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Updated: 11 जून, 2017 05:26 PM
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गुजरात में बीजेपी की ओर से कार्यकर्ताओं को शुकराने का मैसेज भेजा गया. रिकॉर्डेड मैसेज पहुंचाने वाले नंबर को ट्रू-कॉलर पर चेक करने पर पता चला कि उसमें तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नाम आ रहा है - और कई लोगों ने उसे बतौर स्पैम मार्क किया हुआ है. हालांकि, पता चला कि ये सब तकनीकी गड़बड़ी के चलते हुआ था.

वैसे अब कम ही संभावना है कि केजरीवाल गुजरात के लोगों को खुद ऐसा कोई मैसेज भेजें - क्योंकि हालात और कुछ बातों के मद्देनजर आम आदमी पार्टी गुजरात चुनाव से दूरी बनाने के बारे में गंभीरता से सोच रही है.

सवाल ये है कि केजरीवाल के इस फैसले से बीजेपी की सियासी सेहत पर कितना फर्क पड़ेगा?

गुजरात चुनाव

जब पंजाब और गोवा में चुनावी माहौल चरम पर थे, केजरीवाल सहित आप के तमाम नेता उछल उछल कर गुजरात चुनाव में भी हिस्सेदारी की बात कर रहे थे. तब तो केजरीवाल ने सूबे की 182 सीटों पर चुनाव लड़ने की भी घोषणा कर डाली थी. केजरीवाल ने गुजरात का दौरा भी किया - लेकिन दिल्ली में एमसीडी चुनाव के दौरान अपना गुजरात दौरा टाल भी दिया.

जाहिर है पंजाब, गोवा और एमसीडी चुनावों के नतीजे और होते तो बात भी और होती, लेकिन फिलहाल तो गुजरात के नेताओं के साथ कई दौर के मंथन के बाद ऐसा कुछ निकल कर नहीं आया है कि जो चुनाव लड़ने के संकेत देता हो.

arvind kejriwalसीधी टक्कर नहीं, मगर मुश्किलें कम नहीं...

गुजरात से आये नेताओं ने सभी 182 सीटों पर अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. ये तो सच है कि कार्यकर्ता दो साल से तैयारी में जुटे हुए हैं लेकिन कहीं 80 फीसदी तैयारी है तो कहीं महज 20 फीसदी ही, जिसे औसतन 50 फीसदी माना जा रहा है. ऐसे में चुनाव लड़ने पर पंजाब-गोवा से बेहतर स्थिति की संभावना नहीं बनती.

लगातार हार के अलावा केजरीवाल के गुजरात चुनाव छोड़ देने की एक बड़ी वजह और है - आप में फंडिंग की समस्या. फंडिंग की समस्या से जूझ रही आप को उबारने का जिम्मा भी केजरीवाल ने खुद अपने हाथ में लिया है. आम आदमी पार्टी के करीब 3 लाख 50 हजार चंदा देने वालों को ईमेल भेजकर केजरीवाल ने डोनेशन देने की मांग की है. इस ईमेल को आप की वेबसाइट पर शेयर भी किया गया है और दिल्ली सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए सपनों के भारत के निर्माण के लिए छोटा सा योगदान देने की अपील की गयी है - कम से कम 500 रुपये.

अब देखना होगा कि केजरीवाल के गुजरात चुनाव से दूरी बनाने पर किसे फायदा मिलता है और किसे नुकसान होता है. मोटे तौर ये तो कहा जा सकता है कि बीजेपी और केजरीवाल में सीधा टकराव टल जाएगा लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है. केजरीवाल के गुजरात चुनाव न लड़ने से उस पार्टी को फायदा मिलेगा जिसका वोट वो काटते. इसमें पहले नंबर पर तो कांग्रेस है. उसके बाद बारी आती है हार्दिक पटेल की भले वो अकेले चुनाव लड़ें या फिर किसी के साथ गठजोड़ करें. यानी कुल मिलाकर बीजेपी की मुश्किल बढ़ने वाली है.

राष्ट्रपति चुनाव

केजरीवाल को उस दावत में शामिल नहीं किया गया था जिसमें 17 पार्टियों के नेता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ लंच किये थे. पता चला केजरीवाल को दावत के लिए न्योता ही नहीं भेजा गया था. अब माना जा रहा है कि स्थिति बदल रही है.

राष्ट्रपति चुनाव के सिलसिले में केजरीवाल से ममता बनर्जी तो पहले ही मुलाकात कर चुकी हैं, ताजा मुलाकातियों में शामिल हैं - सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी और जेडीयू नेता शरद यादव. शरद यादव को उम्मीदवारों की लिस्ट में भी शामिल माना जा रहा है.

इन मुलाकातों के बाद संकेत देने की कोशिश की गयी है कि केजरीवाल बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता का हिस्सा बन सकते हैं. इससे पहले कांग्रेस केजरीवाल को साथ लेने के पक्ष में नहीं रही और केजरीवाल के भी साथ होने की संभावना कम ही जतायी जा रही थी. ये मामला भी कुछ कुछ वैसा ही है जैसे मायावती अब अखिलेश यादव से हाथ मिलाने को तैयार हो गयी हैं.

अभी ये साफ नहीं है कि अगर केजरीवाल विपक्ष का साथ देते हैं तो क्या वो सिर्फ राष्ट्रपति चुनाव तक ही सीमित रहेगा या फिर आगे भी. वैसे विपक्ष तो 2019 की ही तैयारी में लगा है, राष्ट्रपति चुनाव तो महज मॉडल टेस्ट पेपर जैसा ही है.

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