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Updated: 03 सितम्बर, 2015 08:40 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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लखनऊ की प्रेस कांफ्रेंस से कई बातें साफ हो गई हैं. अब जनता परिवार की बात खत्म हो गई है. लालू-नीतीश गठबंधन से समाजवादी पार्टी अलग हो गई है. समाजवादी पार्टी बिहार में अकेले चुनाव लड़ेगी.

लेकिन क्या इसके पीछे वही वजह है जिसके कारण केंद्र में विपक्ष में फूट पड़ गई? और मॉनसून सत्र के आखिर में कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्ष से समाजवादी पार्टी अलग हो गई!

स्थानीय नेताओं का दबाव या कुछ और

वैसे तो समाजवादी पार्टी के बिहार के नेताओं ने अनशन किए और धरने पर भी बैठे. फिर महागठबंधन की ओर से एसपी को पांच सीटें देने की बात भी कही गई.

वैसे बिहार में समाजवादी पार्टी को ज्यादा सीटें क्यों चाहिए? वो भी महागठबंधन की सीटों में बंटवारा करके? अगर जनता परिवार खड़ा हुआ होता तो भी यूपी में तो बड़ी दावेदारी का हक बनता - लेकिन बिहार में तो ऐसा शायद ही हो पाता. खासकर तब जब वहां लालू प्रसाद और नीतीश कुमार बड़े दावेदार हों.

पटना रैली का साइड इफेक्ट है क्या

मुलायम सिंह यादव को एक बात अच्छी नहीं लगी थी. नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के ऐन पहले राहुल गांधी से उनकी मुलाकात. राहुल से पहले नीतीश ने मुलायम से ही मुलाकात की थी क्योंकि लालू ने मांझी नाम का 'दूसरा' जो उछाल रखा था.

दिल्ली में सोनिया की इफ्तार पार्टी से मुलायम सिंह दूर रहे - क्योंकि उन्होंने लखनऊ में कार्यक्रम बना लिया था - और लालू ने पटना में. और अभी अभी सोनिया गांधी के साथ लालू और नीतीश ने पटना रैली में स्टेज शेयर किया.

तो क्या यही बात समाजवादी पार्टी के नेताओं को हजम नहीं हो पाई. वैसे इस मामले में वो कह सकते हैं कि पार्टी की ओर से शिवपाल यादव ने नुमाइंदगी तो की ही थी. अब जहां आरजेडी की ओर से लालू प्रसाद हों, जेडीयू की ओर से नीतीश कुमार हों और कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी हों वहां समाजवादी पार्टी की ओर से मुलायम सिंह की जगह कोई और हो तो सवाल तो उठेगा ही.

क्या ये बीजेपी से करीबी का संकेत है

संसद चलने देने के मुद्दे पर मुलायम सिंह ने कांग्रेसी नेतृत्व वाले विपक्ष से अलग स्टैंड लिया. इसके लिए बीजेपी संसदीय बोर्ड की मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी ने मुलायम की तारीफ भी की - और बाद में पार्टी प्रवक्ताओं ने प्रचारित भी खूब किया.

कुछ दिनों से यूपी में भी समाजवादी पार्टी और बीजेपी की नजदीकियों की खबरें आ रही हैं. माना तो यहां तक जा रहा है कि बीजेपी और एसपी के बीच चुनावी गठबंधन भी हो सकता है. यूपी में बीजेपी और एसपी को खतरा सिर्फ मायावती से है. कांग्रेस अभी तक अपना कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई है. वैसे एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर के तहत मायावती अपनी वापसी मान कर चल रही हैं.

जवाब तो दिए लेकिन साफ नहीं

प्रेस कांफ्रेंस में जब हाल में हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकातों के बारे में पूछा गया तो समाजवादी पार्टी नेता ने कहा कहा कि प्रधानमंत्री से मिलना कोई पाप तो है नहीं.

एक सवाल नोएडा के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह को लेकर था, जवाब मिला, उनकी पार्टी का सिंह से कोई लेना देना नहीं है. भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे यादव सिंह केस की जांच सीबीआई कर रही है.

हां, राम गोपाल यादव ने एक बात जरूर साफ साफ कही, "जनता परिवार कब एक हो पाया है?"

बात जहां से भी शुरू हुई हो. चाहे जहां जाकर खत्म हो. महागठबंधन से समाजवादी पार्टी के अलग होने का बिहार में सीधा फायदा तो बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को ही मिलेगा. सुशील मोदी भी इसे पूरा हवा दे रहे हैं कि मुलायम सिंह यादव जैसा बड़ा नेता अलग हो गया तो गठबंधन में बचा ही कौन?

पर्दे के पीछे की राजनीति जो भी रही हो, लेकिन जिस महागठबंधन को खड़ा करने के लिए मुलायम ने इतनी मशक्कत की, उससे उन्हीं का हट जाना मामूली बात तो है नहीं.

मुलायम सिंह के महागठबंधन छोड़ने के पीछे क्या केंद्र सरकार ने नजदीकियां हैं. या फिर, असल वजह कांग्रेस से रिश्तों में बढ़ते फासले?

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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