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Updated: 17 जनवरी, 2021 09:37 PM
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सैयद शाहनवाज हुसैन (Syed Shahnawaz Hussain) को कश्मीर घाटी में बीजेपी का खाता खुलवाने का क्रेडिट हासिल है - और इसके लिए शाहनवाज हुसैन में मेहनत भी खूब की थी. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने डीडीसी चुनाव में जम्मू में चुनाव प्रचार के लिए अनुराग ठाकुर और तरुण चुघ को लगाया था, लेकिन कश्मीर के मोर्चे पर अकेले शाहनवाज हुसैन डटे रहे.

शाहनवाज हुसैन ने चुनावों को लेकर पहले अच्छी तैयारी की थी. वो चुनावी रैलियों में उर्दू जबान का ही इस्तेमाल करते थे और कश्मीरी पोशाक ही पहनते थे. मकसद साफ था - वो एक आम कश्मीरी की तरह लोगों से कनेक्ट होने की कोशिश कर रहे थे और अपने मिशन में कामयाब भी रहे. शाहनवाज हुसैन महीने पर कश्मीर में डेरा डाले रहे और आंकडों के हिसाब से हर रोज एक से ज्यादा चुनावी रैली किये. मदद के लिए केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को भी भेजा गया था लेकिन वो शिया बहुल इलाकों तक ही सीमित रहे. मुख्तार अब्बास नकवी शिया मुसलमान हैं, जबकि सुन्नी मुस्लिम होने के नाते शाहनवाज हुसैन बहुसंख्यक आबादी में बीजेपी के लिए वोट मांगते रहे.

शाहनवाज हुसैन के पुराने कश्मीर कनेक्शन को देखते हुए ही बीजेपी ने चुनाव मुहिम में लगाया था. असल में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री रहते शाहनवाज हुसैन ने ही कश्मीर हवाई अड्डे को अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट घोषित करते हुए हज यात्रियों के लिए सऊदी अरब की सीधी उड़ान शुरू करायी थी.

अब तक बीजेपी के राष्ट्रीय नेता रहे शाहनवाज हुसैन को पार्टी नेतृत्व ने दिल्ली से पटना भेज दिया है. बिहार में विधान परिषद के लिए बीजेपी ने शाहनवाज हुसैन को अपना उम्मीदवार बनाया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) की तरफ से सैयद शाहनवाज हुसैन को डीडीसी चुनावों में बीजेपी के बेहतरीन प्रदर्शन का इनाम मिला है - अब इनाम तो इनाम है, छोटा हो बड़ा हो क्या फर्क पड़ता है!

इनाम के साथ इम्तिहान भी है

शाहनवाज हुसैन और नीतीश कुमार दोनों ही एनडीए की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कैबिनेट साथी रहे. बस विभाग अलग रहे लेकिन दर्जा बराबर का ही रहा.

नीतीश कुमार से उम्र में 17 साल छोटे होने के बावजूद शाहनवाज हुसैन के हैसियत की हनक काफी हुआ करती थी - और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के वो पसंदीदा मंत्री हुआ करते थे.

ये वक्त का तकाजा है कि 2014 में लोक सभा चुनाव हारने के बाद शाहनवाज हुसैन थोड़े पिछड़ गये और अब उनके नीतीश सरकार में शामिल किये जाने की संभावना की चर्चा हो रही है. इसे लेकर शाहनवाज हुसैन के समर्थक भी हैरान हैं - आखिर क्या सोच कर और किस रणनीति के तहत बीजेपी नेतृत्व ने शाहनवाज हुसैन को बिहार विधान परिषद में भेजने का फैसला किया है.

पांच साल इंतजार के बाद शाहनवाज हुसैन को उम्मीद रही कि 2019 में भागलपुर से टिकट मिलेगा, लेकिन वो सीट जेडीयू कोटे में चली गयी और शाहनवाज हुसैन गुबार देखते रह गये. शायद शाहनवाज हुसैन पार्टी नेतृत्व के लिए गिरिराज सिंह जितने महत्वपूर्ण नहीं रहे होंगे - क्योंकि सीट तो उनकी भी एलजेपी कोटे में चली गयी थी, लेकिन बेगूसराय से उनको टिकट भी मिला और केंद्र में मंत्री भी बन गये हैं.

shahnawaz hussain, nitish kumar, amit shahशाहनवाज हुसैन को पटना भेजे जाने के पीछे कहीं वही रणनीति तो नहीं है जो पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा को लखनऊ भेजे जाने के पीछे समझी जा रही है?

गिरिराज सिंह भी कभी नीतीश कुमार सरकार में मंत्री हुआ करते थे और सुशील कुमार मोदी डिप्टी सीएम, लेकिन गुजरते वक्त के साथ साथ दोनों की पोजीशन बदल चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेजोड़ सपोर्टर होने के चलते गिरिराज सिंह केंद्रीय मंत्री हैं और नीतीश कुमार के कट्टर समर्थक होने के कारण सुशील मोदी को पटना से चलता कर दिया गया है. एलजेपी नेता रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई राज्य सभा की सीट पर बीजेपी ने सुशील मोदी को बिठा दिया और दिल्ली बुला लिया.

क्या शाहनवाज हुसैन को पटना भेजे जाने को नीतीश कुमार के लिए सुशील मोदी के साथ एक्सचेंज ऑफर समझा जाना चाहिये?

क्या बीजेपी ने सुशील मोदी को हटाकर नीतीश कुमार को नया साथी दिया है?

बिहार एनडीए में फिलहाल काफी किचकिच देखने को मिल रही है. बीजेपी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव भी राज्य में बीजेपी को मजबूत करने में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं. वो हमेशा उन रणनीतियों पर ही काम करते हैं जो नीतीश कुमार और लालू यादव के वर्चस्व को खत्म कर बीजेपी का विस्तार कर सके. ऐसे में एक ऐसे नेता की जरूरत महसूस की जाती है जो एनडीए सहयोगियों के बीच संवाद के साथ समन्वय बनाये रखे.

अब तक ऐसे ज्यादातर काम सुशील मोदी के जिम्मे हुआ करता रहा, लेकिन बीजेपी नेतृत्व के मन में ये धारणा बनने लगी थी कि जैसे भूपेंद्र यादव हमेशा बीजेपी की भलाई के बारे में सोचते हैं, सुशील मोदी को नीतीश कुमार की फिक्र ज्यादा रहती है और उनको नीतीश कुमार से दूर करने के पीछे यही बड़ी वजह भी बना है.

अब सवाल ये कि क्या शाहनवाज हुसैन बिहार में सुशील मोदी वाली भूमिका बीजेपी नेतृत्व की अपेक्षाओं पर खरा उतरते हुए निभा पाएंगे?

शाहनवाज हुसैन को मिले इनाम के साथ ही इम्तिहान भी देना होगा - और ऐसा हुआ तो भविष्य में बीजेपी के मुस्लिम चेहरे से बढ़ कर भी अपनी भूमिका निभा सकते हैं.

बिहार में बीजेपी का मुस्लिम चेहरा

बिहार के सुपौल से आने वाले सैयद शाहनवाज हुसैन 1999 में किशनगंज से लोक सभा पहुंचे थे और फिर 2006 और उसके बाद 2009 में भागलपुर से सांसद चुने गये, लेकिन 2014 में मिली हार ने बीते छह साल में शाहनवाज हुसैन को काफी पीछे धकेल दिया है.

बिहार में विधान परिषद की दो सीटों के लिए उप चुनाव होने जा रहे हैं - एक सीट तो सुशील मोदी के राज्य सभा चले जाने से खाली हुई है, जबकि एक सीट विनोद नारायण झा के विधानसभा का सदस्य बन जाने के कारण. अब जो भी विधान परिषद के सदस्य चुने जाएंगे वे दोनों के बचे हुए कार्यकाल तक ही सदस्य रह पाएंगे. विनोद नारायण झा का कार्यकाल तो डेढ़ साल ही बचा है, जबकि सुशील मोदी का करीब चार साल शेष है.

पटना में चर्चा है कि विधानसभा की दूसरी सीट खुद को सन ऑफ मल्लाह कहने वाले वीआईपी नेता मुकेश साहनी को ऑफर किया गया है, लेकिन ये भी मालूम चला है कि उनकी मंजूरी नहीं मिल पायी है. मुकेश साहनी विधानसभा का चुनाव हार गये थे, लेकिन नीतीश कुमार ने उनको मंत्री बना रखा है और ऐसे में छह महीने के भीतर उनको किसी भी सदन का सदस्य बनना होगा वरना मंत्री पद अपनेआप चला जाएगा.

बिहार की राजनीति में शाहनवाज हुसैन की एंट्री काफी हद तक वैसे ही हुई है जैसे यूपी में IAS अफसर रहे अरविंद शर्मा की. दोनों ही दिल्ली से पटना और लखनऊ भेजे गये हैं - क्या दोनों को भेजे जाने के पीछे केंद्रीय नेतृत्व की सोच एक जैसी हो सकती है?

जैसे दिल्ली में बीजेपी का मुस्लिम चेहरा मुख्तार अब्बास नकवी हैं और यूपी में मोहसिन रजा, करीब करीब वैसे ही शाहनवाज हुसैन को बीजेपी बिहार में अपने मुस्लिम चेहरे के तौर पर पेश कर रही है. बीजेपी को बिहार में मुस्लिम वोट तो मिलने से रहा, क्योंकि वो तो बकौल साक्षी महाराज, असदुद्दीन ओवैसी के खाते में जमा होता है - और अब शाहनवाज हुसैन के जरिये लगता है बीजेपी ने नीतीश कुमार के कनेक्ट पर धावा बोल दिया है.

याद कीजिये जब बिहार की चुनावी रैली में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ घुसपैठियों को बाहर निकाल फेंकने के वादे के साथ लौटे तो नीतीश कुमार ने दहाड़ लगायी कि ऐसा कोई माई का लाल नहीं है जो किसी को बाहर कर सके. नीतीश कुमार पहले बीजेपी के राम मंदिर और कश्मीर एजेंडे से भी दूरी बना कर चलते थे, लेकिन जैसे जैसे कमजोर पड़ते गये तीन तलाक, धारा 370 और सीएए सभी के सपोर्ट में खड़े होते गये - और फिर चिराग पासवान के चुनावी पैंतरे की बदौलत बीजेपी ने ज्यादा सीटें जीत कर नीतीश कुमार पर नकेल कस दी है. तभी तो वो कहते फिर रहे हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार अब तो उनके हाथ में रहा नहीं वरना जब तक उनके हाथ में रहा वो देर कहां लगाते थे.

नीतीश कुमार 2005 के आखिर में मुख्यमंत्री बने और तब से बने हुए हैं. अगर रामविलास पासवान मुस्लिम मुख्यमंत्री की जिद पर नहीं अड़े होते तो नीतीश कुमार उनके समर्थन से साल की शुरुआत में हुए पहले वाले चुनाव के बाद ही मुख्यमंत्री बन सकते थे.

शाहनवाज हुसैन को बिहार भेज कर बीजेपी कहीं लालू यादव के मुस्लिम-यादव समीकरण पर निशाना तो नहीं साध रही है. आज की तारीख में बिहार बीजेपी में दो यादव नेताओं का दबदबा है - भूपेंद्र यादव और नित्यानंद राय. नित्यानंद राय को गृह राज्य मंत्री बना कर प्रधानमंत्री मोदी ने अमित शाह का सहयोगी बना दिया है. ये भी बिहार चुनाव को देखते हुए लिया गया फैसला रहा - और इसका सबसे बड़ा फायदा तब देखने को मिला जब अमित शाह कोरोना पॉजिटिव हो जाने के चलते बिहार चुनाव से दूर रहे तो नित्यानंद राय ने कहीं भी उनकी कमी का एहसास नहीं होने दिया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में अपनी पहली रैली में सबसे पहले सूबे के दो नेताओं को याद किया जिनका चुनाव से कुछ ही दिन पहले निधन हो गया था - रघुवंश प्रसाद सिंह और रामविलास पासवान. प्रधानमंत्री मोदी दोनों ही नेताओं के अधूरे कामों और सपने को पूरा करने की हिमायत करते देखे गये - कहीं शाहनवाज हुसैन के जरिये रामविलास पासवान के सपने पूरे करने की कोई रणनीति तो नहीं तैयार की गयी है. अगर ऐसा है तो नीतीश कुमार को एक बार नये सिरे से अलर्ट हो जाना चाहिये.

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