TDP सांसदों को झटक कर बीजेपी ने Nitish Kumar को अलर्ट भेजा है
आंध्र प्रदेश और बिहार में एक ही बात कॉमन है - दोनों राज्यों को विशेष दर्जे की दरकार है. TDP सांसदों के बीजेपी ज्वाइन करने का नीतीश कुमार के साथ कोई सीधा कनेक्शन नहीं है, फिर भी के लिए बड़ा मैसेज है.
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TDP को जोर का झटका धीरे धीरे लग रहा है. लोक सभा चुनाव 2019 और आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार के बाद एक बार फिर एन. चंद्रबाबू नायडू को गहरा धक्का लगा है - तेलुगु देशम पार्टी के 6 राज्य सभा सांसदों में से चार पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. चंद्रबाबू नायडू को इस वाकये से कोई आश्चर्य नहीं हुआ है. वो मानते हैं कि ये टीडीपी के लिए कोई नयी बात नहीं है.
वैसे TDP के जिन सांसदों ने बीजेपी ज्वाइन किया है वे एक खास कैटेगरी से आते हैं - विपक्षी दलों के ऐसे नेता जो जांच एजेंसियों के रडार की जद में आ जाते हैं और उनकी अपनी पार्टी के बादल बचाव करने में अक्षम साबित होते हैं. पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में आये मुकुल रॉय से लेकर पूर्व आईपीएस अफसर भारती घोष तक सभी उसी खास कैटेगरी में आते हैं.
राज्य सभा में जितने सदस्य टीडीपी के थे, उतने ही नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के पास हैं - कुल 6, और वे खतरे से तब तक बाहर हैं जब तक नीतीश कुमार एनडीए में बने हुए हैं. टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के साथ जो हो रहा है वो आने वाले दिनों में नीतीश कुमार के साथ भी हो सकता है - अगर बिहार के मुख्यमंत्री ने मौजूदा राजनीतिक समीकरणों से इतर कोई और रास्ता अख्तियार करने का फैसला करते हैं. नीतीश कुमार की सियासी खुफिया टीम के पास फीडबैक देने के लिए जो भी मसाला हो या वो जुटाने में नाकाम रही हो - बीजेपी ने बहुत पहले ही जेडीयू नेतृत्व को अलर्ट भेज दिया है. आप जानें आपका काम जाने.
जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं
जगत प्रकाश नड्डा ने हफ्ते भर के अंदर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को रिटर्न गिफ्ट दे दिया है. 17 जून को जेपी नड्डा ने बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष का कार्यभार संभाला था.
जेपी नड्डा टीडीपी के तीन राज्य सभा सांसदों को ही बीजेपी में औपचारिक तौर पर शामिल करा पाये क्योंकि एक सांसद तबीयत खराब होने के कारण प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं हो सके.
लगता तो ऐसा है जैसे टीडीपी छोड़ कर ये नेता शुद्धिकरण संस्कार के लिए भगवा धारण किया है. वाईएस चौधरी भी इन्हीं में से एक हैं जो पिछली मोदी सरकार में टीडीपी कोटे से मंत्री भी रह चुके हैं. बीजेपी में शामिल हो चुके राज्य सभा सांसद हैं - वाईएस चौधरी, सीएम रमेश, टीजी वेंकटेश और जीएम राव.
तेलंगाना विधानसभा चुनावों के वक्त जब चंद्रबाबू नायडू और राहुल गांधी साथ साथ चुनाव प्रचार कर रहे थे तो बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा ने ट्वीट कर घेरने की कोशिश की थी. नरसिम्हा के ट्वीट में बीजेपी ज्वाइन करने वाले चार सांसदों में से दो के नाम का भी उल्लेख है.
NTR fought Indira Gandhi to save Telugu pride. Chandrababu Naidu has surrendered it to Rahul Gandhi to save tainted colleagues CM Ramesh & YS Chowdary facing IT and ED fraud cases. This selfish United Looters' Alliance (ULA) will be rejected by the people.https://t.co/Stj7b4Eh5b
— GVL Narasimha Rao (@GVLNRAO) November 28, 2018
I've complained to Ethics Committee to seek disqalification of twoTDP MPs, Y.S.Choudary & C.M.Ramesh who have earned the dubious title of "Andhra Mallyas" with massive financial scandals. @yschowdary defrauded banks for 5700 Cr & @CMRamesh_MP evaded hundreds of crores in taxes. pic.twitter.com/h50fMqOk2h
— GVL Narasimha Rao (@GVLNRAO) November 29, 2018
बीजेपी नेतृत्व दूसरे का बोझ कंधा देकर हल्का करने में तो अरसे से यकीन रखता है, लेकिन अब शॉर्ट कट तरीका खोजा गया है. पहले बीजेपी विधायकों और सांसदों को पार्टी में ले लेती थी. फिर वो इस्तीफा देते थे वरना सदस्यता वैसे भी चली जाती. उसके बाद उपचुनाव होता और फिर जीत कर वो बीजेपी की संख्या बढ़ा देते. जरूरी नहीं कि ये तरकीब हमेशा काम ही करे. गुजरात में कामयाब तो दिल्ली में नाकाम भी हो चुकी है. यही वजह है कि अब बीजेपी चार कदम आगे बढ़ कर पुख्ता इंतजाम करती ताकि मेहमानों को मेजबान बनाने में दल-बदल कानून आड़े न आये. टीडीपी के चारों सांसदों ने उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू से मिलकर एक पत्र सौंपा है जिसमें उन्हें सदन एक अलग समूह के तौर पर मान्यता देने और बीजेपी में विलय करने की अनुमति मांगी है.
मुसीबत ये है कि चंद्रबाबू नायडू के साथ ये घटना तब हुई है जब वो अपने परिवार के साथ छुट्टी पर विदेश गये हुए हैं. मतलब, बीजेपी ने नायडू के बास मैनेज करने का कोई मौका भी नहीं छोड़ा है.
चंद्रबाबू नायडू को अपने नेताओं पर भरोसा था, है और रहेगा भी!
सांसदों का तो कहना है कि उन्होंने स्वेच्छा से बीजेपी ज्वाइन किया है, ये बात अलग है कि स्वेच्छा में बाहरी तत्वों का कितना रोल है. देखा जाये तो नेताओं की ये वो कैटेगरी है जिन्हें न तो टीडीपी से कोई खास मतलब रहा होगा - और न ही बीजेपी से ज्यादा देर तक रहने वाला है. जैसा कि मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है इनका आंध्र प्रदेश में अपना स्वार्थ है. कारोबार करना है और उसके लिए राजनीतिक संरक्षण भी जरूरी है - जीवीएल नरसिम्हा के ट्वीट को आप नेता संजय सिंह ने रीट्वीट कर बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है.
क्या पता कल ये सभी स्वेच्छा से जगनमोहन रेड्डी को नेता मान लें?
बीजेपी ने उसी खास बिंदु को ध्यान में रखते हुए दिमाग लगाया. जाहिर है ED, CBI और इनकम टैक्स के डंडे का डर इन्हें सता रहा होगा और ये वैसे ही टूट गये जैसे पुलिस के हत्थे चढ़ते भयातुर होकर कोई भी गुनाह कबूल कर लेता है - कम से कम कोर्ट की अगली तारीख तक के लिए ही सही. जीवीएल नरसिम्हा के ट्वीट में भी तो ऐसी ही बातें रिफ्लेक्ट हो रही हैं.
मुद्दे की बात ये है कि आंध्र प्रदेश की घटना का असर बिहार तक कैसे हो सकता है?
दरअसल, शिवसेना की पुरानी भूमिका अब नीतीश कुमार निभा रहे हैं - और धारा 370, आर्टिकल 35 A पर बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही, तीन तलाक पर विरोध कर विपक्ष के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. हाल फिलहाल महागठबंधन की ओर से नीतीश कुमार को ग्रीन सिग्नल भी मिल चुका है. नीतीश कुमार से बोलचाल बंद होने के बावजूद ममता बनर्जी ने भी तारीफ में ट्वीट किया है. अगर नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग होने का मन बनाया तो बीजेपी उनके साथ भी वही व्यवहार करेगी जैसा टीडीपी के साथ हुआ है. नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू में एक कॉमन बात अपने अपने राज्यों के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग भी है. आम चुनाव से पहले टीडीपी भी एनडीए में ही हुआ करती थी, लेकिन आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर चंद्रबाबू नायडू ने गठबंधन छोड़ दिया था - और अब तो राज्य सभा के भी सांसद गंवाने पड़े हैं.
फिल्म मांझी - द माउंटेनमैन में नवाजुद्दीन सिद्दीकी का पहाड़ों के साथ बड़ा ही दिलचस्प एक संवाद है - 'जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं.' बीजेपी के ऑपरेशन-लोटस के आंध्रा-मॉडल में नवाजुद्दीन के डायलॉग बार बार गूंज रहे हैं. मान कर चलना चाहिये, चंद्रबाबू नायडू की ही तरह नीतीश कुमार भी सुन ही रहे होंगे.
ये राज्य सभा में नंबर बढ़ाने की कवायद है
तीन तलाक बिल पर मोदी सरकार नये सिरे से कोशिश कर रही है. विपक्ष को मनाने के लिए सरकार के संकटमोचकों ने एड़ी चोटी का जोर लगाया है, लेकिन NDA पार्टनर नीतीश कुमार ही विरोध की आवाज में सुर मिला चुके हैं. असल में नीतीश कुमार को बिहार में अपने वोट बैंक की चिंता सताती रहती है. 2013 में नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ने का मूल कारण जो भी हो दिखाने वाली एक वजह तो यही रही. सिर्फ तीन तलाक ही नहीं जेडीयू नेता ने धारा 370, आर्टिकल 35A जैसे मसलों पर भी सरकार के खिलाफ जाने का इरादा जता दिया है. लोक सभा में 303 सीटें लाने के बाद भी बीजेपी को सहयोगी दलों के साथ खड़े होने के बावजूद मुश्किलों से निजात नहीं मिल रही है.
एक बार बैजयंत जे पांडा ने ये मुद्दा उठाते हुए राज्य सभा की प्रासंगिकता पर ही सवाल उठाये थे. पांडा की दलील थी कि जब जनता द्वारा चुनी हुई लोकप्रिय सरकार लोगों द्वारा खारिज की हुई पार्टी के सदस्यों के अड़ंगा लगाने से कोई काम न कर पाये तो ऐसी संस्था का क्या मतलब रह जाता है. पांडा के इस बयान पर उन्हें नोटिस भी जारी हुआ था. तब पांडा बीजेडी की तरफ से ओडिशा से सांसद हुआ करते थे. बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े पांडा इस बार चुनाव हार गये हैं.
साफ है बीजेपी का आंध्र प्रदेश मॉडल भी राज्य सभा में बहुमत जुटाने की कोशिश ही है. राज्य सभा में बीजेपी के पास फिलहाल 71 सांसद हैं और 5-6 जुलाई को होने जा रहे चुनाव में नंबर बढ़ने की ही उम्मीद है.
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