आतंक के विरुद्ध सेना की कारगर रणनीति
सरकार की तरफ से पूरी छूट मिलने के बाद जवानों के हौसले बुलंद हैं और वे आतंकियों के लिए कहर की तरह साबित होते नज़र आ रहे हैं.
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जम्मू-कश्मीर में इन दिनों भारतीय सेना आतंकियों के खिलाफ अत्यंत कठोर रुख अपनाए हुए हैं. सरकार की तरफ से पूरी छूट मिलने के बाद जवानों के हौसले बुलंद हैं और वे आतंकियों के लिए कहर की तरह साबित होते नज़र आ रहे. जवानों पर जब-तब कायराना हमले कर बिल में दुबक जाने वाले आतंकियों को खोज-खोज कर ख़त्म करने की कारगर रणनीति सेना ने अपनाई हुई है. सेना और ख़ुफ़िया तंत्र के बीच तालमेल के जरिए इस रणनीति को अंजाम दिया जा रहा है.
इसी रणनीति पर चलते हुए पिछले दिनों हमारे जवानों ने चौबीस घंटे के अंदर दस आतंकियों को ढेर कर दिया, जिनमें हिजबुल मुजाहिद्दीन का स्थानीय कमांडर सबज़ार अहमद बट भी शामिल था. इसके अलावा पाकिस्तान प्रेरित आतंक और पाकिस्तानी सेना को जवाब देने के मामले में भी हमारे जवानों ने अद्भुत क्षमता का प्रदर्शन किया है.
नौशेरा में अत्याधुनिक हथियारों के जरिए दूर से ही जिस तरह से सेना ने पाकिस्तानी चौकियों को तबाह किया है, वो काबिले तारीफ़ है. ऊपर-ऊपर पाकिस्तान भले ऐसे किसी हमले को न स्वीकारे, मगर अंदर ही अंदर तो ये उसके लिए बड़ी चेतावनी की तरह साबित हुआ होगा.
पिछली सर्जिकल स्ट्राइक जवानों ने उसकी सरहद में घुसकर की थी, अबकी अपनी सरहद में रहकर ही उसे हिला दिया है. साथ ही, इस अभियान का वीडियो जारी करके जवानों ने पिछली सर्जिकल स्ट्राइक के समय सबूत मांगने वाले देश के विपक्षी दलों की बोलती भी बंद कर दी है.
दरअसल हमारी सेना इस तरह की क्षमता से युक्त हमेशा रही है, मगर संप्रग सरकार ने कभी सेना को पूरी तरह से खुली छूट नहीं दी. इस कारण कश्मीर के अंदरूनी आतंकियों से लेकर पाकिस्तान की नापाकियों तक का मुंहतोड़ जवाब हमारे जवान नहीं दे पाते थे.
मगर, मोदी सरकार के आने के बाद कम से कम इतना बदलाव तो अवश्य हुआ है कि अब सेना के हाथ देश के दुश्मनों को जवाब देने के लिए खुल गए हैं. इसका उदाहरण हम म्यांमार के सैन्य अभियान से लेकर पाकिस्तान पर हुई दोनों सर्जिकल स्ट्राईकों तथा कश्मीरी आतंकियों के सफाए तक में देख सकते हैं. निहसंदेह इन सब वीरताओ का श्रेय सेना को जाता है, मगर दृढ़ इच्छाशक्ति परिचय देने के लिए मोदी सरकार भी सराहना की पात्र है.
आतंकियों के साथ-साथ सरकार की सख्ती कश्मीर के अलगाववादी नेताओं पर भी है. उनको मिलने वाली सुरक्षा और सुविधाओं आदि में तो सरकार गत वर्ष ही कटौती की पहल कर चुकी है और अब एक स्टिंग में इन अलगाववादी नेताओं के पाकिस्तान से संबंधों के उजागर होने के बाद इनपर और शिकंजा कसता जा रहा है.
एक टीवी चैनल द्वारा किए गए इस स्टिंग में हुर्रियत कांफ्रेंस के एक अलगाववादी नेता को यह कहते हुए देखा और सुना गया कि उन्हें कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए पाकिस्तान से हवाला के जरिए पैसे भेजे जाते हैं. यह अलगाववादी नेता यह भी स्वीकारता नज़र आया कि वे पत्थरबाजी से लेकर आगजनी तक तमाम तरीकों के द्वारा कश्मीर में अशांति फैलाते हैं. इस स्टिंग के बाद तत्काल राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा नईम खान समेत कई अलगाववादी नेताओं की जांच-पड़ताल शुरू कर दी गयी है.
दरअसल ये अलगाववादी संगठन आतंकी संगठनों से अधिक खतरनाक हैं क्योंकि ये देश के छिपे हुए दुश्मन हैं. ये बात इंडिया टुडे के हालिया स्टिंग में सामने आयी है और पहले भी इनकी गतिविधियों के ज़रिये सामने आती ही रही है. अतः केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार से अपेक्षित है कि वो नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मामलों में जैसी दृढ इच्छाशक्ति का परिचय दे चुकी है, वैसी ही इच्छाशक्ति का एकबार फिर परिचय देते हुए इन अलगाववादी संगठनों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाए तथा इनपर यथासंभव कठोर कार्यवाही करे.
साथ ही, ज़रूरत देश के ख़ुफ़िया तंत्र को और सजग करने की भी है, जिससे कि देश में पाकिस्तानी पैसे, हथियारों आदि का जो नेटवर्क चलने की बात सामने आती रहती है, उसका पता लगाकर उस नेटवर्क को समूल ध्वस्त किया जा सके. ये कदम न केवल कश्मीर के हालात सुधारने के मद्देनज़र आवश्यक हैं, बल्कि देश के समक्ष देश की सरकारों की कश्मीर नीति को लेकर जो एक भ्रमपूर्ण स्थिति बनी रही है, उसका निराकरण करने की दृष्टि से भी इनकी अत्यंत आवश्यकता है.
कितनी बड़ी विडम्बना है कि हम पाकिस्तान से अपेक्षा करते हैं कि वह अपने देश में जमात-उद-दावा, अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों को प्रतिबंधित करे, वहीं दूसरी तरफ हम अपने देश में इन अलगाववादी संगठनों जो देशविरोधी कृत्यों में किसी आतंकी संगठन से कतई कम नहीं हैं. अलगाववादियों को प्रश्रय देने के लिए निस्संदेह देश में सर्वाधिक समय तक केंद्र की सत्ता में रहने वाली कांग्रेस सरकारों की कश्मीर के सम्बन्ध में तुष्टिकरण की राजनीति से प्रेरित नीतियां ही काफी हद तक जिम्मेदार रही हैं.
कश्मीर समस्या को पैदा करने में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू का जितना योगदान है, उनकी परवर्ती कांग्रेस सरकारों का उतना ही योगदान इस समस्या को जटिल से जटिलतम बनाने में है. बहरहाल, पिछली सरकारों ने जो किया सो किया, लेकिन वर्तमान सरकार जम्मू-कश्मीर को नुकसान पहुंचाने वाले हर तत्व के खिलाफ एकदम कठोर नज़र आ रही है. फिर चाहें वो पाक प्रेरित आतंकी हों या जम्मू-कश्मीर को अपनी स्वार्थपूर्ति का साधन बनाने वाले अलगाववादी; इन सब के खिलाफ केंद्र की मोदी सरकार आवश्यकतानुरूप सख्त रुख का परिचय देती नज़र आ रही है.
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