शुक्रिया प्रियंका, ये पहनने के लिए !
प्रियंका ने अपने फैन्स और विरोधियों के लिए इस कवरपेज को खुद भी ट्वीट किया. इस ट्वीट को बड़ी संख्या में लाइक और रीट्वीट किया गया.
-
Total Shares
यूरोप की एक मैगजीन के कवर पर प्रियंका चोपड़ा की छपी ये तस्वीर सुर्खियों में है. कुछ इसे बेहूदगी कह रहे हैं तो कुछ इसे पसंद कर रहे हैं. हालांकि, बेहूदगी कहने वाले भी अधिकांश लोग शायद तस्वीरों को पसंद ही कर रहे होंगे. अब सोशल मीडिया पर इसका विरोध हो रहा है. विरोध जरूरी भी है. क्योंकि विरोध नहीं होगा तो भला संदेश कैसे पहुंचेगा.
The message behind our 6th anniversary issue cover. https://t.co/seAZzX1BPb #PCinCNT #WhyWeTravel pic.twitter.com/73rdX2af9Q
— Condé Nast Traveller (@CNTIndia) October 10, 2016
अमेरिका की लक्जरी और लाइफस्टाइल ट्रैवल मैगजीन Condé Nast Traveler ने अपने एन्अल इश्यू के कवर पर फिल्म एक्ट्रस प्रियंका चोपड़ा की एक तस्वीर छापी है. इस तस्तवीर के जरिए मैगजीन ने दुनियाभर को एक संदेश देने की कोशिश की है. फोटो में प्रियंका के बेहद उम्दा टैंक टॉप पर ये चार शब्द लिखे हैं – रिफ्यूजी, इमीग्रेंट, आउटसाइडर और ट्रैवलर.
प्रियंका ने अपने फैन्स और विरोधियों के लिए इस कवरपेज को खुद भी ट्वीट किया. इस ट्वीट को बड़ी संख्या में लाइक और रीट्वीट किया गया.
इस ट्वीट के बाद प्रियंका ने देश में लोगों को हैपी दशहरा बोलते हुए कहा कि आज के दिन को हम बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर मनाते हैं.
अब आप यह मत सोच लीजिए, कि विरोध टॉप पर हुआ है. विरोध टॉप पर लिखे शब्दों पर है क्योंकि कहा जा रहा है कि ये शब्द रिफ्यूजी, इमीग्रेंट और आउटसाइडर की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं. और इसे राजनीतिक तौर पर गलत भी कहा जा रहा है.
इसे भी पढ़ें: क्या यूरोप कई दंगों के लिए तैयार है?
क्वांटिको के सेट से ((तस्वीर: ट्विटर)) |
गौरतलब है कि मैगजीन, विवादों को प्रतिक्रिया लेने के लिए ही उठाती है. वह अपने कारोबार को बढ़ाने की कोशिश के चलते दुनिया को सभी के लिए सुरक्षित और सहज जगह बनाए जाने की पक्षधर है. क्योंकि लोगों में विश्वभ्रमण का रुझान बढ़ा तो कारोबार भी बढ़ा. कुछ विरोधी यह भी कह रहे हैं कि मैगजीन का यह एक चीप पब्लिसिटी लेने का तरीका है.
अब प्रियंका की इस तस्वीर का विरोध करने वालों से सवाल है कि इसमें संवेदनहीनता कैसे. कहा जा रहा है कि रिफ्यूजी और इमीग्रेट की गंभीर समस्या है. इसके साथ बाहरी को भी जोड़ दिया जा रहा है. यह समस्या पूरे यूरोप और अमेरिका की अर्थव्वस्था को निगलने का दम भी रखती है. और इसे लेकर दुनियाभर में डर का एक माहौल पैदा किया जा रहा है क्योंकि इस समस्या की शुरूआत आतंकवाद से होती है. वही आतंकवाद जिसमें धर्म और राजनीति शामिल है. वही आतंकवाद जिसमें क्रूर हिंसा है.
इसे भी पढ़ें: जन्नत के दरवाजे पर फिदायीन से हूर ने किया एक सवाल..
अब विरोध करने वाले कह रहे हैं कि आखिर इसमें किसी रिफ्यूजी, बाहरी अथवा इमीग्रेंट की क्या गलती है. वह तो अपने देशों के मौजूदा माहौल से निकलने के लिए मजबूर हैं. अपनी जिंदगी बचाने के लिए उन्हें सरहद पार कर यूरोपीय देशों और अमेरिका भागना पड़ रहा है. लिहाजा उनके पास कोई विकल्प नहीं है.
अखिर क्यों नहीं है विकल्प? क्या ऐ रिफ्यूजी अपने देश और समाज के मौजूदा माहौल को बदलने की कोशिश नहीं कर सकते? क्या ये अपने देश में आतंकवादियों के खिलाफ बंदूक नहीं उठा सकते? जब धर्म की आड़ लिए यह आतंक खुद सरहद पार कर रहा है तो कैसे महफूज हैं रिफ्यूजी? उनके साथ-साथ वह शरणर्थी देश भी तो आतंक की चपेट में आ रहा है और आतंकवाद के खिलाफ युद्ध लगडने के लिए मजबूर हो रहा है.
यदि आपके समाज, इतिहास, धर्म, भूगोल, राजनीति अथवा किसी व्यवस्था को कैंसर हो गया है तो यह सबसे पहले आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप उसका इलाज करें. कैंसर को अपने साथ लेकर सरहद पार करने से यह कैंसर महज सरहद पार भी फैलेगी और फिर रिफ्यूजी, इमीग्रेंट, आउटसाइडर जैसे शब्दों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.
आपकी राय