यूपी चुनाव में बीजेपी की इस सीट के लिए पति-पत्नी आमने-सामने, राजनीति जो ना करा दे!
हम उस पति-पत्नी की बात कर रहे हैं जो यूपी चुनाव में खुद आमने-सामने आ गए हैं. दोनों ही बीजेपी की तरफ से टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं.
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यूपी चुनाव (up election 2022) का चकल्लस शुरु हो चुका है. चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद सभी खेमों ने अपनी कमर कस ली है. चुनावी रैली ना सही लेकिन सोशल मीडिया पर सैनिक लग चुके हैं. राजनीति में कब कौन अपना है और कौन पराया यह कहना बहुत ही कठिन है. अब जितने भी दलबदलू नेता हैं वे भी अपना असली रंग दिखाने लगे हैं. कहीं स्वामी प्रसाद मौर्या की चर्चा है तो कहीं प्रियंका दीदी के जन्मदिन का उत्साह.
वैसे, राजनीति में तो बेटा अपने बाप का भी सगा नहीं होता, भाई-भाई का दुश्मन बन जाता है तो भतीजा खुद अपने चाचा को दगा दे जाता है. खैर, यह बुआ-भतीजा, गुरु-शिष्य, मां-बेटी और बाप-बेटे की लड़ाई तो काफी पुरानी हो गई है. ये कब साथ में होते हैं और कब पराए ये किसी को नहीं पता. राजनीति में दिखता कुछ और है पीछे की कहानी कुछ और होती है. नेताओं को बहुत अच्छी तरह पता है कि जनता क्या चाहती है और इन्हें मूर्ख बनाना कितना आसान है.
स्वाति सिंह व दयाशंकर सिंह की दिलचस्प कहानी, पति के एक विवादित बयान ने इन्हें बीजेपी का नेता बना दिया
फिलहाल, हम उस पति-पत्नी की बात कर रहे हैं जो यूपी चुनाव में खुद आमने-सामने आ गए हैं. असल में स्वाति सिंह लखनऊ की सरोजनीनगर विधानसभा सीट पर 2017 से ही बीजेपी विधायक हैं. इसके बाद भी पूरे इलाके में पिछले कई दिनों से बड़े पैमाने पर उनके पति दयाशंकर सिंह की दावेदारी वाले बैनर और पोस्टर जगह-जगह लगे हैं. मानें, अब सीट तो एक ही है लेकिन दावेदारी पति-पत्नी दोनों ठोक रहे हैं. ऐसे में किसी एक के हाथ तो निराशा लगनी ही लगनी है.
अब बात निकली है तो पूरी तरह करते हैं. हुआं यूं कि यूपी चुनाव से पहले 20 जुलाई 2016 को एक चेहरा अचानक से उभरा था. वह चेहरा था स्वाति सिंह का. अब स्वाति सिंह का नाम सुनकर उनके पति दयाशंकर सिंह की याद तो आ ही गई होगी. वही दयाशंकर सिंह जिन्होंने बसपा सुप्रीमो मायावती पर बेहद ही अभद्र टिप्पणी की थी. जिसके बाद यूपी की राजनीति में बवाल मच गया था. इस मौके का अगर किसी को फायदा मिला था तो वह थी स्वाति सिंह. जिन्होंने इस मौके को अच्छी तरह भुनाया था. आप्पतिजनक बयान देने वाले नेता दयाशंकर सिंह को टिकट न देकर बीजेपी ने इनके करियर पर ब्रेक लगा दिया और इसी बहाने स्वाति सिंह की लॉटरी निकल पड़ी.
दरअसल, दयाशंकर सिंह के बयान के बादबीएसपी कार्यकर्ताओं ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी की अगुआई में लखनऊ में विरोध प्रदर्शन किया था. इस समय कथित रूप से बीएसपी कार्यकर्ताओं ने दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह और बेटी पर आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं थीं. जिसका जवाब देने के लिए स्वाति खुद मैदान में ऊतर आईं थीं. उन्होंने मीडिया का सहारा लिया और मुखर तरीके से बीसपी का विरोध किया. इतना ही नहीं महिला सम्मान के नाम पर उन्होंने मायावती सहित बीएसपी के 4 बड़े नेताओं के खिलाफ हजरतगंज थाने में केस भी दर्ज करवा दिया था. स्वाति अपने तीखे तेवरों से बीजेपी की नजरों में आ गईं. जिस सीट पर बसपा की जीत पक्की मानी जा रही थी वहां स्वाति ने अपनी बदौलत बाजी पलट दी और बीजेपी की जीत हुई. इसके लिए स्वाति सिंह को पार्टी ने पुरस्कार दिया और उन्हें राज्यमंत्री बना दिया.
तीसरे को न हो जाए फायदा
पति दयाशंकर सिंह की दावेदारी के बाद स्वाति सिंह के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है. वे कहती हैं कि कोई भी कार्यकर्ता पार्टी लाइन के बाहर नहीं जा सकता है. मैं खुद की दावेदारी को लेकर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती. असल में करीब दो महीने से कई अहम तारीखों पर दयाशंकर सिंह बाइक जुलूस, पैदल यात्रा और जनसंपर्क अभियान निकाल रहे हैं. इस बार वे खुद को इस सीट से दावेदार मान रहे हैं. ऐसे में अगर पति-पत्नी की अनबन ज्यादा समय तक चली तो पार्टी किसी तीसरे को भी टिकट दे सकती है.
यह तो जगजाहिर है कि पति दयाशंकर सिंह को टिकट मिला तो स्वाति सिंह खाली हाथ रह जाएंगी. महिलाओं के सम्मान में भाजपा मैदान में नारे के साथ अपने करियर को ऊंचाई पर ले जाने वाली स्वाति सिंह आज पति के आगे झुकती हैं या झुकाती हैं यह तो आने वाला वक्त बताएगा. फिलहाल दोनों की बाते सुनकर यह तो समझ आ गया कि दंपति के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.
क्या कहना है दयाशंकर सिंह का
दयाशंकर सिंह बीजेपी की प्रदेश टीम में उपाध्यक्ष हैं. इनकी पकड़ क्षेत्र में मजबूत है. इनका कहना है कि पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण से पहले हुए विवाद की वजह से मुझे टिकट नहीं मिला. पार्टी ने मेरी पत्नी स्वाती सिंह को मौका दिया. मेरी टीम ने चुनाव में पूरा दम लगाकर जीत हासिल की थी. इस बार भी मैं खुद को दावेदार मानता हूं. टिकट मिला तो जरूर लडूंगा. स्पष्ट करना चाहता हूं कि संगठन चाहेगा तभी लडूंगा.
क्या कहना है स्वाति सिंह का
स्वाति राज्यमंत्री हैं और इसका फायदा इनके विधानसभा में हुए विकास कार्यों में दिखता है. पिछले 5 सालों में इन्होंने अफनी पहचान कायम की है. इनका कहना है कि 'मुझे नहीं लगता कि बीजेपी का कोई कार्यकर्ता पार्टी लाइन से अलग जाते हुए कोई बयानबाजी कर सकता है. मैं बीजेपी की अनुशासित कार्यकर्ता हूं. ऐसे में किसी की भी दावेदारी को लेकर टिप्पणी नहीं कर सकती. मैं अपनी खुद की दावेदारी को लेकर कोई टिप्पणी नहीं कर सकती.'
दिलचस्प है इनकी लव स्टोरी और कहानी
दयाशंकर सिंह से स्वाति सिंह की मुलाकात लखनऊ यूनिवर्सिटी में हुई पढ़ाई के समय हुई. मुलाकात का सिलसिला बढ़ा और दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया. उस वक्त दयाशंकर सिंह छात्र राजनीति में काफी सक्रिय थे और एबीवीपी से जुड़े थे. वहीं साल 1999 में दयाशंकर सिंह ने लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के महामंत्री का चुनाव जीता था. परिवार की रजामंदी के बाद स्वाति और दयाशंकर सिंह ने 18 मई 2001 को शादी कर ली. कभी एक-दूसरे पर जान छिड़कने वाले आज राजनीति में कुर्सी की लड़ाई लड़ रहे हैं. 2017 यूपी विधानसभा चुवान से पहले किसी ने स्वाति सिंह का नाम तक नहीं सुना था. अचानक से पति के एक बयान ने इनकी नैया पार लगा दी, 5 सालों से स्वाति सिंह पावर में हैं. दयाशंकर सिंह का क्या हाल है यह आपसे छिपा नहीं है.
जमाना कितना भी क्यों न बदल जाए पत्नी का ओहदा अगर पति से ऊपर हो जाए तो उसे चुभता ही है. शायद यही बात दयाशंकर सिंह को परेशान कर रही होगी, वरना जिस सीट से पत्नी विधायक हैं वे उसी सीट के खुद को बीजेपी का उम्मीदवार क्यों बताते फिरते? मतलब साफ है कि घर की लड़ाई अब राजनीति कलह का रूप लेने लगी है. वरना कोई पति अपनी पत्नी का पत्ता साफ क्यों करेगा? ऐसा तो नहीं है कि स्वाति सिंह को वह 2017 की जीत उपहार में मिल गई हो, मेहनत तो उनकी भी शामिल थी.
स्वाति सिंह ने उस वक्त अपने परिवार के सम्मान के लिए मैदान में उतरीं थीं. आज उन्हें कुर्सी के लिए पहली लड़ाई अपने घर में ही लड़नी पड़ रही है. ऐसा भी नहीं है कि दोनों अलग-अलग पार्टी से हैं. दोनों ही बीजेपी की तरफ से टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं. अब देखना है कि यह पाला किसके खेमे में जाता है. लोग तो स्वाति सिंह का पड़ला भारी बता रहे हैं..यह राजनीति है भइया जो न करा दें.
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