"सिख चरमपंथ" : कितनी हकीकत, कितना फसाना?
ब्रिटेन में सिखों की स्थिति और उसपर पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रुख हैरत में डालने वाला है. यदि सरकार अपनी मंशा साफ नहीं करती है तो भविष्य में इसके परिणाम बड़े ही घातक सिद्ध होने वाले हैं.
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पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार एक बात पर सहमत है कि विदेश में रहने वाले कई सिख पंजाब की शांति के लिए खतरा हैं. 2015 में मीडिया रिपोर्ट्स में अज्ञात सूत्रों के हवाले से एक तथाकथित डोजियर का हवाला दिया गया था. इस डोजियर में लिखा गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसे ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को सौंपने की योजना बना रहे हैं. साथ ही रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया था कि इस डोजियर को सौंपने का मकसद कैमरन को वो बातें बताना था जिनके बारे में नई दिल्ली को लगता था कि कैमरन को उनकी जानकारी नहीं है.
जैसा कि अमूमन होता है. हमारे आईएफएस अफसरों की ओर से चुनींदा लीक के जरिए द्विपक्षीय बैठक से पहले ही मीडिया में रिपोर्ट्स प्लांट करा दी जाती हैं, वैसा ही 2015 में मोदी और कैमरन की बैठक से पहले हुआ. इन रिपोर्ट्स में कहा गया कि भारत कैमरन सरकार को एक खुफिया डोजियर देगा जिसमें ब्रिटेन में रहने वाले सिखों की कथित चरमपंथी गतिविधियों की जानकारी दी जाएगी. खतरनाक बात ये थी कि इस कथित डोजियर में ये भी कहा गया कि ब्रिटेन के युवा सिखों को बम बनाने की ट्रेनिंग भी दी जा रही है.
अमरिंदर सिंह और नरेंद्र मोदी मानते हैं कि विदेश में रहने वाले कई सिख पंजाब की शांति के लिए खतरा हैं
खबरों के नाम पर जब ऐसा खतरनाक प्रोपेगंडा किया जाता है तो खास तौर पर उन समुदायों के लिए मुश्किल हालात बन जाते हैं जो अपनी धार्मिक पहचान साथ लेकर चलते हैं. फिर भी ये प्रोपेगंडा भारत की खुफिया एजेंसियां दिल्ली में बैठे अपने दफ्तरों से जारी रखती हैं. लेकिन अब तो हद ही हो गई जब यही प्रचार पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुले आम अपने बयानों में करना शुरू कर दिया. कैप्टन ने पंजाब में हाल ही में हिंदू संगठनों के कुछ नेताओं की हत्याओं का जिम्मा विदेश में बैठे सिख संगठनों पर थोप दिया. कैप्टन ने साथ ही दावा किया कि इन संगठनों की साठगांठ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ है.
खबर है कि भारत ब्रिटेन को एक खुफिया डोजियर देने जा रहा है
इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी की भी हत्या किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराई जा सकती. उसकी जांच निष्पक्ष और बिना किसी पूर्वाग्रह से होनी चाहिए. लेकिन पंजाब के सीएम के बयानों के बाद आभास यही हुआ कि जैसे खालिस्तानी मूवमेंट फिर से जीवित हो गया है. जिस तरह कैप्टन ने बयान दिए उनमें और 2015 में मोदी सरकार के कथित डोजियर की बातों में कोई फर्क नहीं दिखा.
बता दें कि 2015 में जिस तरह की रिपोर्ट्स सामने आईं थीं, उन की सत्यता परखने के लिए ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी ने अपनी तरफ से रिसर्च कराई. जब कैप्टन अमरिंदर हाल में ब्रिटेन समेत विदेश में रहने वाले सिखों पर निशाना साध रहे थे, तभी लीड्स यूनिवर्सिटी ने अपनी उस रिसर्च के निष्कर्ष जारी किए. ये निष्कर्ष सीधे सीधे कैप्टन अमरिंदर और मोदी सरकार के तमाम दावों की हवा निकालने के लिए पर्याप्त हैं.
निष्कर्ष नंबर 1
ब्रिटेन में रहने वाले सिखों का एक्टिविजम अधिकतर आजादी से पहले और आजादी के बाद भारत में हुए मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर है.
निष्कर्ष नंबर 2
ब्रिटेन में रहने वाले सिखों का फोकस अधिकतर धार्मिक विचारधारा, अकाल तख्त की स्वायत्तता पर केंद्रित है.
डोजियर में है कि ब्रिटेन में रहने वाले सिख चरमपंथी गतिविधियों में लिप्त हैंनिष्कर्ष नंबर 3
ब्रिटेन में विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों को एक सूत्र में जोड़ने में सिखों का बड़ा योगदान है.
निष्कर्ष नंबर 4
सामाजिक और धर्मार्थ कार्यों में सिखों ने हमेशा बढ़ चढ़ कर भूमिका निभाई है.
निष्कर्ष नंबर 5
जैसा कि सरकारी दावों और भारतीय मीडिया के एक वर्ग की रिपोर्ट्स में कहा जाता रहा कि भारत में सक्रिय खालिस्तानी संगठनों को ब्रिटेन के सिख संस्थानों, संगठनों और वैयक्तिक तौर पर सिखों की ओर से फंडिंग की जाती है, उसे साबित करने वाला कहीं कोई सबूत नहीं मिला.
अब सवाल ये उठता है कि क्यों समय समय पर हमारे ही राजनेता इस तरह की खबरें फैलाते हैं. इसके पीछे क्या मकसद हो सकता है. आज का पंजाब का नौजवान तरक्की की उम्मीद करता है इसीलिए वो सबसे ज्यादा विदेश जाने की चाह रखता है. ना कि खालिस्तान के उस जिन से मिलने के लिए जो कबका बोतल में बंद है और अपनी प्रासंगिकता खो चुका है. उसका वजूद सिर्फ नारों और चंद गुरुद्वारों की सियासत तक ही सिमट चुका है. फिर क्यों राख के ढेर में दबी चिंगारी को सुलगाने की कोशिश हमारे ही लोग करते रहते हैं?
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