राजद्रोह कानून: जानिए पक्ष और विपक्ष के तर्क
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राजद्रोह कानून (Sedition Law) यानी धारा 124-A की समीक्षा हो जाने तक उसके इस्तेमाल पर रोक दी है. और इसके साथ ही लोगों के बीच में बहस छिड़ गई है. राजद्रोह कानून के पक्ष और विपक्ष में तमाम तरह के तर्क दिए जा रहे हैं.
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राजद्रोह कानून (Sedition Law) यानी धारा 124-A की समीक्षा हो जाने तक उसके इस्तेमाल पर रोक दी है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को एक बड़ी जीत के तौर पेश करते हुए प्रतिक्रिया दी है. राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि 'सच बोलना देशभक्ति है, देशद्रोह नहीं. सच कहना देश प्रेम है, देशद्रोह नहीं. सच सुनना राजधर्म है, सच कुचलना राजहठ है. डरो मत.' दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इस पर रोक लगाते हुए निर्देश दिया है कि केंद्र सरकार की ओर से कानून की समीक्षा किए जाने तक राजद्रोह के तहत मामले दर्ज नहीं किए जाएंगे. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पहले से दर्ज मामलों में कार्रवाई पर भी रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि राजद्रोह के मामलों में जेल में बंद आरोपी जमानत के लिए अपील कर सकते हैं.
सच बोलना देशभक्ति है, देशद्रोह नहीं।सच कहना देश प्रेम है, देशद्रोह नहीं।सच सुनना राजधर्म है,सच कुचलना राजहठ है।डरो मत! pic.twitter.com/AvbWVxKh6p
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 11, 2022
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू की ओर से बड़ा बयान दिया गया है. किरेन रिजिजू ने कहा है कि 'हमें (सरकार और कोर्ट) एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए. कोर्ट को सरकार का सम्मान करना चाहिए. और, सरकार को कोर्ट का सम्मान करना चाहिए. हम दोनों की ही सीमाएं तय हैं. और, उस 'लक्ष्मण रेखा' को किसी को भी पार नहीं करना चाहिए.' इसी के साथ किरेन रिजिजू ने राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए कांग्रेस द्वारा इस कानून को संज्ञेय अपराध बनाए जाने से लेकर इसके दुरुपयोग के आंकड़े भी पेश किए. वैसे, सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजद्रोह कानून यानी 124-A पर रोक लगाने के बाद से ही लोगों के बीच में बहस छिड़ गई है. राजद्रोह कानून के पक्ष और विपक्ष में तमाम तरह के तर्क दिए जा रहे हैं. आइए जानते हैं इसके पक्ष और विपक्ष के तर्क...
Strong words from Law Minister @KirenRijiju on Supreme Court putting #sedition law on hold: “Courts should respect government; we respect courts. We have clear demarcation and boundary, and that ‘Lakshman Rekha’ should not be crossed by anybody.” @IndiaToday
— Poulomi Saha (@PoulomiMSaha) May 11, 2022
राजद्रोह कानून के पक्ष में तर्क
- आईपीसी की धारा 124-A यानी राजद्रोह कानून में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अवैध तरीकों (हिंसा, राजनीतिक साजिश के जरिये तख्तापलट, सैन्य बगावत) हटाने की कोशिशों के खिलाफ एक मजबूत कानून कहा जा रहा है. तर्क देने वाले लोगों का दावा है कि देश में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक वर्ग (राजनेता, बुद्धिजीवी, पत्रकार, सिविल सोसाइटी से जुड़े कई लोग) ऐसा है, जो देश-विरोधी और अलगाववादी ताकतों के जरिये केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है. और, इसके लिए जेएनयू में आतंकी अफजल गुरू के समर्थन में लगाए गए भारत विरोधी नारों का उदाहरण दिया जाता है.
- राजद्रोह कानून को बनाए रखने में कुछ लोगों का ये भी तर्क है कि अगर कोर्ट की अवमानना के लिए किसी के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया अपनाते हुए दंडात्मक कार्यवाही होती है. तो, फिर लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार की अवमानना पर कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए. तर्क देने वालों का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार के साथ ही भाजपा शासित राज्यों की सरकारों के खिलाफ इस वर्ग ने अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आलोचना से परे जाकर निशाना साधा है. इस तरह की आलोचनाओं में इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता है कि उससे देश की छवि को भी नुकसान पहुंच रहा है.
- भारत के अलग-अलग राज्यों में नक्सलवाद, माओवाद, अलगाववाद, आतंकवाद, भाषावाद, जातिवाद, नस्लवाद जैसी तमाम समस्याएं खड़ी नजर आती हैं. राजद्रोह के कानून के पक्ष में तर्क देने वाले कहते हैं कि अगर ये कानून नहीं होगा, तो देश में धार्मिक, जातीय, वैचारिक, नस्लीय आधार पर बंटवारे जैसी भावनाओं को बल मिलेगा. ऐसी स्थिति पैदा करने वालों के खिलाफ देश की अखंडता को बचाए रखने के लिए राजद्रोह कानून का ही इस्तेमाल किया जाता है.
- राजद्रोह कानून के पक्ष में कुछ लोगों का तर्क है कि राजद्रोह कानून के न होने से लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के खिलाफ अराजकता का माहौल बनाने वालों को फ्री हैण्ड मिल जाएगा. सरकार के खिलाफ अफवाहों को तथ्यों का रूप देकर लोगों को भड़काने की कोशिशें की जा सकती है. जिसके चलते राजद्रोह कानून का होना जरूरी है.
सरकारों का कहना है कि राजद्रोह कानून की जरूरत को नकारा नहीं जा सकता है.
राजद्रोह कानून पर विपक्ष के तर्क
- राजद्रोह कानून के विपक्ष में तर्क देने वालों का मानना है कि यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने के टूल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. सरकारों के खिलाफ कुछ भी बोलने या लिखने वालों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज कर उनकी आवाज को शांत करने की कोशिश की जाती है. 124-A के जरिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हक का अतिक्रमण किया जाता है. जो किसी भी हाल में सही नहीं कहा जा सकता है.
- एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि सरकारें इसका राजनीतिक इस्तेमाल अपनी आलोचनाओं को रोकने के लिए करती हैं. हाल ही में महाराष्ट्र में सांसद नवनीत राणा के खिलाफ उद्धव ठाकरे सरकार की ओर से राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था. जिसके बाद राजद्रोह कानून को लेकर एनसीपी चीफ शरद पवार ने भी इसे खत्म किए जाने की मांग उठाई थी.
- राजद्रोह कानून 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद देश की ब्रिटिश सरकार की ओर से लाया गया था. इस कानून के खिलाफ तर्क देने वालों का कहना है कि एक 124-A औपनिवेशिक राज का 162 साल पुराना कानून है. जिसे अंग्रेजों ने अपने खिलाफ होने वाले विद्रोह को दबाने के लिए किया था.
- राजद्रोह के खिलाफ तर्क देने वालों का कहना है कि देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने के लिए आईपीसी में कानूनों की भरमार है. आतंकवाद से लेकर हर तरह के देशविरोधी कार्यों के लिए आईपीसी में कानून हैं. तो, 124-A को बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं है.
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