई के दौरान सही मौका मिलेगा. लेटर पीटिशन में मांग की गई है कि नुपुर शर्मा के मामले में जस्टिस सूर्यकांत की बेंच की ओर से की गई टिप्पणियों को अनावश्यक घोषित किया जाए. स्वत: संज्ञान के तहत नुपुर शर्मा के खिलाफ सभी मामलों को दिल्ली में ट्रांसफर किया जाए. नुपुर शर्मा को मिल रही धमकियों को ध्यान में रखते हुए मामलों का फास्ट ट्रैक ट्रायल किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने नुपुर शर्मा को देश के लिए खतरा बता दिया.
अगर लेटर पीटिशन स्वीकार हुई तो...
वैसे, किसी भी मामले पर सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी या अन्य माध्यमों से स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है. तो, इस लेटर पीटिशन को भी स्वीकार किया जा सकता है. लेकिन, इस लेटर पीटिशन को स्वीकार करना या खारिज करना पूरी तरह से सीजेआई के अधिकार में है. अहम सवाल ये है कि अगर यह लेटर पीटिशन स्वीकार कर लिया जाता है, तो क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने जिस तरह की तीखी टिप्पणियां नुपुर शर्मा के खिलाफ की हैं. कहना गलत नहीं होगा कि इसकी वजह से जस्टिस सूर्यकांत के सामने भी नुपुर शर्मा जैसी ही स्थिति पैदा हो सकती है. क्योंकि, इन तल्ख टिप्पणियों के बाद सोशल मीडिया पर एक वर्ग में आक्रोश साफ महसूस किया जा सकता है. दरअसल, लोगों का मानना है कि ऐसी मौखिक टिप्पणियों से उदयपुर हत्याकांड को अंजाम देने वाली जिहादी सोच को और बढ़ावा मिलेगा.
"The way she has ignited emotions across the country... This lady is single handedly responsible for what is happening in the country" : Justice Kant.#NupurSharma #SupremeCourt
— Live Law (@LiveLawIndia) July 1, 2022
जस्टिस सूर्यकांत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए नुपुर शर्मा के बयान को परेशानी पैदा करने वाला कहा था. इस स्थिति में अगर सीजेआई इस याचिका को स्वीकार कर लेते हैं. तो, जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी ही परेशानी पैदा करने वाली घोषित हो सकती है. क्योंकि, एक बड़े वर्ग के बीच जस्टिस सूर्यकांत की इस टिप्पणी ने गुस्से को जन्म दिया है. वैसे, जस्टिस सूर्यकांत ने कहा था कि एक पार्टी का प्रवक्ता होने से आपको इस तरह के बयान देने का लाइसेंस नहीं मिल जाता है. अगर लेटर पीटिशन स्वीकार हुई, तो यही टिप्पणी जस्टिस सूर्यकांत पर भी लागू हो सकती है. आखिर, सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस होने के नाते उनको भी कुछ भी कहने का हक नहीं मिल जाता है. जस्टिस जेबी पारदीवाला ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा था कि देशभर में उदयपुर हत्याकांड समेत जो कुछ भी हो रहा है. इसके लिए यह महिला इकलौती जिम्मेदार है. अगर लेटर पीटिशन स्वीकार कर लिया जाता है. तो, जस्टिस जेबी पारदीवाला की टिप्पणी पर भी पूछा जाएगा कि उन्होंने किस आधार पर यह टिप्पणी की? अपने 'नतीजे' पर पहुंचने से पहले क्या उन्होंने नूपुर को अपना पक्ष कहने का मौका दिया?
आसान शब्दों में कहा जाए, तो लेटर पीटिशन की वजह से जस्टिस सूर्यकांत भी नुपुर शर्मा की तरह ही कठघरे में आ खड़े हुए हैं.
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