तेजस्वी को लेकर नीतीश और लालू की बयानबाजी संयोग है या कोई राजनीतिक प्रयोग?
क्या तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का भी बिहार का मुख्यमंत्री बनना वैसे ही पक्का है, जैसे नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का प्रधानमंत्री बनना? आखिर लालू यादव (Lalu Yadav) को दोनों के मामले में एक जैसा यकीन क्यों नहीं है? क्या सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद ऐसा हुआ है?
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नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की मंजिलों के नाम बस अलग अलग हैं. वास्तव में वे एक जैसी ही हैं. थोड़ी दूर, थोड़ी नजदीक. एक बड़ा सपना, एक, अपेक्षाकृत, छोटा सपना - और वे ही बिहार में सत्ता परिवर्तन का आधार बनी हैं.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने आरजेडी नेता लालू यादव के साथ फिर से हाथ मिलाकर बिहार से बदलाव का बिगुल बजाने की कोशिश की है. बदलाव से मतलब केंद्र में सत्ता परिवर्तन से है. नीतीश कुमार और लालू यादव ही नहीं, तेजस्वी यादव भी कहने लगे हैं कि बिहार ने जो रास्ता दिखाया है, देश भी दिखा सकता है.
लालू यादव (Lalu Yadav) के साथ नीतीश कुमार अब तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी एक मुलाकात कर चुके हैं. चूंकि सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का इंतजार कर रही हैं, इसलिए 2024 में विपक्ष को एकजुट करने पर काम कुछ दिन के लिए होल्ड कर रखा है. ये बात अलग है कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव से पहले ही राजस्थान में भी पंजाब और छत्तीसगढ़ जैसा ही संकट खड़ा हो गया है - तीव्रता थोड़ी ज्यादा जरूर है.
नीतीश कुमार और लालू यादव के नये सिरे से हाथ मिलाने की जो वजह है वो भी बदली हुई है. 2015 में जो महागठबंधन हुआ था वो बिहार में सत्ता हासिल करने के लिए रहा, लेकिन नयी पारी तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए मानी जा रही है. बदले में नीतीश कुमार को विपक्ष के नेतृत्व के लिए लालू यादव को सपोर्ट करना है. विपक्ष के नेतृत्व का मतलब तो सत्ता मिलने पर प्रधानमंत्री की कुर्सी का दावेदार भी होता है, लेकिन नीतीश कुमार अब तक ऐसी बातों से हर बार इनकार करते आये हैं.
एक तरफ लालू यादव बेटे को बिहार का अगला मुख्यमंत्री बनाने में जुटे हुए हैं, दूसरी तरफ डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव फिर से कानूनी मुश्किलों से जूझने लगे हैं. IRCTC घोटाले के एक केस में तेजस्वी यादव को अब 18 अक्टूबर को स्पेशल कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश भी होना है. तेजस्वी यादव अक्टूबर, 2018 से जमानत पर चल रहे हैं.
CBI ने कोर्ट में एक अर्जी देकर आरोप लगाया है कि तेजस्वी यादव ने एक पब्लिक मीटिंग के दौरान जांच एजेंसी को नतीजा भुगतने की धमकी दी थी. और तेजस्वी यादव के बयान का हवाला देते हुए सीबीआई ने उनकी जमानत रद्द करने की अदालत से गुजारिश की है. असल में, तेजस्वी यादव आरजेडी नेताओं के घर हुई छापेमारी पर रिएक्शन दे रहे थे. अव्वल तो तेजस्वी यादव ने अधिकारियों को संवैधानिक संगठन के कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करने की नसीहत देना चाहते थे, लेकिन तभी गुस्सा फूट पड़ा.
और प्रेस कांफ्रेंस में कहने लगे, क्या सीबीआई अधिकारियों की मां बहनें और बच्चे नहीं होते? क्या उनका परिवार नहीं है? क्या वे हमेशा सीबीआई अधिकारी ही रहेंगे? क्या वे रिटायर नहीं होंगे?
एनडीए छोड़ कर महागठबंधन में आने के बाद नीतीश कुमार ने तेजस्वी का बचाव भी किया था. केंद्र सरकार पर कटाक्ष करते हुए, नीतीश कुमार लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे थे कि आरोप तो लगाये गये थे, लेकिन इतने दिनों तक कुछ साबित तो हुआ नहीं. अब वही चैलेंज लगता है तेजस्वी यादव के लिए मुसीबत बन कर मंडराने लगा है.
कोर्ट में पेशी के बाद अब तो अदालत तय करेगी कि जमानत देनी है या जेल भेजना है? मीडिया में तेजस्वी यादव को लेकर सवाल होने लगा है कि क्या अब उनको जेल जाना पड़ेगा? कानून के मुताबिक जो भी एक्शन हो, अभी तो नयी मुश्किलों की आशंका होने ही लगी है.
कांग्रेस की ही तरह आरजेडी में भी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होना है. लेकिन वहां परिवारवाद की राजनीति से बचने के लिए राहुल गांधी की तरह तेजस्वी यादव ने कोई शर्त नहीं रखी है. चारा घोटाले में सजा काट रहे लालू यादव जमानत पर रिहा हैं, और अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भी दाखिल कर चुके हैं. समाजवादी पार्टी में भी अभी अभी नये अध्यक्ष का चुनाव हुआ है - और अखिलेश यादव फिर से भरोसा जताने के लिए कार्यकर्ताओं का आभार भी जता चुके हैं.
दिल्ली में नामांकन के दौरान ही लालू यादव से हाल की राजनीतिक गतिविधियों को लेकर सवाल पूछे गये. सवाल तो 2024 में बीजेपी को हराने जैसी स्थिति से लेकर PFI पर पाबंदी लगाये जाने तक को लेकर हुए, लेकिन लालू यादव का सबसे ज्यादा दिलचस्प जवाब तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार को लेकर रहा - इसलिए भी क्योंकि दोनों को लेकर लालू यादव एक जैसे आश्वस्त नहीं लगे.
नीतीश की जबान फिसलना और लालू का एनडोर्समेंट
पटना में एक कार्यक्रम था. कार्यक्रम तो किसी भी सरकारी आयोजन जैसा ही रहा, लेकिन नीतीश कुमार के जबान फिसलने के कारण आयोजन का एक वीडियो क्लिप वायरल हो गया. कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव दोनों ही मौजूद थे.
ऐसा तो नहीं कि आखिर में नीतीश कुमार के रास्ते में लालू यादव ही पेंच फंसाएंगे?
हाल फिलहाल देखने को यही मिल रहा है कि ज्यादातर काम नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव मिल जुलकर ही कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर एक ऐसा वीडियो भी लोग शेयर कर रहे थे जिसमें दोनों लोग साथ ही फीता काट रहे हैं. कोई दोनों के अलग अलग फीते काटने पर सवाल उठा रहा था, तो फीते के ऊपर नीचे होने के हिसाब से आकलन कर रहा था.
हुआ ये था कि उस दिन नीतीश कुमार की जबान फिसल गयी और तेजस्वी यादव को माननीय मुख्यमंत्री कह कर संबोधित कर दिया, जबकि वो उनकी सरकार में डिप्टी सीएम हैं. लोग ये भी मान कर चल रहे हैं कि नीतीश कुमार अपनी तरफ से तेजस्वी यादव के बिहार के मुख्यमंत्री बनने की राह आसान करने में लगे हुए हैं - नीतीश कुमार के भाषण के उस हिस्से को बीजेपी ने भी सोशल मीडिया पर शेयर किया और नीतीश कुमार को रबर स्टांप सीएम बताते हुए आश्रम चले जाने की सलाह दे डाली है.
"माननीय मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव"रबड़ स्टाम्प सीएम की अधिकारिक पुष्टी! pic.twitter.com/eSBnYZEGHe
— BJP Bihar (@BJP4Bihar) September 27, 2022
लोगों शायद नीतीश कुमार की बातों को नजरअंदाज भी कर देते, लेकिन मुख्यमंत्री ने भूल सुधार की भी कोई कोशिश नहीं की. मारकाट वाली राजनीति में बवाल तो मचना ही था, लेकिन अगर नीतीश कुमार भी राहुल गांधी की तरह तत्काल प्रभाव से सुधार कर लिया होता तो जेडीयू नेताओं के पास बचाव का ऑप्शन भी होता. आपको यादव होगा महंगाई पर हुई कांग्रेस की रैली में राहुल गांधी आटे का भाव भी प्रति लीटर के हिसाब से बता दिये थे, लेकिन फिर फौरन ही करेक्ट भी कर लिया था - केजी बोल कर.
नीतीश कुमार ने जो किया वो जान बूझ कर किया या उस वक्त उनका ध्यान नहीं गया? ऐसा तो नहीं कि वो लालू यादव को आश्वस्त करना चाहते हों कि चिंता करने की जरूरत नहीं है - वो वादा भूले नहीं हैं. जो कहा है वो करेंगे. नीतीश कुमार के स्टैंड को लेकर लालू यादव और उनका परिवार तो हमेशा ही सशंकित रहता है. तभी तो अमित शाह भी सीमांचल दौरे में नीतीश की इस आदत की तरफ इशारा करते हुए लालू यादव को आगाह कर रहे थे - ना मालूम कब वो कांग्रेस की गोद में बैठ जायें?
नीतीश कुमार की तो जबान फिसली थी, लेकिन लालू यादव तो डंके की चोट पर तेजस्वी यादव को बिहार के भावी मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने लगे हैं - और ताज्जुब तो तब होता है जब नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने के सवाल को लालू यादव साफ साफ टाल देते हैं.
आखिर लालू यादव का इरादा क्या है?
लालू यादव से दिल्ली में एक साथ दो सवाल पूछे गये थे. एक, तेजस्वी यादव को लेकर और दूसरा, नीतीश कुमार को लेकर. जाहिर है तेजस्वी यादव को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री पद से जुड़ा सवाल ही पूछा जाएगा - और जब नीतीश कुमार की बात होगी तो ध्यान प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर ही जाएगा.
तेजस्वी यादव के बिहार के मुख्यमंत्री बनने के सवाल पर लालू यादव का सीधा, सपाट और तपाक से जवाब मिला - 'बिलकुल मुख्यमंत्री बनेंगे... टाइम का इंतजार कीजिये.'
लेकिन ठीक वैसा ही सवाल जब नीतीश कुमार को लेकर हुआ तो रिस्पॉन्स काफी अलग रहा, 'सब लोग मिलकर देश संभालेंगे.'
लालू यादव के जवाब से उनका इरादा रहस्यमय लगने लगा है. आखिर लालू यादव को क्यों लगता है कि तेजस्वी यादव अकेले बिहार संभाल लेंगे - नीतीश कुमार अकेले ऐसा नहीं कर पाएंगे, इसलिए लोग मिलजुल कर काम करेंगे.
मतलब, यही हुआ कि नीतीश कुमार को अकेले काम नहीं करने दिया जाएगा. मतलब, ये कि नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनाये जाने के मामले में लालू यादव अभी कुछ तय नहीं कर पाये हैं - या फिर नीतीश कुमार को लेकर लालू यादव के मन में अब भी संशय बना हुआ है?
क्या लालू यादव के मन में नीतीश कुमार को लेकर वैसा ही संशय है, जैसे शक-शुबहे अमित शाह बिहार दौरे में लालू यादव के दिमाग में डालना चाहते थे? क्या अमित शाह ने बीजेपी के सात्ता से बाहर होने के बाद पहले ही दौरे में कोई 'खेला' कर दिया है?
लालू यादव का इरादा, शब्दों से नहीं बल्कि मीडिया के सवाल जवाब के दौरान उनके भाव और त्वरित टिप्पणी से समझना आसान हो जाता है. देख कर तो ऐसा लगता है जैसे लालू यादव बड़े ही बेपरवाह होकर मीडिया के सवालों के जवाब दे रहे हैं, लेकिन वो मुद्दों के प्रति बेहद सजग हैं.
प्रेस कांफ्रेंस में पूछा जाता है, 'लालू जी... क्या नीतीश कुमार को लाल किला पर भेजिएगा झंडा फहराने के लिए... नीतीश को दिल्ली पहुंचाइएगा आप?'
'...और तेजस्वी को कब तक मुख्यमंत्री... कब तक मुख्यमंत्री बन जाएंगे?'
लालू यादव कहते हैं, 'टाइम पर... टाइम पर... इंतजार कीजिये.'
अगला सवाल होता है, 'और चाहते हैं कि तेजस्वी यादव बिहार संभालें?'
लालू यादव तपाक से जवाब देते हैं, 'बिलकुल.'
तभी एक और पत्रकार का सवाल आता है, 'और नीतीश जी देश संभालें?'
लालू यादव कहते हैं, 'सब लोग मिल के संभालेंगे.'
संदेह पैदा होने की वजह लालू यादव का जवाब ही है. जैसे लालू यादव ने तेजस्वी यावद के केस में 'बिलकुल' कहा, नीतीश के लिए क्यों नहीं कहा? क्या ये समझा जाये कि जैसे लालू यादव, तेजस्वी यादव को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में तो देखना चाहते हैं, लेकिन ठीक वैसे ही नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के रूप में नहीं.
क्या नीतीश कुमार के लिए तेजस्वी यादव की तरह 'बिलकुल' कहने में राहुल गांधी आड़े आ रहे हैं? या फिर नीतीश कुमार की जगह लालू यादव के मन में प्रधानमंत्री के रूप में किसी और का नाम है... जिसे वो बताना नहीं चाहते.
ऐसा इसलिए भी लग रहा है क्योंकि 2015 में भी जब लालू यादव के सामने नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने पर खुशी की बात पूछी गयी थी तो बोले - 'कोई शक है का?'
और तब तो ऐसा माहौल भी नहीं था. निश्चित तौर पर नीतीश कुमार, लालू यादव के साथ मिल कर बिहार सरकार चला रहे थे, लेकिन जिस तरह विपक्षी गठबंधन की कोशिशों के मद्देनजर अभी बात बात पर अपडेट दे रहे हैं. पहले ऐसी कोई बात नहीं देखने को मिली थी.
ऊपर से आरजेडी के तमाम नेता हमेशा ही नीतीश कुमार पर हमलावार हुआ करते थे क्योंकि वो यूपी में रैलियां कर रहे थे. और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश भर में शराबबंदी लागू करने की चुनौती भी देते रहे.
नीतीश कुमार को लेकर प्रधानमंत्री पद के लिए 'बिलकुल' कह पाना लालू यादव के लिए क्या सोनिया से मिलने के बाद मुश्किल होने लगा है?
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