स्वामी का हल्ला राजन को हटाने के लिए नहीं, किसी को बैठाने के लिए था?
सुब्रमण्यम स्वामी की सारी कवायद आरबीआई के नए गवर्नर की नियुक्ति को लेकर है. क्या सुब्रमण्यम स्वामी इस पद पर अपने पसंद के किसी व्यक्ति को बैठाना चाहते है?
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बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी का एक के बाद एक नौकरशाहों पर निशाना साधने पर सवाल उठ रहा है कि क्या ये सारी कवायद आरबीआई के नए गवर्नर की नियुक्ति को लेकर है. क्या सुब्रमण्यम स्वामी इस पद पर अपने पसंद के किसी व्यक्ति को बैठाना चाहते है?
बीजेपी के कुछ नेताओं का मानना है कि सुब्रमण्यम स्वामी का पूरा अभियान एक तीर से दो निशाने साधने के लिए है. एक तरफ वो वित्त मंत्री अरुण जेटली से अपना पुराना हिसाब चुका रहे हैं और दूसरी तरफ उनकी नजर आरबीआई के गवर्नर पद पर है जिसपर वह अपने किसी पसंदीदा को बैठाना चाहते हैं.
यही वजह है कि रघुराम राजन के उत्तराधिकारी के लिए जो-जो नाम चर्चा में आए, उन पर सुब्रमण्यम स्वामी एक-एक कर निशाना साध रहे हैं. सबसे पहले मौजूदा गवर्नर रघुराम राजन, फिर उसके बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम और अब वित्त मंत्रलाय में आर्थिक मामलों के सचिव शशिकांत दास स्वामी के लपेटे में है. शशिकांत दास पर आपत्ति जाहिर करते हुए स्वामी ने एक ट्वीट के जवाब में कहा की उन्होंने एक जमींन के सौदे में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की मदद की थी.
बीजेपी के कुछ नेताओं का मानना है कि स्वामी आईआईएम बैंगलुरू के प्रोफ़ेसर आर वैद्यनाथन को आरबीआई का अगला गवर्नर बनवाना चाहते है. सूत्रो की माने तो ऐसा करने के लिए ये जरूरी है कि जो-जो दावेदार हैं, उनके खिलाफ आरोपो की झड़ी लगा दी जाए जिससे आर वैद्यनाथन के रास्ते में आने वाले सभी दावेदार कमज़ोर पड़ जाएं. गौरतलब है कि आईआईएम बैंगलुरू के प्रोफ़ेसर आर वैद्यनाथन की सुब्रमण्यम स्वामी के साथ साथ आरएसएस पर अच्छी पकड़ है. क्योंकि वह संघ के बेहद क़रीबी माने जाने वाले चेन्नई स्थित चार्टर्ड एकाउंटेंट एस गुरुमूर्ति के काफी नज़दीकी है.
बीजेपी मार्गदर्शक मंडल के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जब 2009 के लोक सभा चुनावों से पहले विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लाने का मुद्दा उठाया था, तब इसके पीछे प्रोफ़ेसर वैद्यनाथन ने बड़ी भूमिका निभाई थी.
प्रोफ़ेसर वैद्यनाथन इस मुद्दे पर बीजेपी की ओर से बनाई गई टास्क फ़ोर्स के भी सदस्य थे. चार सदस्यीय इस टास्क फ़ोर्स में वर्तमान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल, एस गुरुमूर्ति और वक़ील महेश जेठमलानी भी शामिल थे.
इस टास्क फ़ोर्स ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि भारतीयों का विदेशों में जमा काला धन 25 लाख करोड़ रुपए है. ये बात अलग है कि किसी सरकार ने इस आँकड़े को नहीं माना और अब जबकि बीजेपी खुद सत्ता में है, उससे पूछा जाता है कि काले धन को लाने के वादे पर क्या हुआ.इस टास्क फ़ोर्स की रिपोर्ट ने आडवाणी को परेशानी में भी डाल दिया था क्योंकि उन्हें कॉंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से माफी माँगनी पड़ी थी. दरअसल इस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि सोनिया गांधी के भी विदेशी बैंकों में खाते हैं. इस पर सोनिया गांधी ने लाल कृष्ण आडवाणी को पत्र लिख कर आपत्ति दर्ज की थी और बाद में आडवाणी ने सोनिया को पत्र लिख कर माफी माँगी थी.
आर वैद्यनाथन ने निजी वेबसाइट पर रघुराम राजन के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी सुब्रमण्यम स्वामी की चिट्ठी प्रमुखता से लगाया है. सुब्रमण्यम स्वामी ने इस चिट्टी में ही आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाए हैं. स्वामी राजन के खिलाफ तीन चिट्ठियाँ पीएम को लिख चुके हैं. कल एस गुरुमूर्ती ने दक्षिण भारत के प्रमुख अंग्रेजी अखबार में आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन को गवर्नर के पद से क्यों जाना पड़ेगा शीर्षक के साथ एक डिटेल लेख है.
रघुराम राजन की जगह आखिर किसको ले आना चाहते है स्वामी |
सुब्रमण्यम स्वामी और एस गुरुमूर्ति चाहे कुछ भी कर ले, आरबीआई का अगला गवर्नर कौन बनेगा इस पर अंतिम फैसला पीएम मोदी को लेना है. हमें एक बात नहीं भूलना चाहिए की वाजपेयी सरकार में एस गुरुमूर्ति की आर्थिक मामलो के साथ-साथ राजनीतिक फैसलो में बड़ी भूमिका रहती थी. पीएम मोदी भी प्रधानमंत्री बनने से पहले और बनने के बाद भी कई मामलों पर एस गुरुमूर्ति से सलाह मश्वरा करते है. बीजेपी के कई नेताओं का मानना है की अरुण जेलटी के विरोध के बावजूद एस गुरुमूर्ती ने सुब्रमण्यम स्वामी को संघ के आशीर्वाद से राज्यसभा में मनोनीत सदस्य बनवा दिया. लिहाजा अब बारी रिटर्न फेवर की है.
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