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Updated: 04 जुलाई, 2020 01:47 PM
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बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2020) में जंगलराज को मुद्दा बनते देख, तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav Apology) ने लालू-राबड़ी शासन के दौरान हुई गड़बड़ियों के लिए माफी मांगी है. असल में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की जेडीयू और सूबे की सत्ता में साझीदार बीजेपी आरजेडी के 15 साल के शासन को जंगलराज के रूप में याद दिला कर विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनाने की तैयारी कर रही है.

तेजस्वी यादव ने एक बार फिर खुद को पाक साफ बताने के लिए वही पुराना तरीका अपनाया है - जैसे 2017 में भ्रष्टाचार का आरोप लगने पर तेजस्वी अपनी मूंछों की दुहाई दे रहे थे. ऐसा लगता है जैसे तेजस्वी यादव लालू यादव और राबड़ी देवी के शासन से खुद को अलग करके पेश करने की कोशिश कर रहे हों.

सवाल है कि क्या तेजस्वी यादव के माफी मांग लेने से नीतीश कुमार की चुनौतियां बढ़ सकती हैं - या फिर तेजस्वी की माफी आरजेडी पर ही बैकफायर होने वाली है?

जंगलराज पर तेजस्वी का माफीनामा!

लगता है तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करते करते थक चुके हैं. वैसे भी तीखे तेवर और जोरदार हमलों का भी कोई असर न हो तो फिक्र होना स्वाभाविक है. लालू यादव के जेल चले जाने के बाद से तेजस्वी यादव बिहार की राजनीति में आरजेडी की वापसी की कोशिश में अपनी ओर से जी जान से लगे हुए हैं.

माफी की राजनीति की पुरानी परंपरा रही है और ऐसा कई बार हुआ है जब नेताओं को इसका फायदा भी मिला है - दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं. माफी मांग कर नेता भी यही जताने की कोशिश करते हैं कि वे भी इंसान हैं और इंसान होने के नाते ही गलती हुई है. गलती का एहसास और भूल सुधार समाज में अच्छी बातें होती हैं, इसलिए जनता मौका भी देती है.

तेजस्वी यादव भी अपने माता पिता के शासन के दौरान हुई गलतियों के लिए माफी मांग कर नये सिरे से जनता का आशीर्वाद चाहते हैं. हालांकि, ऐन उसी वक्त वो लालू यादव के सामाजिक न्याय की याद भी दिलाते हैं - और अपनी पार्टी आरजेडी के सत्ता में आने पर बेरोजगारों के लिए रोजगार के इंतजाम करने का वादा भी कर रहे हैं.

उपचुनावों में एक-दो सीटों पर मिली कामयाबी को छोड़ दें तो 2019 के आम चुनाव में तो पार्टी का खाता तक न खुल सका. नतीजे आने के बाद काफी दिनों तक तेजस्वी यादव सीन से गायब रहे - जब सवाल उठने लगे तो एक दिन अचानक प्रकट हुए और फिर से अपने मिशन में जुट गये. लॉकडाउन के दौरान भी गायब होने की चर्चा चली तो दिल्ली से पटना लौटे और एक एक दिन करके गिनाने लगे कि नीतीश कुमार तो घर से निकलने ही नहीं.

tejashwi yadav, lnitish kumarकहीं लेने के देने ने पड़ जाये तेजस्वी यादव के माफी मांगने से?

जून में जब लालू यादव का बर्थडे आया तो बिहार में आरजेडी नेता की खूब चर्चा रही. बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी तो लालूवाद ही चलाने लगे हैं. नीतीश कुमार अपने 15 साल के शासन से ज्यादा लालू-राबड़ी के शासन की ही याद दिलाते रहते हैं. जब अमित शाह की डिजिटल बिहार रैली हुई तो तेजस्वी और राबड़ी देवी ने थाली बजाकर विरोध किया, अमित शाह को भी मौका मिला और विरोधियों को वक्रदृष्टा बताते हुए लालू-राबड़ी शासन और नीतीश सरकार के होने का फर्क विस्तार से समझाया भी.

अब ये समझना जरूरी है कि तेजस्वी यादव के माफी मांग लेने से क्या फर्क पड़ने वाला है.

फर्क जैसे क्या आरजेडी को तेजस्वी की माफी से क्या चुनावों में फायदा मिल सकता है

फर्क से आशय ये है कि क्या इससे नीतीश कुमार की चुनौतियां बढ़ सकती हैं?

क्या ये फर्क भी आ सकता है कि बीजेपी विधानसभा चुनाव में जंगलराज को मुद्दा बनाने का इरादा ही छोड़ दे?

सच तो ये है कि तेजस्वी यादव ने माफी कोई पहली बार नहीं मांगी है - आरजेडी कार्यकर्ताओं से संवाद के दौरान तेजस्वी यादव पहले भी माफी की बात कर चुके हैं. अंतर बस इतना है कि चुनावी माहौल में इसे गंभीरता से लिया जा सकता है - और ऐसा भी नहीं है कि तेजस्वी यादव माफी मांगने वाले लालू परिवार के कोई पहले सदस्य हैं - 10 साल पहले खुद लालू यादव भी माफी मांग चुके हैं!

किसे होगा नफा और किसे नुकसान?

2005 में नीतीश कुमार के हाथों सत्ता गंवाने के पांच साल बाद लालू यादव ने रामविलास पासवान से हाथ मिलाया - और 2010 में बिहार में साथ मिल कर चुनाव लड़े. असल में लालू यादव यादव और मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करते रहे और खुद को गरीबों का मसीहा बता कर दलितों का वोट भी हासिल कर लेते. जब लगा कि दलित वोट हाथ नहीं आ रहा है तो रामविलास पासवान से हाथ मिलाया.

चुनावी रैलियों में लालू यादव ने कई बार कहा कि अगर बिहार में सरकार बनाने में सफल हुए तो पुरानी गलतियों को नहीं दोहराएंगे. जब चुनाव के नतीजे आये तो मालूम हुआ लालू यादव और रामविलास पासवान की जोड़ी 25 सीटों पर सिमट कर रह गयी है.

तेजस्वी यादव अगर ये न जानते हों या जानने के बाद भी भूल गये हों तो एक बार याद जरूर करना चाहिये और चीजों को बारीकी से समझने की कोशिश भी करनी चाहिये. तेजस्वी यादव ने माफी मांगते समय जो दलील दी है वो भी उनकी पुरानी अदा है. 2017 में जब तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे वो नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम थे और मुख्यमंत्री चाहते थे कि वो इस्तीफा दे दें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. फिर अचानक नीतीश कुमार ने राजभवन जाकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे डाला. मुख्यमंत्री का इस्तीफा पूरे मंत्रिमंडल का इस्तीफा माना जाता है.

नीतीश के इस्तीफे के साथ ही तेजस्वी की भी कुर्सी चली गयी. नीतीश कुमार ने उसी वक्त महागठबंधन से पाला बदलकर बीजेपी के सपोर्ट से फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली, लिहाजा तेजस्वी यादव विपक्ष के नेता रह गये.

पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में तेजस्वी यादव ने कहा, 'ठीक है 15 साल हम लोग सत्ता में रहे, पर हम सरकार में नहीं थे... हम छोटे थे. फिर भी हमारी सरकार रही. इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि लालू प्रसाद यादव के राज में सामाजिक न्याय नहीं हुआ - 15 साल में हमसे कोई भूल हुई थी तो हम उसके लिए माफी मांगते हैं.'

अब सवाल है कि तेजस्वी यादव किससे माफी मांग रहे हैं? साफ है उन सबसे माफी मांग रहे हैं जो लालू-राबड़ी शासन में कानून-व्यवस्था, अपहरण, फिरौती और गुंडागर्दी के शिकार हुए हैं. लालू यादव के जंगलराज का जो पीड़ित तबका है वो सवर्ण हैं - वे तेजस्वी को माफ करते हैं या नहीं ये तो चुनाव नतीजों के बाद ही साफ हो पाएगा, लेकिन क्या माफी मांग कर तेजस्वी यादव अपने खास वोट बैंक को नाराज नहीं कर रहे हैं?

क्या यादव वोट बैंक ये नहीं सोचेगा कि सवर्णों से माफी मांगने के बाद अगर उनके वोट से तेजस्वी यादव सत्ता में आये तो उनके हिस्से में क्या आएगा? क्या ये वही अविश्वास नहीं है जिसकी वजह से अखिलेश यादव ने यूपी में सत्ता गंवा दी है और आम चुनाव में दलित नेता मायावती के साथ गठबंधन के बाद भी अपनी पत्नी डिंपल यादव की सीट भी नहीं बचा पाये हैं.

लग रहा है जैसे तेजस्वी यादव ये कहने की कोशिश कर रहे हों पिता की गलतियों की सजा बेटे को क्यों दे रहे हो - पिता तो अपनी गलतियों की सजा जेल में काट ही रहा है. बराबर. बिलकुल सही बात है. पिता की गलतियों की सजा बेटे को नहीं मिलनी चाहिये - लेकिन ये तो उस पर लागू होगा जिसने अपने बूते कोई मुकाम हासिल किया हो.

आखिर तेजस्वी यादव के माफी मांगने के बाद बिहार के लोग आरजेडी को सत्ता सौंप दें इसके पीछे क्या तर्क हो सकता है. आखिर तेजस्वी यादव का बिहार की राजनीति में अपना योगदान क्या है? अपना अलग संघर्ष क्या है?

अगर तेजस्वी यादव बिहार के डिप्टी सीएम भी बने तो वो लालू यादव के बेटे होने के कारण - वैसे तो तेज प्रताप भी मंत्री बन गये थे. अगर लालू के बेटे न होते शायद विधानसभा का चुनाव जीतना भी मुश्किल होता.

जो स्थिति है उसमें ऐसा तो नहीं लगता कि तेजस्वी यादव के माफी मांग लेने भर से नीतीश कुमार की चुनावी सेहत पर कोई फर्क पड़ने जा रहा है, उलटे कहीं आरजेडी का वोट बैंक कन्फ्यूज हुआ तो लेने के देने भी पड़ सकते हैं.

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