EVM से मतदान में खोट नहीं, तकनीकी खामियां हैं तो दूर की जा सकती हैं
क्या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन(ईवीएम) से मतदान फुलप्रूफ है? या नतीजे प्रभावित करने के लिए इनसे छेड़छाड़ संभव है? क्या बैलट पेपर से ही वोटिंग की व्यवस्था को फिर से बहाल किया जाना चाहिए?
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ऐसे ही सवाल देश में कई जगह से उठ रहे हैं. पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से मतदान को लेकर फिर बवाल मचा हुआ है. उत्तर प्रदेश में करारी हार झेलने वाली बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने ईवीएम से मतदान को धोखाधड़ी बताते हुए कोर्ट जाने की बात कही है. साथ ही कहा है कि वो इसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन छेड़ेगी.
उधर, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी 'आम आदमी पार्टी की पंजाब में हार के बाद ईवीएम से मतदान पर सवाल उठाया है. केजरीवाल का कहना है कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. उनका आरोप है कि पंजाब में 'आम आदमी पार्टी' के 20 से 25 फीसदी वोट अकाली-बीजेपी गठबंधन को ट्रांसफर हुए लगते हैं.
वैसे देखा जाए तो पिछले कुछ चुनावों से देश के राजनीतिक गलियारों में ये परिपाटी हो चली है कि जो पार्टी हारती है वो ईवीएम पर सवाल उठाती है और जो जीतती है उसे इस पर कोई परेशानी नजर नहीं आती. यही सवाल 2014 में आधे से अधिक आम चुनाव संपन्न हो जाने के दौरान भी उठा था.
हालांकि चुनाव आयोग कई मौकों पर साफ कर चुका है कि ईवीएम में गड़बड़ी नहीं की जा सकती? दिल्ली हाईकोर्ट ईवीएम की उपयोगिता को मानते हुए इन्हें देश के चुनाव-तंत्र का अभिन्न हिस्सा बता चुका है. बैलेट पेपर के बेतहाशा खर्च से भी छुटकारा मिला है और नतीजे भी तेजी से मिलते हैं.
चुनाव आयोग के लिए भौगोलिक रूप से इतने विशाल देश में निष्पक्ष और साफ-सुथरे चुनाव कराना कितनी बड़ी चुनौती है, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. जहां मतदान के लिए लाखों ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है, वहां कुछेक मशीनों में तकनीकी गड़बड़ी मिलना स्वाभाविक बात है. हां, अगर ईवीएम को लेकर सवाल उठाया ही जाना है, तो वो यह है कि कैसे इससे वोटिंग को और बेहतर बनाया जाए.
बेशक, ईवीएम व्यवस्था जबसे शुरू हुई है, मतदान की गोपनीयता को लेकर जरूर कुछ समझौता करना पड़ा है. जब बैलेट पेपर से मतदान होता था, तो गिनती के वक्त पहले सभी मतपत्रों को मिक्स किया जाता था. चुनाव आचार संहिता ऐक्ट-1961 के नियम 59 ए के तहत ऐसा करना जरूरी है. मतपत्रों को इसलिए मिलाया जाता था कि किसी को अंदाज न हो कि किस पोलिंग बूथ से किस उम्मीदवार को कितने मत मिले. ईवीएम आने के बाद मिक्सिंग की परंपरा खत्म हो गई. हालांकि विशेषज्ञों ने अब इसका भी समाधान टोटलाइजर के जरिए निकाल लिया है, जिसमें ईवीएम को एक केबल से जोड़ दिया जाता है. अभी हर पोलिंग बूथ के लिए ईवीएम के मतों की अलग-अलग गिनती होती है. ये देखना होगा कि देश में ईवीएम से मतों की गिनती के दौरान टोटलाइजर का इस्तेमाल कब शुरू हो पाता है?
ईवीएम में गड़बड़ी की आशंका को पूरी तरह खारिज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में चुनाव आयोग से पर्ची की व्यवस्था 'वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल' (VVPAT) करने के लिए कहा. इसमें ईवीएम से वोट देने के बाद वोटर को मशीन में एक पर्ची दिखती है, जिस पर बटन दबाए गए उम्मीदवार का नाम, नंबर और चुनाव चिन्ह दिखता है. यह पर्ची एक बॉक्स में गिर जाती है. गिनती को लेकर कोई विवाद होता है, तो इन पर्चियों को गिना जा सकता है. अब चुनींदा मतदान केंद्रों पर इसका इस्तेमाल भी हो रहा है. इस व्यवस्था को सभी मतदान केंद्रों पर लागू करने के प्रयास किए जाने चाहिए.
अरविंद केजरीवाल का कहना है कि पंजाब में इस बार 32 जगह VVPAT का इस्तेमाल किया गया. उनकी चुनाव आयोग से मांग है कि यहां के नतीजों की तुलना शेष जगहों के नतीजों से कराई जानी चाहिए.
2004 के आम चुनाव के दौरान पहली बार पूरे देश में ईवीएम से मतदान की व्यवस्था की गई थी. तब से अब तक कई चुनाव संपन्न हो चुके हैं. अब दोबारा बैलेट पेपर से चुनाव की मांग करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता. ईवीएम से मतदान में कुछ तकनीकी खामियां हो सकती हैं लेकिन इसमें खोट देखना उचित नहीं है. तकनीक में अगर कोई दिक्कत है तो उसका समाधान भी तकनीक से निकलेगा.
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