सुशील मोदी का राज्य सभा प्रत्याशी बनना मिनिस्टर बनने की गारंटी तो नहीं
सुशील मोदी (Sushil Modi) के दिल्ली उड़ान भरने से पहले तमाम बाधाएं खड़ी हैं. मान लेते हैं कि राज्य सभा चुनाव (Bihar RS Election) जीत भी जाते हैं तो जरूरी तो नहीं कि मोदी कैबिनेट (Modi Cabinet 2.0) में उनकी जगह पक्की ही हो जाये!
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सुशील मोदी (Sushil Modi) को एक दिन अचानक मालूम होता है बिहार के जिस डिप्टी सीएम की कुर्सी को वो लाइफ टाइम अचीवेंट अवॉर्ड की तरह समझ रहे थे, वो भी बेवफा साबित हो सकती है. फिर अचानक ही स्वयंभू ज्ञान प्राप्ति की बात शेयर करते हैं - कार्यकर्ता का पद तो कोई नहीं ही छीन सकता है. ये सुन कर उनको निश्चित तौर पर काफी खुशी हुई होगी कि नीतीश कुमार आगे से उनको बहुत मिस करेंगे और ये बात भी वो सार्वजनिक तौर पर बता चुके हैं. ये कम बड़ा सम्मान है क्या! पूछे जाने पर अशोक चौधरी भी तारीफ में कसीदे पढ़ने शुरू कर देते हैं - सुशील मोदी जैसा कोई है भी क्या!
एक दिन अचानक सुशील मोदी को बिहार विधान परिषद की आचार समिति का अध्यक्ष बना दिया जाता है - और वो गिले-शिकवों को न्यूट्रलाइज करते हुए नयी कुर्सी को भी पुरानी जैसा समझने लगते हैं. संतोष की बात ये होती है कि पावर सेंटर के बीच बैठने का एक ठीहा मिल जाता है, बुरे दिनों में ऐसे ठीहे भी वैसा ही अहसास कराते हैं जैसे डूबते को तिनके के सहारे की मिसाल दी जाती है.
एक दिन और... अचानक ही छप्पर फाड़ कर बीजेपी नेतृत्व सुशील मोदी को रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई राज्य सभा (Bihar RS Election) सीट के लिए उम्मीदवार घोषित कर देता है. जाहिर है, जोश से तो बाछें तो खिल ही उठेंगी. खिन्न मन आह्लादित हो उठेगा. दिल्ली में पटना वालों के लिए देर है, अंधेर नहीं है, लेकिन क्या ऐसा भी है कि राज्य सभा की सदस्यता मोदी कैबिनेट (Modi Cabinet 2.0) का ग्रीन कार्ड है?
सुशील मोदी के साथ ये क्या हो रहा है
जो जमीन से इस कदर जुड़ जाये कि मान ले कि कार्यकर्ता का पद तो कोई छीन नहीं सकता. भड़ास में ही सही, जो यथार्थ को स्वीकार कर ले, उसे तो बाद में जो भी मिले दिवाली के बाद वाला सुपर बोनस ही लगेगा. राम कथा वाचक मोरारी बापू के शब्दों में जो अपमान को पचा ले उसे सम्मान की भूख नहीं रहती - लेकिन क्या सुशील मोदी को थोड़े और सम्मान की भूख नहीं बढ़ गयी होगी. अगर कुछ नहीं मिलता तो बात अलग थी, जब मिल रहा हो और लगातार मिल रहा हो तो उसे भी कुछ करने का मन तो करेगा ही. जिस पार्टी ने 40 साल में इतना कुछ दिया हो, उसके लिए एक ऐसा ट्वीट तो किया ही जा सकता है कि सबसे बड़े राजनीतिन दुश्मन को अस्पताल के बंगले से प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कराया जा सके. ऐसा कुछ किया जाये कि रांची में जांच के आदेश और पटना में एक एफआईआर तो हो ही जाये जिससे बात आगे बढ़े. बीजेपी के लिए सुशील मोदी ने लालू यादव के मामले इतना तो कर ही दिया है.
अभी तो सुशील मोदी राज्य सभा के प्रत्याशी बने हैं, लेकिन अगर चुनाव जीत जाते हैं तो एक मामले में नीतीश कुमार को पछाड़ भी सकते हैं और लालू यादव की बराबरी में आ सकते हैं. अब तक सिर्फ लालू यादव और नागमणि ही ऐसे नेता रहे हैं जो चारों प्रतिनिधि सदनों के सदस्य रहे हैं - बिहार विधानसभा, बिहार विधान परिषद, लोक सभा और राज्य सभा. हालांकि, ये रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कराने के लिए सुशील मोदी को अभी चुनाव नतीजे का इंतजार करना होगा.
छठ के अवसर पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हुए सुशील मोदी!
सुशील मोदी के लिए राज्य सभा का चुनाव भी बिहार चुनाव की तरह हर पल रंग रूप बदलता जा रहा है. बिहार चुनाव की ही तरह शुरुआत में राज्य सभा चुनाव एकतरफा रहा, लेकिन अब लगता है इसमें भी मुकाबले का दौर शुरु होने वाला है - पटना में जो राजनीतिक खिचड़ी पकाने की कवायद चल रही है, हो सकता है चिराग पासवान की मां रीना पासवान ही सुशील मोदी के सामने चैलेंज पेश कर दें.
अब अचानक अगर एक दिन ऐसी खबर आती है तो सुशील मोदी के लिए एक बार फिर जोरदार झटका जैसा ही होगा - लेकिन राजनीति भी तो इसी का नाम है.
सुशील मोदी हैं तो क्या क्या मुमकिन है?
अब अगर सवाल ये है कि सुशील मोदी को राज्य सभा का टिकट क्यों मिला है - तो तमाम कारण हैं और सब के सब बिलकुल वाजिब लगते हैं. सुशील मोदी राज्य सभा चुनाव में उम्मीदवार इसलिए बन पाये हैं कि क्योंकि बीजेपी ने ये सीट फिर से अपने पास रखने का फैसला किया है. रामविलास पासवान से पहले भी ये सीट बीजेपी के पास ही रही जब केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद राज्य सभा सांसद हुआ करते थे. जब रविशंकर प्रसाद लोक सभा पहुंच गये तो ये सीट खाली हो गयी हो चुनावी वादे के मुताबिक बीजेपी ने इसी सीट पर रामविलास पासवान को राज्य सभा भेज दिया.
अगर सवाल ये है कि जब इस सीट के दावेदार बहुत थे और माना जा रहा था कि सुशील मोदी को हाशिये पर भेजने का इंतजाम हो चुका है तो उनको उम्मीदवार क्यों बनाया गया? जवाब है कि चूंकि ये सीट एनडीए के सभी सहयोगियों की मदद के बगैर बीजेपी के लिए निकालनी संभव नहीं थी और ये सुशील मोदी ही रहे जो कम से कम इस खांचे के लिए सर्वमान्य नेता हैं. अगर सुशील मोदी की जगह बीजेपी कोई और नाम लेती तो जेडीयू का सपोर्ट मिलना मुश्किल था.
अगर बीजेपी के मन में चिराग पासवान को ये सीट देने की जरा भी गुंजाइश थी तो वो नीतीश कुमार के संभावित विरोध के चलते खत्म हो गयी - और नीतीश कुमार की वजह से ही ये सीट सुशील मोदी को मिल सकती है, लेकिन तभी जब बहुत कड़ा मुकाबला न हो.
कहीं ऐसा तो नहीं कि चिराग पासवान को बीजेपी एक बार फिर वैसे ही इस्तेमाल करने का मन बना चुकी हो जैसे जेडीयू ने नीतीश कुमार के खिलाफ राजनीतिक साजिश का शक जाहिर किया है. राजनीति में ऐसे कम ही संयोग होते हैं - चिराग पासवान फिलहाल बिलकुल उसी रोल में नजर आने लगे हैं जैसे विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के खिलाफ देखे और समझे गये.
जैसे विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवारों ने अनेक सीटों पर फ्रेंडली फाइट किया और मामूली अंदर से टारगेट शूट गया, चिराग पासवान एक बार फिर से उसी भूमिका में नजर आने लगे हैं. इस बार फर्क बस ये है कि चिराग पासवान के तेजस्वी यादव से मदद लेने की संभावना जतायी जा रही है. चर्चा तो यही चल रही है कि प्रस्ताव भी तेजस्वी यादव कैंप की तरफ से ही चिराग पासवान को भेजा गया है. चिराग पासवान को फैसला लेना है.
चिराग पासवान अगर तेजस्वी का प्रस्ताव मंजूर कर लेते हैं तो उनकी मां रीना पासवान राज्य सभा सीट के लिए सुशील मोदी को चुनौती पेश करेंगी. बीजेपी के लिए ये वैसे ही जीरो रिस्क फ्री गेम है जैसे कौन बनेगा करोड़पति में साढ़े छह लाख के सवाल को लेकर अमिताभ बच्चन हॉट सीट पर बैठे हर शख्स को आवश्यक रूप से खेलने के लिए जोर देते हैं - क्योंकि हार जाने पर भी तीन लाख बीस हजार तो पक्का ही रहता है और जीत गये तो बल्ले बल्ले. अगर चुनाव में रीना पासवान जीत जाती हैं तो वो भी दिल्ली में अभी एनडीए के कोटे में ही हैं और अगर सुशील मोदी जीत जाते हैं, फिर तो सीट बीजेपी की होगी ही.
नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण के मौके पर जब अमित शाह पटना पहुंचे तो सुशील मोदी ने एयरपोर्ट पहुंच कर मुलाकात की लेकिन गुस्से के मारे बीजेपी दफ्तर नहीं गये. ये तो कह ही चुके थे कि कार्यकर्ता का पद तो कोई छीन नहीं सकता. जाहिर है अमित शाह और जेपी नड्डा के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सुशील मोदी का गुस्सा महसूस किया ही होगा.
डिप्टी सीएम न बनाकर बीजेपी ने आचार समिति का अध्यक्ष बनाया और बैठने के लिए एक सरकारी कुर्सी दे दी, लेकिन लगता है बीजेपी नेतृत्व को कोई फायदा नजर नहीं आया क्योंकि ऐसा करने से सुशील मोदी को नीतीश कुमार से दूर करने का मकसद पूरा ही नहीं हो रहा था - लिहाजा दिल्ली भेजने की तैयारी कर दी गयी.
डिप्टी सीएम के पद से हटाये जाने के बाद से ही सुशील मोदी को दिल्ली बुलाकर कोई नयी जिम्मेदारी देने की चर्चा जारी है. मोदी कैबिनेट में वैसे भी बहुत सारी जगहें भी खाली हैं - शिवसेना के बाद अकाली दल के छोड़ने और रामविलास पासवान के निधन के बाद से तीनों ही जगह खाली पड़ी है. एनडीए कोटे से अब एकमात्र रामदास अठावले ही मोदी कैबिनेट में बीजेपी से बाहर के मंत्री रह गये हैं.
सबसे बड़ा सवाल है कि क्या सुशील मोदी को मोदी कैबिनेट में मिनिस्टर भी बनाया जाएगा?
आखिर सुशील मोदी में ऐसा क्या है जो बीजेपी नेतृत्व के लिए उनको मंत्री बनाये जाने के लिए मजबूर करता हो. ये वही सुशील मोदी हैं ना, जो नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री पद के गुण उन दिनों देख और बता रहे थे जब बीजेपी नरेंद्र मोदी को 2014 के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की तैयारी कर रही थी. ये वही सुशील मोदी हैं ना जो बीजेपी और नीतीश कुमार के बीच में दीवार बन कर खड़े रहा करते थे और रक्षात्मक मुद्रा भी नीतीश कुमार की तरफ होती थी, न की बीजेपी की तरफ से आक्रामक रुख दिखाते थे जैसी बीजेपी नेतृत्व की अपेक्षा थी. ये वही सुशील मोदी हैं न जो बीजेपी जैसी पार्टी को नीतीश कुमार का पिछलग्गू बना कर रखे हुए थे.
असल में सुशील मोदी बिहार बीजेपी के उन नेताओं की लॉबी के आंख की किरकिरी बन गये हैं जो राज्य में नीतीश कुमार और लालू परिवार का सफाया कर बीजेपी के रास्ते का हर रोड़ा खत्म करने में जुटी हुई है - और ये कहना और समझना भी मुश्किल है कि कहीं सुशील मोदी को भी किनारे लगाने की ये कोई नयी स्कीम तो नहीं है?
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