मौर्य के पार्टी छोड़ने से बनेगा नया समीकरण!
एक बड़े तबके के चेहरे के रूप में और नेताप्रतिपक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर काबिज रहे स्वामी की ताकत जिस भी दल को हासिल होगी उनका पाला काफी हद तक भारी हो सकता है.
-
Total Shares
उत्तरप्रदेश की राजनीति का प्रभाव पूरे देश पर किसी ना किसी रूप में पड़ता ही है. ये आखिर देश का सबसे बड़ा सूबा जो है. इसलिए यहां की राजनीति पर राजनीतिज्ञों की नज़र भी गिद्धों की तरह गड़ी रहती है. चुनाव नज़दीक आते ही इस राज्य में जोड़-तोड़, गठबंधन और नए-नए मुद्दों को प्रश्रय देकर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए राजनीतिक दल हर संभव प्रयास करते हैं.
जाति, धर्म जैसे मुद्दे तो एक अनिवार्य सत्य बनकर यहां के सियासत में अपनी जगह सुनिश्चत करता ही है साथ ही ऐसे चेहरों पर दांव भी लगने लगते हैं जो उत्तरप्रदेश के बड़े तबके को प्रभावित कर सकने में सक्षम हो.
बहुजन समाज पार्टी के दिग्गज नेता और नेता प्रतिपक्ष रहे स्वामी कुमार मौर्य के बहुजन समाज पार्टी छोड़ने से सूबे की सियासत में एक नया मोड़ आ गया है. पिछले लोकसभा चुनाव में शून्य परिणाम पर चल रहे बीएसपी के लिए एक और फज़ीहत खड़ी हो गई है. ये फजीहत ना केवल मौर्य के पार्टी छोड़ने से पैदा हुई है बल्कि मायावती के विश्वासपात्र होने के बावजूद उनके द्वारा मायावती पर टिकट बेचने जैसे गंभीर आरोप लगाने से हुई है.
स्वामी प्रसाद मौर्य, बागी बीएसपी नेता |
स्वामी ने मायावती को अम्बेडकर की विचारधारा के खिलाफ़ होने का भी आरोप मढ़ा है. जबकि मायावती ने स्वामी को एक भटका हुआ और परिवारवाद से ग्रस्त व्यक्ति बताया. लेकिन ऐसे में एक सवाल उठता है कि बहनजी द्वारा एक भटके हुए नेता को राह में लाने के लिए नेता प्रतिपक्ष जैसे अहम पद कैसे दे दिया गया? जिस तरह मायावती अपने बारे में अक्सर कहा करती हैं कि वे परिवारवाद के खिलाफ है लेकिन एक भटके हुए नेता के परिवार को टिकट देकर वे अपने सिद्धांतों से कैसे समझौता करने के लिए बाध्य हो गईं? खैर राजनीति में कोई ज्यादा समय तक दोस्त या दुश्मन नहीं रहता लेकिन इसी दोस्ती और दुश्मनी की बुनियाद पर राजनीतिक उम्मीदें परवाज़ करती हैं.
अब स्वामी किस पार्टी के साथ परवाज करते हैं ये भी उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा. आखिर एक बड़े तबके के चेहरे के रूप में और नेताप्रतिपक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर काबिज रहे स्वामी की ताकत जिस भी दल को हासिल होगी उनका पाला काफी हद तक भारी हो सकता है.
बहुतों का मानना है कि स्वामी के पार्टी छोड़ने और किसी अन्य पार्टी का दामन थामने से लाभ किसी को भी हो लेकिन इसका घाटा बहुजन समाज पार्टी के खाते में ही जाएगा! आखिर स्वामी पर बीएसपी ने भरोसा कर उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया था और ऐसे में चुनाव से पहले बीएसपी के पक्ष में हवा बनाने के बजाय पार्टी को झटका देने से पार्टी की कमर टूटती दिखाई दे रही है.
एक सच ये भी है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पर ही यहां की जनता अपनी उम्मीदें कायम करती आई हैं. लेकिन बहुजन समाज पार्टी को लगे झटके से इसका फायदा सीधे तौर पर सपा को मिल सकता है, क्योंकि मौर्य के पार्टी छोड़ने से बहुजन समाज पार्टी के वोट बिखरने की संभावनाएं तेज हो गई हैं.
आपकी राय