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Updated: 04 जुलाई, 2019 06:06 PM
खगेश कुमार
खगेश कुमार
  @shiv.shakti.798
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2 जुलाई को कोयम्बटूर में सुलुर एयरबेस के पास तेजस का फ्यूल टैंक गिरने से इसकी छवि को नुकसान पहुंच सकता है, क्योंकि यह ना केवल हल्के लड़ाकू विमानों की श्रेणी का एक वर्ल्ड क्लास फाइटर जेट है, बल्कि भारत की उम्मीदों की उडान भी है. इसे बनाने के पीछे मकसद था कि वायुसेना के बेडे में पुरानी पड़ चुकी दूसरी पीढ़ी के विमान MIG -21 को बदला जाए, ताकि एयरफोर्स का आधुनिकीकरण हो सके. तेजस ने जिस भी एयर शो में भाग लिया - चाहे वो Bahrain International Airshow -2016 हो या Langkawi International Maritime Aero Expo (LIMA-2019) Malaysia - वहां लोगों को प्रभावित किया. इससे एक उम्मीद जगी कि हम भी अपनी वायुसेना के लिए फाइटर जेट्स खुद बना सकते हैं और दूसरे देशों को भी निर्यात कर सकते हैं. मार्च में मलेशिया में सम्पन्न हुए 'लंगकावी इंटरनेशनल मैरीटाइम एंड एयरोस्पेस 2019 (लिमा)' रक्षा प्रदर्शनी में तेजस ने ना केवल दर्शकों को बेहद रोमांचित किया, बल्कि मलेशियाई सरकार का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया.

मलेशिया अपने एअर फोर्स के लिए हल्के और सस्ते लड़ाकू विमानों की तलाश में है. तेजस से प्रभावित होकर मलेशियाई सरकार ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है. हालांकि, इस रेस में तेजस अकेले नहीं है, रूसी वाएके-130, चीनी-पाकिस्तानी जेएफ-17 और कोरिया की एफए-50 गोल्डन ईगल भी इसमें शामिल हैं.यदि तेजस को खरीदा जाता है तो इससे ना केवल हमारे देश में लड़ाकू विमानों के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि फंड की कमी से जूझ रही देश की एकमात्र फाइटर जेट बनाने वाली कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को भी राहत मिलेगी.

तेजस, एयरक्राफ्ट, वायुसेनाभारत ने स्वदेशी तेजस विमान तो बना लिया है, लेकिन इंजन अभी भी अमेरिकी है.

एचएएल की माली हालत का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि रोज़मर्रा के खर्चे और अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए इसे 1000 करोड़ रुपए का कर्ज लेना पड़ा है. आए दिन आप वायुसेना के विमानों की दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर सुनते रहते होगें. केवल 2019 में ही अभी तक सात फाइटर प्लेन दुर्घटना के कारण नष्ट हो चुके हैं. इससे ना केवल पहले से ही लडाकू विमानों की कमी झेल रही भारतीय वायुसेना के बेडे में फाइटर्स की संख्या में लगातर कमी हो रही है, बल्कि हम अपने बहादुर फाइटर्स पायलट को भी खो रहे हैं और इसका कारण विमानों का पुराना पड़ जाना है, जिन्हें अपग्रेड करके जैसे-तैसे काम चलाया जा रहा है.

भारत को पाकिस्तान और चीन दोनों से खतरा है. भारतीय वायुसेना प्रमुख बी एस धनोआ ने कहा है कि इन दोनों मोर्चों के खतरों से निपटने के लिए वायुसेना को 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है, जबकि अभी इनकी संख्या घटकर मात्र 31 रह गई है. एक स्क्वाड्रन में लगभग 18 विमान होते हैं.

हमने भले ही तीन दशकों से ज्यादा समय लेकर देर सवेर स्वदेशी फाइटर जेट बनाने का सपना पूरा कर लिया हो, लेकिन ये अभी अधूरा है, क्योंकि तेजस में लगा इंजन (GE 404F2/J-IN20) दिग्गज अमेरिकी कंपनी General Electric aviation का है. हम अभी तक तेजस में लगाने लायक इंजन नहीं बना पाए हैं और जब तक हम ऐसा नहीं कर पाते हैं, तब तक लड़ाकू विमान बनाने के क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं हो सकते हैं. यह न केवल हमारी रणनीति के लिए सही है, बल्कि ये रक्षा बजट के बोझ को भी बढाता है. इस वर्ष का रक्षा बजट पिछले साल की तुलना में 6.87% बढकर 3,18,931.22 करोड़ हो गया है. यह कुल बजट का लगभग 11.45% है. 36 राफेल (medium multirole combat aircraft) खरीदने के लिए भारत सरकार का फ्रांस के साथ किया गया लगभग 60,000 करोड़ रुपए का सौदा आप को तो याद ही होगा. यह भले ही विवादों में रहा हो, पर इतना अंदाजा लगाने के लिए काफी है कि लड़ाकू विमानों को खरीदने में देश का कितना पैसा खर्च होता है.

भारतीय 'तेजस' में अमेरिकी इंजन क्यों?

भारत सरकार ने 1983 में LCA (Light Combat Aircraft) project को मंज़ूरी दी, ताकि पुराने पड़ चुके 60 के दशक में वायुसेना में शामिल किए गए मिग-21 सिरीज के विमानों को 1990 तक धीरे-धीरे हटाया जा सके. उस समय यह भी निर्णय लिया गया कि इसमें लगने वाला इंजन भी देशी हो. इसके लिए मार्च 1989 में Gas Turbine Research Establishment (GTRE, जोकि DRDO की ही एक लैब है) को इसके विकास की जिम्मेदारी दी गई, जिसे Kaveri Engine Development Project (KEDP) के नाम से जाना जाता है. GTRE 1982 से ही GTX 37 नाम के एक एयरो इंजन प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी. इस प्रोजेक्ट को 382.81 करोड़ रुपए के फंड के साथ दिसंबर 1996 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया.अपने निर्धारित समय में यह प्रोजेकट पूरा न होने के कारण कई बार इसकी समयसीमा को बढ़ाया गया. पहले इसे मार्च 2000 तक, फिर दिसंबर 2004 और अंतत: इसे मार्च 2009 तक किया गया.

इस दौरान इसका बजट भी पांच बार संशोधित हुआ और 642% बढ़कर 2839 करोड़ रुपए हो गया. हालांकि, दो दशक का समय और लगभग दो हजार करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद भी कावेरी इंजन LCA की जरूरतों को पूरा करने लायक नहीं बन पाया. इसमें सबसे बड़ी कमी थ्रस्ट और वजन की है. थ्रस्ट किसी भी इंजन द्वारा पैदा किया जाने वाला वह बल है, जिसकी सहायता से विमान हवा में उड़ता है. इसे मापने की इकाई newton (N) है. कावेरी इंजन से 70 kN थ्रस्ट मिलती है, जबकि LCA को 81 kN की जरूरत है. जहां तक वजन की बात है यह अपेक्षित 1100 Kg से 135 Kg ज्यादा 1235 Kg है. इसलिए कावेरी इंजन को तेजस प्रोजेक्ट से अलग किया गया और उसकी जगह अमेरिकी इंजन लगाने का निर्णय लिया गया. इसके तहत 883 करोड़ रुपए में 41 GE इंजन खरीदे गए. हालांकि राफेल सौदे के offset contract के तहत kaveri engine में सुधार के लिए फ्रांसीसी इंजन निर्माता कंपनी Safran Aircraft Engine (SAF, राफेल में लगा इंजन M88 को भी इसी कंपनी ने बनाया है) के साथ समझौता किया गया है.

DRDO की 2017 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार SAF ने कावेरी की तकनीकी जांच करने के बाद कहा कि कावेरी limited envelope flight test के लिए तैयार है. इस टेस्ट में एक नए इंजन को इस तरह के परीक्षण के लिए बनाए गए विमान में लगाकर एक सीमित गति और ऊंचाई में ले जाकर इसका मूल्यांकन किया जाता है.

लेकिन दुख की बात ये है कि एयरो इंडिया 2019 एयर शो के दौरान ये भी खबर आई कि DRDO ने कावेरी इंजन प्रोजेक्ट को स्थगित कर दिया है. हालांकि, इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. इस खबर में कितनी सच्चाई है ये तो नहीं कहा जा सकता, पर इतना जरूर है कि अगर यह प्रोजेक्ट बंद हो गया तो इंजन के लिए हम हमेशा दूसरे देशों पर निर्भर रहेंगे. विशेषज्ञ मानते हैं कि तेजस में लगा अमेरिकी इंजन भी इतना शक्तिशाली नहीं है कि तेजस को उसकी पूरी क्षमता से इस्तेमाल किया जा सके. यह पहली बार नहीं है जब किसी भारतीय फाइटर प्लेन को एक योग्य इंजन की कमी के कारण अपनी क्षमता से समझौता करना पड़ा हो.

देश का पहला फाइटर एयरक्राफ्ट

आप में से कइयों को लगता होगा कि हमारे देश में विकसित पहला फाइटर जेट तेजस है, पर ऐसा नहीं है. HAL ने 1960 के दशक में ही भारत का पहला लड़ाकू विमान HF -24 Marut बना लिया था. आप सबको बॉर्डर फ़िल्म में दिखाई गई लोंगेवाला की लड़ाई तो याद ही होगी कि कैसे भारतीय Hawk Hunter विमानों ने पाकिस्तानी टैंको को तबाह कर दिया था. लेकिन आपको ये नहीं मालूम होगा कि इस संघर्ष के दौरान Marut का भी इस्तेमाल हुआ, जिसमें कि इन विमानों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था. इसी एक विमान में सवार स्क्वाड्रन लीडर कृष्ण कुमार बक्शी ने एक पाकिस्तानी Sabre विमान को मार गिराया था. इसके लिए उन्हें युद्ध के समय दिया जाने वाला तीसरा सबसे बड़ा पुरस्कार वीर चक्र से सम्मानित भी किया गया था. इस फाइटर जेट के बारे में कहा जाता है कि इसकी तकनीक अपने समय से बहुत आगे थी. पर अफसोस ये है कि एक सही इंजन की कमी के कारण mach 1 (ध्वनि की स्पीड के बराबर) से उडने की क्षमता रखने वाला यह जेट कभी भी यह रफ्तार हासिल नहीं कर सका.

अब आगे क्या...??

पूर्व नौसेना चीफ एडमिरल अरुण प्रकाश ने 12 मार्च को The Hindu में प्रकाशित अपने लेख में लिखा कि तेजस और कावेरी परियोजनाओं को 'राष्ट्रीय मिशन' घोषित किया जाना चाहिए और इनमें सुधार के लिए तत्काल जरूरी कदम उठाए जाएं. यदि हम ये अवसर गंवा देते हैं तो हमेशा के लिए इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में आयात पर निर्भर रहना पडेगा. हमारे प्यारे देश भारत के बारे में कहा जाता है कि इसे समझना बहुत मुश्किल है. वाकई ये भी समझना बहुत मुश्किल है कि हमने भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए जरूरी जटिल क्रायोजेनिक इंजन तो बना लिया पर लड़ाकू विमानों के लिए पर्याप्त शक्तिशाली इंजन बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

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