कोविड B.1.617 वायरस को 'भारतीय वेरिएंट' कहना एक साजिशन एजेंडा ही है
पिछले साल कोरोना वायरस को चाइनीज़ वायरस कहने के लिए डोनाल्ड ट्रंप को जो लोग रेसिस्ट कह रहे थे, उन्हें इस साल B.1.617 स्ट्रेन को 'इंडियन वेरिएंट' कहने में कोई गुरेज नहीं है. जबकि WHO ऐसा करने के लिए मना भी कर चुका है.
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बुधवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की साउथ-ईस्ट एशिया इकाई ने ट्वीट किया, 'WHO कभी वायरस या उनके वेरिएंट की पहचान उन देशों के नाम पर नहीं करता, जहां से उनके बारे में पहली जानकारी आई'. उन्होंने अपने ट्वीट में भारत में मीडिया कम्युनिकेशन की केंद्रीय नोडल एजेंसी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो सहित कई बड़े मीडिया हाउस को भी टैग किया. ताकि, यह संदेश साफ-साफ न सिर्फ मीडिया, बल्कि उन स्तंभकारों तक भी पहुंच जाए जो इस विषय पर आलोचनात्मक नजरिए से भारतीय और विदेशी प्रकाशनों में टिप्पणी कर रहे हैं.
WHO इस मामले में स्थिति स्पष्ट करने के लिए एक साफ सुथरा स्टेटमेंट लेकर आया है, क्योंकि भारत के कथित बुद्धिजीवी वर्ग ने कोरोना के B.1.617 वेरिएंट को कोरोना वायरस के 'भारतीय वेरिएंट' के रूप में प्रचलित कर दिया है. भारत में म्यूटेट हुए कोरोना वेरिएंट को 'इंडियन वेरिएंट' कहना वैसा ही है, जैसे उसे 'इंडियन वायरस' कहना. वायरस को किसी एक देश के साथ जोड़कर पुकारने का चलन, इस केस में भारत, कई तरह से गलत है. यह दुष्प्रचार फैलाने का एक अलग ही तरीका है.
कोरोना के मद्देनजर एक साजिश के तहत भारत को लगातार बदनाम करने के प्रयास किये जा रहे हैं
इस बारे में बात करने से पहले कुछ बीती बातों पर नजर डाल लेते हैं. पिछले साल, जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस को 'चाइनीज़ वायरस' कहा था, तो उनकी खूब आलोचना हुई थी. इसे रेसिस्ट नस्लीय जुमला कहा गया. बाद में अपनी चुनावी रैलियों में उन्होंने कोविड 19 को 'कुंग फ्लू' (Kung Flu) कहा तो दुनियाभर के आलोचकों ने उसे रेसिस्ट जोक करार दिया. अपना नैतिक मापदंड ऊंचा दिखाते हुए ज्यादातर दुनिया ने ट्रंप केे चीन से जुड़ेे महामारी वाले जुमलों को खारिज कर दिया. एक महामारी को किसी देश के साथ जोड़ने के प्रयास का विरोध करने वाले आलोचक, देशी हों या विदेशी, सही ही थे. क्योंकि, इसके नजदीकी और दूरगामी परिणाम काफी गंभीर ही होने वाले थे.
तो क्या ट्रंप के जुमलों का चीख चीखकर विरोध कर रहे वही लोग अब अपनी बातों में 'भारतीय वेरिएंट' शब्दावली का इस्तेमाल बेहद निश्चिंत होकर आक्रामक रूप से नहीं कर रहे हैं? क्या अब ऐसा करना नस्ली नहीं रह गया? क्या यह अब किसी एक देश के खिलाफ नहीं रह गया? या, अब ये किसी एक देश के नागरिकों के खिलाफ नहीं रह गया?
विडंबना यह है कि लिबरल अब इस बहस को आगे बढ़ाना चाहते हैं कि 'इंडियन वेरिएंट' और इंडिया क्यों विश्व (खासकर, पश्चिमी दुनिया) के लिए चिंता का सबब होना चाहिए. वे बड़े ही सुविधाजनक ढंग से अपने पिछले साल वाले नजरिए को भूल चुके हैं. जबकि WHO खुद कह चुका है कि वायरस को किसी एक देश से जोड़कर न देखा जाए, तो पश्चिमी दुनिया में रहने वाले नैतिकता और पत्रकारिता के ये स्वयंभू रक्षक भारत में महामारी के लिए जिम्मेदार वायरस को 'इंडियन वेरिएंट' कहने में हिचके क्यों नहीं?
WHO के ट्वीट के घंटों बाद भी The Washington Post की हेडलाइन कह रही थी "Indian Coronavirus variant has now spread to almost 50 countries, says WHO." (भारतीय कोरोनावायरस वेरिएंट 50 देशों तक फैला, WHO ने कहा). वहीं, The New York Times की हेडलाइन कह रही थी, “Covid-19: W.H.O. Warns India’s Homegrown Virus Variant May Be Highly Contagious” (कोविड 19: WHO ने चेताया कि भारत का देसी वायरस ज्यादा तेज संक्रमण फैला सकता है). तो सवाल उठता है कि WHO ने कहां पर 'इंडियन कोरोनावायरस' या 'भारत के देसी वायरस' की बात की थी? द वॉशिंगटन पोस्ट और द न्यूयॉर्क टाइम्स शायद इसका जवाब कभी नहीं देंगे, न ही बाकी देशी-विदेशी प्रकाशन.
उनका 'इंडियन वेरिएंट' कहना नए म्यूटेंट के वैज्ञानिक नाम को आसान बनाना नहीं है. बल्कि, ये कोशिश है एक देश और उसके लोगों पर खास तरह का ठप्पा लगाने की. और फिर सामने आती है असली नीयत: एक खास तरह के वेरिएंट को बढ़ने देने के लिए एक सरकार पर आरोप मढ़ना. सिर्फ सरकार ही नहीं, बल्कि उसके राजनैतिक नेतृत्व को भी घेरे में लेना. जैसे कि भारत के मामले में नरेंद्र मोदी.
किसी भी पश्चिमी या भारतीय प्रकाशन को ले लीजिए, वहां लिखने के लिए पश्चिमी स्कॉलर्स/बुद्धिजीवी वर्ग से अनुमोदन जरूरी होता है. इसी से अंदाजा लगा लीजिए ऐसा आक्रमण करने वाले कहां ट्रेनिंग पाते हैं. और एक बार उनके नजरिए वाली चर्चा चल पड़ी, तो व्यंग्यात्मक या गंभीर रूप में, भारतीय मीडिया संस्थान भी वही लाइन पकड़ लेते हैं. उन्हें शायद ही इस बात का एहसास होता है कि वे किस तरह अपने ही देश, और अपने लोगों का नुकसान कर रहे हैं. ये सिर्फ भारत में रह रहे लोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर उन अनिवासी भारतीयों पर भी पड़ता है जो विदेशों में बसे हैं. जिनके साथ भेदभाव किया जा सकता है, और उन्हें द्वेषपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है.
इस पर कोई दो राय नहीं है कि सरकारें (केंद्र और राज्य) कोविड की दूसरी लहर का सामना करने के लिए देश के चिकित्सा ढांचे को सुदृढ़ रखने में विफल रही हैं. लेकिन, यह भी तथ्य है कि किसी ने कल्पना नहीं की थी कि यह लहर सुनामी जैसी होगी. भारत ने आर्थिक और सामाजिक स्तर पर बहुत बड़ा नुकसान झेला है, जिसे लंबे समय तक महसूस किया जाएगा. लेकिन, इस परिस्थिति को इसी तरह देखा या प्रसारित किया जाता तो किसी को आपत्ति नहीं होती. समस्या है वो लाइन या नजरिया तय करने से, जहां मोदी विरोध और भारत विरोध में फर्क ही नहीं रह जाता.
उन्हें शायद लगता है कि लोगों की याद्दाश्त छोटी होती है. वे पुराना भूल चुके होंगे. और अब उनका स्वार्थ पूरा करने वाली जो लाइन तय होगी, उसी को सब स्वीकार कर लेंगे. उन्हें शायद ये अंदाजा नहीं है कि आम आदमी के सोचने का तरीका ही अलग होता है. वो जबरन की सिखाई-पढ़ाई में नहीं आता.
जो भी लोग 'इंडियन वेरिएंट' शब्द को प्रसारित कर रहे हैं, उन्हें एक सामान्य से सवाल का जवाब देना चाहिए कि: उन्हें कैसे पता कि वेरिएंट B.1.617 भारत में ही जन्मा है, वह बाहर से नहीं आया? इस सवाल का जवाब उनके नजरिए और स्वार्थ से मेल नहीं खाता.
(Dailyo.in से साभार)
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