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Updated: 21 अगस्त, 2021 07:11 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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अफगानिस्तान में कब्जा जमाने के चंद दिनों बाद ही तालिबान का असली रंग सामने आने लगा है. दुनिया के सामने महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों से लेकर पूर्व अफगान सैनिकों की सुरक्षा तक का दावा करने वाला तालिबान अब इस्लामिक राज और शरिया कानून की बात कर रहा है. अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के लिए तालिबान ने जो उदार होने का 'मुखौटा' पहना था, उसे उतारकर फेंक दिया है. तालिबानी आतंकियों द्वारा अफगानिस्तान में कत्लेआम मचाया जा रहा है. तालिबान विरोधी लोगों को सरेआम गोली मारी जा रही है और महिलाओं को घरों में कैद रहने को मजबूर कर दिया गया है. पूरी दुनिया तालिबान के आतंक के खिलाफ मुखर आलोचना कर रही है. इससे इतर भारत में अचानक से तालिबान समर्थकों की संख्या बहुत तेजी से उछाल आया है. कट्टरपंथ की पट्टी आंखों पर बांधे हुए ये लोग तालिबान के महिमामंडन में लगे हुए हैं. तालिबान के लिए इनका प्रेम रह-रहकर हिलोरे मार रहा है. भारत में तालिबान के समर्थन को कोई अफगानिस्तान के साथ हजारों साल के रिश्तों से जोड़ रहा है, तो कोई हिंदी मुसलमान होने के नाते 'सलाम' पेश कर रहा है.

इस पूरे वाकये में केवल एक ही चीज है, जो कॉमन नजर आ रही है और वो है धर्मांधता. भारत में ये ताज्जुब की बात नहीं मानी जाती है कि धर्मांधता में हर कोई एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की रेस में शामिल हो जाता है. वैसे इस तरह की हरकत कोई अनपढ़ शख्स करे, तो समझा जा सकता है. लेकिन, भारत में अनपढ़ ही नहीं, बड़े विद्वान भी तालिबान के पाले में खड़े हुए दिखाई पड़ रहे हैं. तालिबान समर्थकों की इस लिस्ट में हिंदी-उर्दू कविता मंचों के बड़े नामों में शामिल रहे मुनव्वर राणा का नाम भी शामिल हो गया है. मुनव्वर राणा ने अलग-अलग मीडिया चैनलों पर अपने बयानों के जरिये तालिबान की शान में इतने कसीदे पढ़ दिए हैं, ऐसा लगने लगा है कि काश हिंदुस्तान में तालिबान का राज होता, तो सारी समस्याएं चुटकियों में हल हो जातीं. भारत में लोकतंत्र है. तो इस तरह की बयानबाजी पर कोई खास कार्रवाई भी नहीं होती है. जिसकी वजह से मुनव्वर राणा अगली बार और जहर भरे बयानों के साथ सामने आने को तैयार हो जाते हैं.

'आजतक' के साथ बातचीत में मुनव्वर राणा ने अफगानिस्तान में होने वाली क्रूरता की तुलना भारत से कर डाली.'आजतक' के साथ बातचीत में मुनव्वर राणा ने अफगानिस्तान में होने वाली क्रूरता की तुलना भारत से कर डाली.

'आजतक' के साथ बातचीत में मुनव्वर राणा ने अफगानिस्तान में होने वाली क्रूरता की तुलना भारत से कर डाली. मुनव्वर राणा ने कहा कि जितनी क्रूरता अफगानिस्तान में है, उससे ज्यादा क्रूरता तो हमारे यहां पर ही है. उन्होंने रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का उदाहरण देते हुए कहा कि वाल्मीकि भी पहले डाकू थे, बाद में लेखक बने. तालिबान भी अब बदल गया है. वैसे, ये पहला मौका नहीं है जब मुनव्वर राणा ने समाज को बांटने वाले बयान दिए हों. राणा पहले भी कई बार अपने विवादित बयानों के जरिये मुसलमानों में खौफ भरने की कोशिशें करते रहे हैं. किसी जमाने में अपनी शायरी और गजलों के लिए भारत के बड़े शायर कहे जाने वाले मुनव्वर राणा इन दिनों अपने नफरती बयानों से सुर्खियों में बने रहने के लिए जाने जाते हैं. धर्मांधता की पट्टी आंखों में चढ़ाए हुए मुनव्वर राणा सरकार से लेकर पुलिस को भी कटघरे में खड़ा करते रहते हैं. आइए एक नजर डालते हैं मुनव्वर राणा के ऐसे ही कुछ बयानों पर...

फ्रांस में हुई हत्या को जायज ठहराया

बीते साल फ्रांस में पैगंबर मोहम्मद (Paigambar Cartoon) के विवादित कार्टून के मामले में कई हत्याएं हुई थीं. कट्टरपंथी लोगों ने फ्रांस में एक के बाद एक कई हत्याओं को अंजाम दिया था. लेकिन, भारत के मशहूर शायरों में शुमार मुनव्वर राणा ने इन हत्याओं की आलोचना करने की जगह इन्हें जायज ठहरा दिया था. मुनव्वर राणा ने एनबीटी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर कोई हमारी मां का या हमारे बाप का ऐसा कार्टून बना दे तो हम तो उसे मार देंगे. उन्होंने कहा था कि ऐसा कार्टून मुसलमानों को चिढ़ाने के लिए बनाया गया. किसी को इतना मजबूर न करो कि वो कत्ल करने पर मजबूर हो जाए. कहना गलत नहीं होगा कि मुनव्वर राणा अपने बेहतरीन कुतर्कों के साथ हत्या जैसे घृणित अपराध को भी जायज ठहराने से पीछे नहीं हटते हैं.

CAA पर पूरा मुनव्वर परिवार ही भ्रम फैलाने में जुटा था

देशभर में चल रहे सीएए विरोधी प्रदर्शनों के बाद भड़के दंगों में कई लोगों की जान गई थी. सीएए के खिलाफ एक बड़े बुद्धिजीवी वर्ग ने इसमें काल्पनिक रूप से एनआरसी को जोड़ते हुए मुस्लिम समुदाय के बीच भय फैला दिया. सीएए को लेकर मुनव्वर राणा ही नहीं उनकी बेटियां भी लखनऊ में हुए प्रदर्शनों का मुख्य चेहरा बन गई थीं. सीएए विरोधी आंदलनों को लेकर मुनव्वर राणा ने केंद्र सरकार के साथ ही उत्तर प्रदेश की सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया था. उन्होंने कहा था कि उन्हें योगी के राज में यूपी में डर लगने लगा है. भाजपा इस मुल्क को हिंदू राष्ट्र बनाने के मकसद के साथ आगे बढ़ रही है. सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के बाद भड़के दंगों में जितने लोगों की जान गई, क्या उसकी जिम्मेदारी मुनव्वर राणा जैसे लोगों के ऊपर नहीं डाली जानी चाहिए. मुनव्वर जैसे लोग एक पूरे समुदाय को भड़काने के लिए अपने बयानों का लगातार इस्तेमाल करते रहते हैं.

राम मंदिर और पूर्व चीफ जस्टिस पर की थी टिप्पणी

अयोध्या में राम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को सभी लोगों ने मान लिया. लेकिन, मुनव्वर राणा मुस्लिम समुदाय को भड़काने का ये मुद्दा हाथ से कैसे जाने दे सकते थे. उन्होंने राम मंदिर पर न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए, बल्कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल तक कर डाला. मुनव्वर राणा का मानना था कि राम मंदिर मामले में कहीं न कहीं हिंदुओं का पक्ष लिया गया. फैसला तो आया, लेकिन इंसाफ नहीं मिला. उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानना उनकी मजबूरी है. राम मंदिर इस देश के करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा मामला है. बाबरी विध्वंस एक तरीका था, लेकिन इसके बहाने मुस्लिम समुदाय के दिल में द्वेष की भावना अंदर तक भरने का श्रेय मुनव्वर राणा जैसे ही लोगों को मिलता है.

जनसंख्या नियंत्रण कानून

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा लाए जा रहे जनसंख्या नियंत्रण कानून को भी मुनव्वर राणा ने मुसलमानों के खिलाफ एक साजिश के तौर पर पेश किया. एनबीटी के साथ बातचीत में वो इतने पर ही नहीं रुके, बल्कि उन्होंने भड़काने की नीयत से कहा कि हमारा तो नजरिया ये है कि दो बच्चे आप एनकाउंटर में मार देते हैं. एक कोरोना में मर जाता है. कम से कम एक तो बच जाए, जो अपनी अम्मा-अब्बा का शव कब्रिस्तान तक पहुंचा दे. मुनव्वर राणा ने इन दिनों हर मुद्दे को घुमा-फिराकर मुसलमानों से जोड़ देने में महारत हासिल कर ली है.

आतंकियों की गिरफ्तारी पर भी दिक्कत

इसी साल जुलाई महीने में यूपी की राजधानी लखनऊ में अलकायदा से जुड़े एक संगठन के दो आतंकियों को गिरफ्तार किया गया था. इस मामले पर भी मुनव्वर राणा ने आतंकियों की गिरफ्तारी को चुनावी तैयारी बता दिया था. वहीं, दोनों आरोपियों को जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से कानूनी मदद की बात पर उन्होंने इसे सियासी रंग देते हुए एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी से जोड़ दिया था. उन्होंने कहा था कि मुसलमान मारे जा रहे हैं, परेशान हो रहे हैं, पीटे जा रहे हैं, गिरफ्तार किए जा रहे हैं, इसकी जिम्मेदारी यूपी में हैदराबाद से वोट लेने आए ओवैसी क्यों नहीं लेते. मुनव्वर राणा अपने बयानों के जरिये मुस्लिम समाज में संविधान और देश के कानूनों को लेकर लगातार अविश्वास पैदा करने की कोशिश करते रहते हैं.

किसान आंदोलन पर लिखे शेर में संसद गिरा देने की बात

किसान आंदोलन के समर्थन में मुनव्वर राणा ने जनवरी में एक शेर में संसद को गिरा कर खेत बना देने की बात कहते हुए सेठों के गोदामों को जला देने की बात कही थी. अपने कुतर्कों के जरिये मुनव्वर राणा इस मामले को भी डिफेंड करते दिखाई दिए थे. लेकिन, विवाद ज्यादा बढ़ने पर उन्होंने इस ट्वीट को डिलीट कर दिया था.

मरहूम शायर राहत इंदौरी ने एक शेर लिखा था कि जो जुर्म करते हे इतने बुरे नहीं होते, सजा न देके अदालत बिगाड़ देती है. कहना गलत नहीं होगा कि मुनव्वर राणा के के इन तमाम बयानों पर नजर डाली जाए, तो समझ आ जाता है कि उनके इस तरह के जहर बुझे बयानों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है, ये उसी का नतीजा है. वहीं, अगर तालिबानी सोच रखने वाले मुनव्वर राणा के खिलाफ कोई कार्रवाई हो जाती है, तो राजनीतिक दल इसे भी मुस्लिम समुदाय पर हमले की तरह पेश करते हुए नजर आएंगे. शब्दों के साथ खेलने वाले इस कलंदर के लिए फिलहाल इतना कहा जा सकता है कि तालिबान के 'मुनव्वर वेरिएंट' को निंदा की वैक्सीन नहीं, एक्शन का बूस्टर डोज ही रोक सकता है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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