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Updated: 13 नवम्बर, 2020 03:58 PM
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तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के आरजेडी विधायक दल का नेता चुनने की रस्म पूरी होने के साथ ही महागठबंधन (Mahagathbandhan MLA) की चुनावी शिकस्त की समीक्षा भी शुरू हो गयी. पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने जनादेश के लिए बिहार के लोगों का शुक्रिया अदा करने के साथ ही सबसे बड़ा इल्जाम भी जड़ दिया - हम हारे नहीं हैं, हमें हराया गया है!

तेजस्वी यादव का कहना है कि चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वो सभी उम्मीदवारों के संदेह को दूर करे - और जिस तरह से JDU के एक सांसद पर मतगणना केंद्र में दाखिल होने का गंभीर आरोप लगा है, विपक्ष के नेता की ये मांग वाजिब भी लगती है.

साथ ही, आरजेडी की तरफ से बिहार में सरकार बनाने की कोशिशों की भी खबर है. संबंधित पक्षों ने ऐसी कोशिशों की पुष्टि कर साफ कर दिया है कि ये सब कोई अफवाह नहीं है.

बेशक, किसी भी राजनीतिक दल की तरह तेजस्वी यादव को भी चुनाव बाद सरकार बनाने की कोशिश का पूरा हक है, लेकिन ये नहीं भूलना चाहिये कि उससे भी ज्यादा जरूरी विधायकों को एकजुट रखने की है - बेहतर तो ये होता कि तेजस्वी यादव सरकार बनाने की जगह किसी भी सूरत में अपने विधायकों के पाला बदल कर नीतीश कुमार ये बीजेपी (NDA) में जाने से रोकने के पुख्ता इंतजाम कर लेते.

तेजस्वी के नये तेवर

विधायक दल का नेता चुने जाने के साथ ही तेजस्वी यादव ने तेवर दिखाने शुरू कर दिये - बोले, अगर एनडीए सरकार ने वादे के मुताबिक काम नहीं किया तो आंदोलन किया जाएगा... सरकार ने 19 लाख नौकरी नहीं दी, बिहार के लोगों को दवाई, सिंचाई, पढ़ाई और कमाई नहीं दिये तो महागठबंधन आंदोलन का रास्ता अख्तियार करेगा.

पोस्टल बैलट की दोबारा गिनती कराने की डिमांड के साथ तेजस्वी यादव नेता ने दावा किया कि बिहार का जनादेश महागठबंधन के साथ था, लेकिन चुनाव आयोग के नतीजे एनडीए के पक्ष में रहे. अपने दावे के पक्ष में दलील पेश करते हुए तेजस्वी यादव ने बताया कि NDA को 37.3 फीसदी जबकि महागठबंधन को 37.2 फीसदी वोट मिले हैं. एनडीए के पक्ष में 1.57 करोड़ वोट पड़े, जबकि महागठबंधन को 1.56 करोड़ मिले और दोनों में महज 12 हजार वोटों का अंतर है.

इस बीच खबर ये भी आयी है कि तेजस्वी यादव की तरफ से बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाने की भी कोशिशें चल रही हैं और इसमें कोई बुराई भी नहीं है. अव्वल तो महागठबंधन को विपक्ष की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी मिली है, लेकिन फिर भी तेजस्वी यादव को हक है कि अगर वो महसूस करते हैं कि विधायकों का सपोर्ट हासिल कर सकते हैं तो सत्ता की चाबी हासिल करने का उनको पूरा हक भी है. जब देश में किसी दल की सरकार गिराकर कोई और पार्टी सरकार बना सकती है. जब कोई आधी रात में तैयारी कर सुबह सुबह मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकता है तो चुनाव नतीजे आने के बाद तो निश्चित तौर पर ऐसा हो ही सकता है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक आरजेडी नेतृत्व अभी तक सफलता के कोई संकेत नहीं मिले हैं, लेकिन पार्टी की तरफ से ये खुला ऑफर है. ऑफर के तहत VIP नेता मुकेश साहनी को उनकी पुरानी डिमांड के मुताबिक डिप्टी सीएम का पद देने की पेशकश की गयी है. साथ ही, आरजेडी की तरफ से पुराने सहयोगी जीतनराम मांझी से भी संपर्क साधा गया है - और सूत्रों के हवाले से प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक आरजेडी का मानना है कि असदुद्दीन ओवैसी महागठबंधन की सरकार बनने की सूरत में साथ आने को तैयार भी हैं.

tejashwi yadavतेजस्वी यादव के सामने अब चुनाव से भी बड़ी चुनौतियां हैं

रिपोर्ट के मुताबिक तेजस्वी यादव के ऑफर की VIP के एक सूत्र ने पुष्टि तो की है लेकिन लगे हाथ ये भी साफ कर दिया है कि पार्टी के एनडीए छोड़ कर फिर से महागठबंधन में जाने की संभावना नहीं के बराबर है, 'हमें डिप्टी सीएम और एक मंत्री पद की पेशकश की जा रही है... हमने अपने नेताओं के साथ इस पर चर्चा भी की है... लेकिन अगर इतनी जल्दी पाला बदलते हैं तो हमारे कैडर में एक गलत संदेश जाएगा.'

वीआईपी की ही तरह जीतनराम मांझी की पार्टी के सूत्र ने भी आरजेडी से प्रस्ताव मिलने की पुष्टि की है, लेकिन वहां भी संभावना खत्म ही नजर आ रही है. वैसे भी जीतनराम मांझी ने अपने विधायकों के साथ नीतीश कुमार से मिल कर अपनी पार्टी के समर्थन का पत्र दे दिया है.

बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को 125 और महागठबंधन को 110 सीटें मिली है. एनडीए को जहां स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ है जबकि महागठबंधन बहुमत के 122 के आंकड़े से 12 कदम पीछे रह गया है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को 5 सीटें मिली हैं लेकिन वे नाकाफी हैं. ऐसे में बगैर जीतनराम मांझी और मुकेश साहनी के तेजस्वी यादव के लिए सरकार बनाने की कोशिश मुश्किल नहीं, बल्कि नामुमकिन है.

तलवार तो तेजस्वी की पार्टी पर भी लटक रही है

किसी भी राजनीतिक दल के लिए विधायकों को अपने पाले में रखना सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रही है - भले ही वो सत्ता पक्ष का हो या फिर विपक्षी खेमे का. महाराष्ट्र, और मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान तक विधायकों को एकजुट रखने के लिए क्या क्या पापड़ बेलने पड़े पूरे देश ने देखा. कभी एक होटल से दूसरे होटल तो कही एक राज्य से दूसरे राज्य तक शिफ्ट किये जाते रहे. राजस्थान में तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विधायकों को राजभवन में धरने पर बैठाने में भी असुरक्षित महसूस करने लगे थे और कुछ ही घंटों में जिस बस से लेकर पहुंचे थे, उसी से होटल वापस लौट गये.

तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन ने जो सीटें जीती हैं, उन विधायकों पर सिर्फ बीजेपी ही नहीं नीतीश कुमार की भी तीव्र निगाह टिकी होगी. महागठबंधन की सीटें जहां बीजेपी के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं, वहीं नीतीश कुमार उनको बहुत बडे़ संबल के तौर पर देख रहे होंगे.

बीजेपी अपनी चुनाव पूर्व रणनीतियों की बदौलत जेडीयू की सीटों की संख्या कम करने में तो कामयाब रही है, लेकिन महागठबंधन की बहुमत से 12 ही कम सीटों की वजह से उसका मिशन अधूरा ही रहा है. बीजेपी के सामने हमेशा ये खतरा बना हुआ है कि नाराजगी की स्थिति में नीतीश कुमार कभी भी पाला बदल कर महागठबंधन से हाथ मिलाकर एनडीए को चकमा दे सकते हैं. जब तक महागठबंधन यूं ही मजबूत बना रहेगा बीजेपी के लिए हमेशा एक खतरा बना रहेगा.

बीजेपी की ही तरह, नीतीश कुमार भी महागठबंधन को बड़ी ही उम्मीदों के साथ देख रहे होंगे क्योंकि अगर टूट कर कुछ विधायक जेडीयू में पाले में पहुंच गये तो नीतीश कुमार भी बीजेपी के सामने सीना तान कर डट कर खड़े होने का मौका पा सकते हैं.

जिस तरह की राजनीति देश में चल रही है, उसमें नैतिक और अनैतिक जैसी बातें बेमानी लगती हैं - वैसे भी कोई पॉलिटिकल पार्टी ऐसी बातों की परवाह क्यों करे जब सत्ता से बाहर होने पर राजनीति का कोई मतलब न रह गया हो. महागठबंधन में शामिल तीनों ही दल कांग्रेस, आरजेडी और लेफ्ट सभी सत्ता से दूर होने का खामियाजा अरसे से भुगत रहे हैं.

आखिर तेजस्वी यादव भी तो ये जानते समझते हुए कि जनादेश विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए मिला है और सरकार बनाने की कवायद में अपने खास मकसद से ही तो जुटे हैं और उसके लिए एनडीए को तोड़ने की ही तो कोशिश कर रहे हैं - फिर तो क्रिया की प्रतिक्रिया तो होगी ही. वैसे भी अब न्यूटन के इस नियम का हवाला फीजिक्स की थ्योरी क्लास से ज्यादा पॉलिटिकल साइंस के प्रैक्टिकल में सुनने को मिल रहा है.

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