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Updated: 28 जून, 2016 11:18 PM
कुणाल वर्मा
कुणाल वर्मा
 
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सुब्रमण्यम स्वामी जब भी बोलते हैं कोई न कोई रूठ जाता है. यह रिसर्च का विषय भी हो सकता है कि आखिर स्वामी इतना और इतना बड़ा कैसे और क्यों बोलते हैं? बोलकर फिर चुप भी हो जाते हैं. पर जब भी बोलते हैं कुछ कड़वा ही बोलते हैं. अपने राजनीतिक कॅरियर में जब भी उन्होंने कुछ बोला है, तीखा और टेढा ही बोला है. तीखा तो ठीक है पर जब टेढ़ा बोलते हैं तो तरह तरह के कयास लगने शुरू हो जाते हैं. हालांकि सुब्रमण्यम स्वामी का पॉलिटकल कॅरियर इस बात की गवाही देता है कि उन्होंने बहुत कम बार टेढ़ा बोला है. अक्सर वो सीधा और स्पष्ट ही बोलते हैं. पर हाल के दिनों में जिस तरह वे ट्वीटर वॉर में टेढ़ा और लुक छिप कर बोलने लगे हैं वह अच्छे संकेत नहीं हैं.

स्वामी ने जब अपने पॉलिटिकल कॅरियर के शुरुआती दौर में बोलना शुरू किया था तो उस वक्त भी वह टारगेटेड बयान देते थे. राज्यसभा में तो जब पहली बार बोले तो पूरी कांग्रेस सत्ता ही हिल गई थी. इंदिरा गांधी जैसी शख्शियत को बैकफूट पर आना पड़ गया था. हालांकि यह अलग बात है कि स्वामी के इन्हीं बोल बच्चन के कारण ही लंबे समय तक उनका पॉलिटिकल कॅरियर बैक गेयर में पड़ा रहा.

अब जबकि नरेंद्र मोदी ने उन्हें पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतारा है तो वे मोदी सरकार की ही नीतियों, सिपहसलारों आदि को निशाने पर लिए बैठे हैं. अपनी दूसरी पारी की शुरुआत तो उन्होंने बड़े ही धमाकेदार अंदाज में राज्यसभा में की. हाल यह था कि संसद तीन दिन बोलने के लिए खड़े हुए और तीनों दिन स्पीकर को उन्हें चेतावनी देनी पड़ी. यहां तक राज्यसभा की कार्रवाई भी स्थगित कर देनी पड़ी थी. शुरुआत में ऐसा लगने लगा था कि कांग्रेस की बची कुची ‘अकड़’ को स्वामी ही ठिकाने लगाएंगे. शायद इसी स्ट्रेटजी के तहत स्वामी को मोदी की कोर टीम में शामिल किया गया है.

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 सुब्रमण्यन स्वामी

पर चंद दिनों बाद से ही स्वामी ने मोदी सरकार के कामगाज को ही कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया. चाहे वह रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर के दूसरे कार्यकाल का मुद्दा हो, चाहे भारत की आर्थिक नीतियों की बात हो. स्वामी फिर से अपने कड़े तेवर में हैं. आरबीआई गवर्नर के खिलाफ तो ऐसा लगने लगा जैसे वे अपनी कोई पुरानी दुश्मनी निकालने में लगे हैं. जिस गवर्नर को हाल के दिनों में आर्थिक सुधारों के लिए बड़े-बड़े तमगों से सुशोभित किया जाता रहा है उसे पल भर में स्वामी ने ‘लल्लू’ करार दे दिया.

ठीक इसी तरह स्वामी ने इन दिनों वित्त मंत्री को निशाने पर ले रखा है. सबसे पहले स्वामी ने मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम को निशाने पर लिया. और जब अरविंद का बचाव करने वित्त मंत्री मैदान में आए तो उन्हें भी सीधे तौर पर चेतावनी दे डाली. वित्त मंत्री ने जैसे ही ट्वीट करके यह कहा कि सभी को अनुशासन में रहना चाहिए, स्वामी बिफर पड़े और कह डाला कि अगर उन्होंने अनुशासन तोड़ दिया तो खून खराबा हो जाएगा. स्वामी के इस बयान ने हलचल मचा रखी है. तमाम विपक्षी पार्टी भी इसका मजा उठा रही है. हां यह अलग बात है कि किसी भी विपक्षी नेता में इतना जिगरा नहीं है कि वह स्वामी से सीधे पंगा ले सके, इसीलिए सब खामोश हैं. पर बीजेपी के अंदर से ही उठ रही आवाज को साफ सुना जा सकता है, जिसमें स्वामी की जुबान पर लगाम लगाने का सुगबुगाहट है.

वित्तमंत्री अरुण जेटली और स्वामी की अदावत की नींव उसी दिन पड़ गई थी जब स्वामी को राज्यसभा के जरिए राजनीति की मुख्यधारा में लाने की बात चली थी. अरुण जेटली वह पहले शख्स थे जिन्होंने सीधे तौर पर स्वामी को नहीं लाने की बात कही थी. तर्क यह था कि स्वामी के आने के बाद पार्टी को हर दूसरे दिन उनके बयानों पर सफाई देनी होगी. बीजेपी के कई अन्य दूसरे नेताओं की भी यही राय थी, पर उस दौरान कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं था. अरुण जेटली के विरोध के बावजूद स्वामी की राज्यसभा में एंट्री हुई. कहा जाता है कि आरएसएस के शीर्ष प्रबंधकों की पहली पसंद स्वामी ही थे. राम मंदिर जैसे मुद्दों पर सीधी टक्कर लेने के लिए स्वामी से बड़ा कोई दूसरा चेहरा सामने नहीं था. कुछ यही कारण रहे कि नरेंद्र मोदी के सबसे विश्वासपात्र होने के बावजूद अरुण जेटली की बातों को दरकिनार कर दिया गया.

अब जब स्वामी ने लगातार वित्त मंत्रालय से जुड़े लोगों को सीधे और वित्त मंत्री अरुण जेटली को इशारों ही इशारों में निशाने पर ले रखा है तो खलबली स्वभाविक ही है. सबसे अधिक खलबली बीजेपी के अंदर ही है. मांग उठ रही है कि स्वामी को रोका जाए. वित्त मंत्री पर टेढ़ी ट्वीट के बाद पिछले दिनों राजनाथ सिंह के घर पर भी स्वामी का आगमन हुआ था. कहा जा रहा है कि राजनाथ ने स्वामी को थोड़ा शांत रहने का संदेश देने के लिए बुलाया था. चूंकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह और स्वामी एक दूसरे के काफी नजदीकी रहे हैं, इसीलिए स्वामी को शांत करने के लिए राजनाथ सिंह को आगे लाया गया था. इस मीटिंग के बाद से कयास लगाए जा रहे थे कि स्वामी अपने ट्वीटर वॉर को थोडे दिन विश्राम देंगे. पर यह कयास उस वक्त धुमिल हो गए जब गृहमंत्री से मिलने के थोड़ी ही देर बाद उन्होंने एक और ट्वीट कर दिया और संदेश दे दिया कि वे स्वामी हैं, उन्हें उनके बड़े बोल के लिए ही जाना जाता है. वे शांत नहीं रहेंगे.

स्वामी जिस तरह आग उगल रहे हैं उससे बीजेपी के शीर्ष प्रबंधकों के लिए भी मंथन का वक्त जरूर है कि वे इन्हें शांत कैसे करें. क्योंकि यह भी बात सत्ता के गलियारों में खूब तैर रही है कि स्वामी के बोल उनके बोल नहीं है, बल्कि स्क्रीप्टेट बोल हैं. इस स्क्रीप्ट को लिख कोई रहा है, बोल कोई और रहा है. इस स्क्रीप्ट में अगला नंबर किसका है यह भी स्वामी ने ही स्पष्ट कर रखा है.

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