नेता नहीं पर विपक्ष दिखा, पूरे सेशन सरकार नजर नहीं आई
बाहर तो मौसम तकरीबन सूखा ही रहा, लेकिन सदन के भीतर बवालों की बारिश होती रही. इस्तीफे की मांग से शुरू हुआ हंगामा पारिवारिक इतिहास तक जाकर खत्म हुआ. "अपनी ममा से पूछो..."
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पूरा मॉनसून सेशन हंगामे की भेंट चढ़ गया. बाहर तो मौसम तकरीबन सूखा ही रहा, लेकिन सदन के भीतर बवालों की बारिश होती रही. इस्तीफे की मांग से शुरू हुआ हंगामा पारिवारिक इतिहास तक जाकर खत्म हुआ. "अपनी ममा से पूछो..."
नेता नहीं तो क्या हुआ
संसद में कोई विपक्ष का नेता नहीं था. ऐसा इसलिए क्योंकि चुनाव में किसी भी पार्टी को इतनी सीटंज नहीं मिलीं कि उसकी लीडर ऑफ अपोजीशन के पद पर दावेदारी बने. बजट सेशन में ही सोनिया गांधी ने लैंड एक्वीजीशन के मुद्दे पर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की और सबको साथ लेकर राष्ट्रपति भवन तक मार्च किया. फिर राहुल गांधी ने भी सोनिया को ज्वाइन कर लिया.
कांग्रेस के पास विपक्ष के नेता का पद नहीं था. राहुल गांधी भी बोलने के लिए नोट लिख कर लाते थे. फिर भी कुछ होने नहीं दिया. क्या संसद को लेकर सरकार और विपक्ष की रणनीतियों में वरिष्ठ नेताओं की भी भूमिका रही? एक राय निकल कर आई कि कांग्रेस इसलिए भारी पड़ी क्योंकि उसने रणनीति तैयार करने में वरिष्ठों की रायशुमारी को अहमियत दी, जबकि बीजेपी ने उन्हें मार्गदर्शक मंडल तक सिमटे रहने दिया.
सत्ता पक्ष की ओर से वरिष्ठों की मौजूदगी सिर्फ एक बार दिखी जब सुषमा के भाषण पर वो उन्हें पीठ थपथपा कर शाबाशी दे रहे थे.
16 साल में पहली बार
"क्या बोला?" ये बोलते गुस्से से आग बबूला सोनिया सदन के वेल तक पहुंच गईं. 16 साल के उनके संसदीय जीवन में ऐसा पहली बार हुआ कि सोनिया गांधी सदन के वेल तक पहुंच गईं. अटैक पर्सनल जो था.
"राहुल की मौसी के पास कितना ब्लैक मनी है?"
ये बात भी कही उस शख्स ने जो कहीं न कहीं हंगामों की वजह के मूल में था.
बीजेपी सांसद दुष्यंत सिंह की ये बात सुनते ही सोनिया गांधी आग बबूला हो गईं और स्पीकर के पास पहुंच कर बोलीं, "व्हॉट इज दिस?"
दुष्यंत सिंह राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेटे हैं. ललित मोदी की मदद को लेकर विपक्ष जिन नेताओं के इस्तीफे की मांग पर अड़ा था उनमें एक नाम वसुंधरा राजे का था जबकि दूसरा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का. इस क्रम में तीसरा नाम व्यापम घोटाले को लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का था.
बड़े दिनों बाद
अरसे बाद ऐसा हुआ कि एक साथ 25 सांसदों को सदन से सस्पेंड कर दिया गया. कांग्रेस सांसदों के खिलाफ स्पीकर की इस कार्रवाई पर पूरा विपक्ष साथ नजर आया - और सदन से वॉकआउट किया.
विपक्ष की ओर से दो नाम सामने आए जो चाहते थे कि सदन चले. पहला नाम था कांग्रेस नेता शशि थरूर का. इसके लिए भरी सभा में उन्हें सोनिया के गुस्से का भी शिकार होना पड़ा. दूसरा नाम समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का रहा, जिनके यू-टर्न और प्रधानमंत्री द्वारा बीजेपी संसदीय बोर्ड की मीटिंग में तारीफ चर्चाओं का हिस्सा बनी. हालांकि, अब तक साफ नहीं हो पाया है कि मुलायम का स्टैंड आगे क्या होगा?
द लास्ट डे शो
मॉनसून सेशन का आखिरी दिन बिजनेस के हिसाब से भले ही बेकार रहा हो, दर्शकों के लिए तो रोचक भी रहा और रोमांचक भी. पिछली लोक सभा के आखिरी दिन की तरह मॉनसून सेशन के अंतिम दिन सुषमा स्वराज पूरे फॉर्म में नजर आईं.
राहुल गांधी के निजी हमलों का सुषमा ने चुन चुन कर जवाब दिया. राहुल ने सवाल किया था कि ललित मोदी से कितने पैसे मिले? बाद में राहुल ने ये भी दावा किया कि जब सुषमा से उनकी मुलाकात हुई तो उनकी नजरें झुकी हुई थीं.
सुषमा ने राहुल के इस दावे का खंडन तो नहीं किया लेकिन राहुल को टारगेट करते वक्त पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी घसीट लिया. राहुल के ललित मोदी से पैसे लेने के सवाल के जवाब में सुषमा ने वॉरेन एंडरसन और ओट्टावियो क्वात्रोकी के नाम लिए और छुट्टियों में परिवार का इतिहास पढ़ने की सलाह दी.
और इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए कहा, "ममा से पूछिए."
बहरहाल, जो हुआ सो हुआ. अब सूत्रों के हवाले से खबर निकल कर आ रही है कि सरकार 31 अगस्त से चार सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुला सकती है. जब इस बारे में वित्त मंत्री अरुण जेटली से पूछा गया तो गोलमोल जवाब देते हुए उन्होंने जीएसटी को लेकर सरकार का संकल्प दोहराया. साफ सिर्फ इतना किया कि रणनीति पहले से तय है, पर बताएंगे नहीं.
सदन चलाने की असली जिम्मेदारी सरकार की होती है - और नैतिक जिम्मेदारी विपक्ष की. जिम्मेदारियों को लेकर दोनों पक्षों की अपनी अपनी दावेदारी रही है. लेकिन लगा ऐसा जैसे सड़क से लेकर संसद तक विपक्ष का ही बोलबाला हो - और सरकार नदारद रही. हां, आखिर आते आते सत्ता पक्ष सड़क पर नजर आने लगा है.
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