सैयदअली शाह गिलानी का निधन: जानिए कश्मीर में अलगाववाद के जनक से जुड़ी बातें
अपनी भारत विरोधी सोच के लिए मशहूर सैयद अली शाह गिलानी ने कभी भी जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते थे. गिलानी हमेशा से ही कश्मीर को भारत से अलग कर पाकिस्तान में मिलाने के पक्ष में रहे. 90 के दशक में जब घाटी में आतंकवाद अपने चरम पर था, तब वो 1989 में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर अलगाववाद की के पोस्टर ब्वॉय बन गए थे.
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किसी जमाने में कश्मीर के अंदर जिनकी एक आवाज पर सब कुछ थम जाता था, घाटी में अलगाववाद का सबसे बड़ा चेहरा और 'हम पाकिस्तानी और पाकिस्तान हमारा' का नारा देने वाले ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के पूर्व प्रमुख सैयद अली शाह गिलानी का निधन हो गया. जम्मू-कश्मीर के अलगावादी नेता गिलानी का 92 साल की उम्र में निधन हुआ. चौंकाने वाली बात नही है कि सैयद अली शाह गिलानी के निधन पर भारत से ज्यादा दु:ख पाकिस्तान को हो रहा है. पाकिस्तान के गिलानी प्रेम का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अलगाववादी नेता के निधन पर पाक में एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है. जम्मू-कश्मीर में इस्लामिक कट्टरपंथी विचारों के झंडाबरदार सैयद अली शाह गिलानी पाकिस्तानियों के साथ ही घाटी में आतंक फैलाने वालों के भी हीरो थे. गिलानी के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया है और एहतियात के तौर पर घाटी में इंटरनेट की सेवा भी बंद कर दी गई है. आइए जानते हैं कश्मीर में अलगाववाद के जनक कहे जाने वाले सैयद अली शाह गिलानी से जुड़ी बातें...
अलगाववाद के गढ़ रहे सोपोर जिले से वो तीन बार विधायक भी रहे थे.
कौन थे सैयद अली शाह गिलानी
29 सितंबर 1929 को जम्मू-कश्मीर के बांदीपुर में एक गांव में जन्मे सैयद अली शाह गिलानी घाटी में अलगाववादी राजनीति के मुख्य चेहरों में से एक थे. गिलानी की स्कूलिंग कश्मीर में ही हुई, लेकिन कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने पाकिस्तान (अविभाजित भारत) के लाहौर से की थी. अलगाववाद के गढ़ रहे सोपोर जिले से वो तीन बार विधायक भी रहे थे. किसी जमाने में स्कूल में पढ़ाने वाले गिलानी ने 60 के दशक से ही कश्मीर के लोगों में अलगाववाद का जहर भरना शुरू कर दिया था. कहा जाता है कि स्कूली बच्चों को वो शिक्षा की जगह अलगाववाद की घुट्टी पिलाया करते थे. सैयद अली शाह गिलानी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस से अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत की थी और बाद में जमात-ए-इस्लामी में शामिल हो गए थे.
अलगाववाद के पोस्टर ब्वॉय
अपनी भारत विरोधी सोच के लिए मशहूर सैयद अली शाह गिलानी कभी भी जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते थे. गिलानी हमेशा से ही कश्मीर को भारत से अलग कर पाकिस्तान में मिलाने के पक्ष में रहे. 90 के दशक में जब घाटी में आतंकवाद अपने चरम पर था, तब वो 1989 में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर अलगाववाद के पोस्टर ब्वॉय बन गए थे. कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और जबरन पलायन के बाद अलगागववाद की राजनीति ने जोर पकड़ा था. जिसके बाद 1993 में 26 अलगाववादी संगठनों ने मिलकर ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस नाम का संगठन बनाया. इस संगठन का मूल उद्देश्य आतंकवाद और अलगाववाद को एक राजनीतिक मंच देना था. सैयद अली शाह गिलानी इस संगठन के अध्यक्ष रहे थे. आसान शब्दों में कहें, तो वो कश्मीर मामले का सशस्त्र हल निकालने यानी आतंकवाद के सहारे कश्मीर को भारत से अलग करने के समर्थक रहे थे.
सैयद अली शाह गिलानी को पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाजा गया था.
गिलानी का पाकिस्तान प्रेम
कश्मीर के पाकिस्तान में विलय के लिए घाटी में आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देने के लिए सैयद अली शाह गिलानी को पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाजा गया था. अपने पाकिस्तान प्रेम के चलते गिलानी कश्मीर में पत्थरबाजी के लिए लोगों को भड़कने से लेकर आतंकवादियों के साथ काम करने तक के लिए जाने जाते थे. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने गिलानी की मौत पर दुख जताते हुए कहा कि उन्होंने जिंदगी भर अपने लोगों और कश्मीरियों के आत्म-निर्णय के अधिकार की लड़ाई लड़ी. उन्होंने तमाम प्रताड़नाएं झेलने के बावजूद अपना संकल्प बनाए रखा. पाकिस्तान उनके निधन पर एक दिन का शोक दिवस मनाएगा और पाकिस्तान का झंडा आधा झुका रहेगा. पाकिस्तान के हर बड़े नेता ने गिलानी के निधन पर शोक जताया है.
2014 में गिलानी मौत की अफवाह पर लगानी पड़ी थी इंटरनेट पर रोक
घाटी के युवाओं में भारत विरोधी जहर को भरने में गिलानी को महारत हासिल थी. पाकिस्तान परस्त गिलानी की ख्वाहिश थी कि पाकिस्तान में कश्मीर का विलय हो जाए. गिलानी का मानना था कि कश्मीर की जनता पाकिस्तान के साथ जाना चाहती है. लेकिन, संयुक्त राष्ट्र में मामला फंसा होने की वजह से उन्होंने इसके लिए लोगों को आतंकवाद की आग में झोंकने का काम बदस्तूर जारी रखा. किसी जमाने में उनके एक इशारे पर कश्मीर की सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था. 2014 में गिलानी की मौत की अफवाह फैल गई थी, जिसके बाद कश्मीर के हालात बिगड़ने के अंदेशे से एहतियात के तौर पर घाटी में इंटरनेट पर रोक लगा दी गई थी.
पाकिस्तान के पैसों से आतंकवाद फैलाने के आरोप
सैयद अली शाह गिलानी पर पाकिस्तान से मिले पैसों से घाटी में आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगे थे. गिलानी पर राजद्रोह से लेकर पाकिस्तान से फंडिंग तक के आरोप लगे थे. आतंकी हाफिज सईद से पैसे लेने को लेकर भी गिलानी के साथ ही उनके नजदीकियों से भी पूछताछ की गई थी. यासीन मलिक, आसिया अंद्राबी समेत कई अलगाववादी नेताओं पर पाकिस्तान से फंडिंग के सहारे घाटी में आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले पर कार्रवाई की गई थी. गिलानी ने 2014 में चुनाव का बॉयकॉट करने की अपील की थी. जिसके बाद चुनाव में हिस्सा लेने वाले कई लोगों को आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार दिया था. हालांकि, इसका उल्टा असर हुआ और राज्य में 65 फीसदी मतदान हुआ था. गिलानी ने बीते साल हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया था.
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