सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी जैसे एक्शन अब बाबाओं के खिलाफ होने चाहिये
स्वयंभू शनि और साढ़ेसाती विशेषज्ञ दाती महाराज पर भी आरोप वैसा ही लगा है जिसकी सजा राम रहीम और आसाराम बापू जेल में काट रहे हैं. फर्क सिर्फ ये है कि खुद को बेकसूर बताते हुए दाती महाराज जो कुछ बता रहे हैं वो बाकियों से बहुत अलग है.
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बचपन से बाबा शब्द सुनते ही श्रद्धा उमड़ पड़ती रही. 'न जाने किस रूप में नारायण मिल जायें', अब तक तो यही सुना था, मगर, अब लगता है - 'न जाने कौन बाबा कब बलात्कारी साबित हो जाये?'
बहुत पहले की बातों को भूल भी जायें तो बाबा राम रहीम इंसान और आसाराम बापू के बाद इस लिस्ट एक और नाम जुड़ता जा रहा है - दाती महाराज. बलात्कारी बाबाओं की लिस्ट में शुमार करना अभी इसलिए ठीक नहीं होगा क्योंकि दाती महाराज पर अभी सिर्फ इल्जाम लगा है.
दाती महाराज पर भी इल्जाम वैसा ही और उसी तरीके का लगा है जिस तरीके के आरोप राम रहीम और आसाराम बापू पर लगे और अदालती कानूनी प्रक्रिया में सही साबित भी हुए. हां, सफाई में दाती महाराज जो कुछ बता रहे हैं वो बाकियों से अलग है.
जिसे शनि का भी डर न हो
सोशल मीडिया पर इस वक्त खूब चल रहा है कि दाती महाराज पर शनि की साढ़ेसाती शुरू हो चुकी है. दाती महाराज का असल नाम मदनलाल राजस्थानी है जिसने हर मौके का पूरा फायदा उठाया और दस्तूर देख खुद को दाती महाराज में तब्दील कर लिया. देखते देखते ही मीडिया के माध्यम से दाती महाराज स्वयंभू शनि एक्सपर्ट भी बन गये.
स्वयंभू शनि विशेषज्ञ
शनिधाम के संस्थापक और महामंडलेश्वर की उपाधि के बीच दाती ने ग्रह नक्षत्रों की गति और उनके असर से प्रभावित होने वाले लोगों के बीच एक नयी थ्योरी पेश की - 'शनि शत्रु नहीं मित्र है'.
शनि के नाम पर बड़े कारोबार पर दाती की सही वक्त पर नजर पड़ चुकी थी. होता तो ये रहा कि शनि के प्रभाव और शनि की साढ़ेसाती से बचने के लिए श्रीराम भक्त हनुमान की पूजा की सलाह दी जाती थी. मालूम नहीं कब और किसने ये खेल कर दिया कि हनुमान की जगह शनि की ही पूजा होने लगी. जगह जगह शनि मंदिर बन गये - और सड़क चौराहों पर सरसों तेल वाले दीये बिकने लगे. शनि के नाम पर कारोबार करने वालों ने ऐसी बयार बहायी कि लोगों का ध्यान हनुमान से शनि पर शिफ्ट होने लगा. तभी दाती महाराज ने टीवी पर प्रकट होकर लोगों की शनि से दोस्ती करानी शुरू कर दी. पहले जो लोग शनि से डरे हुए होते उन्हें दाती ने दोस्ती कराने के नाम पर अपनी दुकान शुरू कर दी.
ध्यान देने वाली बात ये है कि शनिधाम के पास कितने की संपत्ति है और कितने का कारोबार होता रहा अब तक सामने नहीं आ सका है. बलात्कार का केस दर्ज होने के बाद से ही दाती महाराज अंडरग्राउंड हैं - और पुलिस पीछे पड़ी हुई है.
बाकी बाबाओं की तरह दाती ने खुद को बेकसूर तो बताया ही है, दुश्मनों द्वारा विवाद में फंसाने की भी बात कही है.
दाती महाराज, शनिधाम और लेन देन!
दाती का ये दावा कि लेन देन के विवाद में उन्हें फंसाया गया है - खुद ही नयी गड़बड़ियों की ओर इशारा करता है. आखिर आश्रम में कौन सा कारोबार होता है कि लेन देन का विवाद होने लगा? अगर लेन देन का कोई विवाद हुआ तो किस किस के बीच हुआ - और ऐसे कितने लोग हैं जिनके बीच ऐसी कोई हिस्सेदारी है?
जांच होने पर शनिधाम के नाम पर जुटाये गये दाती महाराज की संपत्ति का भी ब्योरा देर सबेर आ ही जाएगा. वैसे राम रहीम की संपत्ति को लेकर जो आंकड़े सामने आये हैं उनके मुताबिक ₹ 2000 करोड़ का मालिक बताया गया और इसी तरह आसाराम के पास ₹ 10,000 करोड़ की प्रॉपर्टी होने का अनुमान है.
जेल जाता बलात्कारी बाबा...
सवाल तो ये भी उठता है कि ऐसे आश्रमों में इतनी बड़ी रकम का लेन देन होता ही क्यों है कि विवाद की नौबत आ पड़े? और सवाल ये भी उठता है कि ऐसे आश्रमों में लेन देन का कोई सरकारी हिसाब क्यों नहीं रखा जाता?
कोई कारगर उपाय क्यों नहीं?
किसी भी बड़े अपराध के बाद कई तरह के बदलाव किये जाते हैं. अपराध क्षेत्र विशेष में शक के दायरे में आने वाले हर संदिग्ध की जांच पड़ताल होती है. जरूरी होने पर कानूनों में संशोधन या नये कानून बनाये जाते हैं. काश! बाबाओं के प्रभाव क्षेत्र पर भी सरकारी एजेंसियां उसी तरह छापेमारी करतीं जैसे सत्ता पक्ष के विरोधियों पर कभी तोता तो कभी किसी और शक्ल में टूट पड़ती हैं.
आतंकवादी घटनाओं पर काबू पाने के लिए टाडा और पोटा जैसे कानून बने. दहेज और एससी-एसटी मामलों के लिए अलग कानून बने. निर्भया कांड के बाद भी कानूनी संशोधन हुए. जेल तक में गड़बड़ी सामने आती है तो सभी जगह सतर्कता, जांच और जरूरत के हिसाब से एक्शन भी लिया जाता है. बाबा राम रहीम इंसान बलात्कारी साबित हुआ तो जेल भेजा गया. आसाराम बाबू तो खैर गिरफ्तार होने के बाद से जेल से निकल ही नहीं पाया - और अब तो उसे सजा भी हो चुकी है.
यहां तक कि राजनीति में आपराधिक प्रवृति के लोगों को रोकने और पहले से दाखिल अपराधियों को बाहर करने तक के लिए कानून बनाये गये. अगर ऐसा न होता तो लालू प्रसाद को पर्दे के पीछे से राजनीति करने के लिए मजबूर न होना पड़ता.
एक बात समझ में नहीं आती. आखिर इस देश में बाबाओं के तमाम कुकर्म और आपराधिक कृत्य सामने आने के बाद भी संदिग्ध आचरण वालों के खिलाफ कोई कारगर कदम क्यों नहीं उठाया जाता?
एक बार जेल गया फिर तो...
अच्छा तो ये होता कि बाबा बन कर तमाम तरीके के अपराधों को अंजाम देने वालों की व्यापक जांच पड़ताल करायी जाती. पता किया जाता कि अपराधी से बाबा बने लोग भोले भाले परेशान हाल लोगों का किस तरह शोषण करते हैं - और कैसे उन्हें डरा धमका कर पैसे और जमीन ऐंठने के अलावा बलात्कार तक कर डालते हैं?
जैसे हर बात के लिए सरकार को जिम्मेदार और हर अपराध के लिए पुलिस को जिम्मेदार बताकर समाज पल्ला नहीं झाड़ सकता, वही सिद्धांत बाबाओं के मामले में भी लागू होती है. अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियों और अमानवीय रिवाजों के खिलाफ लोगों को जागरुक करने के लिए तो मुहिम चलायी जाती है, बाबाओं को लेकर ऐसा कुछ क्यों नहीं होता? जब शनि से बचाने के लिए परेशान लोगों की भीड़ दाती महाराज की शरण में जा पड़ती थी तो किसी ने ये सवाल क्यों नहीं किया कि दाती महाराज ने किस रिसर्च के बाद शनि के नये स्वरूप की व्याख्या दी? किसी ने ये जानने की कोशिश क्यों नहीं की कि राजस्थान से आकर कैटरिंग का काम करने वाला शख्स कैसे ज्योतिषी और स्वयंभू शनि एक्सपर्ट बन गया?
जो भी हो, बहुत मुश्किल होता जा रहा है बाबाओं पर विश्वास करना. कोई तरीका खोजना जरूरी हो गया है. जब से भीख मांगने वालों के गैंग के बारे में मालूम हुआ किसी कटोरे में एक रुपये का सिक्का डालना भी ठीक नहीं लगता. अगर कोई कारगर उपाय नहीं अपनाया गया तो बाबा वेष में हर शख्स बलात्कारी नजर आएगा - और वो दौर बहुत ही खतरनाक हो सकता है. हालत तो ऐसी हो चुकी है कि सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी जैसा एक्शन अब बाबाओं के खिलाफ होने चाहिये.
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